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अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -73

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -73 - पंकज अवधिया “शनि का दोष है। ग्रह शांति करानी पडेगी और इतने धान से क्या होगा? कुछ और दो। कोदो ही दे दो। ओये बुढिया यदि पति से पहले मरकर पुण्य कमाना है तो आँगन मे रखी बडियाँ दे दो। चाय तो पिला दो। यदि हम नाराज हो जाये तो सर्वनाश हो जायेगा।“ स्थानीय भाषा मे दो लोगो को इस तरह बोलते देखकर मै दंग रह गया। मैने अभी ही एक बूढे किसान के झोपडे मे प्रवेश किया था। किसान लेटा हुआ था और ये लोग उसे यह सब सुना रहे थे। बिसाहू की हालत अच्छी नही है यह तो मुझे पता था पर इतनी बिगड जायेगी यह नही सोचा था। बुढापे के कारण गठिया की समस्या हो गयी थी। पहले वह अपने बेटो के साथ खेती किया करता था। बेटो को रात मे घर भेजकर अकेले ही जंगली जानवरो से फसल की रक्षा करने मचान पर पहरा देता रहता। बडा ही जीवट वाला इंसान है वह। पर जैसे ही गठिया की समस्या ने उसे घेरा बेटो ने साथ छोड दिया। कुछ महिनो पहले जब मै उसके पास गया तो छोटा बेटा साथ मे था। पर अब वह, उसकी माँ और पत्नी ही उस झोपडे मे थे। बिसाहू बिस्तर से उठ नही प...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -58

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -58 - पंकज अवधिया जंगली पौधो मे आपस मे गजब की प्रतिस्पर्धा होती है। यह प्रतिस्पर्धा अंकुरण से ही शुरु हो जाती है। एक ही स्थान मे आस-पास उग रहे पौधो मे नमी, प्रकाश और भोजन के लिये प्रतियोगिता होती है। प्रभावी रहने के लिये पौधे कई तरह के रसायन छोडते है। ये रसायन दूसरे पौधो की बढवार को रोकते है। कभी-कभी उनकी जान भी ले लेते है। विज्ञान की जिस शाखा मे इस रासायनिक प्रतिस्पर्धा के विषय मे शोध होते है उसे एलिलोपैथी के नाम से जाना जाता है। आपने देखा होगा कि किसी स्थान पर एक तरह के पौधे बहुतायत मे होते है तो दूसरे स्थानो पर वे अच्छे से नही उग पाते है। मिट्टी और दूसरे कारक पौधो को इस रासायनिक प्रतिस्पर्धा मे मदद करते है। पौधो को यह ज्ञान रहता है कि कौन से दूसरे पौधे नुकसानदायक है और कौन से लाभकारक है। उनके रसायन मित्र पौधो को नुकसान नही पहुँचाते है बल्कि कई बार उनकी मदद भी करते है। मैने इस विषय मे विस्तार से काम किया है। मेरे पचास से अधिक शोध पत्र और दस हजार से अधिक शोध आलेख केवल एलिलोपैथी...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -49

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -49 - पंकज अवधिया पिछले सोमवार को पारम्परिक चिकित्सको के साथ घने वनो मे घूमता रहा। दिन मे जंगली जानवर से मुलाकात होने की सम्भावना कम ही रहती है। साथ चल रहे लोग बताते रहे कि यहाँ भालू बहुत है, यह तेन्दुए का रास्ता है आदि-आदि। पर इनसे मुलाकात नही हुयी। मैने पहले भी लिखा है कि मै इनसे मिलना पसन्द नही करता। मेरा ध्यान वनस्पतियो पर रहता है। शाम तक घने जंगल को पैदल पार करते हुये हम दूसरे छोर तक पहुँच गये। वहाँ गाडी बुलवा ली थी। रात को जब फिर उसी रास्ते से गाडी मे बैठकर निकले तो आश्चर्य का ठिकाना नही रहा। पहले लोमडियो, फिर वनबिलाव, भालुओ को देखा और दो बार तेंदुआ दिखायी पडा। जंगली सुअर भी दिखायी पडे। हमारे साथ सफर कर रहे एक नये व्यक्ति ने हमे कुछ और ही समझ लिया था। हर जानवर को देखकर वह कहता रहा, साहब, इसका सींग मिल जायेगा मर्दाना शक्ति बढाने के लिये, इसकी पूँछ के बाल मिल जायेंगे भूत भगाने के लिये, इसके सिर की हड्डी मिल जायेगी वशीकरण के लिये, इसके दाँत दिलवा दूँ क्या, आपको नजर नही लगेगी आदि-आदि। मैने उसे शांत करते हुये कहा...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -43

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -43 - पंकज अवधिया एक बार हम शाम के वक्त घने जंगल मे रात को कैप लगाने के उद्देश्य से जगह खोज रहे थे। मै आगे चल रहा था। पारम्परिक चिकित्सक और सहायक पीछे। एक खुली जगह नजर आयी तो मैने वही कैम्प लगाने का निश्चय किया। पारम्परिक चिकित्सको ने निर्णय लेने से पहले कुछ रुकने को कहा। फिर आस-पास घूमने के बाद बोले कि यह जगह खतरो से भरी है। आगे बढना होगा। साथ चल रहे दिल्ली से आये एक मित्र ने असहमति जतायी। वे ट्रेकिंग पर अक्सर जाया करते थे। उन्हे लगा कि समतल और खुली जगह ही उपयुक्त है। हम रुककर बहस करने लगे। पारम्परिक चिकित्सको ने जगह के अनुपयुक्त होने की वजह बतायी। उन्होने काली मूसली नामक वनस्पति की ओर इशारा किया और बोले कि इसके कन्द भालूओ और जंगली सुअरो को बहुत पसन्द है। वे रात को इसे खाने अवश्य आते होंगे। ऐसे मे कैम्प लगाकर जबरदस्ती खतरा मोल लेना ठीक नही है। मित्र ने कहा कि हम आग जलायेंगे। देखते है फिर कौन पास आता है। पारम्परिक चिकित्सको ने कहा कि भालू बहुत ही जिज्ञासु और शरारती होते है। यदि उन्हे कैम्प दिख गया तो पास जरुर आयें...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -42

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -42 - पंकज अवधिया तुम्हारा जीवन खतरे मे है। तुम अभी गाँव छोडकर चले जाओ। तुम्हारी बहू के कारण घर मे कलह हो रही है। बुरी आत्मा से व्यापार मे लगातार घाटा हो रहा है। एक हजार रुपये चढाने पर सभी समस्या का निवारण हो जायेगा। ऐसे सन्देशो से भरी पर्चियाँ जब दूर गाँव से आये एक व्यक्ति ने हमे दिखानी आरम्भ की तो हमारे होश उड गये। ये सन्देश किसी ऐसे-वैसे ने नही लिखा है बल्कि ये देवी के सन्देश है। वही देवी जो चाहे तो पल मे जीवन आनन्दमय बना दे और चाहे तो पल मे विनाश कर दे। यह दावा था गाँव मे पहुँचे एक तांत्रिक था। जब कोई व्यक्ति उसके पास पहुँचता अपनी समस्या लेकर तो वह विशेष तरीका अपनाता था। उसके पास नारियल के बहुत से ढेर लगे होते थे। व्यक्ति की समस्या के अनुसार विशेष ढेर से नारियल उठाने को कहा जाता था। जैसे घर की समस्या है तो दाया वाला ढेर, व्यापार मे परेशानी है तो पीछे वाला ढेर –इस तरह से। फिर व्यक्ति के सामने नारियल फोडा जाता था। उसके अन्दर से एक पर्ची निकलती थी जिसमे सन्देश लिखा होता था। तांत्रिक उसे पढ देता था। ये सन्देश उसी ...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -41

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -41 - पंकज अवधिया हमारे एक मित्र देहाती बाजारो का अक्सर जिक्र करते है। उनका बचपन सागर क्षेत्र मे बीता। वे एक देहाती मिठाई बेचने वाले का किस्सा सुनाते है। बाजार के शुरु होते ही वह सिर के बल शीर्षासन पर तन जाता था। फिर पेट को घुमाकर योग की नौली प्रक्रिया का प्रदर्शन करने लगता था। यह सब देखकर जब उसके पास भीड जुट जाती थी तो फिर वह अपना पिटारा खोलता और मिठाई बेचने लगता। उसकी मेहनत रंग लाती और दर्शक मिठाई खरीदने लगते थे। भीड को एकत्र करने के लिये या फिर भीड मे अपना प्रभाव स्थापित करने के लिये इस तरह के उपाय अपनाये जाते है। चमत्कार को नमस्कार है वाली बात इस तरह के लोग अच्छे से जानते है। अब भारतीय योग का ही उदाहरण ले। इसके विषय मे जानकारी देने वाली ढेरो संस्थाए देश मे थी पर नयी पीढी ने इसकी सुध नही ली। जैसे ही एक योगी ने रुचिकर प्रक्रियाओ का सार्वजनिक प्रदर्शन किया झट से देहाती बाजार के मिठाई बेचने वाले की तरह उसके सामने भीड लग गयी और वह स्थापित हो गया। अन्ध-विश्वास के विरुद्ध अभियानो मे चमत्कारियो से पग-पग मे मुठभेड...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -40

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -40 - पंकज अवधिया पर मै पहचानूंगा कैसे कि शहद असली है या नकली? जंगली इलाके से आये एक शहद बेचने वाले से मैने पूछा। वैसे तो शहद की शुद्धता की पहचान के बहुत से तरीके है पर मुझे इस वनवासी से नये तरीके की जानकारी मिली। उसने जेब से पाँच सौ रुपये का नोट निकाला और उसे शहद मे डुबोया फिर उसमे आग लगानी चाही। यह नोट नही जला। उसका दावा था कि यदि शहद नकली होगी तो नोट पलक झपकते ही जल जायेगा। उसने यह भी कहा कि नोट शहद बेचने वाले से लिया जाये। इससे यदि शहद बेचने वाले ने मिलावट की होगी तो वह बहानेबाजी शुरु कर देगा और इस तरह आप सब कुछ बिन जाँचे ही जान जायेंगे। पाँच सौ का नोट इसलिये क्योकि यह बडी रकम है। चाहे तो सौ के नोट पर भी यह प्रयोग किया जा सकता है। वनवासियो के पास पाँच सौ के नोट भला कैसे मिलेंगे? आपकी बात सही है पर जंगली क्षेत्रो से आये बहुत से शहद बेचने वाले आपको रायपुर शहर मे दिख जायेंगे। वे घर-घर जाकर शहद बेचते है और लोग बडी मात्रा मे इसे खरीदते भी है। बहुत से आयुर्वेदिक डाक्टरो ने भी इन वनवासियो से कमीशन के आधार पर सम्बन्ध ...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -38

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -38 - पंकज अवधिया हमारे देश मे बहुत सी ऐसी वनस्पतियाँ किसानो और आम जनो के लिये सिरदर्द बनी हुयी है जिन्हे सजावटी पौधे के रुप मे विदेशो से लाया गया। विदेशो से लाने से पहले इनके गुणो को तो देखा गया पर दोषो को अनदेखा कर दिया। परिणामस्वरुप बहुत सी वनस्पतियो को लोगो ने अपने बागीचे से उखाड फेका। कुछ वनस्पतियाँ बागीचे से भाग निकली। उन्होने अपने बीज हवा और पानी के माध्यम से दूर-दूर तक फैला दिये और इस तरह जगह-जगह पर उनका साम्राज्य कायम हो गया। कुछ ने किसानो के खेतो को घर बनाया तो कुछ ने जंगल मे डेरा डाल लिया। इन विदेशी वनस्पतियो के दुश्मन अर्थात इन्हे खाने वाले कीडे और रोग विदेश मे ही छूट गये। केवल इन्हे ही लाया गया। यहाँ इन कीटो और रोगो के न होने के कारण वे मजे से उग रहे है और दिन दूनी-रात चौगुनी की दर से अपना साम्राज्य बढा रहे है। जाने-अनजाने इनसे देश को हर साल अरबो रुपयो का नुकसान हो रहा है। लेंटाना का ही उदाहरण ले। सजावटी फूलो के कारण इसे पसन्द किया गया और विदेश से ले आया गया। पर इसकी पत्तियो की अजीब गन्ध और कंटीले तने...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -37

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -37 - पंकज अवधिया वानस्पतिक सर्वेक्षण के दौरान जब जंगलो मे जाना होता है तो पारम्परिक चिकित्सको के साथ स्थानीय लोगो को भी साथ मे रख लेता हूँ एक दल के रुप मे। इस बार ऐसे लोगो की तलाश मे जब हम गाँव पहुँचे तो लोग नही मिले। पता चला कि जडी-बूटियो के एकत्रण के लिये जंगल गये है। हम उनके बिना ही जंगल चल पडे। साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको ने बताया कि इस बार सभी लोग भुईनीम नामक वनस्पति को उखाडने मे लगे है। धमतरी के व्यापारियो ने इस बार बडी मात्रा मे इसके एकत्रण का लक्ष्य रखा है। इसकी बढी हुयी माँग को देखते हुये उन्होने ऐसे स्थानो को भी चुना है जहाँ से पहले कभी इसे एकत्र नही किया गया। इस वनस्पति की देश-विदेश मे बहुत माँग है। देश के दूसरे भागो से भी इसकी आपूर्ति होती है। जिस साल एक भाग मे वर्षा कम होती है उस साल दूसरे भागो मे इसकी माँग बढ जाती है। छत्तीसगढ के व्यापारी दशको से इसका व्यापार कर रहे है। रास्ते मे हमे बहुत से लोग मिले जो बडी बेदर्दी से इसे उखाड रहे थे। मैने बेदर्दी शब्द इसलिये इस्तमाल किया क्योकि स्थानीय लोग बताते...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -35

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -35 - पंकज अवधिया सत्यानाशी ऐसा नाम है जो सब कुछ कह देता है। अब भला यदि सत्यानाशी किसी पौधे का नाम हो तो कौन इसे अपने घर मे लगायेगा? वैसे यह देखने मे आता है कि वनस्पतियो के मूल नाम विशेषकर अंग्रेजी नाम अच्छे होते है पर स्थानीय नाम उनके असली गुणो (दुर्गुण कहे तो ज्यादा ठीक होगा) के बारे मे बता देते है। सत्यानाशी का ही उदाहरण ले। इसका अंग्रेजी नाम मेक्सिकन पाँपी है। ऐसे ही मार्निंग ग्लोरी के अंग्रेजी नाम से पहचाना जाने वाला पौधा अपने दुर्गुणो के कारण बेशरम या बेहया के स्थानीय नाम से जाना जाता है। सुबबूल की भी यही कहानी है। यह अपने तेजी से फैलने और फिर स्थापित होकर समस्या पैदा करने के अवगुण के कारण कुबबूल के रुप मे जाना जाता था। वैज्ञानिको को पता नही कैसे यह जँच गया। उन्होने इसका नाम बदलकर सुबबूल रख दिया और किसानो के लिये इसे उपयोगी बताते हुये वे इसका प्रचार-प्रसार करने मे जुट गये। कुछ किसान उनके चक्कर मे आ गये। जब उन्होने इसे लगाया तो जल्दी ही वे समझ गये कि इसका नाम कुबबूल क्यो रखा गया था। अब लोग फिर से इसे कुबबूल क...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -34

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -34 - पंकज अवधिया देश के विभिन्न भागो मे भ्रमण के दौरान मैने एक अजीब सी बात महसूस की है कि एक ही वनस्पति जहाँ एक स्थान पर पूजी जाती है वही वनस्पति दूसरे स्थान पर हानिप्रद मानी जाती है। पूजने और तिरस्कार करने, दोनो ही के विशेष कारण है। भटकटैया का ही उदाहरण ले। इसे कंटकारी भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम सोलेनम जैंथोकारपम है। यह कंटीला पौधा बेकार जमीन मे उगता है। मध्यप्रदेश के कुछ भागो मे इसे घर के बागीचे मे देखते ही उसी समय उखाडने की परम्परा है। वैसे बागीचे मे इसकी उपस्थिति खरपतवार की तरह ही होती है। आमतौर पर जिस पौधे को हम बागीचे मे नही लगाते और जो अपने आप उग जाता है उसे खरपतवार मानकर उखाड दिया जाता है। ऐसा पूरे देश मे होता है। इसमे काँटे भी होते है और इस कारण बागीचे मे खरपतवार की तरह इसकी उपस्थिति बच्चो और पालतू जानवरो के लिये मुश्किल पैदा कर सकती है। शायद इसलिये इसे उखाड दिया जाता हो-मैने सोचा। पर विस्तार से जानकारी लेने पर पता चला कि इसे तंत्र-मंत्र से जुडा पौधा माना जाता है। घर मे इसकी उपस्थिति अशांति और क्...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -33

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -33 - पंकज अवधिया बचपन मे जब मै अपने सहपाठियो के साथ गाँव की सैर किया करता था तो रोचक बाते सुनने को मिलती थी। कोई भी नया जीव दिखते ही हम उसके पीछे लग जाते थे। पर उल्लू को देखते ही हम राह बदल लेते थे। हमे चेताया गया था कि यदि शाम को उल्लू को ढेला मारा और ढेला पानी मे गिर गया तो जैसे-जैसे वह घुलता जायेगा वैसे-वैसे मारने वाले की जान निकलती जायेगी। गाँव के बडे आँखे निकाल-निकाल कर यह बात बताते थे। मन ही मन बहुत डर लगता था। हमारी हिम्मत भी नही होती थी कि हम इस प्राणी के दर्शन करे। पिछले हफ्ते एक वन ग्राम मे शाम के समय पेड पर एक उल्लू दिख गया। मैने अपना कैमरा निकाला और जुट गया तस्वीरे लेने मे। यह सब देखकर एक बच्चा तेजी से मेरे पास आया और एक ही साँस मे उसी बात को दोहरा दिया। मेरे सामने बचपन की यादे तैर गयी। इसका मतलब यह बाते दूर-दूर तक प्रचलित है। पढे-लिखे लोग निश्चित ही इसे अन्ध-विश्वास कह सकते है। पर मुझे यह विश्वास उल्लू की प्राण रक्षा मे सहायक लगा। चलिये अन्ध-विश्वास ही सही पर यह एक निरीह प्राणी की जान बचा रहा है, य...