कान्हा मे पालतू पर फालतू हाथी

कान्हा मे पालतू पर फालतू हाथी

(मेरी कान्हा यात्रा-14)
- पंकज अवधिया


“फिर वह दिन भी आया जब क्रोधित बेकाबू हाथियो ने पार्क के पास की एक बस्ती को घेर लिया। लोग भागकर ऊँची जगहो पर चले गये। पर जिसकी तलाश हाथियो को थी उन्होने उसे नही जाने दिया। पहले उसे पटका। सिर को धड से अलग किया और फिर एक घंटे तक उसके शरीर को फुटबाल की तरह हवा मे उछालते रहे।“सफारी के दौरान साथ चल रहे लोग हाथियो के उत्पात की दिल दहलाने वाली घटना के बारे मे बता रहे थे जो कान्हा से जुडी थी। वे कह रहे थे कि मद के दिनो मे हाथियो का आतंक इतना बढ गया कि स्थानीय लोग हाथियो के बस्ती की तरफ बढने की बात सुनते ही सामान बाँध कर भागने लगते थे।

हाथी कान्हा के मूल वाशिन्दे नही है। पर्यटन के लिये हाथियो को पार्क मे रखा गया है। सफारी के दौरान पार्क मे हाथी कई बार दिखे पर जब भी मैने कैमरा तैयार किया गाइड बोल पडे कि ये जंगली नही पालतू हाथी है। अन्दमान से हाथी और हाथी वाले यानि महावत आये है। जब हाथियो ने उस व्यक्ति को इस क्रूरता से मारा था उसके बाद कुछ समय तक हाथी की पीठ पर पर्यटको को पार्क मे घुमाना बन्द कर दिया गया था। कुछ दिनो बाद फिर वही ढाक के तीन पात। जैसा कि इस लेखमाला मे मैने पहले लिखा है कि आजकल हाथियो की पीठ पर पर्यटको को बिठाकर बाघ दर्शन कराया जाता है।

हाथी मेरे लिये हमेशा कौतूहल के विषय रहे है। बचपन मे मोहल्ले मे आने वाले हाथी की सवारी से लेकर जंगली हाथी के खूनी कहर, सभी को मैने अपने जीवन मे देखा है। हाथी का रौद्र रुप बेहद खतरनाक होता है। मुझे याद आता है कि एक फिल्म बनाते समय मै जंगली हाथी की ओर पीठ करके कैमरे पर कुछ बोल रहा था तभी अचानक ही एक छोटा हाथी मेरे पीछे से प्रकट हो गया और उसके पीछे बडे भी आ गये। बडी मुश्किल से उस स्थिति से बाहर निकला। जब मुझे प.बंगाल मे बतौर वनौषधी सलाहकार आमंत्रित किया गया तो मै न्यू जलपाईगुडी से आगे निकलकर तिस्ता पार करते हुये उदलाबारी नामक जगह पहुँचा। सफर की थकान मिटाने जैसे ही मै बिस्तर पर गया तेज शोर और फटाको की आवाज से घबरा गया। मुझे बताया गया कि पास ही जंगली हाथी घुस आये है। अब रात भर गाँव वाले शोर करके उन्हे भगाने की असफल कोशिश करेंगे। अल सुबह मै उस स्थान पर गया जहाँ से आवाजे आ रही थी तो मैने पूरी बस्ती और फसलो को उजडा पाया। बहुत से लोग मर चुके थे।

जंगली हाथियो से हाल ही मे मै नियमगिरि मे भी मिला। वही नियमगिरि जहाँ बाक्साइट के लिये खनन होना है और न जाने किस दबाव मे देहरादून से आये वन्य विशेषज्ञो ने माननीय न्यायालय को यह लिखकर दे दिया कि नियमगिरि मे वाइल्ड लाइफ है ही नही। अलाबेली गाँव के पारम्परिक चिकित्सक ने बताया कि जंगली हाथी हमारे लिये लगातार समस्याए लेकर आते है। हम मानते है कि लोग उनके प्राकृतिक आवास मे घुस रहे है। पर हमने तो उनके बुरे के लिये कुछ नही किया। कम्पनी वाले ब्लास्टिंग कर रहे है, चोटी तक कंवेयर बेल्ट लगा रहे है पर जंगली हाथी हमारे घरो को तहस-नहस कर रहे है। वैसे हाथियो के बदलते स्वभाव को करीब से देखने के लिये आपको जंगल जाने की जरुरत नही है। घर बैठे आप यू-ट्यूब पर हाथियो द्वारा इंसानो को कुचल-कुचल कर मारे जाने की बहुत सी रोंगटे खडे कर देने वाली फिल्मे देख सकते है।

बाघ दर्शन के लिये हाथी पर सवार होते हुये मैने महावत से पूछा कि क्या आदमी को फुटबाल की तरह उछालने वाले खूनी हाथियो मे ये भी शामिल था तो उसने सहमति मे सिर हिलाया पर आश्वस्त किया कि अब यह सुधर गया है। अब आप ही बताइये कि आदमी के साथ इस तरह व्यवहार कर चुके हाथियो मे चढाकर बाघ के सामने पर्यटको को ले जाना, वह भी बिना किसी अतिरिक्त सुरक्षा के, कहाँ तक सही है?

महावत कान्हा मे हाथियो के पैरो मे जंजीर बाँधकर छोड देते है। जंजीर वाले हाथी जंगल मे चरते घूमते रहते है। जब इनकी जरुरत होती है तो महावत इन्हे जंगल मे खोजने निकल पडते है। जंजीर के कारण सडको पर निशान बन जाते है। इससे यह पता लगाया जाता है कि हाथी किस ओर गये है। हाथी के लिये विशेष तौर पर खाना बनाया जाता है। महावत जंगल से हाथी के लिये घास भी काटते है। ऐसे ही एक बार घास काटते समय एक महावत पर बाघ ने हमला करके उस की जान ले ली थी। स्थानीय लोगो का कहना था कि हाथी कान्हा का मूल निवासी नही है इसलिये जरुरत पडने पर ही उन्हे पार्क के अन्दर ले जाया जाना चाहिये। पार्क मे उनकी उपस्थित दूसरे शाकाहारी जीवो पर भारी पडती है।

कान्हा नेशनल पार्क मे हाथियो की भूमिका बहुत छोटी है पर इन पर खर्च निश्चित ही एक बडा बोझ है। इन्होने एक बार अपना रौद्र रुप भी दिखा दिया है। ऐसे मे हाथियो को कान्हा मे बनाये रखने पर नये सिरे से विचार-विमर्श की जरुरत मुझे लगती है।

कान्हा मे हाथी

नियमगिरि मे जंगली हाथियो के चलने से बने निशान


(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित





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Cassia alata as Allelopathic ingredient to enrich herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Typhoid Fever (Jumping from subject to subject while talking),

Comments

admin said…
गम्‍भीर पोस्‍ट। अपने अनुभवों को हमारे साथ बांटने के लिए आभार।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

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