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अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -61

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -61 - पंकज अवधिया पिछले दिनो एक बडा ही विचित्र ईमेल सन्देश आया। यह सन्देश एक फिल्म निर्माता का था जो डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाते है। उन्होने गूगल सर्च मे स्नेक और छत्तीसगढ शब्द खोजे तो मेरे बहुत से लेख उन्हे दिख गये। मुझे सर्प विशेषज्ञ मानकर उन्होने मुझसे अपनी फिल्म मे सहायता की मदद की। मुझे बताया गया कि बस आपको पारम्परिक सर्प विशेषज्ञ से मिलवाना है जिनके पास जहरीले साँप हो। साँपो की तस्वीरे उतारने के बाद फिर उन्हे लेकर जंगल मे भ्रमण करना है। मैने हामी भर दी। ऐसे बहुत से फिल्मकार पहले भी आते रहे है। मै सर्प विशेषज्ञ तो हूँ नही इसलिये कुछ नया सीखने की लालसा मे ऐसे फिल्मकारो के साथ चला जाता हूँ। जब नियत तिथि पर वे आये और हम एक पारम्परिक सर्प विशेषज्ञ के पास पहुँचे तो वहाँ फिल्मकार के असली रंग दिखने लगे। पारम्परिक सर्प विशेषज्ञ के पास तीन कोबरा थे। उनकी तस्वीरे लेने के बाद हमसे पास के जंगल मे चलने को कहा गया। जैसे ही जंगल शुरु हुआ गाडी रुकवा दी गयी। अब सर्प विशेषज्ञ से कहा गया कि हर ...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -36

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -36 - पंकज अवधिया रात बारह तक फोन आना मेरे लिये आश्चर्य का विषय नही है पर कुछ सप्ताह पूर्व रात को दो बजे जंगली इलाको से दो फोन आये। पहला फोन उसी सर्प विशेषज्ञ का था जिसके विषय मे पहले मैने लिखा है। कैसे फोन किये गणेश? मैने पूछा। उसने बताया कि एक ग्रामीण महिला रात को जब शौच के लिये उठी तो उसे जहरीले साँप ने काट लिया। उसके घरवाले आनन-फानन मे उसके पास आये है। इलाज शुरु ही होने वाला है। यदि सम्भव हो तो आप आ जाये। सामने-सामने देख लीजियेगा कैसे जहर उतारते है हम लोग। मुझे उसकी बात पर हँसी भी आयी और गुस्सा भी। रात को दो बजे फोन किया था। मै अभी घर से निकलता तो घंटो लगते उस तक पहुँचने मे। पहले मैने गणेश को लोगो की सेवा करते देखा है। अब फिर बार-बार फोन की क्या जरुरत? गणेश अभी भी फोन पर था। उसने कहा कि यदि आप आ रहे है तो हम रुक भी सकते है। मैने कडे शब्दो मे कहा कि इलाज मे देरी मत करो। मै अभी नही आ सकता पर अगले हफ्ते जरुर आऊँगा। ऋषिपंचमी के दिन ली गयी तस्वीरो को फ्रेम मे लगवाकर परसो मै गणेश के पास पहुँचा। उसने तस्वीरे तो रख ली...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -24

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -24 - पंकज अवधिया चौदह किस्म के जहरीले साँपो मे से पाँच कोबरा को चुना गया और फिर उनका जहर एक पात्र मे टपकाया गया। फिर इसमे धान की लाई अच्छे से मिलायी गयी। गुरु ने कुछ मंत्र पढा फिर 250 से अधिक चेलो ने इस विषयुक्त लाई को प्रसाद के रुप मे ग्रहण किया। किसी को चक्कर आया पर ज्यादातर इससे अप्रभावित रहे। उन्हे विश्वास था कि गुरु के रहते यह जहर उनका कुछ नही बिगाड सकता। मै अपने को सौभाग्यशाली मानता हूँ जो इस घटना का मै चश्मदीद गवाह बना। यह अवसर था ऋषिपंचमी का और पारम्परिक सर्प विशेषज्ञो के निमंत्रण पर मै 4 सितम्बर, 2008 को उनके साथ था। सर्प के विषय मे लेखन एक फैशन सा बन गया है। मै पहले भी यह कह चुका हूँ कि भारत मे सर्प से सम्बन्धित दिव्य पारम्परिक ज्ञान है। ऐसा ज्ञान जिसका दुनिया मे कोई सानी नही है। विज्ञान की चंद पुस्तको को पढकर अपने को विज्ञान का पैरोकार बताने वाले बहुत से लोग समाज मे मिल जायेंगे पर पास के जंगलो मे जाकर अपने लोगो के पारम्परिक ज्ञान को समझने की चेष्टा शायद ही कोई करे। निमंत्रण मिलने के बाद विज्ञान के ...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -13

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -13 - पंकज अवधिया जैसे ही सर्प-दंश से पीडित कोई व्यक्ति गणेश के पास पहुँचता है वह तुरंत ही अपने चार-पाँच चेलो को बुला लेता है। यदि जहरीले सर्प का दंश है तो वे बिना विलम्ब मुँह मे धी और जडी-बूटियो का लेप लगाकर जहर खीचना आरम्भ करते है। मुँह से जहर खीचते जाते है और बगल मे थूकते जाते है। उसके शिष्य भी इस प्रक्रिया को दोहराते है। जल्दी ही मरीज ठीक होकर काम मे लग जाता है। गणेश ने अब तक सैकडो जाने बचायी है और उसके जीवन मे उसके गाँव मे एक भी व्यक्ति आज तक सर्प दंश से नही मरा है। दूर-दूर से उसके पास मरीज आते है। एंटी-वेनम के लिये कुछ घंटो की शर्त है पर गणेश का कहना है कि मरीज मे जीवन का अंश रहना चाहिये फिर वह उसे बचा सकता है। यदि मरीज खाने-पीने की स्थिति मे होता है तो उसे जडी-बूटियो से ठीक किया जाता है पर यदि मरणासन्न स्थिति मे हो तो फिर मुँह से जहर खीचने के अलावा कोई विकल्प नही होता। उसने अपने जीवन मे 25 से अधिक विषैली जातियो का विष निकाला है। मरीज की जान बचाने की उसकी फीस है एक नारियल और सवा रुपये। हाँ, आप...

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -13

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -13 - पंकज अवधिया जैसे ही सर्प-दंश से पीडित कोई व्यक्ति गणेश के पास पहुँचता है वह तुरंत ही अपने चार-पाँच चेलो को बुला लेता है। यदि जहरीले सर्प का दंश है तो वे बिना विलम्ब मुँह मे धी और जडी-बूटियो का लेप लगाकर जहर खीचना आरम्भ करते है। मुँह से जहर खीचते जाते है और बगल मे थूकते जाते है। उसके शिष्य भी इस प्रक्रिया को दोहराते है। जल्दी ही मरीज ठीक होकर काम मे लग जाता है। गणेश ने अब तक सैकडो जाने बचायी है और उसके जीवन मे उसके गाँव मे एक भी व्यक्ति आज तक सर्प दंश से नही मरा है। दूर-दूर से उसके पास मरीज आते है। एंटी-वेनम के लिये कुछ घंटो की शर्त है पर गणेश का कहना है कि मरीज मे जीवन का अंश रहना चाहिये फिर वह उसे बचा सकता है। यदि मरीज खाने-पीने की स्थिति मे होता है तो उसे जडी-बूटियो से ठीक किया जाता है पर यदि मरणासन्न स्थिति मे हो तो फिर मुँह से जहर खीचने के अलावा कोई विकल्प नही होता। उसने अपने जीवन मे 25 से अधिक विषैली जातियो का विष निकाला है। मरीज की जाने बचाने की उसकी फीस है एक नारियल और सवा रुपये। हाँ,...