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अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -112

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -112 (क्या बीटी बैगन के अलावा कोई विकल्प नही है?) - पंकज अवधिया “मैने तुलसी की बहुत सी पंक्तियाँ लगा दी है और अब गेन्दे की पंक्तियाँ लगाने जा रहा हूँ। पास के जंगल मे जाकर कुछ शाखाए ले आऊँगा कर्रा की और उन्हे खेत के चारो ओर लगा दूंगा। अब मेरा खेत सुरक्षित हो गया है। मजाल है जो एक भी कीडा नजर उठाके देखे इस खेत की ओर।“ मै कुछ दिनो पहले एक उत्साही किसान से उसके खेत पर ही बतिया रहा था। “ साहब, बाप-दादा के जमाने से हम लोग पुरानी खेती कर रहे है जिसे आप लोग आजकल जैविक खेती कहते है। हम सब्जियाँ उगाते है। हमारे आस-पास के किसान भी सब्जियाँ उगाते है पर उनमे से कोई भी जैविक खेती नही करता। सभी सरकारी लालच मे फँसे है इसलिये तरक्की नही कर पा रहे है। आप सुनना चाहे तो मै विस्तार से इनके बर्बाद होने की कहानी सुनाता हूँ।“ मैने हामी भरी तो उसने कहना जारी रखा। “मेरे खेत मे खरपतवार होते है पर मै उन्ही खरपतवारो को उखाडता हूँ जो फसल को सबसे ज्यादा नुकसान करते है। बहुत से खरप्तवार फसलो के लिये लाभदा...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -111

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -111 (बीटी बैगन बनाम देशी बैगन : क्या कहते है पारम्परिक चिकित्सक) - पंकज अवधिया घर के पिछवाडे मे उग रहे बैगन के पौधो को दिखाते हुये पारम्परिक चिकित्सको ने फलो को गौर से देखने को कहा। फलो मे काँटे थे। वे बोले, “ये असली देशी बैगन है जिसका प्रयोग हम औषधीय मिश्रणो मे करते है। ये बाजार मे नही मिलता। आप इसे आम लोगो को दिखायेंगे तो वे असमंजस मे पड जायेंगे क्योकि उन्होने ऐसा बैगन देखा ही नही होगा। आप जब भोजन करेंगे तो इसके असली स्वाद का पता लगेगा।“ पारम्परिक चिकित्सक कहते जा रहे थे और मै सुनता जा रहा था। उन्होने बैगन के फल तोडे और घर के अन्दर दे दिये। उस दिन दोपहर के भोजन मे बैगन जिसे स्थानीय भाषा मे भाटा कहा जाता है, की सब्जी परोसी गयी। सचमुच स्वाद गजब का था। इतना गजब का कि सिर्फ उसे ही खाते रहने का मन हुआ। बैंगन भारतीय मूल की वनस्पति है। यह हमारा सौभाग्य है कि देशी बैगन अभी भी कुछ लोगो के पास है। अपना बीज बचाने की परम्परा के कारण ही किसानो और पारम्परिक चिकित्सको के पास यह सुरक्ष...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -110

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -110 (क्या आप बीटी बैगन के लिये प्रयोगशाला जीव बनने तैयार है?) - पंकज अवधिया जब चने की फसल मे इल्लियो का आक्रमण होता है तो बहुत से जानकार किसान खेतो मे घूम-घूम कर अपने आप मरी हुयी इल्लियो की खोज करते है। फिर इन इल्लियो को पानी मे मिलाकर घोल बनाते है और इस घोल को चने की प्रभावित फसल मे डाल देते है। कुछ ही समय मे चने की इल्लियाँ मरने लगती है और फसल इस कीट से मुक्त हो जाती है। यह चमत्कार नही है। इसका भी एक विज्ञान है। दरअसल किसान जिन मरी हुयी इल्लियो को एकत्र करते है उनकी स्वावभाविक मौत नही हुयी होती है। बैसीलस थरिजेनेसिस नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) के कारण हुयी होती है। जब मरी हुयी इल्लियो का घोल बनाया जाता है तो इन जीवाणुओ को फैलने का मौका मिल जाता है। इल्लियो का घोल जब चने की फसल पर डाला जाता है तो ये जीवाणु फैल जाते है और स्वस्थ्य इल्लियो को अपनी चपेट मे ले लेते है। इस तरह बिना रसायन के किसान चने की इल्लियो से निपट लेते है। जब वैज्ञानिको ने यह देखा तो उन्होने किसानो के दोस्त औ...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -82

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -82 - पंकज अवधिया “चावल खा सकते है पर एक हजार दस से परहेज करे। इससे समस्या बढ सकती है। नही खाये तो अच्छा है।“ पारम्परिक चिकित्सक खूनी बवासिर (अर्श या पाइल्स) से परेशान एक रोगी को दवा के साथ परहेज के विषय मे बता रहे थे। “एक हजार दस” का नाम सुनते ही मै चौक पडा। शायद मैने गलत सुना हो इसलिये मैने रोगी के जाने के बाद फिर से पूछा। “हाँ, खूनी बवासिर के रोगी को हम यह चावल नही खाने की सलाह देते है।“ इसका मतलब मैने सही सुना था। एक हजार दस धान की नयी किस्म है जो छत्तीसगढ मे किसानो के बीच बहुत लोकप्रिय है। बडे क्षेत्र मे इसकी खेती होती है। इसे किसान बेचते भी है और अपने खाने के काम मे भी लाते है। मैने पहले लिखा है कि राज्य मे पारम्परिक धान विशेषकर औषधीय धान के विषय मे समृद्ध पारम्परिक ज्ञान है। पारम्परिक चिकित्सक एक-एक किस्मो की औषधीय विशेषताओ को जानते है। पर एक हजार दस तो नयी किस्म है। इससे होने वाले नुकसान की जानकारी उनका पारम्परिक ज्ञान नही हो सकता है। यह तो उन्होने अपने अनुभव से जाना होग...