अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -22
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -22
- पंकज अवधिया
पीपल और बरगद के विषय मे उल्लेख मेरे लेखो और व्याख्यानो ने अक्सर आता है। मैने इनके विषय मे विस्तार से लिखा है और हमारे प्राचीन ग्रंथ भी इसके महत्व को समझाते रहे है पर फिर भी मुझे लगता है कि अभी भी बहुत सी बाते दस्तावेजो के रुप मे उपलब्ध नही है। एक बार मेरे व्याख्यान के बाद दूसरे अतिथि वक्ता ने भी इनके महत्व पर प्रकाश डाला और बोले कि मैने अपने घर मे पीपल और बरगद को नही काटा है और ढेरो पेड आज भी मजे से उग रहे है। उन्होने खूब तालियाँ बटोरी। मै भी उनके इस प्रेम से नत-मस्तक हो गया। बहुत सारे पीपल और बरगद को घर मे जगह देना माने बहुत बडा घर और बहुत बडा दिल चाहिये। व्याख्यान के बाद उन्होने मुझे अपने घर आमंत्रित किया। जब मै वहाँ पहुँचा तो उनका छोटा-सा घर देख हैरत मे पड गया। वहाँ ढेरो गमले थे और उनमे ही पीपल और बरगद उग रहे थे। आपने सही समझा उन्होने बोनसाई कला के माध्यम से इन्हे गमलो मे लगाया था। मेरा उत्साह ठंडा पड गया। मुझे सहसा पारम्परिक चिकित्सको की बात याद आ गयी। वे कहते रहे है कि वनस्पति से की गयी छेडछाड उनमे कई प्रकार के विकार पैदा कर देती है। इन विकारो को आज का विज्ञान पकड नही पाता है और पकड भी लेता है तो उन्हे स्वीकार करने मे हिचकिचाता है क्योकि आज जितनी भी फसले हमारे सामने है उन्हे माँ प्रकृति की व्यवस्था मे छेडछाड करके विकसित किया गया है। अब तो जीएम फसले भी आ रही है। यदि आप इसका विरोध करेंगे तो आधुनिक विज्ञान शोध-निष्कर्ष लेकर खडा मिलेगा और यदि इसका समर्थन करेंगे तो पारम्परिक ज्ञान आपको खतरे से सावधान रहने की चेतावनी देता नजर आयेगा। यह बात तो आप भी मानेंगे कि आधुनिक विज्ञान ने यदि हमे भरपेट खाना दिया है तो नयी बीमारियाँ भी दी है। पारम्परिक ज्ञान की भूमिका मार्गदर्शक की रही है सदा से।
बोनसाई किये गये पौधे क्या अपने परिवर्तित रुप मे भी अपने आस-पास वही वातावरण पैदा करते है जो बडे पेड करते है? पहली ही नजर मे ही यह तर्क सही नही लगता है। कोटा (राजस्थान) मे विश्व कृषि संचार नामक किसान पत्रिका की ओर से श्रेष्ठ लेखक का सम्मान प्राप्त करने के बाद मैने अपने व्याख्यान मे आम लोगो से पीपल और बरगद को बचाने की अपील की। बहुत से लोगो ने पूछा कि हमारे पास जगह नही है और हम बोनसाई के रुप मे इन्हे नही लगाना चाहते तो फिर कैसे हम इन्हे बचाने मे अपना योगदान दे? उनका प्रश्न बिल्कुल सही है। मैने उनसे कहा कि आपके आस-पास बहुत से पुराने पीपल और बरगद है। आप उन्हे बचाने का जिम्मा लेकर इस दिशा मे अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते है। विकास के नाम पर शहरो के इन जिन्दा फेफडो को हजारो की संख्या मे काटा जा रहा है। छत्तीसगढ की राजधानी मे ही पिछले कुछ वर्षो मे दसो पुराने पीपल और बरगद उखाड दिये गये। मीडिया ने शोर मचाया पर किसी ने परवाह नही की। पर्यावरण की बाते करने वाले भी सामने नही आये। मैने इस बरबादी को रोकने की अपील की और सुझाव दिया कि यदि काटने के अलावा और कोई रास्ता नही है तो पारम्परिक उपचारो को अपनाकर इन्हे उखाडकर दूसरी जगह रोप दिया जाये। ऐसे प्रयोगो मे सफलता का प्रतिशत बहुत कम होता है पर कुछ पेडो को ही हम बचा पाये तो भी बहुत बडी बात होगी। बचपन मे हमने चिपको आन्दोलन के विषय मे पढा है। मुझे यह समझ नही आता कि आज विभिन्न मंचो से इस विषय पर बात तो होती है पर पेडो के विनाश को रोकने के लिये एक भी चिपको आँदोलन उसके बाद देश मे क्यो नही हुआ?
माँ प्रकृति को यह मालूम है कि गन्दगी फैलाने वाली मानव जाति को पीपल और बरगद जैसे पेडो की बहुत आवश्यकता है। इसलिये उन्होने बडी सरल व्यवस्था की है। इन पेडो के फलो को स्वादिष्ट बनाया है। चिडियाँ इन्हे चाव से खाती है। बीज आहारनली से बीट के साथ बाहर निकल जाते है। और इस तरह निरंतर इनका फैलाव होता रहता है। मानव जाति को कुछ भी अतिरिक्त करने की आवश्यकत्ता नही है। पर अब शहरो से पीपल और बरगद कम हो रहे है। पुराने पेडो को बचाने के प्रयास नही हो रहे है। चिडियो की संख्या मे भी तेजी से कमी आ रही है। मानवो की बस्ती मे एक को छोडकर किसी को रहना गवारा नही हो रहा है और वह है रोग।
पीपल और बरगद से होने वाले लाभो के विषय मे इतनी अधिक जानकारी होने के बावजूद औद्योगिक इकाईयो को जिस वृक्षारोपण की अनिवार्यता होती है उसमे लगाने जाने वाले पेडो मे पीपल और बरगद का नाम नही है। हाँ, यह अवश्य देखने मे आता है कि इन पेडो को काटकर जगह साफ की जाती है और फिर दूसरी प्रजातियो के पेड लगाये जाते है। दूसरी प्रजातियाँ माने पतले तने वाले विदेशी पौधे जिनके दुष्परिणाम जग-जाहिर है। क्यो नही देश मे कानून बनाकर इकाईयो के आस-पास पीपल और बरगद जैसे देशी पेडो को ही लगाना अनिवार्य कर दिया जाता?
जंगल विभाग को पीपल और बरगद से जन्मजात दुश्मनी है। वे अपने व्यवसायिक रोपण मे इन्हे देखते ही उखाड देते है। इन्हे खरपतवार माना जाता है। उनका तर्क है कि कतार मे उग रहे इमारती लकडी के पेडो के बीच ये उगकर उनकी वृद्धि पर विपरीत प्रभाव डालते है। इस तरह के व्यवसायिक रोपण जंगलो मे किये जाते है और पीपल और बरगद को पनपने ही नही दिया जाता है।
पिछले वर्ष उडीसा के नियमगिरि जाना हुआ। नियमगिरि एक विशाल पर्वतमाला है और वहाँ के निवासी इस पूरे पर्वत को ही पूजते है। नियमगिरि जैव-विविधता से परिपूर्ण है। मैने वहाँ वानस्पतिक सर्वेक्षण किया। मैने वहाँ पीपल और बरगद के सैक़डो वर्ष पुराने असंख्य पेड देखे। इन पेडो मे नाना प्रकार की दूसरी वनस्पतियाँ उगी हुयी थी। एक विशाल पेड अपने आप मे एक पारिस्थितिकी तंत्र है। वह ढेरो वनस्पतियो और उन पर आश्रित रहने वाले जीवो को सहारा देता है। ऐसा तंत्र बना पाना मनुष्य़ के लिये सम्भव नही है। ये माँ प्रकृति की प्रयोगशाला है। पारम्परिक चिकित्सक इन पितृ वृक्ष समूहो की पूजा करते है और इनसे औषधियाँ बनाकर रोगियो को राहत पहुँचाते है। मैने इस पर एक वैज्ञानिक रपट तैयार की और सुझाव दिया कि इन समूहो को अपने प्राकृतिक रुप मे बनाये रखने के लिये इनके संरक्षण की जरुरत है। यह रपट उन पर्यावरणप्रेमियो के लिये उपयोगी थी जो इस पर्वत और इसकी जैव-विविधता को बचाने के लिये जीवन-मरण का संघर्ष कर रहे थे। दरअसल नियमगिरि मे बडे पैमाने पर बाक्साइट के लिये खनन होना है। इससे पूरा संतुलन बिगड जायेगा। मुझे बडी उम्मीद थी कि ऐसी रपटो से न्यायिक फैसला करने वाले विद्वानजनो को जैव-विविधता का पक्ष लेने मे मदद मिलेगी पर निराशा ही हाथ लगी। हाल ही मे बाक्साइट के खनन को सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिल गयी है। खनन की राजनीति जो भी हो पर एक विशेषज्ञ होने के नाते मै बडा ही दुखी और क्षुब्ध हूँ। आज दुनिया भर मे जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) पर सम्मेलनो के नाम पर अरबो रुपये बहाये जा रहे है पर नियमगिरि जैसे जैव-विविधता पूर्ण स्थानो को उजडने से बचाने की सुध किसी को नही है।
मधुमेह से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान पर आधारित रपट मे मैने पीपल और बरगद के विषय मे ऐसी जानकारियो का समावेश किया है जो इससे पहले कभी नही प्रकाशित हुयी है। इन्हे सार्वजनिक कर भारतीय ज्ञान के बूते पर मै इठलाना चाहता हूँ पर एक डर भी मेरे मन के किसी कोने मे है। वनस्पतियो के नये उपयोग की जानकारी का खुलासा माने कीडे-मकोडे की तरह बढ रहे मानव द्वारा इसके विनाश की शुरुआत। इन वनस्पतियो का ऐसा अनैतिक विदोहन किया जायेगा कि रुह काँप जाये। धरती से इसका समूल नाश करके ही रुकेंगे। इससे तो अच्छा है कि इन उपयोगो को सार्वजनिक ही नही किया जाये। बडी उहा-पोह की स्थिति है।
हम पीपल और बरगद को ही अच्छे से जानते है पर गूलर, गस्ती, पाकर जैसे इसके नजदीकी रिश्तेदार भी है जिनमे इनसे मिलते-जुलते गुण है। इनके विषय मे प्राचीन लेखको ने ज्यादा नही लिखा इसलिये इनका महत्व अधिक नही माना जाता है। पीपल और बरगद से जुडे हुये विश्वास और अन्ध-विश्वास ने ही भारत के बहुत से हिस्सो विशेषकर ग्रामीण भारत मे इन्हे बचाकर रखा है। मेरे मित्र इसी विश्वास और अन्ध-विश्वास का लाभ उठाकर सभी वनस्पतियो को बचाना चाहते है। वे सिन्दूरी रंग का एक ड्रम लेकर भारत भ्रमण मे निकलना चाहते है। उनकी योजना हर पुराने पेड के पास रुकना और पास पडे पत्थर को रंगकर उसके नीचे स्थापित करना है ताकि डर और श्रद्धा से ही सही पर उसकी रक्षा हो सके। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Updated Information and Links on March 15, 2012
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Achyranthes bidentata BLUME
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (51 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Tamil Nadu; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Acorus calamus L. in
Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal
Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (38 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of West Bengal; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of
Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Acrocephalus hispidus (L.) NICOLS. & SIVADASAN in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (50 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Tamil Nadu; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other countries;
Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Acrocephalus indicus (BURM.F.) KUNTZE in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (15 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Chhattisgarh; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-8; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Acronychia pedunculata (L.) MIQ. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (60 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Orissa; Not mentioned in ancient literature
related to different systems of medicine in India and other countries;
Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Acrostichum aureum L.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (55 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of West Bengal; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-4; Farash and Jamun Trees growing under stress are
preferred for collection of leaves; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Acrotrema arnottianum WIGHT
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (18 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Bihar; Not mentioned in ancient literature related to different
systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Actiniopteris radiata (SW.) LINK in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (42 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Tamil Nadu; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Agave sisalana PERR. in
Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal
Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (28 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Bihar; Not mentioned in ancient literature related to different
systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10)
among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Ageratina adenophora (SPR.) KING & ROB., in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (16 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Chhattisgarh; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Ageratum conyzoides L.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (55 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Orissa; Not mentioned in ancient literature related to different
systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Ageratum houstonianum MILL.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (17 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Bihar; Not mentioned in ancient literature related to different
systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Comments
एक बात और के कपित्थ -कैन्त के फलों को खाकर हाथी भी ठीक वैसी प्रक्रिया से कैंथ को उगने में मदद करते हैं ?