अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -24
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -24 - पंकज अवधिया
चौदह किस्म के जहरीले साँपो मे से पाँच कोबरा को चुना गया और फिर उनका जहर एक पात्र मे टपकाया गया। फिर इसमे धान की लाई अच्छे से मिलायी गयी। गुरु ने कुछ मंत्र पढा फिर 250 से अधिक चेलो ने इस विषयुक्त लाई को प्रसाद के रुप मे ग्रहण किया। किसी को चक्कर आया पर ज्यादातर इससे अप्रभावित रहे। उन्हे विश्वास था कि गुरु के रहते यह जहर उनका कुछ नही बिगाड सकता। मै अपने को सौभाग्यशाली मानता हूँ जो इस घटना का मै चश्मदीद गवाह बना। यह अवसर था ऋषिपंचमी का और पारम्परिक सर्प विशेषज्ञो के निमंत्रण पर मै 4 सितम्बर, 2008 को उनके साथ था।
सर्प के विषय मे लेखन एक फैशन सा बन गया है। मै पहले भी यह कह चुका हूँ कि भारत मे सर्प से सम्बन्धित दिव्य पारम्परिक ज्ञान है। ऐसा ज्ञान जिसका दुनिया मे कोई सानी नही है। विज्ञान की चंद पुस्तको को पढकर अपने को विज्ञान का पैरोकार बताने वाले बहुत से लोग समाज मे मिल जायेंगे पर पास के जंगलो मे जाकर अपने लोगो के पारम्परिक ज्ञान को समझने की चेष्टा शायद ही कोई करे। निमंत्रण मिलने के बाद विज्ञान के बहुत से पैरोकारो को मैने अपने खर्च पर इस आयोजन मे ले जाने की कोशिश की। गुरुवार को बहुत देर तक मै प्रतीक्षा करता रहा। पर कोई नही आया। अंतत: मै अपने विडियोग्राफर को साथ लेकर चल पडा।
ऋषिपंचमी के दिन छत्तीसगढ मे कई तरह के आयोजन होते है पर सर्प विशेषज्ञो का आयोजन सदा से मुझे आकर्षित करता रहा है। आप इस लेखमाला की 13 वी कडी को पढकर फिर इसे पढे तो सन्दर्भो को और अधिक अच्छे से समझ पायेंगे। ऋषिपंचमी के दिन सर्प विशेषज्ञो के चेले अपने गुरु के पास एकत्र होते है। वे अपने साथ जहरीले सर्प लाते है और गुरु द्वारा दी गयी विद्या का प्रदर्शन करते है। किसी भी सर्प का विष नही निकाला जाता है। सर्प देवता की पूजा की जाती है। सर्प से सम्बन्धित जडी-बूटियो पर विचार-विमर्श होता है। इनसे माला तैयार की जाती है और बच्चो को पहनायी जाती है। जडी-बूटियो का सेवन इस दिन विशेष तौर पर उपयोगी माना जाता है। पारम्परिक चिकित्सक कहते है कि इस दिन सभी वनस्पतियो मे दिव्य औषधीय गुण आ जाते है। वे बडी मात्रा मे इन्हे एकत्र करके साल भर उपयोग करते है। इस दिन ऐसी जडी-बूटियो का सेवन भी किया जाता है जिससे वर्ष भर सर्प दंश का खतरा नही रहता है। यदि सर्प दंश हो भी जाये तो शरीर को इससे उबरने मे कम समय लगता है। इस आयोजन मे शामिल सभी लोगो को प्रसाद के रुप मे जडी-बूटियो का मिश्रण दिया जाता है।
हम लोग आधे रास्ते मे ही पहुँचे थे कि फोन आ गया कि गुरु याने श्री गणेश हमारा इंतजार कर रहे है। हम जैसे ही वहाँ पहुँचे हमे उनके घर के अन्दर बने पूजा स्थल पर ले जाया गया और फिर चौदह पिटारो को खोल दिया गया। सभी सर्प इतने लोगो की उपस्थिति से आक्रोशित हो गये। हमारे हाथ-पाँव फूल गये। मेरी तरफ दो कोबरा थे जिनका शरीर चमक रहा था। फुफकारे पूरे कमरे मे गूंज रही थी। वे फन काढे थे और हर हिलती-डुलती चीज पर आक्रमण कर रहे थे। ऐसे मे भला हमारी कहाँ हिम्मत होती कि हम शूटिंग करते। उनके बीच गुरु शांत बैठे थे। बार-बार हमारे मन मे प्रश्न आ रहे थे कि क्या हम यह सब ठीक कर रहे है? यदि किसी एक ने भी काट लिया तो रायपुर पहुँचने मे घंटो लग जायेंगे। पर गुरु की बातो ने धीरे-धीरे सारा डर दूर कर दिया। उन्होने कहा कि शांत बैठे रहे और धीरे से कैमरा निकाल कर अपने कार्य मे लग जाये। हमने ढेरो तस्वीरे ली। इसके बाद उन्होने कोबरा को उठाया और हमारे गले मे डाल दिया। धीरे-धीरे हमारा डर दूर होने लगा। पूजा के बाद चेले जुलूस की तैयारी मे लग गये। वे गुरु की वन्दना मे गीत गा रहे थे।
हम चेलो के बीच जा बैठे। मैने उनसे उनके अनुभवो के बारे मे पूछा। ये चेले राज्य के विभिन्न हिस्सो से आये थे। किसी ने पचास लोगो की जान बचायी थी तो किसी ने चार सौ लोगो की। ज्यादातर ने कोबरा और करैत का विष उतारा था। बहुत से मामलो मे उन्होने उन मरीजो को भी ठीक किया था जिनको सरकारी अस्पतालो ने मृतप्राय घोषित कर दिया था।
इसके बाद गुरु और सर्प देवता का एक जुलूस निकला और गाँव भर मे लोगो ने रुक-रुक कर उसका स्वागत किया। फिर सर्प विशेषज्ञो ने भोजन किया और निकल पडे जंगलो की ओर सर्पो को वापस छोडने के लिये। हम उनके साथ रहे।
इस बीच समय निकालकर आस-पास के उन गाँवो मे गये जहाँ इस तरह के आयोजन किये जाते है। पर हमे निराशा ही हाथ लगी। जैसे-जैसे गुरुओ की संख्या कम होती जा रही है वैसे-वैसे ऐसे आयोजन भी खत्म होते जा रहे है। मेरे पिताजी ने बताया कि पहले हमारे गाँव खुडमुडी मे भी ऐसे आयोजन होते थे पर धीरे-धीरे सब खत्म हो गया। ये शुभ लक्ष्ण नही है। श्री गणेश अपने बूते पर यह सब कर रहे है। इस बात की कम ही सम्भावना है कि उनके बाद इस तरह के आयोजन जारी रहे।
सर्प से हम शहरी लोग बहुत घबराते है। बिना कुछ सोचे समझे इन्हे मार देते है। हममे से बहुत लोगो ने अपनी पाठ्य़ पुस्तको मे एक अध्याय पढा है जिसमे सर्पो की पहचान बतायी गयी है। उसके बाद हमे कुछ नही बताया गया। किसी भी तरह की जमीनी स्तर की जानकारी नही दी गयी है। यही कारण है कि मौका पडने पर यह किताबी ज्ञान किसी काम नही आता है। हाँ, व्याख्यानो और लेखो मे यह बार-बार दोहराया जाता है कि सभी साँप जहरीले नही होते है। पर इससे बात नही बनती। मुझे लगता है कि हमारे बीच तेजी से कम हो रहे इन सर्प विशेषज्ञो को महत्व देकर उन्हे समाज को जमीनी स्तर पर जागरुक बनाने का जिम्मा सौपना चाहिये। सबसे पहले इन्हे नीम-हकीम की श्रेणी से निकालकर पारम्परिक विशेषज्ञ का दर्जा दिये जाने की आवश्यकत्ता जैसा आफ्रीकी देशो ने किया। इनका सम्मान इनकी नयी पीढी को प्रेरित करेगा कि वे सामने आये और इस हुनर को सीखे। जडी-बूटियो के दिव्य ज्ञान को भारतीय ज्ञान के रुप मे पहचान मिले और इसका सम्मान हो। इसे विदेशी हाथो मे पडने से बचाया जाये। इस ज्ञान को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर परखा जाये और उसके बाद जग-कल्याण के लिये इसका प्रयोग हो। पारम्परिक विशेषज्ञो के हितो की रक्षा हो।
जब हम शाम को वापस लौटे तो कुछ विज्ञान के पैरोकार घर पर आ धमके और वीडियो दिखाने की माँग करने लगे। फिल्म देखकर उनके तर्क शुरु हो गये। उन्होने चौदह सर्पो को विषहीन बता दिया। फिर कहने लगे कि जहर का इस तरह से सेवन सम्भव नही है। मै चुप रहा। भैस के आगे बीन बजाने से कुछ नही होगा। विज्ञान का दायरा बहुत बडा है और नित नयी जानकारियाँ सामने आ रही है। यदि कुछ लोग कूप-मंडूक बनकर बाहर नही निकलना चाहते है तो उन्हे उसी हाल मे छोड देना ही ठीक है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
New Links:
चौदह किस्म के जहरीले साँपो मे से पाँच कोबरा को चुना गया और फिर उनका जहर एक पात्र मे टपकाया गया। फिर इसमे धान की लाई अच्छे से मिलायी गयी। गुरु ने कुछ मंत्र पढा फिर 250 से अधिक चेलो ने इस विषयुक्त लाई को प्रसाद के रुप मे ग्रहण किया। किसी को चक्कर आया पर ज्यादातर इससे अप्रभावित रहे। उन्हे विश्वास था कि गुरु के रहते यह जहर उनका कुछ नही बिगाड सकता। मै अपने को सौभाग्यशाली मानता हूँ जो इस घटना का मै चश्मदीद गवाह बना। यह अवसर था ऋषिपंचमी का और पारम्परिक सर्प विशेषज्ञो के निमंत्रण पर मै 4 सितम्बर, 2008 को उनके साथ था।
सर्प के विषय मे लेखन एक फैशन सा बन गया है। मै पहले भी यह कह चुका हूँ कि भारत मे सर्प से सम्बन्धित दिव्य पारम्परिक ज्ञान है। ऐसा ज्ञान जिसका दुनिया मे कोई सानी नही है। विज्ञान की चंद पुस्तको को पढकर अपने को विज्ञान का पैरोकार बताने वाले बहुत से लोग समाज मे मिल जायेंगे पर पास के जंगलो मे जाकर अपने लोगो के पारम्परिक ज्ञान को समझने की चेष्टा शायद ही कोई करे। निमंत्रण मिलने के बाद विज्ञान के बहुत से पैरोकारो को मैने अपने खर्च पर इस आयोजन मे ले जाने की कोशिश की। गुरुवार को बहुत देर तक मै प्रतीक्षा करता रहा। पर कोई नही आया। अंतत: मै अपने विडियोग्राफर को साथ लेकर चल पडा।
ऋषिपंचमी के दिन छत्तीसगढ मे कई तरह के आयोजन होते है पर सर्प विशेषज्ञो का आयोजन सदा से मुझे आकर्षित करता रहा है। आप इस लेखमाला की 13 वी कडी को पढकर फिर इसे पढे तो सन्दर्भो को और अधिक अच्छे से समझ पायेंगे। ऋषिपंचमी के दिन सर्प विशेषज्ञो के चेले अपने गुरु के पास एकत्र होते है। वे अपने साथ जहरीले सर्प लाते है और गुरु द्वारा दी गयी विद्या का प्रदर्शन करते है। किसी भी सर्प का विष नही निकाला जाता है। सर्प देवता की पूजा की जाती है। सर्प से सम्बन्धित जडी-बूटियो पर विचार-विमर्श होता है। इनसे माला तैयार की जाती है और बच्चो को पहनायी जाती है। जडी-बूटियो का सेवन इस दिन विशेष तौर पर उपयोगी माना जाता है। पारम्परिक चिकित्सक कहते है कि इस दिन सभी वनस्पतियो मे दिव्य औषधीय गुण आ जाते है। वे बडी मात्रा मे इन्हे एकत्र करके साल भर उपयोग करते है। इस दिन ऐसी जडी-बूटियो का सेवन भी किया जाता है जिससे वर्ष भर सर्प दंश का खतरा नही रहता है। यदि सर्प दंश हो भी जाये तो शरीर को इससे उबरने मे कम समय लगता है। इस आयोजन मे शामिल सभी लोगो को प्रसाद के रुप मे जडी-बूटियो का मिश्रण दिया जाता है।
हम लोग आधे रास्ते मे ही पहुँचे थे कि फोन आ गया कि गुरु याने श्री गणेश हमारा इंतजार कर रहे है। हम जैसे ही वहाँ पहुँचे हमे उनके घर के अन्दर बने पूजा स्थल पर ले जाया गया और फिर चौदह पिटारो को खोल दिया गया। सभी सर्प इतने लोगो की उपस्थिति से आक्रोशित हो गये। हमारे हाथ-पाँव फूल गये। मेरी तरफ दो कोबरा थे जिनका शरीर चमक रहा था। फुफकारे पूरे कमरे मे गूंज रही थी। वे फन काढे थे और हर हिलती-डुलती चीज पर आक्रमण कर रहे थे। ऐसे मे भला हमारी कहाँ हिम्मत होती कि हम शूटिंग करते। उनके बीच गुरु शांत बैठे थे। बार-बार हमारे मन मे प्रश्न आ रहे थे कि क्या हम यह सब ठीक कर रहे है? यदि किसी एक ने भी काट लिया तो रायपुर पहुँचने मे घंटो लग जायेंगे। पर गुरु की बातो ने धीरे-धीरे सारा डर दूर कर दिया। उन्होने कहा कि शांत बैठे रहे और धीरे से कैमरा निकाल कर अपने कार्य मे लग जाये। हमने ढेरो तस्वीरे ली। इसके बाद उन्होने कोबरा को उठाया और हमारे गले मे डाल दिया। धीरे-धीरे हमारा डर दूर होने लगा। पूजा के बाद चेले जुलूस की तैयारी मे लग गये। वे गुरु की वन्दना मे गीत गा रहे थे।
हम चेलो के बीच जा बैठे। मैने उनसे उनके अनुभवो के बारे मे पूछा। ये चेले राज्य के विभिन्न हिस्सो से आये थे। किसी ने पचास लोगो की जान बचायी थी तो किसी ने चार सौ लोगो की। ज्यादातर ने कोबरा और करैत का विष उतारा था। बहुत से मामलो मे उन्होने उन मरीजो को भी ठीक किया था जिनको सरकारी अस्पतालो ने मृतप्राय घोषित कर दिया था।
इसके बाद गुरु और सर्प देवता का एक जुलूस निकला और गाँव भर मे लोगो ने रुक-रुक कर उसका स्वागत किया। फिर सर्प विशेषज्ञो ने भोजन किया और निकल पडे जंगलो की ओर सर्पो को वापस छोडने के लिये। हम उनके साथ रहे।
इस बीच समय निकालकर आस-पास के उन गाँवो मे गये जहाँ इस तरह के आयोजन किये जाते है। पर हमे निराशा ही हाथ लगी। जैसे-जैसे गुरुओ की संख्या कम होती जा रही है वैसे-वैसे ऐसे आयोजन भी खत्म होते जा रहे है। मेरे पिताजी ने बताया कि पहले हमारे गाँव खुडमुडी मे भी ऐसे आयोजन होते थे पर धीरे-धीरे सब खत्म हो गया। ये शुभ लक्ष्ण नही है। श्री गणेश अपने बूते पर यह सब कर रहे है। इस बात की कम ही सम्भावना है कि उनके बाद इस तरह के आयोजन जारी रहे।
सर्प से हम शहरी लोग बहुत घबराते है। बिना कुछ सोचे समझे इन्हे मार देते है। हममे से बहुत लोगो ने अपनी पाठ्य़ पुस्तको मे एक अध्याय पढा है जिसमे सर्पो की पहचान बतायी गयी है। उसके बाद हमे कुछ नही बताया गया। किसी भी तरह की जमीनी स्तर की जानकारी नही दी गयी है। यही कारण है कि मौका पडने पर यह किताबी ज्ञान किसी काम नही आता है। हाँ, व्याख्यानो और लेखो मे यह बार-बार दोहराया जाता है कि सभी साँप जहरीले नही होते है। पर इससे बात नही बनती। मुझे लगता है कि हमारे बीच तेजी से कम हो रहे इन सर्प विशेषज्ञो को महत्व देकर उन्हे समाज को जमीनी स्तर पर जागरुक बनाने का जिम्मा सौपना चाहिये। सबसे पहले इन्हे नीम-हकीम की श्रेणी से निकालकर पारम्परिक विशेषज्ञ का दर्जा दिये जाने की आवश्यकत्ता जैसा आफ्रीकी देशो ने किया। इनका सम्मान इनकी नयी पीढी को प्रेरित करेगा कि वे सामने आये और इस हुनर को सीखे। जडी-बूटियो के दिव्य ज्ञान को भारतीय ज्ञान के रुप मे पहचान मिले और इसका सम्मान हो। इसे विदेशी हाथो मे पडने से बचाया जाये। इस ज्ञान को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर परखा जाये और उसके बाद जग-कल्याण के लिये इसका प्रयोग हो। पारम्परिक विशेषज्ञो के हितो की रक्षा हो।
जब हम शाम को वापस लौटे तो कुछ विज्ञान के पैरोकार घर पर आ धमके और वीडियो दिखाने की माँग करने लगे। फिल्म देखकर उनके तर्क शुरु हो गये। उन्होने चौदह सर्पो को विषहीन बता दिया। फिर कहने लगे कि जहर का इस तरह से सेवन सम्भव नही है। मै चुप रहा। भैस के आगे बीन बजाने से कुछ नही होगा। विज्ञान का दायरा बहुत बडा है और नित नयी जानकारियाँ सामने आ रही है। यदि कुछ लोग कूप-मंडूक बनकर बाहर नही निकलना चाहते है तो उन्हे उसी हाल मे छोड देना ही ठीक है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
Updated Information and Links on March 15, 2012
Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com
Alstonia scholaris R.BR.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (12 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Tamil Nadu; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Alstonia venenata R.BR.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (10 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Tamil Nadu; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Alternanthera pungens H.B.K. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding
Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke
liye Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (15 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Gujarat; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Alternanthera sessilis (L.) R.BR.EX DC. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (7 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Tamil Nadu; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Alysicarpus bupleurifolius (L.) DC. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (19 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Gujarat; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Alysicarpus monilifer DC.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (6 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Tamil Nadu; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Alysicarpus vaginalis (L.) DC. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (5 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Tamil Nadu; Mentioned in ancient literature
related to different systems of medicine in India and other countries;
Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-6; Farash and Jamun
Trees growing under stress are preferred for collection of leaves; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Amaranthus caudatus L.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (22 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Orissa; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of
Formulation (1-10) among the Young Healers-8; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Amaranthus spinosus L.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (20 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Gujarat; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of
Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Amaranthus tricolor L.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (38 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Andhra Pradesh; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Amaranthus viridis L.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (35 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Andhra Pradesh; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Amischophacelus axillaris ROLLA RAO in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (29 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Andhra Pradesh; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-7; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Comments
बहुत ही खेद की बात है. अपना अनुसंधान एवं जनजागरण अभियान चालू रखें !!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- हिन्दी चिट्ठाकारी के विकास के लिये जरूरी है कि हम सब अपनी टिप्पणियों से एक दूसरे को प्रोत्साहित करें