अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -29
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -29 - पंकज अवधिया
किसानो के खेतो मे बन्दरो के बढते उत्पात ने मुझे प्रेरित किया कि मै किसानो के लिये ऐसे सरल उपायो की तलाश करुँ जिससे नुकसान कम हो और बन्दरो को भी किसी तरह की क्षति न पहुँचे। हमारे क्षेत्र मे काले मुँह वाले लंगूरो ने कोहराम मचा रखा है। ये न केवल फसलो को नष्ट कर रहे है बल्कि गाँव के घरो के छप्परो को भी नुकसान पहुँचा रहे है। बन्दर धार्मिक आस्था से जुडे हुये है। वैसे भी आम किसान इस बात को जानते है कि बन्दरो का आवास छिन जाने के कारण ही उन्होने खेतो का रुख किया है। पहले भी बन्दर आते थे पर कुछ समय के लिये। अब तो लगता है कि जैसे बन्दर यही के होकर रह गये है। किसानो ने दसो उपाय अपनाये पर अब थक-हार कर किसी चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहे है। किसानो को बहुत अधिक धन गँवना पड रहा है। देश भर मे भ्रमण के दौरान मै जहाँ भी जाता हूँ बन्दरो से निपटने के स्थानीय तरीको की पूछ-परख करने से नही चूकता हूँ। पर ज्यादातर मामलो मे लोग मुझसे ही नये उपाय जानने की उम्मीद कर बैठते है।
छत्तीसगढ के वनीय क्षेत्रो मे भ्रमण के दौरान साथ चल रहे एक बैगा से मैने ऐसे ही पूछा कि क्या कोई उपाय है बन्दरो से छुटकारा पाने का? आशा के विपरीत उसने कहा कि हाँ साहब बिल्कुल है। जहाँ भी बन्दर हो मुझे वहाँ ले चलिये। मै पूजा करुंगा और कुछ चीजो को गाड दूंगा जिससे बन्दर वहाँ आयेंगे ही नही। मैने पूछा कि क्या वे उस खेत विशेष मे नही आयेंगे या पूरे क्षेत्र से भाग जायेंगे? उसने कहा कि सिर्फ खेत की रक्षा वह कर सकता है। मै सोच मे पड गया। अन्दर की वैज्ञानिक सोच बैगा के उपाय को अपनाने मे बाधक बन रही थी। भला यह कैसे सम्भव है? फिर यह बात मन मे आयी कि वह कुछ गाडेगा। हो सकता है यह कोई ऐसी चीज हो जिससे बन्दर दूर भागते हो या नफरत करते हो? आजमाने मे क्या जाता है? अंतत: मै उस बैगा को लेकर उस स्थान तक पहुँचा।
सन्योग से बन्दर खेत मे आये हुये थे। बैगा ने उन्हे प्रणाम किया और अपने इस कृत्य के लिये एडवान्स मे क्षमा भी माँग ली। करीब एक घंटे तक पूजा चलती रही। बीस तरह की जहरीली वनस्पतियो को उस स्थान पर गडाया गया जहाँ से अक्सर बन्दर आते थे। फिर पूजा का दौर चला। भावावेश मे वह जोर-जोर से मंत्र पढता रहा। पूजा खत्म होने के बाद मैने दक्षिणा देनी चाही तो उसने कुछ लेने से इंकार कर दिया। अब तो पूरा यकीन हो गया कि उसका उपाय असर करेगा। मैने उसे वापस उसके घर छोड दिया।
कुछ दिनो बाद फिर से उस खेत मे जाना हुआ। किसान से पूछा तो उसने कहा बन्दर आ रहे है। मैने खेत का मुआयना किया तो बन्दर दिख गये। कुछ तो उस जगह पर बैठे थे जहाँ वनस्पतियाँ गडायी गयी थी। मतलब नतीजा सिफर रहा। बाद मे मैने एक बुजुर्ग पारम्परिक चिकित्सक से इस विषय मे चर्चा की तो वह मेरी बात सुनकर हँस पडा और बोला कि सब जीव पर मंतर के असर होथे पर बेन्दरा ऊपर कोई मंतर नही चले अर्थात सभी जीवो पर मंत्रो का असर होता है पर बन्दरो पर कोई मंत्र नही चलता है। उसने मुझे एक सप्ताह बाद आने को कहा। मैने सोचा कि शायद नयी वनस्पतियाँ या नया उपाय मिलेगा। मै सप्ताह भर बाद पहुँचा तो उसने दस छोटे पौधे दिये और कहा कि इन्हे अपने खेत मे रोपना और बाकी सभी बडे पेडो विशेषकर बबूल को उखाड देना। उसने इन पौधो के इतने सारे उपयोग बताये कि मै सुनते-सुनते थक गया। ये पौधे सेमल के थे। सेमल मे काँटे होते है। यही कारण है कि बन्दर इस पर आश्रय लेना पसन्द नही करते है। खेतो मे यदि इनकी बहुलता हो तो वे खेतो से दूर ही रहते है। मुझे पारम्परिक चिकित्सक की बात अच्छी लगी पर यह स्थायी समाधान नही था। सेमल जैसे दसो पेडो की आवश्यकत्ता है जो बन्दरो को दूर रख सके। सभी किसान सेमल नही लगायेंगे। दस तरह के पेड होंगे तो उन्हे अपनी सुविधानुसार पेडो के चुनाव मे आसानी होगी। जैसा इस पारम्परिक चिकित्सक महोदय ने कहा कि बन्दर पर कोई मंत्र चलता। यदि कल को बन्दरो ने सेमल पर बैठना सीख लिया तब क्या होगा? काँटे उनके लिये बहुत बडी समस्या नही है। वे मजे से बबूल के पेडो मे रात गुजार लेते है। उनके बच्चो को बबूल के कीडो को खाते देखा जा सकता है।
कुछ वर्षो पहले राजिम क्षेत्र के एक पारम्परिक सर्प विशेषज्ञ से मेरी चर्चा हो रही थी। मैने उनसे पूछा कि आप घने जंगलो मे बिना जूतो के चले जाते हो। क्या आपको डर नही लगता? जंगल खूँखार जानवरो से भरे होते है। सोन कुत्ते से लेकर भालू जैसे वन्य जीव लोगो को पल भर मे ही मौत के पास ले जाते है। मेरी बात सुनकर वे बोले कि मेरे पास एक विशेष वस्तु है जिसे लेकर जंगल जाने से किसी तरह का भय नही रहता। फिर उन्होने वह वस्तु दिखायी। मै चौक पडा। वह वस्तु लाल कपडो मे बन्धी बन्दर की खोपडी थी। उन्होने कहा कि यह ऐसी-वैसी खोपडी नही है। जब बन्दरो का समूह एक डाल से दूसरी डाल पर छलाँग लगाता है तो सभी को बिना गिरे दूसरी डाल तक जाना होता है। यदि गल्ती से कोई बन्दर गिर जाये तो उसे तुरंत ही दल से बाहर निकाल दिया जाता है। कालांतर मे जब यह मरता है या गिरने से मौत होती है तो इसकी खोपडी सुरक्षित रख ली जाती है। इस खोपडी का प्रयोग तंत्र साधना के लिये होता है। ऐसा माना जाता है कि इस खोपडी को रखने से सभी तरह का डर समाप्त हो जाता है। मैने यह बात बहुत बार सुनी है पर बन्दरो से सम्बन्धित वैज्ञानिक साहित्यो या पुरानी शिकार कथाओ मे इसका वर्णन कही नही पाया। डिस्कवरी जैसे चैनलो पर बन्दरो पर तैयार की गयी फिल्मो मे भी यह नही दिखाया जाता। सर्प विशेषज्ञ का कहना था कि ऐसा कभी-कभार ही होता है। मुझे लगा कि जब इस खोपडी का इतना अधिक महत्व है तो जरुर यह व्यापार का हिस्सा होगी। हमारे देश मे बन्दरो के शिकार की मनाही है। हो सकता है इनसे बात करते करते किसी तस्कर गिरोह का पर्दाफाश हो जाये। यह सोचकर मैने उनसे कहा कि मुझे यह खोपडी चाहिये किसी भी कीमत पर। इतना सुनना था कि उनकी आँखो मे क्रोध के भाव आ गये। उन्होने कहा कि यह खोपडी गुरु ने दी है और कडी साधना से मिली है। मैने कहा कि तो फिर दूसरी खोपडी ला दो। पैसे की चिंता न करो। उन्होने जवाब दिया कि जिन्दा बन्दर को तो मारने की बात ही हम सोच नही सकते है। वे बजरंगबली के रुप है। अपने आप मरने वाले बन्दरो और वह भी इस खास तरीके से मरने वाले बन्दरो की खोपडी का ही प्रयोग होता है। अब तक यह स्पष्ट हो चुका था कि बन्दरो की खोपडी की तस्करी जैसा कुछ नही था। यह उनका विश्वास था जो वे खोपडी को साथ रखते थे। यह बात मै यकीन से इसलिये कह सकता हूँ क्योकि मै कई बार उनके साथ जंगल गया और वन्य जीवो से सामना करते वक्त उन्हे पेडो मे चढते देखा। मै तो सोच रहा था कि खोपडी पास होने पर वन्य जीव पास ही नही आयेंगे। उनका सीधा तर्क था कि खोपडी के कारण ही वे पेड पर समय रहते चढ पाये और अपनी जान बचा पाये। किसी ने सही ही कहा है कि विश्वास अपने पक्ष मे तर्क खुद ही गढ लेता है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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किसानो के खेतो मे बन्दरो के बढते उत्पात ने मुझे प्रेरित किया कि मै किसानो के लिये ऐसे सरल उपायो की तलाश करुँ जिससे नुकसान कम हो और बन्दरो को भी किसी तरह की क्षति न पहुँचे। हमारे क्षेत्र मे काले मुँह वाले लंगूरो ने कोहराम मचा रखा है। ये न केवल फसलो को नष्ट कर रहे है बल्कि गाँव के घरो के छप्परो को भी नुकसान पहुँचा रहे है। बन्दर धार्मिक आस्था से जुडे हुये है। वैसे भी आम किसान इस बात को जानते है कि बन्दरो का आवास छिन जाने के कारण ही उन्होने खेतो का रुख किया है। पहले भी बन्दर आते थे पर कुछ समय के लिये। अब तो लगता है कि जैसे बन्दर यही के होकर रह गये है। किसानो ने दसो उपाय अपनाये पर अब थक-हार कर किसी चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहे है। किसानो को बहुत अधिक धन गँवना पड रहा है। देश भर मे भ्रमण के दौरान मै जहाँ भी जाता हूँ बन्दरो से निपटने के स्थानीय तरीको की पूछ-परख करने से नही चूकता हूँ। पर ज्यादातर मामलो मे लोग मुझसे ही नये उपाय जानने की उम्मीद कर बैठते है।
छत्तीसगढ के वनीय क्षेत्रो मे भ्रमण के दौरान साथ चल रहे एक बैगा से मैने ऐसे ही पूछा कि क्या कोई उपाय है बन्दरो से छुटकारा पाने का? आशा के विपरीत उसने कहा कि हाँ साहब बिल्कुल है। जहाँ भी बन्दर हो मुझे वहाँ ले चलिये। मै पूजा करुंगा और कुछ चीजो को गाड दूंगा जिससे बन्दर वहाँ आयेंगे ही नही। मैने पूछा कि क्या वे उस खेत विशेष मे नही आयेंगे या पूरे क्षेत्र से भाग जायेंगे? उसने कहा कि सिर्फ खेत की रक्षा वह कर सकता है। मै सोच मे पड गया। अन्दर की वैज्ञानिक सोच बैगा के उपाय को अपनाने मे बाधक बन रही थी। भला यह कैसे सम्भव है? फिर यह बात मन मे आयी कि वह कुछ गाडेगा। हो सकता है यह कोई ऐसी चीज हो जिससे बन्दर दूर भागते हो या नफरत करते हो? आजमाने मे क्या जाता है? अंतत: मै उस बैगा को लेकर उस स्थान तक पहुँचा।
सन्योग से बन्दर खेत मे आये हुये थे। बैगा ने उन्हे प्रणाम किया और अपने इस कृत्य के लिये एडवान्स मे क्षमा भी माँग ली। करीब एक घंटे तक पूजा चलती रही। बीस तरह की जहरीली वनस्पतियो को उस स्थान पर गडाया गया जहाँ से अक्सर बन्दर आते थे। फिर पूजा का दौर चला। भावावेश मे वह जोर-जोर से मंत्र पढता रहा। पूजा खत्म होने के बाद मैने दक्षिणा देनी चाही तो उसने कुछ लेने से इंकार कर दिया। अब तो पूरा यकीन हो गया कि उसका उपाय असर करेगा। मैने उसे वापस उसके घर छोड दिया।
कुछ दिनो बाद फिर से उस खेत मे जाना हुआ। किसान से पूछा तो उसने कहा बन्दर आ रहे है। मैने खेत का मुआयना किया तो बन्दर दिख गये। कुछ तो उस जगह पर बैठे थे जहाँ वनस्पतियाँ गडायी गयी थी। मतलब नतीजा सिफर रहा। बाद मे मैने एक बुजुर्ग पारम्परिक चिकित्सक से इस विषय मे चर्चा की तो वह मेरी बात सुनकर हँस पडा और बोला कि सब जीव पर मंतर के असर होथे पर बेन्दरा ऊपर कोई मंतर नही चले अर्थात सभी जीवो पर मंत्रो का असर होता है पर बन्दरो पर कोई मंत्र नही चलता है। उसने मुझे एक सप्ताह बाद आने को कहा। मैने सोचा कि शायद नयी वनस्पतियाँ या नया उपाय मिलेगा। मै सप्ताह भर बाद पहुँचा तो उसने दस छोटे पौधे दिये और कहा कि इन्हे अपने खेत मे रोपना और बाकी सभी बडे पेडो विशेषकर बबूल को उखाड देना। उसने इन पौधो के इतने सारे उपयोग बताये कि मै सुनते-सुनते थक गया। ये पौधे सेमल के थे। सेमल मे काँटे होते है। यही कारण है कि बन्दर इस पर आश्रय लेना पसन्द नही करते है। खेतो मे यदि इनकी बहुलता हो तो वे खेतो से दूर ही रहते है। मुझे पारम्परिक चिकित्सक की बात अच्छी लगी पर यह स्थायी समाधान नही था। सेमल जैसे दसो पेडो की आवश्यकत्ता है जो बन्दरो को दूर रख सके। सभी किसान सेमल नही लगायेंगे। दस तरह के पेड होंगे तो उन्हे अपनी सुविधानुसार पेडो के चुनाव मे आसानी होगी। जैसा इस पारम्परिक चिकित्सक महोदय ने कहा कि बन्दर पर कोई मंत्र चलता। यदि कल को बन्दरो ने सेमल पर बैठना सीख लिया तब क्या होगा? काँटे उनके लिये बहुत बडी समस्या नही है। वे मजे से बबूल के पेडो मे रात गुजार लेते है। उनके बच्चो को बबूल के कीडो को खाते देखा जा सकता है।
कुछ वर्षो पहले राजिम क्षेत्र के एक पारम्परिक सर्प विशेषज्ञ से मेरी चर्चा हो रही थी। मैने उनसे पूछा कि आप घने जंगलो मे बिना जूतो के चले जाते हो। क्या आपको डर नही लगता? जंगल खूँखार जानवरो से भरे होते है। सोन कुत्ते से लेकर भालू जैसे वन्य जीव लोगो को पल भर मे ही मौत के पास ले जाते है। मेरी बात सुनकर वे बोले कि मेरे पास एक विशेष वस्तु है जिसे लेकर जंगल जाने से किसी तरह का भय नही रहता। फिर उन्होने वह वस्तु दिखायी। मै चौक पडा। वह वस्तु लाल कपडो मे बन्धी बन्दर की खोपडी थी। उन्होने कहा कि यह ऐसी-वैसी खोपडी नही है। जब बन्दरो का समूह एक डाल से दूसरी डाल पर छलाँग लगाता है तो सभी को बिना गिरे दूसरी डाल तक जाना होता है। यदि गल्ती से कोई बन्दर गिर जाये तो उसे तुरंत ही दल से बाहर निकाल दिया जाता है। कालांतर मे जब यह मरता है या गिरने से मौत होती है तो इसकी खोपडी सुरक्षित रख ली जाती है। इस खोपडी का प्रयोग तंत्र साधना के लिये होता है। ऐसा माना जाता है कि इस खोपडी को रखने से सभी तरह का डर समाप्त हो जाता है। मैने यह बात बहुत बार सुनी है पर बन्दरो से सम्बन्धित वैज्ञानिक साहित्यो या पुरानी शिकार कथाओ मे इसका वर्णन कही नही पाया। डिस्कवरी जैसे चैनलो पर बन्दरो पर तैयार की गयी फिल्मो मे भी यह नही दिखाया जाता। सर्प विशेषज्ञ का कहना था कि ऐसा कभी-कभार ही होता है। मुझे लगा कि जब इस खोपडी का इतना अधिक महत्व है तो जरुर यह व्यापार का हिस्सा होगी। हमारे देश मे बन्दरो के शिकार की मनाही है। हो सकता है इनसे बात करते करते किसी तस्कर गिरोह का पर्दाफाश हो जाये। यह सोचकर मैने उनसे कहा कि मुझे यह खोपडी चाहिये किसी भी कीमत पर। इतना सुनना था कि उनकी आँखो मे क्रोध के भाव आ गये। उन्होने कहा कि यह खोपडी गुरु ने दी है और कडी साधना से मिली है। मैने कहा कि तो फिर दूसरी खोपडी ला दो। पैसे की चिंता न करो। उन्होने जवाब दिया कि जिन्दा बन्दर को तो मारने की बात ही हम सोच नही सकते है। वे बजरंगबली के रुप है। अपने आप मरने वाले बन्दरो और वह भी इस खास तरीके से मरने वाले बन्दरो की खोपडी का ही प्रयोग होता है। अब तक यह स्पष्ट हो चुका था कि बन्दरो की खोपडी की तस्करी जैसा कुछ नही था। यह उनका विश्वास था जो वे खोपडी को साथ रखते थे। यह बात मै यकीन से इसलिये कह सकता हूँ क्योकि मै कई बार उनके साथ जंगल गया और वन्य जीवो से सामना करते वक्त उन्हे पेडो मे चढते देखा। मै तो सोच रहा था कि खोपडी पास होने पर वन्य जीव पास ही नही आयेंगे। उनका सीधा तर्क था कि खोपडी के कारण ही वे पेड पर समय रहते चढ पाये और अपनी जान बचा पाये। किसी ने सही ही कहा है कि विश्वास अपने पक्ष मे तर्क खुद ही गढ लेता है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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