अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -33

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -33 - पंकज अवधिया
बचपन मे जब मै अपने सहपाठियो के साथ गाँव की सैर किया करता था तो रोचक बाते सुनने को मिलती थी। कोई भी नया जीव दिखते ही हम उसके पीछे लग जाते थे। पर उल्लू को देखते ही हम राह बदल लेते थे। हमे चेताया गया था कि यदि शाम को उल्लू को ढेला मारा और ढेला पानी मे गिर गया तो जैसे-जैसे वह घुलता जायेगा वैसे-वैसे मारने वाले की जान निकलती जायेगी। गाँव के बडे आँखे निकाल-निकाल कर यह बात बताते थे। मन ही मन बहुत डर लगता था। हमारी हिम्मत भी नही होती थी कि हम इस प्राणी के दर्शन करे। पिछले हफ्ते एक वन ग्राम मे शाम के समय पेड पर एक उल्लू दिख गया। मैने अपना कैमरा निकाला और जुट गया तस्वीरे लेने मे। यह सब देखकर एक बच्चा तेजी से मेरे पास आया और एक ही साँस मे उसी बात को दोहरा दिया। मेरे सामने बचपन की यादे तैर गयी। इसका मतलब यह बाते दूर-दूर तक प्रचलित है। पढे-लिखे लोग निश्चित ही इसे अन्ध-विश्वास कह सकते है। पर मुझे यह विश्वास उल्लू की प्राण रक्षा मे सहायक लगा। चलिये अन्ध-विश्वास ही सही पर यह एक निरीह प्राणी की जान बचा रहा है, यह कितनी अच्छी बात है। ऐसे बहुत से तथाकथित अन्ध-विश्वास है जिनके बारे मे मुझे लगता है कि हमने इन विश्वासो का पूरी तरह से वैज्ञानिक विश्लेषण किये बिना ही इन्हे अन्ध-विश्वास घोषित कर दिया है और एडी-चोटी लगाकर भिड गये इन्हे समाज से मिटाने के लिये।
बचपन मे अपने ननिहाल जबलपुर जाना होता था। वहाँ यदि आँखो मे गुहेरी या सलोनी (Stye) हो जाती थी तो हमारी बूढी नानी एक टोटका बताती थी। शौच के समय अपने बाये हाथ की तर्जनी से छै बार गुहेरी की ओर अंगुली ले जाते हुये एह कहना था कि छूते है। पर गुहेरी को छूना नही था। फिर सातवी बार यही कहते हुये उसे छू देना था। नानी कहती थी कि इससे गुहेरी शरमाकर बैठ जायेगी। आखिर बार छूने के बाद कुछ समय तक तर्जनी को गुहेरी के ऊपर फिराना था। हम लोगो को यह सब सुनकर बडा मजा आता था। हम इसे करते भी थे। अब गुहेरी के लिये तो किसी डाक्टर के पास जाते नही थे। बस यही कर लेते थे। पता नही किस कारण से पर गुहेरी से निजात मिल जाती थी। बडे हुये तो मन मे यह विचार आया कि यह मात्र टोटका है और अन्ध-विश्वास से आगे कुछ नही। अपने व्याख्यानो मे मैने इसे अन्ध-विश्वास की सूची मे शामिल कर लिया। श्रोताओ के लिये व्याख्यान के दौरान इसकी चर्चा रोचक हो जाती थी।

एक बार एक योग आश्रम मे व्याख्यान हुआ। मैने सारी बाते दोहरायी। लोगो को व्याख्यान पसन्द आया। व्याख्यान के बाद एक बुजुर्ग स्वामी जी कोने मे ले जाकर धीरे से कान मे बोले कि आपकी नानी सही कहती थी। अगर यह अन्ध-विश्वास होता तो कही भी इसे करने की बात होती। शौच के समय ही इसे करने की बात क्यो कही गयी? क्योकि इस खास स्थिति मे बैठने और फिर तर्जनी से गुहेरी को छूने से उस पर असर होता है। आपकी नानी ने आपको दिव्य ज्ञान दिया है और आप नाहक ही इसे अन्ध-विश्वास बताते फिर रहे है। उन्होने आगे बताया कि शौच के समय जोर लगाने से मना किया जाता है क्योकि इसका सीधा असर आँखो मे होता है। कमजोर नजर के लिये यह भी एक उत्तरदायी कारण है। मै शर्म से पानी-पानी हुआ जा रहा था। उन्होने इस मुद्रा मे बैठकर आँखो के लिये उपयोगी बहुत से आसन बताये और बताया कि भारतीय तरीके से शौच के लिये बैठने मात्र से कई रोगो से छुटकारा मिल जाता है। कमोड मे बैठने से न ही अच्छे से पेट साफ होता है और न ही शरीर को रोगो से मुक्ति मिलती है। स्वामी जी, आप यह बात लोगो के सामने भी समझा सकते थे? मुझसे रहा नही गया तो मैने पूछा। वे बोले आप हम सब के लिये आदरणीय है। वहाँ सबके सामने कहता तो आपको बुरा लग सकता था। अब आप अपने व्याख्यान से इस बात को निकाल दे तो मेरा उद्देश्य पूरा हो जायेगा।

इस आँख खोल देने वाली घटना से मै बडा ही प्रभावित हुआ। ऐसी बहुत सी बाते है जिनके बारे मे हम नही जानते और कुछ पुस्तके पढकर ही अपने को ज्ञानी समझने की भूल कर बैठते है। यह माना कि आधुनिक विज्ञान ने जानकारियो का अम्बार लगा दिया है हमारे सामने पर फिर भी बहुत सा ज्ञान अभी भी स्वामी जी जैसे दिव्य आत्माओ के पास है और वह उनके सानिध्य से ही मिल सकता है। आज भारतीय योग की दुनिया दीवानी है। आज से कुछ वर्षो पहले इससे सम्बन्धित बहुत सी बाते अन्ध-विश्वास की श्रेणी मे डाल दी जाती थी। अब आप ही बताइये यदि दोनो हाथो के नाखूनो को परस्पर रगडने की सलाह पहले दी गयी होती तो क्या आप मानते? जब इसे बाबा रामदेव ने विशेष अन्दाज मे कही तो यह रातो रात लोकप्रिय हो गया। इससे बाल नही झडते और नये बाल उगते है-ऐसा कहा जाता है। कितनो के बाल उगे यह तो मै नही जानता पर मै तो केवल आदरणीय आडवाणी जी को यह करते हमेशा देखता हूँ टीवी पर।

आप जानते ही है मै वनस्पतियो और कीटो से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहा हूँ। मेरा यह कार्य लाखो पन्नो के रुप मे इंटरनेट पर उपलब्ध है। यह ज्ञान अनंत है और मै यदि दस जन्मो तक भी यह करता रहूँ तो भारतीय ज्ञान के दस्तावेजीकरण का कार्य पूरा नही हो सकता। अभी मधुमेह से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान पर एक रपट तैयार कर रहा हूँ। पहले दस हजार फिर पचास हजार फिर एक लाख, पाँच लाख और दस लाख पन्नो से बढती हुयी यह रपट समाप्त होने का नाम नही ले रही है। अब पन्ने गिनना बन्दकर जीबी मे रपट को माप रहे है। अब तक इसका आकार 80 जीबी से अधिक हो चुका है जबकि मै आधे रास्ते तक भी नही पहुँचा हूँ। चलिये वापस विषय पर आते है। पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण के दौरान गुहेरी के टोटके जैसी बहुत सी जानकरियाँ सामने आती है। कुछ इसे अन्ध-विश्वास मानते है तो कुछ इसे पारम्परिक ज्ञान मानते है। सभी विश्वास की वैज्ञानिक विवेचना मेरे बूते की बात नही है। तो क्या जिनका विश्लेषण मै नही कर पाऊँ उन्हे अन्ध-विश्वास मानकर अपने डाटाबेस मे शामिल न करुँ? बडी ही अजीब स्थिति हो जाती है कभी-कभी। स्वामी जी की विवेचना के बाद इस टोटके को मैने बाटेनिकल डाट काम के शोध लेखो मे शामिल कर लिया। मुझे वैज्ञानिक मित्रो से विरोध की आशंका थी पर जल्दी ही यह निर्मूल साबित हुयी। स्वामी जी की तरह ही बहुत से लोगो ने इसके समर्थन मे तर्क दिये। ये तर्क विज्ञान सम्मत थे।

इस लेखमाला से पहले मै आरम्भ नामक ब्लाग पर अन्ध-विश्वास पर ही एक लेखमाला लिख रहा था। विश्वासो के वैज्ञानिक विश्लेषण पर जब मैने लिखा तो यूएई से मीनाक्षी जी ने लिखा कि पहले हमारे घरो मे शाम को घर मे झाडू लगाने से मना किया जाता था। कारण यह था कि उस समय बिजली नही होती थी। अन्धेरे मे झाडू लगाने से हो सकता था कि कोई कीमत चीज भी बाहर कचरे के साथ चली जाती। इसलिये लम्बे अनुभव के फलस्वरुप यह बात पीढी दर पीढी चलती आयी थी। आज इसका कोई महत्व नही है पर फिर भी इसे सहेज के रखना चाहिये। यह हमारे बुजुर्गो का ज्ञान है। पता नही कब यह फिर से काम आ जाये। इसे अन्ध-विश्वास कहकर इसका माखौल नही उडाना चाहिये बल्कि बच्चो को बताना चाहिये। अन्यथा आगामी पीढी हमारे अनुभवो का भी ऐसा ही मजाक उडायेगी। मै मीनाक्षी जी से सहमत हूँ। आशा करता हूँ कि आप भी सहमत होंगे। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित




Updated Information and Links on March 15, 2012

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Comments

Udan Tashtari said…
सही जा रहे हैं..जारी रखिये.

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