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अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -114

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव - 114 - पंकज अवधिया (हनुमान लंगूर और नि:संतान दम्पत्ति) एक छोटी सी झोपडी के सामने महिलाओ की लम्बी कतार लगी देख मैने गाडी रुकवाई और लोगो ने इस बारे मे पूछा। लोगो ने बताया कि नि:संतान महिलाए यहाँ बाबा के दर्शन करने के लिये कतार मे खडी है। मैने गाडी किनारे करवायी और वही खडा हो गया। इतने मे बाबा का एक एजेंट आया और गाडी के अन्दर झाँकते हुये बोला कि अकेले आये हो? आपका इलाज नही होगा। अपनी घरवाली को लेकर आओ। ड्रायवर ने इस धृष्टता पर कुछ कहना चाहा तो मैने उसे चुप करा दिया। मैने एजेंट को जवाब दिया कि मुझे सारी प्रक्रिया देख लेने दो फिर मै अपनी पत्नी को लेकर आ जाऊँगा। इस पर वह बोला कि पैसा जमा करा दो ताकि अगली बार कतार मे न लगना पडे। कतार मे न लगने के लिये 1000 रुपये और वैसे 100 रुपये। मैने कहा कि मै पैसे बाबा ही को दूंगा। पहले मुझे इलाज देखने तो दो। कुछ देर बाद हलचल बढी। बताया गया कि बाबा आ गये है। पास ही तुलसी चौरा था। वहाँ बैठकर एक अधेस मंत्र पढ रहा था। मंत्र स्पष्ट नही थे प...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -109

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -109 - पंकज अवधिया अहमदाबाद विमानतल से जैसे ही हमारे विमान ने उडान भरी बगल मे बैठे सज्जन बडे ही बैचैन दिखायी दिये। यह असामान्य बात नही थी क्योकि अक्सर उडान के समय बहुत से लोग तनावग्रस्त हो जाते है। जैसे-जैसे विमान ऊपर जाने लगा वे खिडकी से झाँककर नीचे देखने लगे। नीचे देखते हुये कुछ बुदबुदाते और फिर बार-बार कान पकडकर क्षमा माँगते। कुछ समय बाद तो वे रोने लगे। मुझसे रहा नही गया। मैने कहा कि यदि डर लग रहा है तो नीचे न देखे। मुझसे बात करे। डर की कोई बात नही है। वे कुछ नही बोले बस रोते रहे। जब विमान सीधा हो गया तो एक सहयात्री जो कि उनकी ही उम्र के थे, ने उनसे इस सब का कारण पूछा। “क्या यह आपका पहला सफर है?” उनका पहला प्रश्न था। “नही, मै तो सप्ताह मे चार बार मुम्बई से आना-जाना करता हूँ।“ यह उत्तर चौकाने वाला था। “दरअसल नीचे शहर मे हमारा मन्दिर है। जब विमान से आसमान की ओर जाता हूँ तो मुझे अपराध-बोध होता है कि मै भगवान से ऊपर पहुँच गया हूँ। इसलिये मंत्र बुदबुदाते हुये और रोते हुये कुछ प...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -100

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -100 - पंकज अवधिया “व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य करने मे बार-बार असफलता मिल रही हो यह टोटका करे- सरसो के तेल मे सिके गेहूँ के आटे और पुराने गुड से तैयार सात पूवे, सात मदार (आक) के पुष्प, सिन्दूर, आटे से तैयार सरसो के तेल का रुई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरंडी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि मे किसी चौराहे मे रखे और कहे-हे मेरे दुर्भाग्य, तुझे यही छोडे जा रहा हूँ। कृपा करके मेरे पीछे न आना। सामान रखकर पीछे मुडकर न देखे।“ जीवन आसान करने का दावा करने वाले ऐसे बहुत से टोटको के बारे मे बताता एक लेख छत्तीसगढ की राजधानी मे छपा। और शाम होते-होते चौराहो पर ये सामग्रियाँ दिखायी देने लगी। दो काले घोडे तेजी से दौडते जा रहे थे। कुछ दूर जाने पर वे रुक जाते और फिर दौडने लगते। उनपर सवार युवक झुककर कुछ उठाते और फिर घोडो पर सवार होकर आगे बढ जाते। इन दो घोडो के पीछे भागती महंगी कारे और उसमे सवार लोग, सबका ध्यान खीच रहे थे। पहले तो लगा कि ये शादी वाले घोडे है फिर उनकी हालत देखकर लग...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -97

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -97 - पंकज अवधिया “आपने जडी-बूटियो पर इतना लिखा है, हम आपको कुछ उपहार देना चाहते है अपनी आस्था के अनुसार ताकि आपका भविष्य़ सुरक्षित रहे।“ अमेरिका से मुझे यह सन्देश मिला उन दिनो जब मैने बाटेनिकल डाट काम पर लिखना शुरु ही किया था। सन्देश भेजने वाली एक महिला थी जो शायद उस वेबसाइट से जुडी हुयी थी। उन्होने उस उपहार की तस्वीर भेजी। वह एक चाँदी का बक्सा था जिसमे लाल रंग के पावडर मे कोई पतली सी चीज पडी हुयी थी। उन्होने लाल रंग को जब सिन्दूर बताया तो मेरा माथा ठनका। मैने कहा कि मेरा एक मित्र पढाई के सिलसिले मे वहाँ है। वो आपके पास आकर उपहार ले लेगा और फिर जब भारत आयेगा तो मुझे दे देगा। बात तय हो गयी। मित्र को उपहार देते वक्त बताया गया कि This is Cat’s Chord (Umbelical cord or placenta) and very lucky. मित्र ने मुझे इस उपहार के बारे मे बताया। नाम से समझ आ गया कि यह तो वही चीज है जिसे भारतीय तांत्रिक दुर्लभ बताते है। इसे भारत मे बिल्ली की जेर या नाल के नाम से बेचा जाता है। मैने उपहार देन...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -83

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -83 - पंकज अवधिया इस लेखमाला की 81 वी कडी मे मै बुधराम की झोपडी मे गुजारी एक रात के विषय मे आपको बता रहा था। रात के सन्नाटे मे जिस आवाज से मेरी नीन्द खुल गयी थी वह छत से आ रही थी। छत जामुन और पलाश की सूखी शाखाओ से बनी थी जिसमे छोटे-छोटे निशाचर कीटो का बसेरा था। रात मे वे शोर कर रहे थे और मुझे नीन्द नही आ रही थी। मेरी हलचल से बुधराम की नीन्द भी खुल गयी। उसने बाहर बुझ चुकी आग को फिर से जलाया और मुझसे बाते करने लगा। पिछले लेख मे मैने आम लोगो के मन मे बसे जंगल के देवता की चर्चा की थी। बुधराम ने बताया कि पास की पहाडी मे जंगल के देवता मूर्त रुप मे भी विद्यमान है। यदि इच्छा हो तो कल सुबह चल सकते है। लम्बा चलना होगा इसलिये अच्छी नीन्द जरुरी है। मैने बुधराम की बात मानकर सोने का मन बनाया। उसने बाहर जल रही लकडियो की राख मे महुये की शराब मिलायी और फिर उस लेप को मेरे तलवो पर लगा दिया। कुछ ही पलो मे मुझे नीन्द आ गयी। सुबह कुछ देर से उठा। नीन्द नशीली थी। शायद यह महुये का असर था। ड्रायवर को गाड...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -81

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -81 - पंकज अवधिया मध्य रात्रि अचानक अजीब सी आवाज से मेरी नीन्द खुल गयी। चारो ओर घुप्प अन्धेरा था। मै उठ बैठा। आवाज ऊपर से आ रही थी। सिर उठाया तो कुछ दिखा नही। कुछ देर बैठने के बाद मुझे याद आया कि यह मेरा घर नही था। मै तो घास-फूस से बनी एक झोपडी मे सो रहा था। यह बुधराम की झोपडी थी। कुछ दूरी पर वह सोया हुआ था। रात का सन्नाटा था। जंगली जानवरो को दूर रखने के लिये जलायी गयी आग ठंडी हो चुकी थी। झोपडी के बाहर गाडी थी जिसमे ड्रायवर सो रहा था। यह मेरी ही जिद थी झोपडी के अन्दर सोने की। नही तो ड्रायवर तो पास के शहर के किसी लाज मे ठहरने की जिद करके थक चुका था। बुधराम के लिये ऐसी जगह पर सोना रोज की बात थी। पर मेरे लिये यह अजीब अनुभव था। झोपडी गाँव के बाहर थी और आस-पास खेत थे। कुछ दूर पर जंगल था। जंगली जानवर अक्सर गाँव मे आ जाया करते थे पर डरने की कोई बात नही है, ऐसा कहकर बुधराम ने मुझे आश्वस्त करने की कोशिश की थी। जंगल के देवता पर उसे बहुत विश्वास था। वे अकारण की किसी को सजा नही देते, उसने य...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -80

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -80 - पंकज अवधिया कुछ दिनो पहले मेरे एक परिचित बडी ही विचित्र समस्या लेकर आये। उन्होने अपना मकान किसी को किराये पर दे रखा था। वे खुद बाहर रहते थे इसलिये तीन-चार सालो के अंतराल मे उनका आना होता था। इस बार वे किरायेदार से मिलने गये तो उन्हे मकान की बाहरी दीवार पर बरगद का एक छोटा सा पेड नजर आया। जैसा कि अक्सर होता है पक्षी बरगद के फल खाते है और बीज बिना पचे शरीर से बाहर बीट के साथ निकल जाते है। जहाँ भी बीट गिरती है अनुकूल वातावरण मिलते ही बीज का अंकुरण हो जाता है। और देखते ही देखते नया पौधा तैयार हो जाता है। आमतौर पर लोग ऐसे पौधो से घर को होने वाले नुकसान को देखते हुये उखाड देते है। कई बार जब ऐसे पौधे बडे हो जाते है तो यूरिया या नमक की अधिक मात्रा जडो मे डालकर पौधो को जला दिया जाता है। यहाँ रिश्तेदार ने जैसे ही बरगद को उखाडना चाहा किरायेदार ने कह दिया कि बरगद को उखाडना माने परिवार का समूल नाश। वह न तो खुद इसे उखाडेगा और न ही इसे उखाडने देगा। किरायेदार की इस निज आस्था से बवाल खडा हो...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -78

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -78 - पंकज अवधिया “जिन लोगो की अनामिका, कनिष्ठा से बडी होती है वे लोग उनकी तुलना मे अधिक आक्रामक होते है और अधिक धनार्जन करते है जिनकी कनिष्ठा, अनामिका से बडी होती है।“ आप सोच रहे होंगे कि मै किसी देशी हस्त-रेखा विशेषज्ञ से सुनकर यह बता रहा हूँ। पर इस शोध निष्कर्ष तक पहुँचे है कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक। दुनिया भर मे इस शोध के विषय मे विस्तार से लिखा गया है। मुझे यह खबर मेरे हस्त-रेखा विशेषज्ञ मित्र से मिली जो गुस्से से भरकर कल मिलने आये। वे “अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग” की यह लेखमाला बडे ध्यान से लगातार पढ रहे है। उनके मन मे ढेरो प्रश्न है पर मै उन्हे समय नही दे पा रहा हूँ। जब उन्होने बीबीसी की वेबसाइट पर यह समाचार पढा तो उनसे रहा नही गया और ढेरो अखबारी कतरनो के साथ आ धमके। उनका कहना था कि भारतीय ज्योतिष के आधार पर उन्होने कई बार अपने लेखो मे इस तथ्य को लिखा पर हर बार इसे अन्ध-विश्वास बताकर इसका माखौल उडाया गया। अब जब यही बात विदेशी वैज्ञानिक कह रहे है तो कोई विरोध न...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -77

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -77 - पंकज अवधिया “विनम्र निवेदन है कि मुझे मेरे गाँव के एक बुजुर्ग आदमी ने गाँव की एक बहुत पुरानी घटना के बारे मे बताया था। गाँव के एक परिवार मे मुखिया (मालिक) पुरुष खेत जोत रहा था। वहाँ उसने कौआ और कौव्वी (नर+मादा) को जोडा खाते (सम्भोग करते) हुये देख लिया था तो उसने सोने का कौवा और कौव्वी बनवाकर उसी स्थान पर रख दिया। उसके बाद उसकी पत्नी ने सोने के कौवा और कौव्वी को लालच मे आकर चुरा लिया। इससे उसका पूरा परिवार नष्ट हो गया। इसी तरह की घटना मेरे साथ भी सन 2007 मे हुयी कि मेरी पुत्री बीमार थी जो लखनऊ अस्पताल मे भर्ती थी। मै घर रुपया लेने आया तो प्रात: दस बजे कौवा-कौव्वी को वही सब करते देखा। पर मुझे यह निश्चित नही है कि वे नर और मादा ही थे। मै अस्पताल चला गया। मेरी पुत्री का इलाज चलता रहा। इस बीच मेरी पत्नी घर आयी तो एक पंडित ने विचार करके बताया कि आप चाहे तो बिटिया के बराबर रुपये लगा दे पर वह ठीक नही होगी। वही हुआ और पुत्री की मौत हो गयी। मेरी एक पुत्री थी और दो पुत्र है। जो कष्ट...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -76

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -76 - पंकज अवधिया गर्भावस्था की शुरुआत मे लाइचा के प्रयोग से शुरु होकर फिर प्रसूति के बाद महाराजी, पाँचवे वर्ष मे कंठी बाँको और जवानी मे तेन्दुफूल, ऐसे 60 से अधिक किस्म के औषधीय धान के उपयोग बताता पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान हमारे देश मे है। इस प्रकार यदि किसी बालक को शुरु से ही 60 की उम्र तक नियमित रुप से औषधीय धान खिलाया जाये तो वह ताउम्र रोगो से बचा रह सकता है। क्या आधुनिक रोगो से भी? सौभाग्य से इसका जवाब सकारात्मक है। पारम्परिक चिकित्सक बताते है कि यदि शुरु के पाँच वर्ष तक औषधीय धानो को निश्चित क्रम मे दे तो बालक बीस वर्षो तक रोगो से बचा रह सकता है। इसी प्रकार उम्र के हर पडाव के लिये अलग-अलग औषधीय धान निश्चित है। इनका उपयोग चावल के रुप मे पकाकर खाने तक ही सीमित नही है। चावल के धोवन से स्नान करने से लेकर गर्म चावल की पोटली से शरीर की मालिश और सिकाई भी शामिल है। औषधीय धान के पौधे इतने गुणकारी होते है कि इनकी जड के पास से एकत्र की गयी मिट्टीयो मे भी औषधीय गुण होते है। और तो और, ...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -75

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -75 - पंकज अवधिया मध्यरात्रि एक बुरे स्वप्न ने मुझे नीन्द से जगा दिया। मै उठ बैठा और उस स्वप्न के बारे मे सोचने लगा। ठीक से तो याद नही रहा पर स्वप्न अपने के बिछुडने का था। नीन्द उचट गयी तो कम्प्यूटर पर बैठ गया। मन बदलने के लिये अपने द्वारा खीची गयी तस्वीरो को देखना आरम्भ किया। कुछ देर बाद मै नियमगिरि की यात्रा के दौरान ली गयी तस्वीरो तक पहुँच गया। ध्यान एक पुराने पीपल पर जाकर अटक गया। कहने को वह एक पीपल था पर उसके ऊपर अनगिंत छोटे-बडे पौधे थे। वह पितृ वृक्ष था। चिडियो की चहचाहट ने मुझे बरबस ही इस पेड की ओर खीच लिया था। मैने तस्वीरे लेनी आरम्भ की तो कुछ समय मे ही दसो प्रकार की दुर्लभ चिडियो की तस्वीरे कैमरे मे कैद हो गयी। एक ही पेड की मैने चार सौ से अधिक तस्वीरे खीच ली। उनमे से एक भी तस्वीर को देख कर ऐसा नही लगता था कि ये एक ही पेड की होंगी। मै तो यूँ ही कैमरे सहित पेड के पास पहुँच गया पर साथ चल रहे अलाबेली गाँव के पारम्परिक चिकित्सक ने पहले हाथ जोडे फिर प्रार्थना की। उसके बाद हाथ...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -74

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -74 - पंकज अवधिया “बिना उसके पेट साफ ही नही होता है। उसे पी लेती हूँ तो दर्द बढता है पर पेट साफ हो जाता है। शुरुआत मे कमर दर्द होता था और बवासिर की समस्या थी। किसी काम मे मन नही लगता था। मानसिक श्रम से तो जैसे शरीर निढाल हो जाता था। पेट मे होने वाला दर्द असहनीय होता गया तो डाक्टरी जाँच करवायी। अन्य लक्षणो मे आँखो मे भारीपन, आँखो के सामने बिजली की तरंगे जैसा दिखना------“ कुछ महिनो पहले मुझे एक ई-मेल मिला। यह ई-मेल था पेट के कैंसर से प्रभावित एक महिला का। अपने लम्बे-चौडे सन्देश मे उन्होने यह बताने की कोशिश की थी कि डाक्टरो ने हाथ खडे कर दिये है और अब वे जडी-बूटियाँ आजमाना चाहती है। मैने हर बार की तरह इस बार भी उन्हे जवाब दे दिया कि मै कृषि वैज्ञानिक हूँ, चिकित्सक नही। बात इतने पर खत्म नही हुयी। उनके पति का फोन आ गया। वे बहुत परेशान थे। पता नही उन्होने मेरा कौन सा शोध आलेख पढ लिया था जिससे उन्हे लगने लगा था कि मै उनकी मदद कर सकता हूँ। मैने उन्हे हकीकत बतायी। पर दूसरी सुबह बच्चो का ...