अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -58
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -58 - पंकज अवधिया
जंगली पौधो मे आपस मे गजब की प्रतिस्पर्धा होती है। यह प्रतिस्पर्धा अंकुरण से ही शुरु हो जाती है। एक ही स्थान मे आस-पास उग रहे पौधो मे नमी, प्रकाश और भोजन के लिये प्रतियोगिता होती है। प्रभावी रहने के लिये पौधे कई तरह के रसायन छोडते है। ये रसायन दूसरे पौधो की बढवार को रोकते है। कभी-कभी उनकी जान भी ले लेते है। विज्ञान की जिस शाखा मे इस रासायनिक प्रतिस्पर्धा के विषय मे शोध होते है उसे एलिलोपैथी के नाम से जाना जाता है। आपने देखा होगा कि किसी स्थान पर एक तरह के पौधे बहुतायत मे होते है तो दूसरे स्थानो पर वे अच्छे से नही उग पाते है। मिट्टी और दूसरे कारक पौधो को इस रासायनिक प्रतिस्पर्धा मे मदद करते है। पौधो को यह ज्ञान रहता है कि कौन से दूसरे पौधे नुकसानदायक है और कौन से लाभकारक है। उनके रसायन मित्र पौधो को नुकसान नही पहुँचाते है बल्कि कई बार उनकी मदद भी करते है। मैने इस विषय मे विस्तार से काम किया है। मेरे पचास से अधिक शोध पत्र और दस हजार से अधिक शोध आलेख केवल एलिलोपैथी पर ही है। अभी भी मै इस पर निरंतर लिख रहा हूँ। यूँ तो हमारे वैज्ञानिक इसे विज्ञान की नयी शाखा बताते है पर चीन और भारत मे लोग पीढीयो से माँ प्रकृति की प्रयोगशाला मे इस विज्ञान को देख और समझ रहे है। पारम्परिक चिकित्सा के महारथी इस ज्ञान की सहायता से वनस्पतियो को औषधीय गुणो से सम्पन्न करते है। एक पौधे के रस से दूसरे पौधे की चिकित्सा भी की जाती है। जैविक खेती मे भी इस ज्ञान का प्रयोग होता है। माँ प्रकृति की प्रयोगशाला मे मै इस विज्ञान का अध्ययन अक्सर करता रहता हूँ। राज्य के अलग-अलग भागो मे एक हजार से अधिक स्थानो को मैने चिन्हाँकित किया है। समय मिलने पर वहाँ जाकर पौधो की रासायनिक प्रतिस्पर्धा को समझने की कोशिश मै करता रहता हूँ। आमतौर पर आम लोगो और गाँवो से ये स्थान दूर रहते है इसलिये किसी भी प्रकार का व्यवधान नही होता है। पिछले एक दशक से भी अधिक समय से ऐसे ही एक स्थान पर मै नजर गडाये था। एक दिन जब मै वहाँ पहुँचा तो उस वीरान जगह मे कई झोपडियाँ देखी जिन पर रंग-बिरंगे ध्वज लगे हुये थे। पौधो को साफ कर दिया गया था। पूछने पर पता चला कि यहाँ शनि मन्दिर बन गया है।
मैने साथ चल रहे लोगो से पूछा कि ये तो वन विभाग की जमीन है फिर यह कैसा मन्दिर? वे बोले कि अवैध कब्जा है। ये महाराज दम-खम से जमे है। मै उनसे मिलने अन्दर पहुँचा। सोचा कि पौधे तो नष्ट हो गये, अब इनसे ही कुछ ज्ञान ले लिया जाये। सामने वाली झोपडी मे मुझे बिठाया गया। चारो ओर तस्वीरे लटकी थी। देश-प्रदेश के सभी बडे नेताओ के साथ महाराज की तस्वीर थी। इतने मे उनके चेले आ गये और उनका गुणगान करने लगे। मुझे बताया गया कि इन्होने ढेरो चमत्कार किये है। तस्वीरो मे आग वाले चमत्कार छाये हुये थे। कही भी, कैसे भी आग लगाने का माद्दा इनमे था। महाराज का इंतजार लम्बा होता गया। जोर देने पर पता चला कि उनके कमर मे दर्द है इसलिये उठ नही पा रहे है। मै झोपडी से बाहर निकला और आस-पास पौधे तलाशने लगा। काम के पौधे मिल गये। भक्तजनो से कहा कि पानी गरम करे, महाराज को ठीक करना है। वनस्पतियो को उबाला गया फिर भाप से कमर की सिकाई की गयी। कुछ समय मे दर्द जाता रहा। महाराज प्रसन्न हो गये। मुझे अपनी झोपडियाँ दिखाने ले चले। उनके आग वाले चमत्कार की तस्वीरे देखकर मेरे मन मे एक नाम लगातार घूम रहा था। पर उस नाम की वस्तु दिख नही रही थी कही। झोपडियो मे गांजे की बदबू फैली थी। फिर हम एक गुप्त झोपडी के पास से निकले तो मुझे मिट्टी के तेल (कैरोसिन) की गन्ध आयी। उस झोपडी मे सिर्फ महाराज जा सकते थे। पर मेरी जिज्ञासा देखकर वे मुझे अन्दर ले गये। अन्दर गन्ध बहुत तेज थी। मेरे मुँह से निकल ही गया ‘सोडियम’??? महाराज ने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और चेलो को चले जाने का इशारा किया। हाँ, सोडियम ही है, कल ही पाँच हजार रुपये मे खरीदा है इतनी अधिक मात्रा मे। मेले मे जाना है जहाँ इसकी आवश्यकत्ता पडेग़ी। महाराज और कुछ चेले ही यह राज जानते थे कि आग की चमत्कारी शक्ति वाले खेल मे मुख्य भूमिका कौन निभाता है? उस दिन के बाद से मैने इस महाराज का नाम ‘सोडियम वाले बाबा’ रख दिया।
हस्तरेखा विज्ञान मे मेरी सदा से रुचि रही है पर मै इस विषय मे ज्यादा कुछ नही जानता हूँ। रेल्वे स्टेशन से कुछ पुस्तके काफी पहले खरीदी थी पर उसे पूरी कभी नही कर पाया। मेरे एक मित्र जाने-माने हस्तरेखा विशेषज्ञ है। लोग हाथ फैलाये उनके सामने खडे रहते है, अपना भविष्य जानने के लिये। उन्होने कुछ ज्ञान मुझे दिया है ताकि मै भीड मे अपना प्रभाव जमा सकूँ। मैने जब कई घंटे उनके साथ बिताये उनके ग्राहको के बीच तो पाया कि कुछ रटे-रटाये वाक्य वे सब पर आजमाते है। जैसे आप पिछले कुछ समय से परेशान है। अधिकतर लोग इसे सुनकर अभिभूत हो जाते है। मै सोचता हूँ कि कोई महंगी फीस देकर ज्योतिषी के पास पहुँचा है तो जरुर वह परेशान ही होगा तभी तो पहुँचा है। दूसरा वाक्य होता है, आप बचपन मे जोर से बीमार पडे थे। जवाब मे कोई हाँ कहता है तो कोई बचपन की याद करने की कोशिश करता है। फिर थक कर मान लेता है। मेरा सोचना है कि बचपन मे हम सब बीमार पडते ही है। यह कैसा हस्त रेखा वाचन है? पर इस पर मेरे मित्र मुझे घूरकर देखते है और मै सहम जाता हूँ। मैने इन वाक्यो को भीड मे आजमाया है और सदा ही भीड को अपने आगे बिछते देखा है। मित्र मेरा भी हाथ देखते है। फिर कुंडली बनाते है। मै पूछता हूँ कि मधुमेह पर लाखो पन्ने रंगने के बाद भी क्यो मुझे दुनिया सिर-आँखो मे नही चढाती तो वे कहते है कि अभी शनि का प्रकोप चल रहा है सितम्बर 2009 से बात बनेगी। क्या पता इसमे भी कोई राज हो, यह सोचकर मै चुप रह जाता हूँ। शनि की बात से ‘सोडियम वाले बाबा’ की याद आ गयी। ऐसे बाबाओ से मिलकर मै पहली नजर मे ही उनके बारे मे बता देता हूँ।
‘सोडियम वाले बाबा’ लोगो को भविष्य़ बताते है। मैने उनका हाथ देखना चाहा तो बोले, कुछ जानते हो या बस ऐसे ही। मैने उन्हे कागज पर कुछ लिखकर दिया। पढते ही वे नत-मस्तक हो गये। उसमे लिखा था, आपको परिवार ने सुख नही दिया, आपको साँस की बीमारी है, भविष्य़ अनिश्चित लगता है, रात को नीन्द नही आती है। ये बाते उनके हाथो मे नही लिखी थी। जंगल मे इस तरह अलग रहकर गांजे मे डूबा रहना बताता है कि परिवार वालो ने उन्हे विदा कर दिया है। साँस की बीमारी गाँजे के कारण हो जाती है। ऐसे नशे से रात को नीन्द नही आती है। रही भविष्य़ के अनिश्चित लगने की बात, तो जंगल मे जानबूझकर अवैध कब्जा किया है। कभी भी उसे तोडा जा सकता है, ऐसे मे भविष्य़ का डर तो सतायेगा ही।
एक बार ‘सोडियम वाले बाबा’ के डेरे के पास महुये के एक पुराने पेड से हमारा एक सहयोगी गिरकर घायल हो गया। अस्पताल दूर था इसलिये हम प्राथमिक उपचार के लिये उसे डेरे पर ले आये। उम्मीद के विपरीत ‘सोडियम वाले बाबा’ सब काम छोड कर आ गये और अपने चेलो को कुछ कहकर अलग-अलग दिशा मे भेज दिया। थोडी ही देर मे जडी-बूटियो के साथ वे वापस लौटे। ‘सोडियम वाले बाबा’ ने पहले दर्द पर काबू किया फिर हड्डी को बिठाया और अस्थायी खपच्ची बाँध दी। हम शहर आये तो जाने-माने अस्थि रोग विशेषज्ञ घायल साथी को देखने के बाद बोल पडे, मेरे पास क्यो लाये हो, उपचार तो हो गया है। एक मेहरबानी करो, मुझे उस देसी विशेषज्ञ के पास ले चलो।
इस घटना के बाद मै अपनी हर मुलाकात मे ‘सोडियम वाले बाबा’ को प्रेरित करता हूँ कि अपने गोरख धन्धे को छोडकर पारम्परिक चिकित्सा का सेवा वाला काम अपनाये और मैने जो भी उनसे उनके बारे मे हाथ देखकर कहा है उसे झुठलाये। देखिये ‘सोडियम वाले बाबा’ कब मानते है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
जंगली पौधो मे आपस मे गजब की प्रतिस्पर्धा होती है। यह प्रतिस्पर्धा अंकुरण से ही शुरु हो जाती है। एक ही स्थान मे आस-पास उग रहे पौधो मे नमी, प्रकाश और भोजन के लिये प्रतियोगिता होती है। प्रभावी रहने के लिये पौधे कई तरह के रसायन छोडते है। ये रसायन दूसरे पौधो की बढवार को रोकते है। कभी-कभी उनकी जान भी ले लेते है। विज्ञान की जिस शाखा मे इस रासायनिक प्रतिस्पर्धा के विषय मे शोध होते है उसे एलिलोपैथी के नाम से जाना जाता है। आपने देखा होगा कि किसी स्थान पर एक तरह के पौधे बहुतायत मे होते है तो दूसरे स्थानो पर वे अच्छे से नही उग पाते है। मिट्टी और दूसरे कारक पौधो को इस रासायनिक प्रतिस्पर्धा मे मदद करते है। पौधो को यह ज्ञान रहता है कि कौन से दूसरे पौधे नुकसानदायक है और कौन से लाभकारक है। उनके रसायन मित्र पौधो को नुकसान नही पहुँचाते है बल्कि कई बार उनकी मदद भी करते है। मैने इस विषय मे विस्तार से काम किया है। मेरे पचास से अधिक शोध पत्र और दस हजार से अधिक शोध आलेख केवल एलिलोपैथी पर ही है। अभी भी मै इस पर निरंतर लिख रहा हूँ। यूँ तो हमारे वैज्ञानिक इसे विज्ञान की नयी शाखा बताते है पर चीन और भारत मे लोग पीढीयो से माँ प्रकृति की प्रयोगशाला मे इस विज्ञान को देख और समझ रहे है। पारम्परिक चिकित्सा के महारथी इस ज्ञान की सहायता से वनस्पतियो को औषधीय गुणो से सम्पन्न करते है। एक पौधे के रस से दूसरे पौधे की चिकित्सा भी की जाती है। जैविक खेती मे भी इस ज्ञान का प्रयोग होता है। माँ प्रकृति की प्रयोगशाला मे मै इस विज्ञान का अध्ययन अक्सर करता रहता हूँ। राज्य के अलग-अलग भागो मे एक हजार से अधिक स्थानो को मैने चिन्हाँकित किया है। समय मिलने पर वहाँ जाकर पौधो की रासायनिक प्रतिस्पर्धा को समझने की कोशिश मै करता रहता हूँ। आमतौर पर आम लोगो और गाँवो से ये स्थान दूर रहते है इसलिये किसी भी प्रकार का व्यवधान नही होता है। पिछले एक दशक से भी अधिक समय से ऐसे ही एक स्थान पर मै नजर गडाये था। एक दिन जब मै वहाँ पहुँचा तो उस वीरान जगह मे कई झोपडियाँ देखी जिन पर रंग-बिरंगे ध्वज लगे हुये थे। पौधो को साफ कर दिया गया था। पूछने पर पता चला कि यहाँ शनि मन्दिर बन गया है।
मैने साथ चल रहे लोगो से पूछा कि ये तो वन विभाग की जमीन है फिर यह कैसा मन्दिर? वे बोले कि अवैध कब्जा है। ये महाराज दम-खम से जमे है। मै उनसे मिलने अन्दर पहुँचा। सोचा कि पौधे तो नष्ट हो गये, अब इनसे ही कुछ ज्ञान ले लिया जाये। सामने वाली झोपडी मे मुझे बिठाया गया। चारो ओर तस्वीरे लटकी थी। देश-प्रदेश के सभी बडे नेताओ के साथ महाराज की तस्वीर थी। इतने मे उनके चेले आ गये और उनका गुणगान करने लगे। मुझे बताया गया कि इन्होने ढेरो चमत्कार किये है। तस्वीरो मे आग वाले चमत्कार छाये हुये थे। कही भी, कैसे भी आग लगाने का माद्दा इनमे था। महाराज का इंतजार लम्बा होता गया। जोर देने पर पता चला कि उनके कमर मे दर्द है इसलिये उठ नही पा रहे है। मै झोपडी से बाहर निकला और आस-पास पौधे तलाशने लगा। काम के पौधे मिल गये। भक्तजनो से कहा कि पानी गरम करे, महाराज को ठीक करना है। वनस्पतियो को उबाला गया फिर भाप से कमर की सिकाई की गयी। कुछ समय मे दर्द जाता रहा। महाराज प्रसन्न हो गये। मुझे अपनी झोपडियाँ दिखाने ले चले। उनके आग वाले चमत्कार की तस्वीरे देखकर मेरे मन मे एक नाम लगातार घूम रहा था। पर उस नाम की वस्तु दिख नही रही थी कही। झोपडियो मे गांजे की बदबू फैली थी। फिर हम एक गुप्त झोपडी के पास से निकले तो मुझे मिट्टी के तेल (कैरोसिन) की गन्ध आयी। उस झोपडी मे सिर्फ महाराज जा सकते थे। पर मेरी जिज्ञासा देखकर वे मुझे अन्दर ले गये। अन्दर गन्ध बहुत तेज थी। मेरे मुँह से निकल ही गया ‘सोडियम’??? महाराज ने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और चेलो को चले जाने का इशारा किया। हाँ, सोडियम ही है, कल ही पाँच हजार रुपये मे खरीदा है इतनी अधिक मात्रा मे। मेले मे जाना है जहाँ इसकी आवश्यकत्ता पडेग़ी। महाराज और कुछ चेले ही यह राज जानते थे कि आग की चमत्कारी शक्ति वाले खेल मे मुख्य भूमिका कौन निभाता है? उस दिन के बाद से मैने इस महाराज का नाम ‘सोडियम वाले बाबा’ रख दिया।
हस्तरेखा विज्ञान मे मेरी सदा से रुचि रही है पर मै इस विषय मे ज्यादा कुछ नही जानता हूँ। रेल्वे स्टेशन से कुछ पुस्तके काफी पहले खरीदी थी पर उसे पूरी कभी नही कर पाया। मेरे एक मित्र जाने-माने हस्तरेखा विशेषज्ञ है। लोग हाथ फैलाये उनके सामने खडे रहते है, अपना भविष्य जानने के लिये। उन्होने कुछ ज्ञान मुझे दिया है ताकि मै भीड मे अपना प्रभाव जमा सकूँ। मैने जब कई घंटे उनके साथ बिताये उनके ग्राहको के बीच तो पाया कि कुछ रटे-रटाये वाक्य वे सब पर आजमाते है। जैसे आप पिछले कुछ समय से परेशान है। अधिकतर लोग इसे सुनकर अभिभूत हो जाते है। मै सोचता हूँ कि कोई महंगी फीस देकर ज्योतिषी के पास पहुँचा है तो जरुर वह परेशान ही होगा तभी तो पहुँचा है। दूसरा वाक्य होता है, आप बचपन मे जोर से बीमार पडे थे। जवाब मे कोई हाँ कहता है तो कोई बचपन की याद करने की कोशिश करता है। फिर थक कर मान लेता है। मेरा सोचना है कि बचपन मे हम सब बीमार पडते ही है। यह कैसा हस्त रेखा वाचन है? पर इस पर मेरे मित्र मुझे घूरकर देखते है और मै सहम जाता हूँ। मैने इन वाक्यो को भीड मे आजमाया है और सदा ही भीड को अपने आगे बिछते देखा है। मित्र मेरा भी हाथ देखते है। फिर कुंडली बनाते है। मै पूछता हूँ कि मधुमेह पर लाखो पन्ने रंगने के बाद भी क्यो मुझे दुनिया सिर-आँखो मे नही चढाती तो वे कहते है कि अभी शनि का प्रकोप चल रहा है सितम्बर 2009 से बात बनेगी। क्या पता इसमे भी कोई राज हो, यह सोचकर मै चुप रह जाता हूँ। शनि की बात से ‘सोडियम वाले बाबा’ की याद आ गयी। ऐसे बाबाओ से मिलकर मै पहली नजर मे ही उनके बारे मे बता देता हूँ।
‘सोडियम वाले बाबा’ लोगो को भविष्य़ बताते है। मैने उनका हाथ देखना चाहा तो बोले, कुछ जानते हो या बस ऐसे ही। मैने उन्हे कागज पर कुछ लिखकर दिया। पढते ही वे नत-मस्तक हो गये। उसमे लिखा था, आपको परिवार ने सुख नही दिया, आपको साँस की बीमारी है, भविष्य़ अनिश्चित लगता है, रात को नीन्द नही आती है। ये बाते उनके हाथो मे नही लिखी थी। जंगल मे इस तरह अलग रहकर गांजे मे डूबा रहना बताता है कि परिवार वालो ने उन्हे विदा कर दिया है। साँस की बीमारी गाँजे के कारण हो जाती है। ऐसे नशे से रात को नीन्द नही आती है। रही भविष्य़ के अनिश्चित लगने की बात, तो जंगल मे जानबूझकर अवैध कब्जा किया है। कभी भी उसे तोडा जा सकता है, ऐसे मे भविष्य़ का डर तो सतायेगा ही।
एक बार ‘सोडियम वाले बाबा’ के डेरे के पास महुये के एक पुराने पेड से हमारा एक सहयोगी गिरकर घायल हो गया। अस्पताल दूर था इसलिये हम प्राथमिक उपचार के लिये उसे डेरे पर ले आये। उम्मीद के विपरीत ‘सोडियम वाले बाबा’ सब काम छोड कर आ गये और अपने चेलो को कुछ कहकर अलग-अलग दिशा मे भेज दिया। थोडी ही देर मे जडी-बूटियो के साथ वे वापस लौटे। ‘सोडियम वाले बाबा’ ने पहले दर्द पर काबू किया फिर हड्डी को बिठाया और अस्थायी खपच्ची बाँध दी। हम शहर आये तो जाने-माने अस्थि रोग विशेषज्ञ घायल साथी को देखने के बाद बोल पडे, मेरे पास क्यो लाये हो, उपचार तो हो गया है। एक मेहरबानी करो, मुझे उस देसी विशेषज्ञ के पास ले चलो।
इस घटना के बाद मै अपनी हर मुलाकात मे ‘सोडियम वाले बाबा’ को प्रेरित करता हूँ कि अपने गोरख धन्धे को छोडकर पारम्परिक चिकित्सा का सेवा वाला काम अपनाये और मैने जो भी उनसे उनके बारे मे हाथ देखकर कहा है उसे झुठलाये। देखिये ‘सोडियम वाले बाबा’ कब मानते है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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