अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -100
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -100 - पंकज अवधिया
“व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य करने मे बार-बार असफलता मिल रही हो यह टोटका करे- सरसो के तेल मे सिके गेहूँ के आटे और पुराने गुड से तैयार सात पूवे, सात मदार (आक) के पुष्प, सिन्दूर, आटे से तैयार सरसो के तेल का रुई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरंडी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि मे किसी चौराहे मे रखे और कहे-हे मेरे दुर्भाग्य, तुझे यही छोडे जा रहा हूँ। कृपा करके मेरे पीछे न आना। सामान रखकर पीछे मुडकर न देखे।“ जीवन आसान करने का दावा करने वाले ऐसे बहुत से टोटको के बारे मे बताता एक लेख छत्तीसगढ की राजधानी मे छपा। और शाम होते-होते चौराहो पर ये सामग्रियाँ दिखायी देने लगी।
दो काले घोडे तेजी से दौडते जा रहे थे। कुछ दूर जाने पर वे रुक जाते और फिर दौडने लगते। उनपर सवार युवक झुककर कुछ उठाते और फिर घोडो पर सवार होकर आगे बढ जाते। इन दो घोडो के पीछे भागती महंगी कारे और उसमे सवार लोग, सबका ध्यान खीच रहे थे। पहले तो लगा कि ये शादी वाले घोडे है फिर उनकी हालत देखकर लगा कि पुलिस वालो के घोडे है पर हमारे ड्रायवर ने बताया कि शनि देवता का दोष दूर करने इन घोडो का प्रयोग हो रहा है। सवार घोडो को ढीली नाल पहना देते है और फिर उन्हे दौडाते है। जैसे ही नाल गिरती है सवार उसे एकत्र कर पीछे गाडियो मे आ रहे लोगो को मुँहमाँगी कीमत पर बेच देते है। फिर नयी नाल पहनायी जाती है। चार सौ से लेकर बीस हजार कुछ भी कीमत हो सकती है इस नाल की। कारो मे सवार लोग इस नाल से अंगूठी बनवाते है और फिर यह मानने लगते है कि बुरे भाग्य से उनका पीछा छूट गया।
जिधर देखो उधर पानी के लिये त्राही-त्राही मची है। फरवरी से ही नलकूप सूख गये है। तालाबो मे पानी नही बचा है। हर बार जून मे यह नौबत आती थी। भूजल विज्ञानी सालो से इस संकट से आगाह कर रहे थे। पर किसी ने उनकी नही सुनी। अब वे लोगो से नलकूप न खुदवाने की गुहार कर रहे है। नीचे पानी नही है इसलिये नलकूप खोदने का मतलब पैसे की बरबादी। पर एक बार फिर भूजल विज्ञानियो की बात नजर अन्दाज की जा रही है। अचानक ही “वाटर डिवाइनर” कुकुरमुत्तो की तरह उग आये है। हाथ मे लकडी की डंडियाँ लिये वे घूमते है और दावा करते है कि जहाँ भी पानी होता है उनकी डंडियाँ अपने आप मुड जाती है। आम लोग बिना आधार और प्रश्न के इस पर विश्वास करते है। पानी की तरह पैसा तो बह जाता है पर पानी नही मिलता।
“अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग” इस लेखमाला की सौंवी कडी लिखते समय मै ये तीन उदाहरण आपके सामने रख रहा हूँ। सौ लेख लिख पाना बडा मुश्किल काम है। मै इस लम्बे सफर मे लगातार यह सोच कर अपनी पीठ ठोकता रहा कि यह लेखमाला आम लोगो की आँखे खोलेगी और लोग अन्ध-विश्वास से दूर हटेंगे पर जैसे-जैसे मै विषय की गहरायी मे जाता गया मुझे लगा कि मेरा यह प्रयास समाज मे व्याप्त अन्ध-विश्वास के सामने कुछ भी नही है। शायद मै जीवन भर भी लिखता रहूँ तो भी इस अन्ध-विश्वास के राक्षस को मिटा नही पाऊँगा। आपने पहला उदाहरण देखा। अखबार समाज को कुछ देने के लिये होते है। समाज के बिगाड के लिये नही। प्रतिष्ठित अखबारो मे अन्ध-विश्वास को बढावा देने वाले टोटको को आकर्षक साज-सज्जा के साथ प्रकाशित करना किसी अपराध से कम नही है। अन्ध-विश्वास फैलाना कानूनन जुर्म है। पर फिर भी अखबारो द्वारा यह काम चन्द पैसो के लालच मे बेशरमी से चल रहा है। गाँव के लोग एक बार ऐसे टोटको पर हँस दे पर शहर के लोगो को जाने क्या हो गया है। चौराहो पर पुवे फेकने और दीये जलाने से कैसे उनके दिन फिर जायेंगे, ये समझे और जाने बिना लकीर के फकीर की तरह इन टोटको को अपनाने मे लगे है।
घोडे की नाल के लिये मर-मिटने वाले भी शहरी है। उनका अन्ध-विश्वास देखते ही बनता है। मैने बहुत से लोगो पर व्यंग्य किया इस आशा मे कि शायद वे इन सब से दूर हो जाये पर वे उनकी अन्ध-भक्ति के आगे सारे प्रयास विफल हो गये। बहुत से घरो मे पैसो का अभाव है, बच्चे उच्च शिक्षा के लिये धन चाहते है पर उनके पालक लोहे के मामूली टुकडे के लिये वर्षो से जमा की गयी पूँजी को लुटा रहे है। क्यो हमारा शहरी समाज इतना भयभीत है? क्या सुख-सुविधाओ मे बढोतरी जीवन को असुरक्षित बना रही है? वे तो समृद्ध हो रहे है पर उनका मन विपन्न हो रहा है। आज का शहरी समाज गाँवो मे मजे से जीवन जी रहे ग्रामीणो को शहरी बनाने आमदा है। क्या उसे गाँवो का सुख चुभ रहा है? यह जानते हुये भी कि गाँव का जीवन शहर के जीवन से लाख गुना बेहतर है क्यो शहरी समाज सच से पर्दा किये हुये है?
पिछले दस सालो मे मैने दसो डण्डी घुमाकर पानी बताने वालो के साथ समय गुजारा है। पहले पहल उनकी अदाओ ने मुझे बडा प्रभावित किया पर जब मैने उनके हुनर को पास से जानना चाहा तो सभी नम्बर एक के धूर्त नजर आये। भूजल विज्ञानी का बेटा होने के कारण मैने पिताजी को भूमिगत जल का स्त्रोत बताने के लिये डेढ-दो दिनो तक पसीना बहाते देखा है। वे पूरे इलाके की छानबीन करते है और फिर क्षेत्र के नक्शे का बारीकी से अध्ययन करते है। उसके बाद पाइंट बता पाते है। खुदाई के समय वहाँ उपस्थित रहते है और पत्थरो की जाँच करके साफ बताते है कि कितनी गहराई मे पानी मिलेगा। पर आम लोगो को जाने क्या हो गया है? उन्हे वैज्ञानिक विधियो पर विश्वास नही होता है। भूजल विज्ञानियो की मामूली फीस देने मे वे आनाकानी करते है और डंडी घुमाने वालो की बातो मे आकर मुँहमाँगी कीमत दे देते है। ज्यादातर मामलो मे डंडी घुमाने वाले सामान्य ज्ञान के आधार पर स्थान विशेष मे पहुँचकर डंडी घुमा देते है और कहते है कि यह अपने आप हुआ है। पैसे लेते है और रफूचक्कर हो जाते है। कुछ मामलो मे उनका तुक्का चल जाता है। उसी को आधार बनाकर वे खुली लूट जारी रखते है। आम लोगो के इस अन्ध-विश्वास को समझ पाना मुश्किल है। वे सभी शिक्षित है तो क्या हमारी शिक्षा वैज्ञानिक विधियो के प्रति अविश्वास पैदा कर रही है?
इस लेखमाला के सौवे पडाव को अन्तिम पडाव बनाने का मेरा बिल्कुल भी मन नही है। यह लेखमाला चलती रहेगी और अन्ध-विश्वासो को वैज्ञानिक तरीको से खत्म करने की मुहिम जारी रहेगी। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
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“व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य करने मे बार-बार असफलता मिल रही हो यह टोटका करे- सरसो के तेल मे सिके गेहूँ के आटे और पुराने गुड से तैयार सात पूवे, सात मदार (आक) के पुष्प, सिन्दूर, आटे से तैयार सरसो के तेल का रुई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरंडी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि मे किसी चौराहे मे रखे और कहे-हे मेरे दुर्भाग्य, तुझे यही छोडे जा रहा हूँ। कृपा करके मेरे पीछे न आना। सामान रखकर पीछे मुडकर न देखे।“ जीवन आसान करने का दावा करने वाले ऐसे बहुत से टोटको के बारे मे बताता एक लेख छत्तीसगढ की राजधानी मे छपा। और शाम होते-होते चौराहो पर ये सामग्रियाँ दिखायी देने लगी।
दो काले घोडे तेजी से दौडते जा रहे थे। कुछ दूर जाने पर वे रुक जाते और फिर दौडने लगते। उनपर सवार युवक झुककर कुछ उठाते और फिर घोडो पर सवार होकर आगे बढ जाते। इन दो घोडो के पीछे भागती महंगी कारे और उसमे सवार लोग, सबका ध्यान खीच रहे थे। पहले तो लगा कि ये शादी वाले घोडे है फिर उनकी हालत देखकर लगा कि पुलिस वालो के घोडे है पर हमारे ड्रायवर ने बताया कि शनि देवता का दोष दूर करने इन घोडो का प्रयोग हो रहा है। सवार घोडो को ढीली नाल पहना देते है और फिर उन्हे दौडाते है। जैसे ही नाल गिरती है सवार उसे एकत्र कर पीछे गाडियो मे आ रहे लोगो को मुँहमाँगी कीमत पर बेच देते है। फिर नयी नाल पहनायी जाती है। चार सौ से लेकर बीस हजार कुछ भी कीमत हो सकती है इस नाल की। कारो मे सवार लोग इस नाल से अंगूठी बनवाते है और फिर यह मानने लगते है कि बुरे भाग्य से उनका पीछा छूट गया।
जिधर देखो उधर पानी के लिये त्राही-त्राही मची है। फरवरी से ही नलकूप सूख गये है। तालाबो मे पानी नही बचा है। हर बार जून मे यह नौबत आती थी। भूजल विज्ञानी सालो से इस संकट से आगाह कर रहे थे। पर किसी ने उनकी नही सुनी। अब वे लोगो से नलकूप न खुदवाने की गुहार कर रहे है। नीचे पानी नही है इसलिये नलकूप खोदने का मतलब पैसे की बरबादी। पर एक बार फिर भूजल विज्ञानियो की बात नजर अन्दाज की जा रही है। अचानक ही “वाटर डिवाइनर” कुकुरमुत्तो की तरह उग आये है। हाथ मे लकडी की डंडियाँ लिये वे घूमते है और दावा करते है कि जहाँ भी पानी होता है उनकी डंडियाँ अपने आप मुड जाती है। आम लोग बिना आधार और प्रश्न के इस पर विश्वास करते है। पानी की तरह पैसा तो बह जाता है पर पानी नही मिलता।
“अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग” इस लेखमाला की सौंवी कडी लिखते समय मै ये तीन उदाहरण आपके सामने रख रहा हूँ। सौ लेख लिख पाना बडा मुश्किल काम है। मै इस लम्बे सफर मे लगातार यह सोच कर अपनी पीठ ठोकता रहा कि यह लेखमाला आम लोगो की आँखे खोलेगी और लोग अन्ध-विश्वास से दूर हटेंगे पर जैसे-जैसे मै विषय की गहरायी मे जाता गया मुझे लगा कि मेरा यह प्रयास समाज मे व्याप्त अन्ध-विश्वास के सामने कुछ भी नही है। शायद मै जीवन भर भी लिखता रहूँ तो भी इस अन्ध-विश्वास के राक्षस को मिटा नही पाऊँगा। आपने पहला उदाहरण देखा। अखबार समाज को कुछ देने के लिये होते है। समाज के बिगाड के लिये नही। प्रतिष्ठित अखबारो मे अन्ध-विश्वास को बढावा देने वाले टोटको को आकर्षक साज-सज्जा के साथ प्रकाशित करना किसी अपराध से कम नही है। अन्ध-विश्वास फैलाना कानूनन जुर्म है। पर फिर भी अखबारो द्वारा यह काम चन्द पैसो के लालच मे बेशरमी से चल रहा है। गाँव के लोग एक बार ऐसे टोटको पर हँस दे पर शहर के लोगो को जाने क्या हो गया है। चौराहो पर पुवे फेकने और दीये जलाने से कैसे उनके दिन फिर जायेंगे, ये समझे और जाने बिना लकीर के फकीर की तरह इन टोटको को अपनाने मे लगे है।
घोडे की नाल के लिये मर-मिटने वाले भी शहरी है। उनका अन्ध-विश्वास देखते ही बनता है। मैने बहुत से लोगो पर व्यंग्य किया इस आशा मे कि शायद वे इन सब से दूर हो जाये पर वे उनकी अन्ध-भक्ति के आगे सारे प्रयास विफल हो गये। बहुत से घरो मे पैसो का अभाव है, बच्चे उच्च शिक्षा के लिये धन चाहते है पर उनके पालक लोहे के मामूली टुकडे के लिये वर्षो से जमा की गयी पूँजी को लुटा रहे है। क्यो हमारा शहरी समाज इतना भयभीत है? क्या सुख-सुविधाओ मे बढोतरी जीवन को असुरक्षित बना रही है? वे तो समृद्ध हो रहे है पर उनका मन विपन्न हो रहा है। आज का शहरी समाज गाँवो मे मजे से जीवन जी रहे ग्रामीणो को शहरी बनाने आमदा है। क्या उसे गाँवो का सुख चुभ रहा है? यह जानते हुये भी कि गाँव का जीवन शहर के जीवन से लाख गुना बेहतर है क्यो शहरी समाज सच से पर्दा किये हुये है?
पिछले दस सालो मे मैने दसो डण्डी घुमाकर पानी बताने वालो के साथ समय गुजारा है। पहले पहल उनकी अदाओ ने मुझे बडा प्रभावित किया पर जब मैने उनके हुनर को पास से जानना चाहा तो सभी नम्बर एक के धूर्त नजर आये। भूजल विज्ञानी का बेटा होने के कारण मैने पिताजी को भूमिगत जल का स्त्रोत बताने के लिये डेढ-दो दिनो तक पसीना बहाते देखा है। वे पूरे इलाके की छानबीन करते है और फिर क्षेत्र के नक्शे का बारीकी से अध्ययन करते है। उसके बाद पाइंट बता पाते है। खुदाई के समय वहाँ उपस्थित रहते है और पत्थरो की जाँच करके साफ बताते है कि कितनी गहराई मे पानी मिलेगा। पर आम लोगो को जाने क्या हो गया है? उन्हे वैज्ञानिक विधियो पर विश्वास नही होता है। भूजल विज्ञानियो की मामूली फीस देने मे वे आनाकानी करते है और डंडी घुमाने वालो की बातो मे आकर मुँहमाँगी कीमत दे देते है। ज्यादातर मामलो मे डंडी घुमाने वाले सामान्य ज्ञान के आधार पर स्थान विशेष मे पहुँचकर डंडी घुमा देते है और कहते है कि यह अपने आप हुआ है। पैसे लेते है और रफूचक्कर हो जाते है। कुछ मामलो मे उनका तुक्का चल जाता है। उसी को आधार बनाकर वे खुली लूट जारी रखते है। आम लोगो के इस अन्ध-विश्वास को समझ पाना मुश्किल है। वे सभी शिक्षित है तो क्या हमारी शिक्षा वैज्ञानिक विधियो के प्रति अविश्वास पैदा कर रही है?
इस लेखमाला के सौवे पडाव को अन्तिम पडाव बनाने का मेरा बिल्कुल भी मन नही है। यह लेखमाला चलती रहेगी और अन्ध-विश्वासो को वैज्ञानिक तरीको से खत्म करने की मुहिम जारी रहेगी। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
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Desmodium heterophyllum as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Phalas Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Desmodium laxiflorum as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Phog Toxicity (Research Documents on Toxicity of Herbal
Remedies),
Desmodium microphyllum as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Phagaro Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Desmodium motorium as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Phooli Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Desmodium polycarpum as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Phuvalo-unt-kantalo Toxicity (Research Documents on
Toxicity of Herbal Remedies),
Desmodium triflorum as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Piazi Toxicity (Research Documents on Toxicity of Herbal
Remedies),
Desmodium velutinum as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Pili-bui Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Desmostachya bipinnata as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Pili matari Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Deutzia scrabra as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Pili bekario Toxicity (Research Documents on Toxicity of
Herbal Remedies),
Dianthus caryophyllus as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Pilu Toxicity (Research Documents on Toxicity of Herbal
Remedies),
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छत्तीसगढ़ प्रवास में आप से मिलने का बहुत प्रयत्न था। लेकिन संयोगवश मिलना न हो सका। चलिए फिर कभी सही! दुनिया गोल है।