अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -30

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -30 - पंकज अवधिया

आम तौर पर अल सुबह मै घने जंगलो मे जाना पसन्द नही करता। इस समय वन्य जीवो विशेषकर भालुओ के लौटने का समय होता है। ऐसे समय मे नीचे उतरकर वनस्पतियो को देखना और उनकी तस्वीरे उतारना जोखिम भरा होता है। एक बार विशेष कीटो को देखने सुबह-सुबह जंगल जाना ही पडा। मै सामने की सीट पर बैठा था। स्थानीय लोग पीछे बैठे थे। ड्रायवर अपनी मस्ती मे गाडी चला रहा था। अचानक ही घने जंगल मे एक निर्वस्त्र व्यक्ति पर हमारी नजर पडी। पहले हमने सोचा कि शौच आदि के लिये कोई बैठा होगा पर घने जंगल मे भला कौन शौच के लिये आयेगा? हमने गाडी रोक दी। साथ चल रहे लोगो ने न रुकने की सलाह दी। मै जिद करके उस व्यक्ति तक पहुँचा तो वह तेजी से दूर जाने लगा। मैने कुछ पूछना चाहा तो उसने चुप रहने का इशारा किया। वह साधारण व्यक्ति ही था। शरीर निर्वस्त्र था पर कुछ भागो मे उसने लोकटी नामक छोटी मक्खियो से बचने के लिये मिट्टी का लेप लगा रखा था। उसने इशारे से हमे रुकने के लिये कहा और इशारो-इशारो मे ही वापस आने का अश्वासन देकर जंगल मे गुम हो गया। हमने दो घंटो तक इंतजार किया।

जब वह वापस आया तो उसके हाथ मे चाबुक की तरह लम्बी जड थी। उसने कपडे पहन लिये थे। उसने खुलासा किया कि आज का दिन गुंजा की जड उखाडने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। गुंजा अर्थात रत्ती या गोमची (एब्रस प्रीकेटोरियस)। जड उखाडने की उसकी विधि अनूठी थी। वह अल सुबह जंगल मे आ गया फिर झरने मे स्नान करके निर्वस्त्र ही जडो को उखाडने चल पडा। इस दौरान उसे किसी से बात नही करनी था। इसलिये उसने हमसे भी बात नही की। जड को लकडी के औजार से उखाडना था। फिर कपडे पहनकर वापस गाँव आना था और ताजे दूध मे जड को धोकर उपयोग करना था। मैने पारम्परिक चिकित्सको से जडो के एकत्रण की कई विधियो के विषय मे सुना था पर यह सर्वथा नयी जानकारी थी।
गुंजा पर विशेषकर इससे सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान पर मैने सैकडो शोध आलेख लिखे है। सफेद बीजो वाले गुंजा को विशेष उपयोगी माना जाता है। यह दुर्लभ होता है। पिछली बार जब मैने एक देहाती मेले मे शिरकत की थी तो सफेद गुंजा के सारे बीजो को खरीद लिया था। इसे अपने घर और खेतो मे लगा दिया था। वैज्ञानिक अनुसन्धान बताते है कि इस तरह गुंजा को लगा देने से जमीन की उर्वर क्षमता बढ जाती है। मैने अपने अनुभव से पाया है कि खेतो मे इसका फैलाव कई प्रकार के खरपतवारो को बढने से रोक देता है। घर पर आमतौर पर गुंजा को नही लगाया जाता है। इसके विषय मे यह मान्यता है कि यदि किसी के घर मे गुंजा के बीज फेक दिये जाये और वे पौधे के रुप मे जम जाये तो उस घर के लोग लड-लड के बेहाल हो जाते है। हमारे यहाँ गुंजा तो उग रहा था पर झगडा नही हो रहा था इसलिये हमने इस मान्यता को अनदेखा करना ही उचित समझा। मैने अपने पिछले लेखो मे लिखा है कि बहुत सी वनस्पतियो से जुडी ऐसी बाते आमतौर पर वनस्पति को घर मे लगाने से रोकने के लिये फैलायी जाती है। उदाहरण के लिये कलिहारी को ही ले। इसे झगडहीन या झगडा पैदा करने वाला पौधा माना जाता है। इसके सुन्दर फूलो के लिये इसे घर मे लगा दिया जाता है पर बहुत कम लोग जानते है कि यह एक अत्यंत विषैला पौधा है। इतना विषैला कि इसकी जड का एक छोटा सा हिस्सा पल भर मे मनुष्य़ की जान ले ले। लिट्टे के लोग इसीलिये अपने सुसाइड केप्सूल मे इसे रखते है। इसी विषैलेपन को देखते हुये हमारे बुजुर्गो ने इसके साथ झगडे वाली बात जोड दी ताकि लोग मारे डर इसे घर मे न लगाये और इस तरह वे इससे बचे रह सके। गुंजा के बीज भी नुकसानदायक होते है। गर्भपात के लिये इसके बीजो का प्रयोग चोरी-छिपे किया जाता है। हमारे देश मे तो मालाओ मे गुंजा के बीज पिरोकर उन्हे खूबसूरत बनाया जाता है। बच्चो के गले पर ऐसी मालाए आप देख सकते है। बीज के जहरीलेपन को देखते हुये आस्ट्रेलिया मे ऐसी मालाओ के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। यह एक तरह से सही भी है क्योकि लाल रंग बच्चो को आकर्षित करता है। और वे कभी भी बीजो को निगल सकते है। हो सकता है गुंजा से झगडे वाली बात इसी के चलते जोडी गयी हो।

चलिये अब वापस उसी रहस्यमय व्यक्ति के पास चले। उसने बताया कि वह औषधीय प्रयोग के लिये जड नही ले जा रहा है। वह कुछ तांत्रिक प्रयोग करना चाहता है। कैसे तांत्रिक प्रयोग? मेरे प्रश्न पर वह चौका और उसके चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे कि उसे इस बारे मे बताने की इच्छा नही है। जिद करने पर उसने साथ मे गाँव चलने को कहा। वहाँ उसने एक मोटी सी पुस्तक दिखायी। मै तुरंत ही उस पुस्तक को पहचान गया। यह तंत्र की पुस्तक थी और मेरी अपनी लाइब्रेरी मे भी थी। यह पुस्तक विचित्र दावो से भरी पडी है। ऐसे दावे जो पढने मे रोचक लगते है पर जमीनी स्तर पर उनकी कोई उपयोगिता नही है। इसमे गुंजा के बहुत से तांत्रिक प्रयोग दिये गये है। मैने इन दावो की परीक्षा के लिये कई बार इन प्रयोगो को किया पर हर बार दावे खोखले निकले। मैने उस व्यक्ति से पूछा कि आप किस प्रयोग को करना चाहते है? उसने जिस प्रयोग पर अंगुली रखी उसे पढकर मुझे हँसी आ गयी। यह प्रयोग रातोरात अमीर बनने से सम्बन्धित था। पुस्तक का दावा था कि विशेष विधि से एकत्र की गयी गुंजा की जड को अंकोल के तेल मे घिसकर आँखो मे काजल की तरह लगाने से जमीन के अन्दर गडे गुप्तधन के दर्शन हो सकते है। मैने पहले इस प्रयोग के विषय मे पारम्परिक चिकित्सको से पूछा था। उनका कहना था कि इससे धन मिलना तो दूर आपकी आँखो को नुकसान हो सकता है। अत: भूलकर भी सत्यता परखने की कोशिश न करे। मुझे पारम्परिक चिकित्सको की बात याद आ गयी। मैने तुरन्त ही उस व्यक्ति को यह बात बतायी। पर इस बार वह हँस पडा और बोला कि आप शहर के लोगो को कभी इन बातो पर विश्वास नही होगा। मै चुप हो गया। मेरी बात सुनकर उसके बडे बेटे ने भी ऐसे प्रयोग का विरोध किया। पर अंतत: उसने काजल लगा ही लिया। हम उसे उसके हाल मे छोडकर वापस आ गये। रास्ते मे चर्चा होती रही कि चाहे शहर हो या गाँव, सभी शार्टकट से धन अर्जन करना चाहते है। चाहे इस शार्टकट के लिये उन्हे जान भी जोखिम मे क्यो न डालनी पडे।

काफी समय बाद एक नेत्र विशेषज्ञ मित्र के पास जाना हुआ। उसकी व्यस्तता के कारण मुझे कुछ देर बाहर बैठना पडा। तभी एक लडका मेरे पास आया और नमस्कार किया। मैने उसे पहचान लिया। यहाँ कैसे? मैने पूछा। बाबूजी के आँखी खराब हो गे हे। जाँच बर आये हवव। (बाबूजी की आँखे खराब हो गयी है। जाँच करवाने के लिये आया हूँ।) वह उसी व्यक्ति का बडा लडका था। गुप्त धन शायद उसे नही मिल पाया था पर दृष्टि रुपी धन उसने इस चक्कर मे खो दिया था।

उसे सबक मिल गया था एक बडी कीमत चुकाने के बाद पर बात यही खत्म नही होती। मेरा मानना है कि उन प्रकाशको और लेखको को भी सबक सीखाना जरुरी है जो ऐसी पुस्तको को प्रकाशित करते है और आधी-अधूरी जानकारी आम लोगो तक पहुँचाते है। ऐसी पुस्तके आसानी से मिल जाती है। इनकी कीमत भी अधिक नही होती है। यदि इनके दावो की वैज्ञानिक स्तर पर जाँच की जाये और बेसिर-पैर के दावे करने वाले साहित्यो पर अंकुश लगाया जाये तो मुझे लगता है कि कुछ लोगो को तो हम ठगी से बचा ही लेंगे। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

दीपक said…
ज्ञानवर्धक तथा रोचक !! धन्यवाद
Udan Tashtari said…
सही है-जारी रहिये.
L.Goswami said…
काफी रोचक ..अपने ठीक किया की साथ ही साथ वैज्ञानिक नाम भी दे दिया वरना पहचानने में दिक्कत हो जाती ..जारी रखें

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