अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -25
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -25 - पंकज अवधिया
इस ब्लाग के माध्यम से यह लेखमाला दुनिया भर मे पढी जा रही है। ढेरो सन्देश आ रहे है। इस लेखमाला को पूरा करने के बाद इन सन्देशो के जवाब देने की मंशा थी मन मे पर मै इस लेख मे एक महत्वपूर्ण पत्र की चर्चा कर रहा हूँ। मैसूर से एक पाठक पीपल के तीन पेडो के विषय मे लिखते है कि ये पेड एक ही स्थान पर पीढीयो से उपस्थित है। इन्हे ब्रम्हा, विष्णु और महेश का नाम मिला है। इनके विषय मे यह मान्यता है कि जो कोई भी इन्हे उखाडने की कोशिश करता है उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है। यही कारण है कि यह बिना किसी नुकसान के इतने वर्षो से बचा हुआ है। हाल ही मे एक व्यक्ति ने एक पेड को काटने का दुस्साहस किया। उसकी भी मौत हो गयी। अब दो पेड और एक आधा कटा पेड है। इस घटना के बाद चन्दागल गाँव मे दहशत है और लगता है कि काफी लम्बे समय तक इन्हे कोई नही छू पायेगा। पाठक आगे लिखते है कि इस खबर के फैलने के बाद शहर की एक संस्था से कुछ लोग आये और इसे अन्ध-विश्वास कहकर अपने हाथो से इसे काटने की जिद करने लगे। मैने उन्हे समझाया कि यदि यह किसी विश्वास के कारण बचा हुआ है तो ऐसे विश्वास को जारी रहने देने मे क्या बुराई है? पर उन लोगो ने मेरी एक भी नही सुनी। गाँव वालो के विरोध के चलते वे इन्हे काट नही पाये। मैने जब आपके लेख पढे तो सोचा कि आप से राय लूँ। आपने लिखा है कि पर्यावरण की रक्षा करने मे सक्षम ऐसे विश्वासो को जिनसे समाज का कोई नुकसान है, लोकहित मे जारी रहने देना चाहिये। आप अपने विचार बताये।
मैने उन जागरुक पाठक को धन्यवाद कहा। मन मे तसल्ली हुयी कि चलो मेरा लिखा किसी के काम तो आ रहा है। मै भी उन पाठक के विचार से सहमत हूँ। पीपल देववृक्ष है। मैने पूर्व मे यह लिखा है कि कांक्रीट के जंगलो मे रह रहे आम लोगो के लिये पीपल जैसे पेडो का शहरो मे बचा रहना जरुरी है। यह तो शुक्र है उस मान्यता का जिसने इन आक्सीजन सिलेंडरो को मैसूर के ग्रामीण अंचलो मे बचा के रखा है वर्ना पीपल हो या नीम विकास नामक सुरसा के आगे कुछ भी नही बचता।
आज से दस वर्ष पहले मेरे छायाचित्रो की एक प्रदर्शनी लगी। मैने जंगलो और वनस्पतियो के चित्र लगाये थे। शहर के एक पत्रकार श्री राजेश गनोदवाले ने सलाह दी कि शहर के पुराने पीपल और बरगद की सुध किसी को नही है। इन सब की तस्वीर लेकर इस पर आधारित एक प्रदर्शनी होनी चाहिये। उन्होने चेताया कि वह दिन दूर नही जब शहर मे ये नही दिखेंगे। मैने यह शुभ कार्य आरम्भ कर दिया और न केवल रायपुर बल्कि प्रदेश भर के पुराने पीपल और बरगद की तस्वीरे लेनी आरम्भ कर दी। आज 20,000 से अधिक तस्वीरे मेरे पास है। प्रत्येक पेड के साथ उसका स्थानीय महत्व और उससे जुडी कहानियाँ है। आस-पास के लोग इनका क्या उपयोग करते है, यह भी उपलब्ध है। पर यह बडे ही दुख की बात है कि हर दो-तीन साल के अंतराल मे जब मै इन बुजुर्गो मे मिलने जाता हूँ तो ज्यातार अपने स्थान पर नही मिलते है। ये सभी विकास की भेंट चढ गये होते है। रायपुर से आरंग मे सडक के दोनो किनारो पर स्थित पेड हो या रायपुर शहर के अन्दर के पेड। इन्हे न पाकर मन रो पडता है और ऐसा लगता है कि जैसे अपना कोई बिछड गया है। यह सब बदस्तूर जारी है और मै दुखी होने के अलावा कुछ नही कर पाता हूँ।
कुछ वर्षो पहले मुझे रायगढ बुलाया गया था स्पांज आयरन प्लांट से हो रहे प्रदूषण पर एक वैज्ञानिक रपट तैयार करने। सभी ओर प्लांट से निकलने वाली काली धूल का मंजर था। जंगल ब्लैक फारेस्ट हो चुके थे। शहर मे धूल जमी थी। तालाबो का पानी काला हो गया था। लोग खंखार कर बलगम निकालते थे तो वह भी काला होता था। यह अंचल नर्क बन चुका था। फिर भी डंके की चोट पर यह प्रदूषण जारी था। बोलने वालो की जुबान बन्द कर दी जाती थी। रायगढ की खबर वही तक दब कर रह जाती थी। सारे प्रदेश को पता ही नही था इस तबाही का। मैने वनस्पतियो पर इसके असर की सैकडो तस्वीरे खीची और फिर लोगो से च्रर्चा की। अपनी रपट मे इस तबाही का उल्लेख किया। यह तो हमारा सौभाग्य है कि आज हमारे पास इंटरनेट और ब्लाग है जिसके सहारे हम सारी बन्दिशो के बाद भी खुलकर सारा सच दुनिया को बता सकते है। मेरी रपट बाहर के लोगो तक पहुँची और उस पर व्यापक प्रतिक्रिया हुयी। रायगढ मे पीपल और बरगद के पुराने पेडो की बर्बादी पर मैने विशेष जोर दिया था। यह भी सिफारिश की थी कि प्रदूषण के इस नगे नाच को बन्द किया जाये क्योकि इससे जो क्षति हो रही है उसकी पूर्ति हम कभी नही कर पायेंगे। इस प्रयास के कई वर्षो बाद अब हमे पता चल रहा है कि स्पांज आयरन प्लांट पर अंकुश लगाने के नियम बन रहे है और जल्द ही ये लागू होंगे। सभी ने इसका स्वागत किया पर मै सोचता रहा कि इस बीच जो वनस्पतियो को स्थायी नुकसान हो चुका है उसकी भरपाई कौन करेगा? उसके लिये क्या कभी किसी को दोषी ठहराया जायेगा? नही ना, तो फिर तो लोग मनमाने ढन्ग से प्रदूषण फैलायेंगे और फिर काम खत्म हो जाने के बाद नियम के पालन की बात करेंगे। क्या मायने ऐसी कवायद के? काश! प्रदूषण फैलाने वाले मैसूर वाली बात जानते होते तो मारे डर ही सही कुछ पेड तो बच जाते।
स्पांज आयरन के प्रदूषण का दंश रायपुर शहर ने भी झेला। सारा शहर प्रदूषित होता रहा और राष्ट्रीय शोध संस्थान इसे देश का सबसे गन्दा शहर बताते रहे पर किसी के कानो मे जूँ तक नही रेंगी। यहाँ भी पुराने पेडो की शामत आयी। पर उस समय चुनाव दूर-दूर तक नही थे। सब कुछ सीना तान कर होता रहा। आज जब कुछ महिनो मे चुनाव होने वाले है तो काली धूल का नामोनिशान नही है। यदि चुनाव इतने ताकतवर है तो इस देश मे पर्यावरण की रक्षा के लिये हर महिने चुनाव की व्यवस्था की जानी चाहिये। जनता के सामने ‘वोट बैक’ की क्षमता होनी चाहिये ताकि उनके बल पर चुने गये राजनेता जीतने के बाद चन्द ऐसे लोगो का ही काम न करे जो जनहित के विरुद्ध काम करते है और चुनाव आते ही फिर जनता के सामने पहुँच जाते है।
विदेशो मे पेडो को चिन्हांकित करने की प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी है। सेटेलाइट के माध्यम से पेडो की रक्षा की जा रही है। एक स्थान पर बैठकर सभी पेडो पर सूक्षम निगाह रखी जा रही है। पर ऐसे प्रयासो की भारत मे कमी है। जब तक हम साधन-सम्पन्न हो तब तक हमारे विश्वास और आस्थाए ही पेडो और पर्यावरण को बचाये रखेंगी-ऐसा मेरा मानना है।(क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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मैने उन जागरुक पाठक को धन्यवाद कहा। मन मे तसल्ली हुयी कि चलो मेरा लिखा किसी के काम तो आ रहा है। मै भी उन पाठक के विचार से सहमत हूँ। पीपल देववृक्ष है। मैने पूर्व मे यह लिखा है कि कांक्रीट के जंगलो मे रह रहे आम लोगो के लिये पीपल जैसे पेडो का शहरो मे बचा रहना जरुरी है। यह तो शुक्र है उस मान्यता का जिसने इन आक्सीजन सिलेंडरो को मैसूर के ग्रामीण अंचलो मे बचा के रखा है वर्ना पीपल हो या नीम विकास नामक सुरसा के आगे कुछ भी नही बचता।
आज से दस वर्ष पहले मेरे छायाचित्रो की एक प्रदर्शनी लगी। मैने जंगलो और वनस्पतियो के चित्र लगाये थे। शहर के एक पत्रकार श्री राजेश गनोदवाले ने सलाह दी कि शहर के पुराने पीपल और बरगद की सुध किसी को नही है। इन सब की तस्वीर लेकर इस पर आधारित एक प्रदर्शनी होनी चाहिये। उन्होने चेताया कि वह दिन दूर नही जब शहर मे ये नही दिखेंगे। मैने यह शुभ कार्य आरम्भ कर दिया और न केवल रायपुर बल्कि प्रदेश भर के पुराने पीपल और बरगद की तस्वीरे लेनी आरम्भ कर दी। आज 20,000 से अधिक तस्वीरे मेरे पास है। प्रत्येक पेड के साथ उसका स्थानीय महत्व और उससे जुडी कहानियाँ है। आस-पास के लोग इनका क्या उपयोग करते है, यह भी उपलब्ध है। पर यह बडे ही दुख की बात है कि हर दो-तीन साल के अंतराल मे जब मै इन बुजुर्गो मे मिलने जाता हूँ तो ज्यातार अपने स्थान पर नही मिलते है। ये सभी विकास की भेंट चढ गये होते है। रायपुर से आरंग मे सडक के दोनो किनारो पर स्थित पेड हो या रायपुर शहर के अन्दर के पेड। इन्हे न पाकर मन रो पडता है और ऐसा लगता है कि जैसे अपना कोई बिछड गया है। यह सब बदस्तूर जारी है और मै दुखी होने के अलावा कुछ नही कर पाता हूँ।
कुछ वर्षो पहले मुझे रायगढ बुलाया गया था स्पांज आयरन प्लांट से हो रहे प्रदूषण पर एक वैज्ञानिक रपट तैयार करने। सभी ओर प्लांट से निकलने वाली काली धूल का मंजर था। जंगल ब्लैक फारेस्ट हो चुके थे। शहर मे धूल जमी थी। तालाबो का पानी काला हो गया था। लोग खंखार कर बलगम निकालते थे तो वह भी काला होता था। यह अंचल नर्क बन चुका था। फिर भी डंके की चोट पर यह प्रदूषण जारी था। बोलने वालो की जुबान बन्द कर दी जाती थी। रायगढ की खबर वही तक दब कर रह जाती थी। सारे प्रदेश को पता ही नही था इस तबाही का। मैने वनस्पतियो पर इसके असर की सैकडो तस्वीरे खीची और फिर लोगो से च्रर्चा की। अपनी रपट मे इस तबाही का उल्लेख किया। यह तो हमारा सौभाग्य है कि आज हमारे पास इंटरनेट और ब्लाग है जिसके सहारे हम सारी बन्दिशो के बाद भी खुलकर सारा सच दुनिया को बता सकते है। मेरी रपट बाहर के लोगो तक पहुँची और उस पर व्यापक प्रतिक्रिया हुयी। रायगढ मे पीपल और बरगद के पुराने पेडो की बर्बादी पर मैने विशेष जोर दिया था। यह भी सिफारिश की थी कि प्रदूषण के इस नगे नाच को बन्द किया जाये क्योकि इससे जो क्षति हो रही है उसकी पूर्ति हम कभी नही कर पायेंगे। इस प्रयास के कई वर्षो बाद अब हमे पता चल रहा है कि स्पांज आयरन प्लांट पर अंकुश लगाने के नियम बन रहे है और जल्द ही ये लागू होंगे। सभी ने इसका स्वागत किया पर मै सोचता रहा कि इस बीच जो वनस्पतियो को स्थायी नुकसान हो चुका है उसकी भरपाई कौन करेगा? उसके लिये क्या कभी किसी को दोषी ठहराया जायेगा? नही ना, तो फिर तो लोग मनमाने ढन्ग से प्रदूषण फैलायेंगे और फिर काम खत्म हो जाने के बाद नियम के पालन की बात करेंगे। क्या मायने ऐसी कवायद के? काश! प्रदूषण फैलाने वाले मैसूर वाली बात जानते होते तो मारे डर ही सही कुछ पेड तो बच जाते।
स्पांज आयरन के प्रदूषण का दंश रायपुर शहर ने भी झेला। सारा शहर प्रदूषित होता रहा और राष्ट्रीय शोध संस्थान इसे देश का सबसे गन्दा शहर बताते रहे पर किसी के कानो मे जूँ तक नही रेंगी। यहाँ भी पुराने पेडो की शामत आयी। पर उस समय चुनाव दूर-दूर तक नही थे। सब कुछ सीना तान कर होता रहा। आज जब कुछ महिनो मे चुनाव होने वाले है तो काली धूल का नामोनिशान नही है। यदि चुनाव इतने ताकतवर है तो इस देश मे पर्यावरण की रक्षा के लिये हर महिने चुनाव की व्यवस्था की जानी चाहिये। जनता के सामने ‘वोट बैक’ की क्षमता होनी चाहिये ताकि उनके बल पर चुने गये राजनेता जीतने के बाद चन्द ऐसे लोगो का ही काम न करे जो जनहित के विरुद्ध काम करते है और चुनाव आते ही फिर जनता के सामने पहुँच जाते है।
विदेशो मे पेडो को चिन्हांकित करने की प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी है। सेटेलाइट के माध्यम से पेडो की रक्षा की जा रही है। एक स्थान पर बैठकर सभी पेडो पर सूक्षम निगाह रखी जा रही है। पर ऐसे प्रयासो की भारत मे कमी है। जब तक हम साधन-सम्पन्न हो तब तक हमारे विश्वास और आस्थाए ही पेडो और पर्यावरण को बचाये रखेंगी-ऐसा मेरा मानना है।(क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Updated Information and Links on March 15, 2012
Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com
Allophylus cobbe (L.) RAEUSCH. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (18 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Rajasthan; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Allophylus rheedii (WIGHT.) RADLK. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (19 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Rajasthan; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Allophylus serratus (ROXB.) KURZ in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (10 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Rajasthan; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-8; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Alloteropsis cimicina (L.) STAPR in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (9 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Rajasthan; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Alocasia fornicata (ROXB.) SCH. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (8 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Rajasthan; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Alocasia macrorhiza (L.) G.DON in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (7 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Rajasthan; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Aloe vera L. in
Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal
Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (31 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Rajasthan; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of
Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Alpinia calcarata ROSCOE
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (26 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Orissa; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of
Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Alpinia galanga (L.) WILLD.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (32 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Rajasthan; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-7; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Alpinia malaccensis (BURM.F.) ROSC. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (33 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Rajasthan; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Alpinia nigra (GAERTN.) BURTT in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (31 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Tamil Nadu; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-6; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Alpinia zerumbet BURTT & R.M. SM. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (25 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Orissa; Not mentioned in ancient literature
related to different systems of medicine in India and other countries;
Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Alseodaphne semicarpifolia NEES. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (23 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Tamil Nadu; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Comments
लंबे समय से पढ़ रहा हूँ, आप कमाल का काम कर रहे हैं. आपका आभारी हूँ.