अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -26
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -26 - पंकज अवधिया
हमारे बागीचे मे जासौन पर इस बार जमकर फूल लगे। सडक से आते-जाते लोगो की नजर इस पर टिक जाती है। यह फूल देवी को चढाया जाता है इसलिये बहुत से लोग सुबह-सुबह फूल माँगने आ जाते है। कुछ बिना पूछे ही तोड लेते है। पिछले कुछ हफ्तो से एक महिला नियमित रुप से फूल लेने आ रही है। वह अनुमति लेकर फूल ले जाती है। कुछ दिनो पूर्व हमारे यहाँ एक मेहमान आये। वे कानूनविद है। अलसुबह वे जब बागीचे मे घूम रहे थे तो उस महिला का आगमन हुआ और रोज की तरह उसने फूल तोडने की अनुमति माँगी। मेहमान ध्यान से उसे देखते रहे और फिर जैसे ही उसने फूल तोडा अचानक ही वे चिल्लाने लगे। बुरा-भला कहने लगे। जब तक हम पहुँचते वह महिला बिना फूल तोडे जा चुकी थी। मेहमान ने चिल्लाकर कहा कि मैने घर को अनिष्ट से बचा लिया। उनका कहना था कि वह महिला केवल एक फूल लेने आयी थी। जबकि बहुत से फूल चढाये जाते है। एक फूल ले जाना मतलब घर के किसी एक सदस्य पर जादू। वे बोलते चले गये। उन्होने पूछा कि कब से यह सब चल रहा है? शुरु मे हमे चिंता हुयी पर कुछ ही देर मे जब दिमाग दौडने लगा तो हमने नाश्ते मे उन्हे घेरने का मन बनाया। वैसे ही शहर मे सर्दी-खाँसी जैसी बीमारी लगी ही रहती है। कही वे किसी को बीमार देखकर हमारे मन मे उस महिला के जादू के असर करने का यकीन दिलाने की कोशिश न करे इसलिये उन्हे घेरना जरुरी था।
काफी देर की चर्चा के बाद उन्होने बताया कि किसी चैनल पर उन्होने इस पर एक विशेष कार्यक्रम देखा था। उनके साथ ऐसा कुछ नही हुआ था। बस चैनल का असर था। हमने उस महिला को बुलाया। उससे क्षमा माँगी। उसने बताया कि सभी को फूल चाहिये इसलिये उसने एक फूल तोडना ही उचित समझा। और कोई कारण नही था। पता नही मेहमान इस बात को समझ पाये या नही पर हमने इसे साधारण बात मानते हुये अनदेखा कर दिया। आप यकीन मानिये यदि हम कही भी कमजोर दिखायी पडते तो वे तर्को से हमे समझा ही डालते और फिर हमारे मन मे छिपी सुनी-सुनायी बाते सामने आने लगती और अपनी गल्तियो के लिये हम उस महिला को दोषी मानने लगते। कहा जाता है न कि शिक्षा से अन्ध-विश्वास मिटता है। यह बात मुझे सही नही लगती। कुछ हद तक हटता हो पर मैने उच्च शिक्षा प्राप्त अन्ध-विश्वासियो को देखा है और उनके तर्क भी सुने है।
इसमे कोई दो राय नही कि पिछले कुछ वर्षो से टीवी चैनल चमत्कारो, अन्ध-विश्वासो और भूतो के साथ हो गये है। आम लोग त्रस्त भी दिखते है मस्त भी। इसके विरोध मे काफी कुछ लिखा जा रहा है पर चैनल वालो के कानो मे जूँ तक नही रेंग रही है। मेरे पाठक अक्सर लिखते है कि जब अन्ध-विश्वास फैलाने वालो पर अंकुश लगाने के लिये लिखित कानून है तो क्यो नही इन चैनलो पर इसका प्रयोग होता? उनकी बाते एकदम सही है पर बिल्ली के गले मे घंटी बाँधेगा कौन? मै तो पाठको को यही कहता हूँ कि आत्म सन्यम जरुरी है। किसी को मधुमेह हो जाये और डाक्टर मीठा खाने की अनुमति न दे तो कैसे सभी चौकस होकर उससे परहेज करने लगते है। शहर मे मिठाई की दुकान बन्द करवाने की माँग तो वे नही करते है। बस उस ओर का रुख नही करते है। वैसे ही रिमोट आपके पास है। यदि आपको लगता है कि यह सब परिवार के लिये अच्छा नही है तो चैनल बदल दीजिये। हाँ यदि देखने का मन ही है किसी का तो आप कैसी भी पाबन्दी लगाइये प्यासा कुँए को खोज ही लेगा।
भूतो के विषय मे पत्र-पत्रिकाओ मे लगातार छपता रहा है। हम लोग बचपन मे कादम्बनी मे ब्रिटेन के भूतो के बारे मे विचित्र जानकारियाँ पढकर रोमाँचित होते थे। ये जानकारियाँ बाक्स मे होती थी और बडे ही रोचक ढंग से दी जाती थी। उस समय इंटरनेट तो था नही जो जानकारी की प्रमाणिकता जान पाते। वैसे आज इंटरनेट है फिर भी हम सब कुछ नही जान पाते है। जहाँ आधुनिक विज्ञान भूतो से जुडी मान्यताओ को अन्ध-विश्वास मानता है विशेषकर भारतीय विज्ञानी अक्सर इसे कोरी-कल्पना बताते है वही प्राइम टाइम पर डिस्कवरी जैसे विज्ञान चैनल मे भूतो के अस्तित्व को सही ठहराने वाले कार्यक्रम देखकर हम दुविधा मे फँस जाते है। हमारा यह हाल है तो ग्रामीण अंचलो के लोग किस हद तक भ्रमित होते होंगे, इसका अन्दाज लगाया जा सकता है। क्या डिस्कवरी जैसे चैनल भारतीय जनमानस को यह बताने का प्रयास करते है कि देशी भूत-भूत नही और विदेशी भूत सचमुच के भूत है? यह आश्चर्य और दुख का विषय है कि बहुत से घरो मे ऐसे कार्यक्रमो को शैक्षणिक कार्यक्रम मानकर पालक अपने बच्चो को इसे देखने की छूट दे देते है।
मैने भूत से मिलने की बहुत कोशिश की। हर बार नयी जानकारी मिली। पढाई के दौरान जब मै अम्बिकापुर मे था तो हमारे हास्टल के पीछे अमरुद का बागीचा था। खबर थी कि इसमे रात को भूतो का वास रहता है। दिन मे तो हम लोग वहाँ बागवानी सीखते थे और आँखे चुराकर आस-पास देख भी लेते थे। इस भूत की बात आस-पास के गाँव वालो को भी थी। रात को हम जब सो जाते तो पेशाब के लिये उठने मे भी जी घबराता था। भूत का खौफ इतना था कि बागीचे मे रात को पहरा देने वाले चौकीदार भी हमारे हास्टल मे सोये रहते थे। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद जब जाते-जाते हमने भूत के दर्शन कराने की जिद चौकीदारो से की तो वे तैयार नही हुये। एक चौकीदार ने बडी मुश्किल से राज खोला कि पहले इस बागीचे मे बहुत चोरी होती थी। हम लोग सो नही पाते थे। रात मे बागीचे मे भालुओ का भी डर रहता था। इसलिये हम लोगो ने यह अफवाह फैलायी। यह बहुत कारगर सिद्ध हुयी और अब हम लोग मजे से सो पाते है।
बचपन मे अक्सर रायपुर से भिलाई के बीच की यात्रा होती थी। पिताजी के पास लेम्ब्रेटा स्कूटर थी। सामने मै खडा हो जाता था, बीच मे माता-पिता बैठते और सबसे आखिर मे बडे भाई को स्थान मिलता था। भिलाई से लौटते वक्त रात हो जाती थी। रास्ते मे चरोदा के पास एक मोड पडता था। वह अभिशप्त बताया जाता था। रात मे कभी सफेद साडी पहने कोई महिला लिफ्ट माँगती थी तो कभी किसी ड्रायवर को रास्ते के बीचो-बीच दीवार खडी दिखती थी। अखबार भी इन कथनो को प्रमुखता से छापते थे। वहाँ अक्सर दुर्घटना होती थी। ट्रेफिक आज जैसा नही था। उस मोड पर मेरी हालत खराब हो जाती थी। आज भी वह मोड है। बाद मे जब मै बडा हुआ तो मैने यह महसूस किया कि बहुत दूर तक सीधी सडक मे यह अचानक सा मोड था। तेज गति से सीधी राह पर रात के समय गाडी चला रहा चालक इस मोड की आशा नही करता था। यदि सामने से दूसरी गाडी आ जाये तो फिर तो रौशनी की चकाचौन्ध मे दुर्घटना होना निश्चित था। शायद इसी कारण ऐसी घटनाए होती रही हो। बाद मे मोड पर एक मन्दिर बना दिया गया। इससे लोगो को दूर से मोड का अहसास होने लगा और दुर्घटना मे कमी आ गयी। फिर धीरे-धीरे लोग यह सब भूल गये। आज वहाँ लाइटो से सजी होर्डिंग लगी है। ढाबा है, पेट्रोल पम्प है।
जब आप मैनपुर से रात को गरियाबन्द की ओर आयेंगे आपको एक नाला मिलेगा। जैसे ही आप ऊपर चढने लगेंगे अचानक ही बाये हाथ की ओर कुछ सफेद सा नजर आयेगा। घने जंगल मे इस तरह का दृश्य सिहरन पैदा कर देता है। ट्रक वाले बहुत परेशान रहते है। वे कहते है कि रात को नाले के चढाव पर सफेद साडी पहने एक महिला दिखती है। उनको कहना सही ही है खासकर जब वे नशे मे धुत होते है। घना जंगल और चढाव के कारण गाडी की धीमी गति माहौल को सचमुच डरावना बना देती है। दिन मे आप जायेंगे तो आपको चूने मे पुती एक चट्टान दिखायी पडेगी जिसे किसी कलाकार ने दशको पहले महिला की आकृति मे तराश दिया है। ऐसे सुन्दर ढंग से तराशा है कि यह चट्टान जैसी ही लगती है दिन मे। रात मे गाडी की रोशनी मे उल्टा-पुल्टा हो जाता है।
मै सालो तक इस मार्ग से गुजरते समय इस स्थान मे रुकता रहा। पिछले साल अचानक ही मैने इस चट्टान को नीले रंग से पुता पाया। फिर अगली बार उसे लाल साडी मे लिपटा पाया। फिर बिन्दी लग गयी। उसे और तराश दिया गया। मै समझ गया कि दशको के भय को “एनकैश” करने का समय आ गया है। जरुर इसे किसी देवी का नाम दिया जाने वाला है और मन्दिर बनाने की तैयारी है। अब मेरा शक यकीन मे बदलता जा रहा है। मुझे इस बात का सदा दुख रहेगा कि एक अंजाने कलाकार की कृति को हमने खो दिया।
मेरे बडे भाई साहब ने भी पिछले साल भूतो से मिलने की कोशिश की। वे एक साल के कोर्स के लिये आई.आई.टी., खडगपुर गये। होस्टल मे उन्हे बताया गया कि पास मे अंग्रेजो के जमाने की एक जेल है जहाँ यातना दिये जाने के कारण बहुत से बन्दियो ने जान दे दी और भूत अभी भी भटकते है वहाँ पर। पिछली बरसात मे उन्होने रात मे उस स्थान पर चलने की मंशा प्रकट की तो कोई तैयार नही हुआ। फिर हिम्मत करके चार लोग जुटे। वे स्थान पर पहुँचे तो बरसात होने लगी। उन्होने जेल भवन के अन्दर शरण ली। सारी परिस्थितियाँ अनुकूल थी पर फिर भी वे खाली हाथ वापस लौट आये। पर इस घटना से अफवाहो का प्रसार थमा नही। वहाँ अभी भी ऐसी बाते फैली हुयी है।
भूतो को तो हमने खूब खोजा पर इस दुनिया मे तो वे नही मिले। हमे यह पता चल गया है कि भूत आखिर रहते कहाँ है? और वह जगह है लोगो का मन। इस जगह से भूत का अस्तित्व मिटाना कठिन है पर असम्भव नही। चलिये इस पुण्य कार्य के लिये हम संकल्प ले।(क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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हमारे बागीचे मे जासौन पर इस बार जमकर फूल लगे। सडक से आते-जाते लोगो की नजर इस पर टिक जाती है। यह फूल देवी को चढाया जाता है इसलिये बहुत से लोग सुबह-सुबह फूल माँगने आ जाते है। कुछ बिना पूछे ही तोड लेते है। पिछले कुछ हफ्तो से एक महिला नियमित रुप से फूल लेने आ रही है। वह अनुमति लेकर फूल ले जाती है। कुछ दिनो पूर्व हमारे यहाँ एक मेहमान आये। वे कानूनविद है। अलसुबह वे जब बागीचे मे घूम रहे थे तो उस महिला का आगमन हुआ और रोज की तरह उसने फूल तोडने की अनुमति माँगी। मेहमान ध्यान से उसे देखते रहे और फिर जैसे ही उसने फूल तोडा अचानक ही वे चिल्लाने लगे। बुरा-भला कहने लगे। जब तक हम पहुँचते वह महिला बिना फूल तोडे जा चुकी थी। मेहमान ने चिल्लाकर कहा कि मैने घर को अनिष्ट से बचा लिया। उनका कहना था कि वह महिला केवल एक फूल लेने आयी थी। जबकि बहुत से फूल चढाये जाते है। एक फूल ले जाना मतलब घर के किसी एक सदस्य पर जादू। वे बोलते चले गये। उन्होने पूछा कि कब से यह सब चल रहा है? शुरु मे हमे चिंता हुयी पर कुछ ही देर मे जब दिमाग दौडने लगा तो हमने नाश्ते मे उन्हे घेरने का मन बनाया। वैसे ही शहर मे सर्दी-खाँसी जैसी बीमारी लगी ही रहती है। कही वे किसी को बीमार देखकर हमारे मन मे उस महिला के जादू के असर करने का यकीन दिलाने की कोशिश न करे इसलिये उन्हे घेरना जरुरी था।
काफी देर की चर्चा के बाद उन्होने बताया कि किसी चैनल पर उन्होने इस पर एक विशेष कार्यक्रम देखा था। उनके साथ ऐसा कुछ नही हुआ था। बस चैनल का असर था। हमने उस महिला को बुलाया। उससे क्षमा माँगी। उसने बताया कि सभी को फूल चाहिये इसलिये उसने एक फूल तोडना ही उचित समझा। और कोई कारण नही था। पता नही मेहमान इस बात को समझ पाये या नही पर हमने इसे साधारण बात मानते हुये अनदेखा कर दिया। आप यकीन मानिये यदि हम कही भी कमजोर दिखायी पडते तो वे तर्को से हमे समझा ही डालते और फिर हमारे मन मे छिपी सुनी-सुनायी बाते सामने आने लगती और अपनी गल्तियो के लिये हम उस महिला को दोषी मानने लगते। कहा जाता है न कि शिक्षा से अन्ध-विश्वास मिटता है। यह बात मुझे सही नही लगती। कुछ हद तक हटता हो पर मैने उच्च शिक्षा प्राप्त अन्ध-विश्वासियो को देखा है और उनके तर्क भी सुने है।
इसमे कोई दो राय नही कि पिछले कुछ वर्षो से टीवी चैनल चमत्कारो, अन्ध-विश्वासो और भूतो के साथ हो गये है। आम लोग त्रस्त भी दिखते है मस्त भी। इसके विरोध मे काफी कुछ लिखा जा रहा है पर चैनल वालो के कानो मे जूँ तक नही रेंग रही है। मेरे पाठक अक्सर लिखते है कि जब अन्ध-विश्वास फैलाने वालो पर अंकुश लगाने के लिये लिखित कानून है तो क्यो नही इन चैनलो पर इसका प्रयोग होता? उनकी बाते एकदम सही है पर बिल्ली के गले मे घंटी बाँधेगा कौन? मै तो पाठको को यही कहता हूँ कि आत्म सन्यम जरुरी है। किसी को मधुमेह हो जाये और डाक्टर मीठा खाने की अनुमति न दे तो कैसे सभी चौकस होकर उससे परहेज करने लगते है। शहर मे मिठाई की दुकान बन्द करवाने की माँग तो वे नही करते है। बस उस ओर का रुख नही करते है। वैसे ही रिमोट आपके पास है। यदि आपको लगता है कि यह सब परिवार के लिये अच्छा नही है तो चैनल बदल दीजिये। हाँ यदि देखने का मन ही है किसी का तो आप कैसी भी पाबन्दी लगाइये प्यासा कुँए को खोज ही लेगा।
भूतो के विषय मे पत्र-पत्रिकाओ मे लगातार छपता रहा है। हम लोग बचपन मे कादम्बनी मे ब्रिटेन के भूतो के बारे मे विचित्र जानकारियाँ पढकर रोमाँचित होते थे। ये जानकारियाँ बाक्स मे होती थी और बडे ही रोचक ढंग से दी जाती थी। उस समय इंटरनेट तो था नही जो जानकारी की प्रमाणिकता जान पाते। वैसे आज इंटरनेट है फिर भी हम सब कुछ नही जान पाते है। जहाँ आधुनिक विज्ञान भूतो से जुडी मान्यताओ को अन्ध-विश्वास मानता है विशेषकर भारतीय विज्ञानी अक्सर इसे कोरी-कल्पना बताते है वही प्राइम टाइम पर डिस्कवरी जैसे विज्ञान चैनल मे भूतो के अस्तित्व को सही ठहराने वाले कार्यक्रम देखकर हम दुविधा मे फँस जाते है। हमारा यह हाल है तो ग्रामीण अंचलो के लोग किस हद तक भ्रमित होते होंगे, इसका अन्दाज लगाया जा सकता है। क्या डिस्कवरी जैसे चैनल भारतीय जनमानस को यह बताने का प्रयास करते है कि देशी भूत-भूत नही और विदेशी भूत सचमुच के भूत है? यह आश्चर्य और दुख का विषय है कि बहुत से घरो मे ऐसे कार्यक्रमो को शैक्षणिक कार्यक्रम मानकर पालक अपने बच्चो को इसे देखने की छूट दे देते है।
मैने भूत से मिलने की बहुत कोशिश की। हर बार नयी जानकारी मिली। पढाई के दौरान जब मै अम्बिकापुर मे था तो हमारे हास्टल के पीछे अमरुद का बागीचा था। खबर थी कि इसमे रात को भूतो का वास रहता है। दिन मे तो हम लोग वहाँ बागवानी सीखते थे और आँखे चुराकर आस-पास देख भी लेते थे। इस भूत की बात आस-पास के गाँव वालो को भी थी। रात को हम जब सो जाते तो पेशाब के लिये उठने मे भी जी घबराता था। भूत का खौफ इतना था कि बागीचे मे रात को पहरा देने वाले चौकीदार भी हमारे हास्टल मे सोये रहते थे। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद जब जाते-जाते हमने भूत के दर्शन कराने की जिद चौकीदारो से की तो वे तैयार नही हुये। एक चौकीदार ने बडी मुश्किल से राज खोला कि पहले इस बागीचे मे बहुत चोरी होती थी। हम लोग सो नही पाते थे। रात मे बागीचे मे भालुओ का भी डर रहता था। इसलिये हम लोगो ने यह अफवाह फैलायी। यह बहुत कारगर सिद्ध हुयी और अब हम लोग मजे से सो पाते है।
बचपन मे अक्सर रायपुर से भिलाई के बीच की यात्रा होती थी। पिताजी के पास लेम्ब्रेटा स्कूटर थी। सामने मै खडा हो जाता था, बीच मे माता-पिता बैठते और सबसे आखिर मे बडे भाई को स्थान मिलता था। भिलाई से लौटते वक्त रात हो जाती थी। रास्ते मे चरोदा के पास एक मोड पडता था। वह अभिशप्त बताया जाता था। रात मे कभी सफेद साडी पहने कोई महिला लिफ्ट माँगती थी तो कभी किसी ड्रायवर को रास्ते के बीचो-बीच दीवार खडी दिखती थी। अखबार भी इन कथनो को प्रमुखता से छापते थे। वहाँ अक्सर दुर्घटना होती थी। ट्रेफिक आज जैसा नही था। उस मोड पर मेरी हालत खराब हो जाती थी। आज भी वह मोड है। बाद मे जब मै बडा हुआ तो मैने यह महसूस किया कि बहुत दूर तक सीधी सडक मे यह अचानक सा मोड था। तेज गति से सीधी राह पर रात के समय गाडी चला रहा चालक इस मोड की आशा नही करता था। यदि सामने से दूसरी गाडी आ जाये तो फिर तो रौशनी की चकाचौन्ध मे दुर्घटना होना निश्चित था। शायद इसी कारण ऐसी घटनाए होती रही हो। बाद मे मोड पर एक मन्दिर बना दिया गया। इससे लोगो को दूर से मोड का अहसास होने लगा और दुर्घटना मे कमी आ गयी। फिर धीरे-धीरे लोग यह सब भूल गये। आज वहाँ लाइटो से सजी होर्डिंग लगी है। ढाबा है, पेट्रोल पम्प है।
जब आप मैनपुर से रात को गरियाबन्द की ओर आयेंगे आपको एक नाला मिलेगा। जैसे ही आप ऊपर चढने लगेंगे अचानक ही बाये हाथ की ओर कुछ सफेद सा नजर आयेगा। घने जंगल मे इस तरह का दृश्य सिहरन पैदा कर देता है। ट्रक वाले बहुत परेशान रहते है। वे कहते है कि रात को नाले के चढाव पर सफेद साडी पहने एक महिला दिखती है। उनको कहना सही ही है खासकर जब वे नशे मे धुत होते है। घना जंगल और चढाव के कारण गाडी की धीमी गति माहौल को सचमुच डरावना बना देती है। दिन मे आप जायेंगे तो आपको चूने मे पुती एक चट्टान दिखायी पडेगी जिसे किसी कलाकार ने दशको पहले महिला की आकृति मे तराश दिया है। ऐसे सुन्दर ढंग से तराशा है कि यह चट्टान जैसी ही लगती है दिन मे। रात मे गाडी की रोशनी मे उल्टा-पुल्टा हो जाता है।
मै सालो तक इस मार्ग से गुजरते समय इस स्थान मे रुकता रहा। पिछले साल अचानक ही मैने इस चट्टान को नीले रंग से पुता पाया। फिर अगली बार उसे लाल साडी मे लिपटा पाया। फिर बिन्दी लग गयी। उसे और तराश दिया गया। मै समझ गया कि दशको के भय को “एनकैश” करने का समय आ गया है। जरुर इसे किसी देवी का नाम दिया जाने वाला है और मन्दिर बनाने की तैयारी है। अब मेरा शक यकीन मे बदलता जा रहा है। मुझे इस बात का सदा दुख रहेगा कि एक अंजाने कलाकार की कृति को हमने खो दिया।
मेरे बडे भाई साहब ने भी पिछले साल भूतो से मिलने की कोशिश की। वे एक साल के कोर्स के लिये आई.आई.टी., खडगपुर गये। होस्टल मे उन्हे बताया गया कि पास मे अंग्रेजो के जमाने की एक जेल है जहाँ यातना दिये जाने के कारण बहुत से बन्दियो ने जान दे दी और भूत अभी भी भटकते है वहाँ पर। पिछली बरसात मे उन्होने रात मे उस स्थान पर चलने की मंशा प्रकट की तो कोई तैयार नही हुआ। फिर हिम्मत करके चार लोग जुटे। वे स्थान पर पहुँचे तो बरसात होने लगी। उन्होने जेल भवन के अन्दर शरण ली। सारी परिस्थितियाँ अनुकूल थी पर फिर भी वे खाली हाथ वापस लौट आये। पर इस घटना से अफवाहो का प्रसार थमा नही। वहाँ अभी भी ऐसी बाते फैली हुयी है।
भूतो को तो हमने खूब खोजा पर इस दुनिया मे तो वे नही मिले। हमे यह पता चल गया है कि भूत आखिर रहते कहाँ है? और वह जगह है लोगो का मन। इस जगह से भूत का अस्तित्व मिटाना कठिन है पर असम्भव नही। चलिये इस पुण्य कार्य के लिये हम संकल्प ले।(क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Updated Information and Links on March 15, 2012
Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com
Aglaia elaeagoidea (JUSS.) BENTH. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (8 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Bihar; Not mentioned in ancient literature
related to different systems of medicine in India and other countries;
Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Aglaia lawii (WIGHT.) SALDANHA in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (48 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Orissa; Not mentioned in ancient literature
related to different systems of medicine in India and other countries;
Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-8; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Aglaia minutiflora BEDD.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (5 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Bihar; Mentioned in ancient literature related to different
systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10)
among the Young Healers-4; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Ailanthus excelsa ROXB.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (6 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Bihar; Not mentioned in ancient literature related to different
systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation (1-10)
among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Ailanthus triphysa (DENNST.) ALSTON in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (48 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Chhattisgarh; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Alangium salvifolium (L.F.) WANG. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (29 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Orissa; Not mentioned in ancient literature
related to different systems of medicine in India and other countries;
Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Albizia amara (ROXB.) BOIVIN
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (35 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Bihar; Not mentioned in ancient literature related to different
systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Albizia chinensis (OSBECK) MERR. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (75 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Bihar; Not mentioned in ancient literature
related to different systems of medicine in India and other countries;
Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Albizia lebbeck (L.) BENTH.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (27 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Orissa; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Albizia odoratissima (L.F.)BENTH. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (60 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Bihar; Not mentioned in ancient literature
related to different systems of medicine in India and other countries;
Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-4; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Albizia procera (ROXB.) BENTH. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (50Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Chhattisgarh; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-8; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Aleurites moluccana (L.) WILLD. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (62 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Bihar; Not mentioned in ancient literature
related to different systems of medicine in India and other countries;
Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; Farash and Jamun
Trees growing under stress are preferred for collection of leaves; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Allamanda cathartica L.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (17 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Rajasthan; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Allmania nodiflora (L.) R.BR. EX WIGHT in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (28 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Orissa; Not mentioned in ancient literature
related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity
of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Comments
Ambikapur ki baat se yaad aaya. Pitaji ki jab wahan posting thi to is tarah ke afwaye sun ne ko bahut milti thi..main chota tha, isiliye bada dar ke raheta tha..bade hone par laga ki aisa kuch bhi nahi tha, par batein sun ne main abhi bhi bada maja aata hai.