अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -111
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -111
(बीटी बैगन बनाम देशी बैगन : क्या कहते है पारम्परिक चिकित्सक) - पंकज अवधिया
घर के पिछवाडे मे उग रहे बैगन के पौधो को दिखाते हुये पारम्परिक चिकित्सको ने फलो को गौर से देखने को कहा। फलो मे काँटे थे। वे बोले, “ये असली देशी बैगन है जिसका प्रयोग हम औषधीय मिश्रणो मे करते है। ये बाजार मे नही मिलता। आप इसे आम लोगो को दिखायेंगे तो वे असमंजस मे पड जायेंगे क्योकि उन्होने ऐसा बैगन देखा ही नही होगा। आप जब भोजन करेंगे तो इसके असली स्वाद का पता लगेगा।“ पारम्परिक चिकित्सक कहते जा रहे थे और मै सुनता जा रहा था। उन्होने बैगन के फल तोडे और घर के अन्दर दे दिये। उस दिन दोपहर के भोजन मे बैगन जिसे स्थानीय भाषा मे भाटा कहा जाता है, की सब्जी परोसी गयी। सचमुच स्वाद गजब का था। इतना गजब का कि सिर्फ उसे ही खाते रहने का मन हुआ।
बैंगन भारतीय मूल की वनस्पति है। यह हमारा सौभाग्य है कि देशी बैगन अभी भी कुछ लोगो के पास है। अपना बीज बचाने की परम्परा के कारण ही किसानो और पारम्परिक चिकित्सको के पास यह सुरक्षित है। वर्ना वैज्ञानिको का बस चलता तो कब के वे ये बीज एकत्रकर किसानो से ले जाते और बदले मे नयी किस्मो के बीज दे जाते। ये नही पूछिये कि पारम्परिक बीज कहाँ जाते? बीज देने वालो की सात पीढीयाँ भी इस सवाल का जवाब नही पाती। बैगन आज भी हमारे समाज मे रचा बसा है। आम लोग इसके फलो के सब्जी के रुप मे उपयोग के विषय मे ही जानते है। उन्हे समय-समय पर बताया जाता है कि बैगन वास्तव मे बेगुन है अर्थात इसके सेवन से नुकसान होता है। यह सच है कि कुछ विशेष रोगो मे बैगन के उपयोग की मनाही है पर बैगन दिव्य औषधीय गुणो से युक्त है। हमारे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथ इसके गुणो के बखान से भरे पडे है। देश के दूरस्थ अंचलो मे अपनी सेवाए दे रहे पारम्परिक चिकित्सक सैकडो नही हजरो नुस्खो मे बैगन का प्रयोग बतौर औषधी कर रहे है। केवल फल ही नही अपितु इसके सभी भागो का प्रयोग पारम्परिक चिकित्सा मे होता है। बैगन की जड उन जटिल मिश्रणो मे डाली जाती है जिनका प्रयोग कैंसर जैसे लाइलाज समझे जाने वाले रोगो की चिकित्सा मे होता है। बहुत से जटिल त्वचा रोगो मे बैगन की जडो के पास की मिट्टी एकत्र कर ली जाती है और लेप के रुप मे इसका प्रयोग किया जाता है। पीपल, नीम और बरगद जैसे पेडो के नीचे से एकत्र की गयी मिट्टी के साथ भी इसका प्रयोग होता है। बैगन की फसल मे नाना प्रकार के कीटो का आक्रमण होता है। इन कीटो का प्रयोग भी पारम्परिक चिकित्सा मे होता है। बहुत सी औषधीय वनस्पतियो जिनमे अश्वगन्धा भी शामिल है, को औषधीय गुणो से समृद्ध करने के लिये बैगन के विशेष सत्वो का प्रयोग किया जाता है। यहाँ मै देशी बैगन की बात कर रहा हूँ न कि जहरीले रसायनो के घोल मे डुबोकर चमकदार बनाये गये जानलेवा बैगन की जिसे आपने कुछ ही दिनो पहले बाजार से खरीदा होगा।
बैगन का उत्पादन बढाने के लिये हमारे देश के कृषि वैज्ञानिको ने एडी-चोटी का जोर लगा दिया है। किसान बडे पैमाने पर इसकी खेती करते है और मुनाफा कमाते है। उनके पास कृषि रसायनो के घातक हथियार है जिनसे वे कीटो और रोगो पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते है। जब कीटो और रोगो मे प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है तो किसानो को उससे भी घातक हथियार मुहैया करवा दिये जाते है। इस तरह यह क्रम दशको से चल रहा है। साल दर साल जहरीले रसायनो के प्रयोग से सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता का हो रहा है जो बाजार से खरीदकर इसे खाती है। सब जानते है कि कृषि रसायन नुकसान करते है और इनका प्रयोग बढता जा रहा है पर फिर भी जहरीले बैगन को खाना कम नही करते है। शहर और गाँव दोनो ही रोगो के घर बनते जा रहे है। पारम्परिक चिकित्सक कहते है कि रोगियो को वे खेत मे उगायी गयी सब्जियो के प्रयोग से परहेज करने का निर्देश देते है। चूँकि बैगन ज्यादातर लोग खाते है इसलिये इसकी मनाही अवश्य की जाती है। वे दावा करते है कि बहुत से आधुनिक रोगो के लिये जहरीले बैगन जिम्मेदार है। लोग जानबूझकर अपने पैरो पर कुल्हाडी मार रहे है।
पिछले लेख मे मैने बीटी बैगन की चर्चा की। मैने जैसे आपको सरल शब्दो मे समझाया वैसे ही इस तकनीक के विषय मे पारम्परिक चिकित्सको से भी चर्चा की ताकि उनके विचार जान सकूँ। उन्होने जीवाणु के विष युक्त बीटी बैगन को मनुष्य़ की मूर्खता करार दिया। एक बुजुर्ग पारम्परिक चिकित्सक ने तो कहा कि अब हमे रोगो की नयी खेप के लिये तैयारी शुरु कर देनी चाहिये। मैने उन्हे बताया कि इस तकनीक का विरोध करने वाले लोग कह रहे है कि बीटी बैगन के आने से पारम्परिक बैगन की किस्मे खत्म हो जायेंगी। इस पर उनमे से कुछ ने ठहाका लगाया और कहा कि पारम्परिक किस्मे अब बची की कितनी है। आधुनिक किस्मो का बोलबाला है। जिसे देशी किस्मो की कीमत मालूम है वह तो हर हाल मे बीज बचायेगा। फिर चाहे बीटी आ जाये या पीटी। मै उनकी बेबाक बयानी से अभिभूत था। मै उनकी मजबूरी भी समझ रहा था। देश की बहुत सी पारम्परिक फसलो के बीज किसान और पारम्परिक चिकित्सक चोरो से बचाकर सहेज के रखे हुये है। बीज बचाने की मुहिम के नाम पर राजधानी के पंच-सितारा होटलो मे चर्चा तो खूब होती है पर जमीनी स्तर पर कोई पहल नही करता। बीज बचाने वाले आपस संगठन मे बनाते है और जब उनके बारे मे मीडिया के माध्यम से राजधानी मे बैठे लोगो को पता चलता है तो संगठन को पुरुस्कार दे दिया जाता है। बीज सरकारी संगठनो के पास पहुँच जाते है। ये संगठन बाहरी पैसो पर काम करते है। शोध के नाम पर बीज बाहरी हाथो मे पहुँच जाते है। किसानो से कहा जाता है कि और पारम्परिक बीज एकत्र करे। किसान समझ जाते है कि जब तक बीज देते रहेंगे तभी तक उनकी महत्ता है। इस तरह उनका हौसला टूट जाता है।
इस लेख को पढने के बाद आप प्रश्न करेंगे कि कैसे देशी बैगन को बढावा दिया जाये? मेरा उत्तर होगा “यह आप यानि उपभोक्ताओ पर निर्भर है। बाजार उपभोक्ताओ की माँग पर चलता है। यदि उपभोक्ता जहरीले बैगन लेने से मना कर दे तो मजाल है कि बाजार इसे उपभोक्ता के सामने परोसे। जब बाजार इंकार कर देगा तो किसान इसकी खेती बन्द करेंगे और देशी बैगन उगायेंगे। पर इसके लिये उपभोक्ताओ को एकजुट होना होगा और लम्बी जंग लडनी होगी। एक पूरी पीढी की जंग लगी सोच को बदलना होगा। बहुत विरोध का सामना भी करना पडेगा। इतनी आसानी से कैसे जहरीले बैगन पर से अन्ध-विश्वास हटेगा? पर उपभोक्ता यदि इसमे सफल होते है तो इसके बदले उन्हे रोगमुक्त जीवन मिलेगा और खुशहाल नयी पीढी मिलेगी। अब फैसला आपको करना है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
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(बीटी बैगन बनाम देशी बैगन : क्या कहते है पारम्परिक चिकित्सक) - पंकज अवधिया
घर के पिछवाडे मे उग रहे बैगन के पौधो को दिखाते हुये पारम्परिक चिकित्सको ने फलो को गौर से देखने को कहा। फलो मे काँटे थे। वे बोले, “ये असली देशी बैगन है जिसका प्रयोग हम औषधीय मिश्रणो मे करते है। ये बाजार मे नही मिलता। आप इसे आम लोगो को दिखायेंगे तो वे असमंजस मे पड जायेंगे क्योकि उन्होने ऐसा बैगन देखा ही नही होगा। आप जब भोजन करेंगे तो इसके असली स्वाद का पता लगेगा।“ पारम्परिक चिकित्सक कहते जा रहे थे और मै सुनता जा रहा था। उन्होने बैगन के फल तोडे और घर के अन्दर दे दिये। उस दिन दोपहर के भोजन मे बैगन जिसे स्थानीय भाषा मे भाटा कहा जाता है, की सब्जी परोसी गयी। सचमुच स्वाद गजब का था। इतना गजब का कि सिर्फ उसे ही खाते रहने का मन हुआ।
बैंगन भारतीय मूल की वनस्पति है। यह हमारा सौभाग्य है कि देशी बैगन अभी भी कुछ लोगो के पास है। अपना बीज बचाने की परम्परा के कारण ही किसानो और पारम्परिक चिकित्सको के पास यह सुरक्षित है। वर्ना वैज्ञानिको का बस चलता तो कब के वे ये बीज एकत्रकर किसानो से ले जाते और बदले मे नयी किस्मो के बीज दे जाते। ये नही पूछिये कि पारम्परिक बीज कहाँ जाते? बीज देने वालो की सात पीढीयाँ भी इस सवाल का जवाब नही पाती। बैगन आज भी हमारे समाज मे रचा बसा है। आम लोग इसके फलो के सब्जी के रुप मे उपयोग के विषय मे ही जानते है। उन्हे समय-समय पर बताया जाता है कि बैगन वास्तव मे बेगुन है अर्थात इसके सेवन से नुकसान होता है। यह सच है कि कुछ विशेष रोगो मे बैगन के उपयोग की मनाही है पर बैगन दिव्य औषधीय गुणो से युक्त है। हमारे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथ इसके गुणो के बखान से भरे पडे है। देश के दूरस्थ अंचलो मे अपनी सेवाए दे रहे पारम्परिक चिकित्सक सैकडो नही हजरो नुस्खो मे बैगन का प्रयोग बतौर औषधी कर रहे है। केवल फल ही नही अपितु इसके सभी भागो का प्रयोग पारम्परिक चिकित्सा मे होता है। बैगन की जड उन जटिल मिश्रणो मे डाली जाती है जिनका प्रयोग कैंसर जैसे लाइलाज समझे जाने वाले रोगो की चिकित्सा मे होता है। बहुत से जटिल त्वचा रोगो मे बैगन की जडो के पास की मिट्टी एकत्र कर ली जाती है और लेप के रुप मे इसका प्रयोग किया जाता है। पीपल, नीम और बरगद जैसे पेडो के नीचे से एकत्र की गयी मिट्टी के साथ भी इसका प्रयोग होता है। बैगन की फसल मे नाना प्रकार के कीटो का आक्रमण होता है। इन कीटो का प्रयोग भी पारम्परिक चिकित्सा मे होता है। बहुत सी औषधीय वनस्पतियो जिनमे अश्वगन्धा भी शामिल है, को औषधीय गुणो से समृद्ध करने के लिये बैगन के विशेष सत्वो का प्रयोग किया जाता है। यहाँ मै देशी बैगन की बात कर रहा हूँ न कि जहरीले रसायनो के घोल मे डुबोकर चमकदार बनाये गये जानलेवा बैगन की जिसे आपने कुछ ही दिनो पहले बाजार से खरीदा होगा।
बैगन का उत्पादन बढाने के लिये हमारे देश के कृषि वैज्ञानिको ने एडी-चोटी का जोर लगा दिया है। किसान बडे पैमाने पर इसकी खेती करते है और मुनाफा कमाते है। उनके पास कृषि रसायनो के घातक हथियार है जिनसे वे कीटो और रोगो पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते है। जब कीटो और रोगो मे प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है तो किसानो को उससे भी घातक हथियार मुहैया करवा दिये जाते है। इस तरह यह क्रम दशको से चल रहा है। साल दर साल जहरीले रसायनो के प्रयोग से सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता का हो रहा है जो बाजार से खरीदकर इसे खाती है। सब जानते है कि कृषि रसायन नुकसान करते है और इनका प्रयोग बढता जा रहा है पर फिर भी जहरीले बैगन को खाना कम नही करते है। शहर और गाँव दोनो ही रोगो के घर बनते जा रहे है। पारम्परिक चिकित्सक कहते है कि रोगियो को वे खेत मे उगायी गयी सब्जियो के प्रयोग से परहेज करने का निर्देश देते है। चूँकि बैगन ज्यादातर लोग खाते है इसलिये इसकी मनाही अवश्य की जाती है। वे दावा करते है कि बहुत से आधुनिक रोगो के लिये जहरीले बैगन जिम्मेदार है। लोग जानबूझकर अपने पैरो पर कुल्हाडी मार रहे है।
पिछले लेख मे मैने बीटी बैगन की चर्चा की। मैने जैसे आपको सरल शब्दो मे समझाया वैसे ही इस तकनीक के विषय मे पारम्परिक चिकित्सको से भी चर्चा की ताकि उनके विचार जान सकूँ। उन्होने जीवाणु के विष युक्त बीटी बैगन को मनुष्य़ की मूर्खता करार दिया। एक बुजुर्ग पारम्परिक चिकित्सक ने तो कहा कि अब हमे रोगो की नयी खेप के लिये तैयारी शुरु कर देनी चाहिये। मैने उन्हे बताया कि इस तकनीक का विरोध करने वाले लोग कह रहे है कि बीटी बैगन के आने से पारम्परिक बैगन की किस्मे खत्म हो जायेंगी। इस पर उनमे से कुछ ने ठहाका लगाया और कहा कि पारम्परिक किस्मे अब बची की कितनी है। आधुनिक किस्मो का बोलबाला है। जिसे देशी किस्मो की कीमत मालूम है वह तो हर हाल मे बीज बचायेगा। फिर चाहे बीटी आ जाये या पीटी। मै उनकी बेबाक बयानी से अभिभूत था। मै उनकी मजबूरी भी समझ रहा था। देश की बहुत सी पारम्परिक फसलो के बीज किसान और पारम्परिक चिकित्सक चोरो से बचाकर सहेज के रखे हुये है। बीज बचाने की मुहिम के नाम पर राजधानी के पंच-सितारा होटलो मे चर्चा तो खूब होती है पर जमीनी स्तर पर कोई पहल नही करता। बीज बचाने वाले आपस संगठन मे बनाते है और जब उनके बारे मे मीडिया के माध्यम से राजधानी मे बैठे लोगो को पता चलता है तो संगठन को पुरुस्कार दे दिया जाता है। बीज सरकारी संगठनो के पास पहुँच जाते है। ये संगठन बाहरी पैसो पर काम करते है। शोध के नाम पर बीज बाहरी हाथो मे पहुँच जाते है। किसानो से कहा जाता है कि और पारम्परिक बीज एकत्र करे। किसान समझ जाते है कि जब तक बीज देते रहेंगे तभी तक उनकी महत्ता है। इस तरह उनका हौसला टूट जाता है।
इस लेख को पढने के बाद आप प्रश्न करेंगे कि कैसे देशी बैगन को बढावा दिया जाये? मेरा उत्तर होगा “यह आप यानि उपभोक्ताओ पर निर्भर है। बाजार उपभोक्ताओ की माँग पर चलता है। यदि उपभोक्ता जहरीले बैगन लेने से मना कर दे तो मजाल है कि बाजार इसे उपभोक्ता के सामने परोसे। जब बाजार इंकार कर देगा तो किसान इसकी खेती बन्द करेंगे और देशी बैगन उगायेंगे। पर इसके लिये उपभोक्ताओ को एकजुट होना होगा और लम्बी जंग लडनी होगी। एक पूरी पीढी की जंग लगी सोच को बदलना होगा। बहुत विरोध का सामना भी करना पडेगा। इतनी आसानी से कैसे जहरीले बैगन पर से अन्ध-विश्वास हटेगा? पर उपभोक्ता यदि इसमे सफल होते है तो इसके बदले उन्हे रोगमुक्त जीवन मिलेगा और खुशहाल नयी पीढी मिलेगी। अब फैसला आपको करना है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com
Corchorus urticifolius as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Lonkas Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal
Drugs),
Cordia gharaf as Allelopathic ingredient to enrich herbs of
Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines)
used for Lonk Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal Drugs),
Cordia monoica as Allelopathic ingredient to enrich herbs of
Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines)
used for Lonki-ka-kula Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal Drugs),
Cordia obliqua as Allelopathic ingredient to enrich herbs of
Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines)
used for Lonki-mula Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal Drugs),
Cordia obliqua as Allelopathic ingredient to enrich herbs of
Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional Medicines)
used for Lonki puncho Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal Drugs),
Cordia wallichii as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Lunaki Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal
Drugs),
Coriandrum sativum as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Lunak Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal
Drugs),
Coronopus didymus as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Luni Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal
Drugs),
Corypha umbraculifera as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Lunio Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal
Drugs),
Coscinium fenestratum as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Matiro Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal
Drugs),
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मैं ईश्वर से कामना करता हूं कि आपका ये प्रयास सफल हो और लोग पारम्परिक कृ्षि के महत्व को जान कर अपने विषाक्त होते जीवन में सुधार कर सकें.
धन्यवाद