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बरगद वाले हिरण और पानी के लिये कोहराम

बरगद वाले हिरण और पानी के लिये कोहराम (मेरी कान्हा यात्रा-13) - पंकज अवधिया खटिया गेट से पार्क के अन्दर घुसते ही एक बडा सा बरगद का पेड दिखता है। हमने जब सफारी शुरु की तो इस पेड के नीचे हिरण का एक समूह देखा। जब वापस लौटे तो वह समूह उसी पेड के नीचे जमा हुआ था। अगली सुबह जब वे फिर वही दिखे तो मैने गाइड से पूछ ही लिया। उसने कहा कि ये यही डेरा जमाये रहते है। मानव की बस्ती पास मे है इसलिये इन्हे यहाँ सुरक्षित लगता है। रात मे बहुत से शाकाहारी जीव बाघ से बचने इस गेट के पास आ जाते है। पर ज्यादातर सुबह वापस लौट जाते है। गाइड की बात सुनकर मैने सामने दिख रहे स्थायी समूह का नाम “बरगद वाले हिरण” रखने मे देरी नही की। इस विशाल पेड के पास पर्यटक अक्सर रुकते है क्योकि शाखाओ मे उल्लू बैठे दिखायी दे जाते है। मुझे छत्तीसगढ के बारनवापारा अभ्यारण्य की याद आ रही है। गर्मियो मे यहाँ भी हिरण बस्ती के पास पहुँच जाते है। गाँववालो के तो ये कम शिकार बनते है पर कुत्तो के सहज शिकार हो जाते है। कुत्तो को एक बार इनका स्वाद लग जाये फिर वे एक-एक करके सभी हिरणो को मारते जाते है। पिछले साल मेरी एक यात्रा के दौरान म...

मुम्बई हमले ने की विदेशी पर्यटको की संख्या मे कमी

मुम्बई हमले ने की विदेशी पर्यटको की संख्या मे कमी (मेरी कान्हा यात्रा- 11 ) - पंकज अवधिया इस बार कान्हा मे पर्यटको का जबरदस्त टोटा है। क्या यह मन्दी का असर है? विदेशी पर्यटक तो जैसे पैसे खर्च करना ही नही चाहते। कान्हा मे सभी के चेहरे पर चिंता की लकीरे साफ दिखती है। रात को चर्चा के दौरान स्थानीय लोगो ने बताया कि मन्दी से ज्यादा मुम्बई हमलो ने हमारी कमर तोड दी है। उसके बाद से पर्यटको का आना एकदम से कम हो गया है। पहले भारत को सुरक्षित देश माना जाता था पर अब जब जान पर ही बन आये तो भला कोई क्यो आना चाहेगा? देशी पर्यटक बजट देखकर चलते है। उनसे मोटी कमायी की ज्यादा उम्मीद नही की जा सकती-ऐसा लोगो ने बताया। उनका व्यवसाय विदेशी पर्यटको से चलता है। मुझे अपनी यात्रा के दौरान बहुत कम विदेशी सैलानी दिखे। उनसे चर्चा हुयी तो वे अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित दिखे। वे भारत की मेहमाननवाजी से खुश दिखे पर येन-केन-प्रकारेण ऐसे या वैसे, किसी भी रुप मे अतिरिक्त पैसे झटक लेने के रिवाज से कुछ क्षुब्ध दिखे। अक्सर विदेशी पर्यटक इंटरनेट के इस युग मे अपनी भारत यात्रा के हर पहलू पर लेख लिखते है। इ...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -87

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -87 - पंकज अवधिया जंगल से दूर एक सितारा होटल मे वातानूकुलित सभागार मे जंगल की बाते हो रही थी। देश के बडे-बडे वन विशेषज्ञ मिनरल वाटर पीते हुये गम्भीर विषयो पर चर्चा कर रहे थे। राष्ट्रीय अभ्यारण्यो की तारीफो के पुल बाँधे जा रहे थे। कान्हा के बारे मे एक विशेषज्ञ ने कहा कि वहाँ सब कुछ बढिया है। सैकडो पर्यटक आ रहे है। अच्छी आमदनी हो रही है फिर भी वन्य प्राणियो पर इसका कोई असर नही हो रहा है। कोई हमसे पूछे कैसे मनुष्य़ और जानवर एक साथ मजे से रह सकते है? देश के सारे जंगलो को अभ्यारण्य बना देना चाहिये। और भी बडी-बडी बाते। उस दिन की सभा समाप्त हुयी। दो दिनो तक अभी और जंगलो पर चर्चा होनी थी। चर्चा मे बहुत से ऐसे लोग थे जो उन महाश्य से सहमत नही थे। अब सीधे बोलने पर तो वे सुनने से रहे इसलिये सबने कुछ और उपाय खोजना ठीक समझा। वे वन्य विशेषज्ञ मेरे ही कमरे मे ठहरे थे। मैने हवा के लिये खिडकी खोल दी। यह खिडकी गलियारे की ओर थी। विशेषज्ञ महाश्य कुछ किताबे लेकर बैठ गये। अचानक कुछ लोग आये और खिडकी से ...