अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -55

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -55 - पंकज अवधिया

पहाडो की गोद मे बसे एक सुदूर गाँव की ओर जाते वक्त उबड-खाबड सडक से हटकर मेरा ध्यान बाहर जंगलो मे लगा था। सडक देखने की सारी मशक्कत ड्रायवर के जिम्मे थी। एक छोटे से गाँव को पार करते समय अंतिम छोर पर एक महंगी विदेशी कार देखकर मन खटका। गाडी रुकवाई। गाँव के लोगो ने बताया कि ये ओझा का घर है और यहाँ दूर-दूर से लोग झाड-फूँक करवाने आते है। उत्सुकता जागी और हम लोग ओझा के घर तक पहुँच गये। ड्रायवर को पता था कि उसे क्या करना है। अन्दर जाकर उसने अपना नाम मरीज के रुप मे बता दिया और इस तरह हमे बाहर बैठे लोगो के बीच बैठने का लाइसेंस मिल गया। विदेशी कार मे एक परिवार आया था। माता-पिता और एक किशोर। पिता बैचैनी से बाहर मोबाइल का सिग्नल तलाशते घूम रहे थे। माता किशोर के पास बैठकर नसीहते दे रही थी। बीच-बीच मे हाथ जोडकर प्रार्थना भी करने लगती थी। इंतजार मे बैठे बाकी मरीज जैसे अपना मर्ज भूल गये थे। वे शहरी मेहमानो को देख रहे थे। मुझे देखकर इन शहरियो को लगा कि चलो कोई और भी है शहर से।

किशोर मरीज के रुप मे आया था। समस्या थी कि उसका मन पढने-लिखने मे लगता नही था। किशोरवय की तथाकथित बुरी बातो मे लगा रहता था। माँ का मानना था किसी की नजर लग गयी है। इसलिये इस ओझा का नाम सुनकर इतनी दूर आये थे। किशोर हमारे कैमरे और दूसरी चीजो को देखकर जल्दी ही घुलमिल गया। बातो ही बातो मे मैने उसकी माँ से किशोर की दिनचर्या पूछी। खान-पान के बारे मे पूछा। आज के किशोरो जैसा ही खान-पान था। साफ्ट ड्रिंक और फास्ट-फुड का उपयोग रोज होता था। रात को दूध पीता है और उसके साथ दवाई खाता है-उसकी माँ ने बताया। कौन सी दवाई? मैने पूछा। स्मरण शक्ति बढाने वाली-उन्होने कहा। शंखपुष्पी? मैने विस्तार से जानना चाहा। नही जी, वह तो अब असर नही करती हम ये वाली आयुर्वेदिक दवा देते है रोज दिन मे दो बार, यदि यह तैयार हो तो दिन मे तीन बार भी। ऐसा बताते हुये उन्होने बैग से एक डिब्बा निकालकर दिखा दिया। डिब्बा जाना पहचाना था। मैने कहा, यह तो बच्चो और किशोरो के लिये नही है। यह तो काम शक्ति बढाने की दवा है। उन्होने ऐसे देखा जैसे कि मै अनपढ हूँ और कहा कि डिब्बे मे जो लिखा है उसे पढिये। मैने डिब्बा लिया। सामने लिखा था बौद्धिक दुर्बलतानाशक और बलवर्धक। किनारे मे लिखा था, शक्तिवर्धक और बाजीकरण है। मैने उनसे कहा, यह तो लिखा है कि यह बाजीकारक है। वे बोली, पर सामने तो बौद्धिक दुर्बलतानाशक लिखा है इसलिये हमने इसे किशोर को दिया। बाजीकरण का अर्थ मुझे नही पता। मैने पूछा, आप इस दवा को कैसे देती है? वे बोली, घी के साथ कहा है पर मै दूध के साथ देती हूँ। क्या आपने किसी चिकित्सक से परामर्श लेना ठीक नही समझा? इस पर वे बोली कि ये आयुर्वेदिक दवा है, इससे फायदा ही होगा, नुकसान हो ही नही सकता। फिर क्यो चिकित्सक से पूछना?

इस घटना के बाद मै बहुत-सी दवा दुकानो मे गया और बच्चो के लिये मेमोरी टानिक माँगा। ज्यादातर दुकानो मे इसी दवा को दिया गया। इसमे असगन्ध और विधारा है। इन दोनो को बराबर मात्रा मे मिलाया गया है। यह कामशक्तिवर्धक है और बच्चो के लिये नही है। यह सभी के लिये उपयोगी भी नही है। रोगी की प्रकृति के अनुसार इसे दूध, घी, पानी या तिल के तेल के साथ लेने की सलाह दी जाती है। कब तक लेना है और कितनी मात्रा मे लेना है ये चिकित्सक फैसला करते है। पर यह उत्पाद धडल्ले से मेमोरी टानिक के नाम पर बेचा जा रहा है। एक परिचित दुकानदार ने बताया कि इसमे कमीशन ज्यादा है। फिर लोग भी चिकित्सक के पास जाने की बजाय दुकानदारो की सलाह पर ऐसे उत्पाद ले लेते है। आयुर्वेद से नुकसान नही होता है- ऐसा शहरी अन्ध-विश्वास आज जाने-अनजाने कितने लोगो को रोगग्रस्त कर रहा है। सभी दवाए सभी के लिये नही है। चाहे वे आयुर्वेदिक दवाए ही क्यो न हो। गलत दवा के सेवन से नुकसान हो सकता है, चाहे वे आयुर्वेदिक दवाए ही क्यो न हो।

आँवला सभी के लिये हितकर माना जाता है। पर ह्र्दय रोगो की चिकित्सा मे महारत रखने वाले बहुत से प्रतिष्ठित चिकित्सक और विद्वानो ने अपने अनुभव से पाया है कि ह्र्दय रोगियो को आँवले का प्रयोग सम्भल के करना चाहिये। इसका गलत उपयोग अहितकर भी हो सकता है। आज च्यवनप्राश घर-घर मे पहुँच गया है। छोटे से लेकर बडे तक सभी इसका सेवन बिना चिकित्सकीय परामर्श से कर रहे है। इस उत्पाद मे यह कही नही लिखा होता कि किस अवस्था मे इसका प्रयोग करना चाहिये और किसमे नही? आपको याद होगा कि पहले इसे ठंड के लिये उपयोगी उत्पाद के रुप मे बेचा जाता था। धीरे-धीरे इसे साल भर बेचा जाने लगा। अभी देखियेगा आपके कुत्ते और पालतू जानवरो के लिये भी इसे उपयोगी बताया जाने लगेगा। यह व्यवसायिक आयुर्वेद है। इसका हमारे विशुद्ध आयुर्वेद से कुछ लेना-देना नही है। यह व्यवसायिक आयुर्वेद बस किसी भी तरह से आम लोगो से घन उगाही करना चाहता है। हमारा देश बुरी तरह इसके गिफ्त मे आ चुका है।

आँवले की तरह ही अदरक को भी सभी के उपयोगी मान लिया जाता है। पर श्वेत कुष्ठ (ल्यूकोडर्मा) जैसे रोगो से प्रभावित रोगियो को इसके किसी भी रुप मे उपयोग की मनाही है। कुछ महिनो पहले ही मेरा ड्रायवर बता रहा था कि कैसे उसके बच्चे च्यवनप्राश खाते है और कैसे इससे घर का बजट बिगड जाता है। मैने उससे पूछा कि च्यवनप्राश क्यो खिला रहे हो? वो बोला, पढाई लिखाई मे बच्चो को तेज बनाने के लिये। मैने पूछा कि यदि मै कोई सस्ता विकल्प बताऊँ तो आजमाओगे। उसने हामी भरी। शायद इसलिये उसने यह बात बतायी थी। घी मिलेगा? उसने कहा, हाँ, गाँव से मिल जायेगा। घी, शक्कर और कालीमिर्च, इन तीनो को मिलाकर एक चम्मच रोज बच्चो को सुबह दे देना। न केवल दिमागी शक्ति बढेगी बल्कि पूरे शरीर पर सकारात्मक प्रभाव होगा। बचपन मे हमारी माताजी हमे यही देती थी। उसने आजमाया और जल्दी ही उसका असर भी देखा। इसी नुस्खे की सलाह मै उस किशोर के माता-पिता को भी देता जो कामशक्तिवर्धक दवा अपने किशोर को खिला रहे थे, वह भी दिन मे तीन बार, पर उस दिन वे अपनी गल्ती मानने को तैयार नही थे। इसलिये मैने उन्हे यह नही बताया। उस दिन किशोर को झाडा और फूँका गया। किसी अज्ञात पिशाच को दोषी ठहराया गया। फिर उसे भगाने का प्रपंच किया गया। वे वापस लौट गये ये मानकर कि पिशाच से छुटकारा मिल गया पर असली पिशाच तो अभी भी बैग मे डिब्बे के अन्दर दवा के रुप मे उनके साथ था। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

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Comments

समाज में व्याप्त दुर्विश्वास पर सुंदर जानकारी. बौद्धिक विकास के लिए भी आपने नुस्ख़ा दे दिया. एक बात भर कहना चाहूँगा, विश्वास मात्र विश्वास है.
बहुत दिनों में आप के ब्लाग पर आया हूँ। आप ने जबर्दस्त बातें बताई हैं। ये सब चीजें मैं अपने आस पास खूब देखता हूँ। सभी चिकित्सा पद्धतियाँ व्यावसायिक हो कर जन स्वास्थ्य के लिए एक खतरा बनती जा रही हैं। इस मामले में देश और राज्यों के स्वास्थ्य विभागों को कोई कदम अवश्य उठाना चाहिए। 26 जनवरी के आसपास रायपुर में आप से मिलना हो सके।
आप की बात बिल्कुल सही है।बहुत से पढे लिखे लोग भी इसी प्रकार की दवाओ का सेवन कर रहे हैं।बैद्धिक विकास हेतू जो नुस्खा आप ने बताया यह सच में ही लाभदायक है।आभार।

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