अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -69

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -69 - पंकज अवधिया

ऊँ नम: सुरभ्य: बलज: उपरि परिमिलि स्वाहा।
इस मंत्र का दस सहस्त्र बार विधिपूर्ण जप करने के बार तांत्रिक ने मुझे फोन किया कि साहब आ जाइये, तैयारी पूरी हो गयी है। उसकी ओर से तो तैयारी पूरी थी पर मुझे एक वनस्पति खोजनी थी। मै निकल पडा जंगल की ओर। साथ मे पारम्परिक चिकित्सक भी हो लिये। हमे ऐसी वनस्पति की तलाश थी जो बहेडे के पेड के ऊपर आंशिक परजीवी की तरह उग रही हो। इसे बहेडे का बान्दा कहा जाता है। आपने महुये के बान्दा के विषय मे पिछले लेख मे पढा है। मुझे इस बान्दे की पहचान थी। मैने झट से गाडी एक पहाडी की तलहटी मे रुकवा दी और साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको को बान्दा दिखा दिया। अब बहुत सारे विशेषज्ञ होंगे तो कुछ समस्या तो होगी ही। पारम्परिक चिकित्सको ने कहा कि यह बहेडे का असली बान्दा नही है। मैने कहा इसे एकत्र कर लिया जाये विधि-विधान से और फिर पारम्परिक चिकित्सको के बान्दे की तलाश मे निकला जाये। शाम तक हम इधर-उधर भटकते रहे। हमे तीन तरह के बान्दे मिले। दूसरी सुबह हमने तांत्रिक के पास जाने का मन बनाया।

तांत्रिक ने मंत्रो के जाप के बाद मौन धारण किया हुआ था। जब हम पहुँचे तो वह कुछ किसानो के साथ खडा था। ये वही किसान थे जिनके खेतो मे प्रयोग होना था। दो तरह की फसले चुनी गयी। एक धान और दूसरी कोदो। एक खेत को दो हिस्सो मे बाँट दिया गया। एक मे तांत्रिक का प्रयोग होना था और दूसरे भाग को ऐसे ही छोड दिया जाना था ताकि परिणामो की तुलना की जा सके। धान और कोदो की पारम्परिक खेती की जानी थी। हमारे द्वारा लाये गये बान्दे को देखकर तांत्रिक ने मेरे द्वारा एकत्र किये गये बान्दे को चुना। हम खेत तक पहुँचे। मंत्रो का जप भी शुरु हो गया। तांत्रिक ने खेत का एक किनारा चुना और उस बान्दे को मिट्टी के भीतर दबा दिया। इस तरह प्रक्रिया सम्पन्न हुयी। तांत्रिक का दावा था कि इस छोटे से प्रयास से दोनो फसलो की उपज मे बढोतरी होगी। यह बान्दे और मंत्र की चमत्कारिक शक्ति के कारण होगा। तांत्रिक ने अपने दावे की पुष्टि के लिये एक ग्रंथ नुमा पुस्तक दिखायी। मैने ग्रंथ नुमा पुस्तक इसलिये कहा क्योकि इस पुस्तक मे जानबूझकर शब्दो का आकार बडा कर दिया गया था जिससे यह मोटी हो जाये। इस पुस्तक मे भी वही मंत्र लिखा था। सीधे-सीधे ही मै कह सकता था कि ये अन्ध-विश्वास है। भला एक बान्दा कैसे उपज बढायेगा पर मै यह उसके ही मुँह से सुनना चाहता था। इसलिये इस प्रयोग को किया। तांत्रिक के लिये भी यह पहला अनुभव था।

मैने वही बान्दा अपने लिये भी रख लिया। वापस घर लौटकर मै अपनी निजी प्रयोगशाला मे कुछ प्रयोग करना चाहता था। मैने मिट्टी के गमलो मे धान और कोदो के वही बीज लिये और उन्हे बो दिया। बोने से पहले बान्दा के सत्व से मिट्टी को सीचा। फिर जैसे-जैसे पौधे बढते रहे अलग-अलग शक्ति के सत्वो से सिंचाई जारी रही। इस प्रयोग मे कुछ गमलो को उपचार से अलग रखा गया ताकि परिणामो की तुलना की जा सके। गमलो मे मिट्टी उन्ही खेतो की थी जहाँ तांत्रिक का प्रयोग चल रहा था। मुझे इस बात का भान है कि गमले की परिस्थितियाँ खेत से एकदम भिन्न होती है पर इससे थोडी जानकारी और दिशा मिल जाती है फिर उस दिशा मे आगे बढकर बडे खेतो मे प्रयोग किये जा सकते है। साधारण जल से उपचारित बीजो और बान्दा के सत्व से उपचारित बीजो के अंकुरण मे कुछ फर्क नही दिखा। उधर खेत मे प्रयोग चलता रहा और इधर निज प्रयोगशाला मे। फसले पक गयी तो तांत्रिक का फोन आया। आवाज बुझी-बुझी थी। दूसरे दिन हम पहुँच गये। फसल कटकर रखी थी पर किसानो को कुछ अंतर नही दिखता था। उपज न ही बढी थी और न ही कम हुयी थी। घर मे रखे गमलो मे भी यही दिख रहा था। तांत्रिक का प्रयोग असफल रहा। उसने मान लिया कि अब वह किसी को इस तरह की भ्रामक जानकारी नही देगा। साथ आये पारम्परिक चिकित्सको ने सुझाया कि जब ये सब किया है तो कुछ और प्रयोग कर लिये जाये। उनका कहना था कि बान्दा संख्या मे अधिक होना चहिये और गडाने का स्थान भी उनके अनुसार होना चाहिये। इस बार मंत्रो का प्रयोग नही करेंगे सीधे ही बान्दा का उपयोग करके देखेंगे। हम सब तैयार हो गये। नया प्रयोग माने एक साल का लम्बा इंतजार।

लम्बे इंतजार के बाद फिर बरसात का मौसम आया और हम पहुँच गये बान्दा लेकर। इस बार पारम्परिक चिकित्सको ने वह स्थान चुना जहाँ से पानी खेत मे आता था। इसका साफ अर्थ था कि वे बान्दे के सत्व को पानी की सहायता से समय-समय पर फसलीय पौधो तक पहुँचाना चाहते थे। मैने इस लेखमाला मे पहले लिखा है कि कर्रा जैसी वनस्पतियो का प्रयोग बहुत से किसान इस तरह करते है। हर पन्द्रह-बीस दिन के बाद पारम्परिक चिकित्सक बान्दे को बदलते रहे। पुराने की जगह नया बान्दा खेत मे रखा गया। एक दिन किसानो ने आश्चर्यजनक बात बतायी। उन्होने कहा कि धान की फसल मे एक विषेष कीट का प्रकोप कम हो रहा है। यह कीट आस-पास के खेतो मे तबाही मचाये हुये है पर इस खेत मे इनकी संख्या बहुत कम है। बान्दे के ऊपर सबकी निगाहे टिकी। सत्व का सान्द्रण जब बढाया गया तो तस्वीर साफ हो गयी। आस-पास के किसान हमारे पास आकर मदद की गुहार करने लगे। हमने उन्हे वनस्पति का नाम बता तो दिया पर जंगल मे यह इतनी नही थी कि इतने सारे किसानो की समस्या सुलझ पाती। बात फिर निज प्रयोगशाला तक पहुँच गयी। अधिक किसानो को लाभ पहुँचाने के लिये इसे सत्व के रुप मे विकसित करना था। इसके लिये बडे प्रयोगो की आवश्यकत्ता थी। बडे प्रयोग मायने अच्छा खासा खर्च और लम्बा समय। कृषि शोध संस्थानो से मदद मिल सकती थी पर वे भला अनपढ किसानो की क्यो सुनने लगे। यदि मै जोर लगाता तो शायद शोध संस्थान तैयार हो जाते पर इसके बाद वही होता जो अब तक होता आया है। शोध के परिणाम वापस किसानो तक पहुँचने की बजाय कम्पनियो के हाथो मे पहुँच जाते और किसान राह तकते रह जाते। इसलिये सभी ने तय किया कि अपने स्तर पर प्रयोग जारी रखा जाये। इस पर भी आम राय बनी कि कुछ समय तक इसके प्रयोग के बाद हो सकता है कि कीटो मे प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाये और इसका असर कम हो जाये। इसलिये इस वनस्पति के साथ दूसरी वनस्पतियाँ भी मिलायी जाये और भविष्य़ के लिये मजबूत हथियार तैयार रखा जाये।

हमारे नये प्रयोग से तांत्रिक कन्नी काट रहा था। उसे बुलवाया गया और प्रयोग करने वाले दल मे शामिल किया गया। आखिर उसके दावे (झूठे ही सही) के आधार पर हमने बान्दे को आजमाना शुरु किया था।


पिछले लेख पर आधारित कुछ सन्देशो पर त्वरित प्रतिक्रिया

‘ तुम्हारे लिखने से हमारा कुछ नही उखडने वाला। अरे, तुम जहाँ लिखते हो, वहाँ पढने ही कौन आता है।‘ फोन पर मुझे धमका रहे ये शख्स दिल्ली के थे। यह उनकी प्रतिक्रिया थी सियार सिंगी और शेर सिंगी (सिंगी) पर लिखे लेख पर। (इस लेखमाला की 68 वी कडी देखे) उनका कहना था कि इससे लोगो की आस्था और सियार सिंगी व शेर सिंगी के व्यापार पर जरा भी फर्क नही पडेगा। पर फोन पर उनका चीखना और धमकाना यह स्पष्ट संकेत दे रहा था कि इस लेखमाला से कुछ फर्क तो उन्हे पड रहा था। सियार सिंगी और शेर सिंगी पर केन्द्रित इस लेख पर व्यापक प्रतिक्रियाए आयी फोन और निजी सन्देशो के द्वारा। हरिय़ाणा से आये एक सन्देश ने मुझे प्रेरित किया कि मै इस पर एक छोटा सा लेख लिखूँ।

यह सन्देश एक गृहणी का था। उन्होने लिखा है कि मेरे पति की फैक्ट्री थी पर पिछले कुछ वर्षो से लगातार घाटा होने के कारण वे घर बैठ गये है। बाबाओ के चक्कर मे आ गये है। आज आपका लेख पढकर मुझे सियार सिंगी और शेर सिंगी के बारे मे पता चला। ये दोनो ही मेरे घर पर है। मेरे पति रोज इनकी पूजा करते है। उन्होने इन्हे बहुत अधिक दाम पर खरीदा है एक बाबा से। वे इनके साथ चावल, लौग, उरद और दूसरी चीजे रखते है। प्रतिदिन जो कर्ज वसूलने वाले आते है उन पर ये उरद फेंक देते है। मै पूछती हूँ तो कहते है कि इन लोगो का सर्वनाश हो जायेगा। रोज की यही कहानी है। न उनका सर्वनाश होता है और न ही इनका टोटका खत्म होता है। आपसे अनुरोध है कि आप मेरे पति को समझाये। उनका फोन नम्बर है ----। बाबा का भी फोन नम्बर दे रही हूँ। आप हमारे पैसे वापस करवा सके तो हम आजीवन आपके आभारी रहेंगे।

मुझे पहले इस सन्देश पर शक हुआ। फिर दिन मे कई फोन आये। इस महिला ने मेरे एक परिचित के माध्यम से भी सम्पर्क साधा। मैने परिचित से बात की तो उन्होने कहा कि यदि मदद कर सके तो अवश्य करे, यह परिवार मुसीबत मे है।

एक और सन्देश आया जिसमे सियार सिंगी के बारे मे नयी जानकारी थी। राजस्थान से भेजा गया यह सन्देश कहता था कि उनके क्षेत्र के तांत्रिक दावा करते है कि सियार सिंगी दरअसल सियार के सिर की हड्डी है। यह हड्डी तभी दिखती है जब वह हुआ-हुआ करने के लिये सिर उठाता है। इसी समय इसे एकत्र करना चाहिये। जैसे ही हुआ-हुआ बन्द होती है यह हड्डी गायब हो जाती है। सन्देश मे पाठक आशंका जाहिर करते है कि सम्भवत: आम आदमी इसे पाने की कोशिश भी न कर सके इसलिये ऐसी बाते प्रचारित की जाती है। और इसी आड मे तांत्रिक आपने पास रखी वस्तु को असली बताकर बेच देते है।

पहले सन्देश के जवाब के रुप मे मैने फोन काट दिया। गृहणी से बाबा का नाम और इससे सम्बन्धित जानकारियाँ माँगी। उनसे यह भी पूछा कि क्या वे पुलिस मे बाबा के विरुद्ध शिकायत करने के लिये तैयार है? उनके जवाब की प्रतीक्षा है।
राजस्थान के पाठक से मै सहमत हूँ। उनकी जानकारी के लिये उन्हे धन्यवाद करता हूँ। उनसे अनुरोध है कि वे अपना नाम सार्वजनिक करे ताकि मै अपने पाठको से एक जागरुक नागरिक का परिचय करवा सकूँ।

तंत्र की पुस्तको मे तो सियार सिंगी और शेर सिंगी पर पन्ने रंगे पडे है। इंटरनेट पर शेर सींगी पर कुछ नही है पर सियार सींगी पर जरुर कुछ व्यापारिक वेबसाइटो के पते दिखते है। मेरे लेखो के माध्यम से सियार सिंगी और शेर सिंगी (सींगी), ये दोनो अब गूगल खोज मे मिलने लग जायेंगे। उम्मीद है कि जब बाबाओ के चक्कर मे फँसे लोग इंटरनेट का सहारा लेंगे तो ये लेख उन्हे ठगने से बचा सकेंगे। (क्रमश:)


(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

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जीवन की अनिश्चितताएँ भी अंधविश्वासों को जन्म देती हैं।

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