अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -63

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -63 - पंकज अवधिया

‘अरे वाह, मुझे मिल गया महुआ का बान्दा। मै अभी उसे तोडता हूँ। उसको छूते ही मुझे दिन मे तारे दिखने लगेंगे।‘ यह कहकर तांत्रिक चिल्लाया और जब तक हम उसे रोकते वह महुए के पुराने और ऊँचे पेड मे चढने लगा। पहले उसकी गति तेज रही फिर ऊपर पहुँचते तक वह थक गया। पर आखिर वह उस डाल पर पहुँच ही गया जहाँ यह बान्दा था। उसने उसे छुआ और आसमान की ओर देखा। उसे सूरज ही नजर आया। वहाँ से चिल्लाकर हमसे बोला कि तारे नही दिख रहे है। अचानक ही उसका पैर थोडा सा फिसला और वह कुछ नीचे आकर सम्भल गया। उसे सिर मे हल्की सी चोट लगी। सम्भलने के बाद वह बान्दा तोडकर नीचे आ गया। हमने मुस्कुराते हुये पूछा कि जब सिर मे चोट लगी तो कुछ दिखा क्या? तारा-वारा? वह हमारे इशारे को समझ गया और हँस पडा। उत्तर भारत से आया यह तांत्रिक दावा कर रहा था कि उसने जीवन बिता दिया पर महुए का बान्दा नही देखा। उसका यह भी दावा था कि दिन मे उसे छू लेने पर तारे दिखने लगते है। उसे समझाने की बजाय हमने उसे स्वयम यह करके देखने को कहा। यह सब करने के बाद वह बोला कि अब मै सबसे पहले उस गुरु की खबर लूंगा जिसने मुझे गलत बात बतायी। मैने उससे कहा कि यदि हो सके तो उन लोगो से भी माफी माँगना जिन्हे बिना आजमाये यह गलत जानकारी दी और अन्ध-विश्वास फैलाया।

महुए का बान्दा मतलब महुए के ऊपर उगने वाली एक वनस्पति। यह आँशिक परजीवी होती है। अर्थात जमने के लिये महुए के भोजन का उपयोग करती है और फिर पत्तियो के आने के बाद अपना भोजन खुद ही बनाने लगती है। महुए के अलावा इस बान्दा को साजा, चार, बीजा आदि बहुत से जंगली पेडो पर देखा जा सकता है। देश मे बहुत से भागो मे यह आम पर भी उगता दिख जाता है। यह काफी ऊपर होता है इसलिये नीचे से इसे देख पाने मे मुश्किल होती है। महुए का बान्दा तांत्रिको के लिये एक वरदान की तरह है। मै पिछले एक दशक से भी अधिक समय से इसके विभिन्न पहलुओ का अध्ययन कर रहा हूँ। तांत्रिक इसे शुभ मानते है। वे अलग-अलग कार्यो के लिये अपने जातको को इसे नियत तिथि और समय पर एकत्र करने को कहते है। ऐसी मान्यता है कि इस बान्दा को घर मे रखने से बुरी आत्मा का प्रभाव नही होता है। यह भी माना जाता है कि चावल के साथ इसे तिजोरी मे रखने से धन दिन दूनी रात चौगुनी की दर से बढता है। (इस मन्दी के दौर मे यह रामबाण साबित हो सकता है।) इस तरह की बातो ने इस बान्दा की पूछ-परख बढा दी है। सम्पन्न लोग इसे पाने की लिये एडी-चोटी का जोर लगा देते है। वे नंगे पाँव अल सुबह निकल पडते है और फिर ठंडे पानी मे स्नान करके नंगे बदन ही पेड पर चढकर इसे तोड लेते है। इस तरह का एकत्रण सबके बस की बात नही है। इसका लाभ तांत्रिक उठाते है। वे दूसरी वनस्पति ले आते है और उसे असली बताकर बेच देते है। महुआ का बान्दा जंगलो मे मिल जाता है थोडी खोजबीन के बाद पर तांत्रिक कह देते है कि यह तो हिमालय मे ही मिलेगा और वह भी काफी ऊँचाई पर। असली के प्रमाण के लिये इनसे अविश्वसनीय बाते जोड दी जाती है। जैसे दिन मे तारे दिखने की बात। यदि गल्ती से किसी को बिना गुरु के यह बान्दा मिल भी जाता है तो तारे न दिखने के कारण वह समझ बैठता है कि यह नकली है।

पेडो पर शोध कर रहे वैज्ञानिक इसे ट्री पैरासाइट के नाम से जानते है। उन्हे इससे जुडी मान्यताओ की जानकारी कम है। उन्हे लगता है कि इसके कारण पेडो को नुकसान हो रहा है। पिछले कई दशको से वे प्रयोग कर रहे है। उन्होने बहुत से ऐसे रसायन विकसित किये है जो कि इसे पूरी तरह नष्ट कर देते है। वे जंगलो मे इसका छिडकाव करते है और आम लोगो से भी ऐसा करने को कहते है। रसायनो के छिडकाव से निश्चित ही बान्दे मर जाते है पर इससे पर्यावरण पर जो प्रभाव पडता है उसकी वे अनदेखी कर देते है। कभी भी ऐसा नही देखा गया कि इस आंशिक परजीवी के कारण किसी बडे हिस्से का जंगल साफ हुआ हो। पर हमारे वैज्ञानिको ने जिसे एक बार दुश्मन घोषित कर दिया सो कर दिया फिर दशको तक कोल्हू के बैल की तरह उस पर शोध करते रहते है। रसायन बनाने वाली कम्पनियाँ उन्हे शोध के लिये पैसे देती रहती है और इस तरह रिसर्च स्कालर रिटायर होते तक यही करता रहता है।

यदि आप चिकित्सा से सम्बन्धित प्राचीन भारतीय ग्रंथो को पलटेंगे तो आपको इस बान्दा का उल्लेख मिलेगा। बकायदा औषधी के रुप मे। पर व्यवसायिक आयुर्वेद मे जितने भी उत्पाद आज भारत मे बन रहे है उनमे किसी मे भी इसका उपयोग अभी नही हो रहा है। यदि आप परम्परिक चिकित्सा की ओर रुख करे तो इसके बारे मे ज्ञान को जानकर दाँतो तले अंगुली दबा लेंगे। पारम्परिक चिकित्सा मे मैने अब तक 1600 से अधिक ऐसे नुस्खो का दस्तावेजीकरण (डाक्युमेंटेशन) किया है जो कि इस बान्दा के बिना अधूरे है। ये नुस्खे साधारण बुखार से लेकर मधुमेह तक की चिकित्सा मे काम आते है। ये सभी नुस्खे प्रचलन मे है। कारगर है इसीलिये प्रचलन मे है। यदि प्रभावकारी नही होते तो जाने कब से पारम्परिक चिकित्सक इन्हे भुला बैठते। मधुमेह के उपचार मे तो पारम्परिक चिकित्सक औषधीय धान और आर्किड के साथ इसका प्रयोग करते है। वे कहते है कि अपने शुरुआती जीवन मे जब यह बान्दा महुए पर आश्रित रहता है तो वह महुए से भोजन के अलावा औषधीय तत्व भी ले लेता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिन रोगो मे महुए के पौध भागो से लाभ नही मिलता है उनमे पारम्परिक चिकित्सक महुए से एकत्र किये गये इस बान्दे का प्रयोग करते है और सफलता प्राप्त करते है। इस बान्दा मे बडे ही सुन्दर लाल-नारंगी रंग के फूल निकलते है। इन फूलो का उपयोग रक्त सम्बन्धी रोगो की चिकित्सा मे होता है।

पारम्परिक चिकित्सक कहते है कि लगातार इसके एकत्रण से इसके फैलाव पर अंकुश लगा रहता है। बहुत बार तो यह आसानी से मिलता ही नही है। जब मैने उन्हे वैज्ञानिक शोधो की जानकारी दी तो वे बोले इस पर इतना खर्चने से क्या लाभ। इससे किसी प्रकार की समस्या तो है नही फिर क्यो रसायनो के प्रयोग को बढावा दिया जाये। वे तांत्रिको द्वारा इसके विषय मे फैलाये जा रहे अन्ध-विश्वास के खिलाफ है। इस अन्ध-विश्वास के कारण औषधी के लिये इसका मिलना दुष्क़र होता जा रहा है।

तांत्रिक, वैज्ञानिक और पारम्परिक चिकित्सक- इन तीनो मे मै पारम्परिक चिकित्सको से सहमत हूँ। तंत्र और इससे जुडे अन्ध-विश्वास की पकड हमारे समाज मे इतनी मजबूत है कि इस लेख के माध्यम से बहुत कम ही लोग जाग पायेंगे और ठगी से बचेंगे। वैज्ञानिको को भी समझाना मुश्किल है। यदि वे सही दिशा मे सोचने लग जाये तो देश मे बहुत से शोध संस्थानो को बन्द करने की नौबत आ जायेगी। ये शोध संस्थान जनता के पैसे की खुलेआम बरबादी कर रहे है।

ऐसे मे पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण और पारम्परिक चिकित्सको को प्रोत्साहन ही सही कार्य जान पडता है मेरे लिये। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

पूर्वानुसार यह लेख भी ज्ञांवर्धक है. आपने हज़ारों चित्र लिए हैं. आपने हर पोस्ट के साथ एक या दो चित्र भी दे दें तो अच्छा रहेगा. आभार.
cooltoad said…
Sir,

I read your post which was really interesting to note about Dendrophthoe falcata and its association with Madhuca indica. I earlier followed your texts on Chlorophytum borivilianum while going through a research internship in the Tissue Culture Division of CIMAP. You have really done so many legendry works. Jiski prashansa karne mein muh nahi thakta.
Best of Luck.

With great regards,
Gaurav Mudgal,
Genetic Transformation Laboratory, ICRISAT, Patancheru, AP, INDIA.
gauravmdgl@yahoo.co.in
www.gmudgal.blogspot.com

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