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पुलिस करवाये शिकार और पुलिस ही पाये पुरुस्कार

पुलिस करवाये शिकार और पुलिस ही पाये पुरुस्कार (मेरी कान्हा यात्रा-16) - पंकज अवधिया कान्हा नेशनल पार्क के बालाघाट वाले क्षेत्र मे बाघ और तेन्दुओ के शिकार से सम्बन्धित एक सनसनीखेज खुलासा हाल ही मे मेल टुडे ने किया था। खुलासे के अनुसार पुलिस इस गोरखधन्धे मे शामिल थी। पुलिस स्थानीय व्यक्ति को पाँच हजार रुपये देकर पार्क के अन्दर छोटे जानवरो को मारकर उसके शरीर पर जहर छिडककर रखने के लिये कहती थी। जब इस जहर युक्त प्राणी को खाने के बाद बाघ या तेन्दुए मर जाते थे तो स्थानीय व्यक्तियो द्वारा ही खाल निकाल ली जाती थी। इस खाल की “जब्ती” बनाकर पुलिस वाले इसे वन विभाग के सामने प्रस्तुत कर देते थे। वन विभाग़ खाल जब्त करने वालो को पच्चीस हजार रुपयो का इनाम देता है। इस तरह पुलिस वाले प्रति शिकार बीस हजार रुपये कमा लेते थे। मुझे यकीन है कि आपने यह खबर नही पढी होगी। जिस खबर से दिल्ली मे बैठे योजनाकारो को हिल जाना चाहिये, वह हाशिये मे रह गयी। बात आयी-गयी हो गयी और कौन जाने यह खेल अब भी जारी हो? मैने अपनी कान्हा यात्रा के दौरान इस खबर पर लोगो की राय जाननी चाही तो मिश्रित प्रतिक्रियाए मिली। इक्के-दु...

कान्हा मे राजीव गाँधी की यात्रा , सोन कुत्ते और जंगली तुअर

कान्हा मे राजीव गाँधी की यात्रा , सोन कुत्ते और जंगली तुअर (मेरी कान्हा यात्रा-15) - पंकज अवधिया “जनप्रिय नेता माननीय राजीव गाँधी जब कान्हा आये थे तो उन्होने सोन कुत्ता देखने मे रुचि दिखायी। सोन कुत्तो को आसानी से देख पाना सम्भव नही है इसलिये एक “पाडा” बन्धवाया गया और तब जाकर सोन कुत्तो के दर्शन हो सके। पहले देशी-विदेशी मेहमानो के लिये पाडा और हाँका की व्यवस्था थी पर अब इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। भले इन दोनो का चलन बन्द हो गया हो पर अभी भी भले आम पर्यटको को बाघ न दिखे पर खास लोग को यह दिखा ही दिया जाता है।“ देर रात की चर्चा मे मुझे कान्हा के बारे मे दिलचस्प किस्से सुनायी पड रहे थे। मैने इन किस्सो पर दूसरे लेखको के विचार जानने के लिये इंटरनेट को खंगाल डाला पर कान्हा के बारे मे इतनी दिलचस्प जानकारी कही नही मिली। कान्हा पर लिखी जा रही इस लेखमाला को कोई पढे या न पढे पर एनडीटीवी के माननीय रवीश जी अवश्य पढ रहे है। 3 जून, 2009 को दैनिक हिन्दुस्तान मे हिन्दी ब्लागो पर छपने वाले साप्ताहिक स्तंभ मे उन्होने “मेरी कान्हा यात्रा” के बारे मे लिखा। इस उत्साहवर्धन के लिये मै उनका आभारी ...

कान्हा मे पालतू पर फालतू हाथी

कान्हा मे पालतू पर फालतू हाथी (मेरी कान्हा यात्रा-14) - पंकज अवधिया “फिर वह दिन भी आया जब क्रोधित बेकाबू हाथियो ने पार्क के पास की एक बस्ती को घेर लिया। लोग भागकर ऊँची जगहो पर चले गये। पर जिसकी तलाश हाथियो को थी उन्होने उसे नही जाने दिया। पहले उसे पटका। सिर को धड से अलग किया और फिर एक घंटे तक उसके शरीर को फुटबाल की तरह हवा मे उछालते रहे।“सफारी के दौरान साथ चल रहे लोग हाथियो के उत्पात की दिल दहलाने वाली घटना के बारे मे बता रहे थे जो कान्हा से जुडी थी। वे कह रहे थे कि मद के दिनो मे हाथियो का आतंक इतना बढ गया कि स्थानीय लोग हाथियो के बस्ती की तरफ बढने की बात सुनते ही सामान बाँध कर भागने लगते थे। हाथी कान्हा के मूल वाशिन्दे नही है। पर्यटन के लिये हाथियो को पार्क मे रखा गया है। सफारी के दौरान पार्क मे हाथी कई बार दिखे पर जब भी मैने कैमरा तैयार किया गाइड बोल पडे कि ये जंगली नही पालतू हाथी है। अन्दमान से हाथी और हाथी वाले यानि महावत आये है। जब हाथियो ने उस व्यक्ति को इस क्रूरता से मारा था उसके बाद कुछ समय तक हाथी की पीठ पर पर्यटको को पार्क मे घुमाना बन्द कर दिया गया था। कुछ दिनो बाद ...

बरगद वाले हिरण और पानी के लिये कोहराम

बरगद वाले हिरण और पानी के लिये कोहराम (मेरी कान्हा यात्रा-13) - पंकज अवधिया खटिया गेट से पार्क के अन्दर घुसते ही एक बडा सा बरगद का पेड दिखता है। हमने जब सफारी शुरु की तो इस पेड के नीचे हिरण का एक समूह देखा। जब वापस लौटे तो वह समूह उसी पेड के नीचे जमा हुआ था। अगली सुबह जब वे फिर वही दिखे तो मैने गाइड से पूछ ही लिया। उसने कहा कि ये यही डेरा जमाये रहते है। मानव की बस्ती पास मे है इसलिये इन्हे यहाँ सुरक्षित लगता है। रात मे बहुत से शाकाहारी जीव बाघ से बचने इस गेट के पास आ जाते है। पर ज्यादातर सुबह वापस लौट जाते है। गाइड की बात सुनकर मैने सामने दिख रहे स्थायी समूह का नाम “बरगद वाले हिरण” रखने मे देरी नही की। इस विशाल पेड के पास पर्यटक अक्सर रुकते है क्योकि शाखाओ मे उल्लू बैठे दिखायी दे जाते है। मुझे छत्तीसगढ के बारनवापारा अभ्यारण्य की याद आ रही है। गर्मियो मे यहाँ भी हिरण बस्ती के पास पहुँच जाते है। गाँववालो के तो ये कम शिकार बनते है पर कुत्तो के सहज शिकार हो जाते है। कुत्तो को एक बार इनका स्वाद लग जाये फिर वे एक-एक करके सभी हिरणो को मारते जाते है। पिछले साल मेरी एक यात्रा के दौरान म...

मुम्बई हमले ने की विदेशी पर्यटको की संख्या मे कमी

मुम्बई हमले ने की विदेशी पर्यटको की संख्या मे कमी (मेरी कान्हा यात्रा- 11 ) - पंकज अवधिया इस बार कान्हा मे पर्यटको का जबरदस्त टोटा है। क्या यह मन्दी का असर है? विदेशी पर्यटक तो जैसे पैसे खर्च करना ही नही चाहते। कान्हा मे सभी के चेहरे पर चिंता की लकीरे साफ दिखती है। रात को चर्चा के दौरान स्थानीय लोगो ने बताया कि मन्दी से ज्यादा मुम्बई हमलो ने हमारी कमर तोड दी है। उसके बाद से पर्यटको का आना एकदम से कम हो गया है। पहले भारत को सुरक्षित देश माना जाता था पर अब जब जान पर ही बन आये तो भला कोई क्यो आना चाहेगा? देशी पर्यटक बजट देखकर चलते है। उनसे मोटी कमायी की ज्यादा उम्मीद नही की जा सकती-ऐसा लोगो ने बताया। उनका व्यवसाय विदेशी पर्यटको से चलता है। मुझे अपनी यात्रा के दौरान बहुत कम विदेशी सैलानी दिखे। उनसे चर्चा हुयी तो वे अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित दिखे। वे भारत की मेहमाननवाजी से खुश दिखे पर येन-केन-प्रकारेण ऐसे या वैसे, किसी भी रुप मे अतिरिक्त पैसे झटक लेने के रिवाज से कुछ क्षुब्ध दिखे। अक्सर विदेशी पर्यटक इंटरनेट के इस युग मे अपनी भारत यात्रा के हर पहलू पर लेख लिखते है। इ...

आप कान्हा आये और खातिरदारी का मौका ही नही दिया

आप कान्हा आये और खातिरदारी का मौका ही नही दिया (मेरी कान्हा यात्रा-10) - पंकज अवधिया “आपके लेखो ने तो हमारे विभाग मे हडकम्प मचा रखा है। अब और कितना लिखेंगे? आप कब आये और इतने दिन बिता कर चले गये हमे कानो कान खबर तक नही हुयी। आपने हमे खातिरदारी का मौका ही नही दिया। सूखे-सूखे चले गये। आपके लिखे को पढकर लगता है कि आप कान्हा मे पन्द्रह दिन तो अवश्य रुके होंगे। आपने न जाने कितनी सफारी की होगी पर रजिस्टर मे आप दिखे नही। क्या सब गोपनीय तरीके से किया? अगली बार आइयेगा तो सूचना देकर आइयेगा-----“ कान्हा यात्रा पर लिखी जा रही इस लेखमाला को पढकर जंगल विभाग के एक मित्र ने यह सन्देश भेजा। ब्लाग पर लिखे जा रहे इस हिन्दी लेखमाला को इस तरह से पढा जायेगा इसकी उम्मीद कम थी। 13 मई, 2009 को दोपहर तीन बजे पहुँचने के बाद मै दूसरे दिन अर्थात 14 मई को दो बजे वापस लौट पडा यानि मै चौबीस घंटो से भी कम समय तक कान्हा मे रुका। इस छोटी यात्रा मे मैने दो सफारी की। हजारो चित्र लिये। दो बार उसे भी देख लिया न चाहते हुये भी, जिसे देखने लोग मजमा लगाये रहते है यानि कि टाइगर। रात की नीन्द भी ली। दसो स्वास्थ्य समस्याओ से जूझ ...

जैव-विविधता को धता बताते हुये यूकिलिप्टस को बढावा

जैव-विविधता को धता बताते हुये यूकिलिप्टस को बढावा (मेरी कान्हा यात्रा-8) - पंकज अवधिया “कान्हा और आस-पास के गाँव मे बडी मात्रा मे यूकिलिप्टस का रोपण किया जाना है। इसके लिये लगातार बैठके लेकर किसानो को प्रेरित किया जा रहा है कि वे इस विदेशी प्रजाति को बडे पैमाने पर लगाये।“ कान्हा पहुँचते ही मेरी मुलाकात श्री अमित से हुयी जो बफर जोन समिति के अध्यक्ष है। वे अपना एक मोटल चलाते है। उन्होने ने ही इस बैठक के बारे मे बताया। जैव-विविधता से पूर्ण कान्हा नेशनल पार्क के इतने करीब आस्ट्रेलियाई मूल के यूकिलिप्टस का रोपण समझ से परे है। आम जनता यूकिलिप्टस के बारे मे सब जानती है। देश जल संकट से गुजर रहा है और हमारे योजनाकार भूमिगत जल के शत्रु को बढावा दे रहे है। कान्हा की चिडियो को देखने दूर-दूर से लोग आते है। यूकिलिप्टस चिडियो के लिये अभिशाप है। इसकी पत्तियाँ जब जमीन मे गिरती है तो देर से सडती है। जमीन को सदा के लिये अम्लीय कर देती है। फिर यूकिलिप्टस से निकले एलिलोरसायन अपने आस-पास गिनी-चुनी वनस्पतियो को ही उगने देते है। यह जाने बगैर कि यूकिलिप्टस कान्हा की किन प्रजातियो को सीधे नुकसान पहुँचायेगा,...

साल के फूल, बवासिर और कान्हा

साल के फूल, बवासिर और कान्हा (मेरी कान्हा यात्रा-1) - पंकज अवधिया “21 लौंग और 21 साल के फूल व फल लीजिये और फिर उसमे पाँच तरह की पत्तियो को मिलाइये। एक मात्रा बवासिर (पाइल्स) से प्रभावित लोगो को दीजिये और उन्हे इस महारोग से सदा के लिये मुक्ति दिलवाइये।“ कान्हा नेशनल पार्क के गाइड ने मुझे यह जानकारी दी तो मैने तुरंत की इसे दर्ज कर लिया। कान्हा मे साल (शोरिया रोबस्टा) के जंगल है। अभी उनमे पुष्पन और फलन हो रहा है। साल के जंगल छत्तीसगढ मे भी है। पिछले सप्ताह मै इन जंगलो मे था। साथ मे पारम्परिक चिकित्सक भी थे। उन्होने फूलो के प्रयोग से किसी भी तरह के दस्त की चिकित्सा के बारे मे बताया था। वे शायद कान्हा के गाइड की तरह इसके बवासिर मे उपयोग के विषय मे नही जानते होंगे। मैने इन जानकारियो को सीजीबीडी नामक डेटाबेस मे दर्ज कर लिया। इस डेटाबेस मे साल पर आधारित आठ हजार से अधिक पारम्परिक औषधीय मिश्रणो के विषय मे जानकारी है। यह विडम्बना ही है कि इन मिश्रणो के बहुत कम जानकार अब जीवित है। कान्हा नेशनल पार्क दशको से भारत ही नही दुनिया भर के लोगो को आकर्षित कर रहा है। यहाँ का मुख्य आकर्षण ...