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कहीं वन्य पशुओं के अवैध व्यापार की राजधानी तो नही बन रहा है रायपुर?

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कहीं वन्य पशुओं के अवैध व्यापार की राजधानी तो नही बन रहा है रायपुर? - पंकज अवधिया पिछले दिनों सिरपुर मेले में जब मैंने कमर दर्द की शर्तिया दवा के रूप खुलेआम बिक रहे साल खपरी के शल्कों को देखा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा| साल खपरी यानि पेंगोलिन जिसे आम बोलचाल की भाषा में चीन्टीखोर भी कहा जाता है| छत्तीसगढ़ के वनों में एक ज़माने में ये बड़ी संख्या में थे पर लगातार शिकार होने से इनकी संख्या कम होती जा रही है| इससे जुडा अंध-विश्वास इसकी जान ले रहा है| प्रकृति ने इस जीव को जंगल में दीमकों की आबादी पर नियन्त्रण रखने के लिए बनाया है| इनकी कम संख्या अर्थात दीमकों का अधिक प्रकोप और अधिक दीमक माने जंगलों का सर्वनाश| वैज्ञानिक साहित्य बताते है कि एक पेंगोलिन अपने जीवन में जंगल में प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने में जो भूमिका निभाता है वह लाखों रूपये खर्च करके भी मनुष्य नही निभा सकता है| राज्य में शिकारी पिन्गोलिन की कीमत तीन से चार हजार रूपये लगाते हैं| शिकार के तुरंत बाद इसके मांस को खा लिया जाता है और शल्कों को बेच दिया जाता है| न केवल छत्तीसगढ़ बल्क...

बंदरों के अधखाये फल की तलाश में खतरों भरी जंगल यात्रा

वर्ष २०११ की मेरी रोमांचक जंगल यात्राएं-१ - पंकज अवधिया बंदरों के अधखाये फल की तलाश में खतरों भरी जंगल यात्रा "आप यदि बंदरों द्वारा आधे खाए गए ये विशेष फल कहीं से ले आयें तो रोगी की मदद हो सकती है|" कई तरह के पुराने रोगों के कारण मृतप्राय रोगी की चिकित्सा कर रहे पारम्परिक चिकित्सक ने उसके परिजनों से यह बात कही| यह एक कठिन कार्य था| इसीलिये पारम्परिक चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर दिए और परिजनों से ही फल की व्यवस्था करने को कहा| पिछले दिनों मैंने मैदानी भाग के जंगल में घूमने का मन बनाया और रास्ते में मिलने वाले पारम्परिक चिकित्सकों से मिलने की भी योजना बनाई| सबसे पहले जिन पारम्परिक चिकित्सक से मुलाक़ात हुयी वहीं इस रोगी और उसके परिजनों से मुलाक़ात हो गयी| बिना विलम्ब मैंने कहा कि मैं जंगल जा रहा हूँ| आप शाम तक प्रतीक्षा करें| यदि मुझे ऐसे फल मिले तो मैं अवश्य एकत्र कर लूंगा| उस दिन की जंगल यात्रा का मुख्य उद्देश्य तेजी से खत्म हो रहे गिन्धोल वृक्षों की जंगल में उपस्थिति का पता लगाना था| पर अब उद्देश्य बदल गया था| हम आ...

बिना फटी बारूदी सुरंगों का पता लगा सकती है छग की वनस्पतियाँ

बिना फटी बारूदी सुरंगों का पता लगा सकती है छग की वनस्पतियाँ * सामरिक महत्त्व की वनस्पतियों पर वैज्ञानिक रपट *भारतीय सेना के लिए मददगार सिद्ध हो सकती है दुनिया भर में प्रतिवर्ष हजारों जानें बारूदी सुरंगों के कारण जाती है| एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में एक अरब से अधिक बिना फटी बारूदी सुरंगे मौजूद हैं| इन बिना फटी बारूदी सुरंगों का पता लगाने में छत्तीसगढ़ की औषधीय वनस्पतियाँ अहम भूमिका निभा सकती है| राज्य में औषधीय वनस्पतियों से सम्बंधित पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहे वनौषधी विशेषज्ञ पंकज अवधिया ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए नवभारत के माध्यम से बताया कि डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने थेल क्रेस नामक वनस्पति की एक ऐसी किस्म विकसित की है जिसे प्रभावित स्थान पर उगाने से बारूदी सुरंग वाले स्थान की वनस्पति की पत्तियों का रंग हरे के स्थान पर लाल हो जाता है| ये वनस्पति मिट्टी में होने वाले परिवर्तन के लिए अति संवेदी होती हैं| छत्तीसगढ़ में अब तक पन्द्रह से अधिक ऐसी वनस्पतियों की पहचान की जा चुकी है जो थेल क्रेस की तरह ही अतिसंवेदी है| वन सिलयारी, गुडरिया, गुड्रू आदि स्था...

जीवनरक्षक जंगली मशरूम के अंतरराष्ट्रीय लुटेरे, सेन्हा फुटु और हानिकारक कीटों की बातें

सोमवार की जंगल यात्रा-३ जीवनरक्षक जंगली मशरूम के अंतरराष्ट्रीय लुटेरे, सेन्हा फुटु और हानिकारक कीटों की बातें - पंकज अवधिया घने जंगल में एक स्थान पर जब पारंपरिक चिकित्सक मुझे अकेला छोड़कर दूर पहाडी पर स्थिति मंदिर चले गए तो मैंने समय का सदुपयोग करने की ठानी| ड्रायवर भी पारंपरिक चिकित्सकों के साथ हो लिया था| गाडी के पास मैं था और आस-पास घना जंगल| कुछ देर तो खामोशी बड़ी पसंद आयी पर फिर यह खामोशी भी शोर मचाने लगी| जंगल में अकेले रहना बड़ा ही रोचक और कभी-कभी भयावह अनुभव होता है| आप बिना किसी सुरक्षा के खड़े होते हैं| किसी भी पल कुछ भी हो सकता है- बस यही भावना शरीर की सुरक्षा ग्रंथी को सक्रीय कर देती है और आप हाई अलर्ट मोड़ में आ जाते हैं| मैंने गाडी में बैठे रहने की बजाय आस-पास घूमने का मन बनाया| कुछ अजीब से कीड़ों की तस्वीर खीची| मुझे पनबिच्छू की चिंता थी| पत्तियों के पीछे छुपाकर बैठा यह कीट मजे से दुश्मनो से बचा रहता है| जैसे ही गलती से इसके शरीर पर दुश्मन का कोई भाग लगता है असहनीय दर्द से दुश्मन चीख पड़ता है और दूर हो जाता...

भुईनीम की कडवाहट, बारूदी सुरंग से घायल भालू और गंदे होते झरने

सोमवार की जंगल यात्रा-२ भुईनीम की कडवाहट, बारूदी सुरंग से घायल भालू और गंदे होते झरने - पंकज अवधिया इस सोमवार को यदि कड़वा सोमवार कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योकि सारा दिन कडवो के राजा अर्थात भुईंनीम से मुलाक़ात होती रही| पहले जंगल से पैदल गुजरते वक्त कुछ छोटे पौधे दिख गए| साथ चल रहे पारंपरिक चिकित्सकों से झट से कुछ पत्तियां तोडी और चबाने लगे | उनकी देखा देखी मैंने भी यही किया| कड़वाहट से मुंह भर आया| ऐसी कड़वाहट कि मन परेशान हो उठा| पर यह कडुवाहट हमारा भला ही करने वाली थी| भुईनीम का वर्षा ऋतु में सेवन साल भर रोगों विशेषकर यकृत संबंधी रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है| मलेरिया से बचाव और इसकी चिकित्सा दोनों में ही इसका प्रयोग पीढीयों से हो रहा है| हमारे क्षेत्र में यदि आप बरसात में पारंपरिक चिकित्सकों से मिलने चले जाएँ तो वे आपका स्वागत इसकी दो-तीन पत्तियों से करेंगे ही| सोमवार को भी यही हुआ| मैं दसों पारंपरिक चिकित्सकों से मिला और हर बार मेरा स्वागत भुईनीम से हुआ| इन पत्तियों को लेने से इनकार करना पारंपरिक चिकित्सकों के अपम...

डोंगर माफिया, मिट्टी खाते बन्दर और दिव्य औषधीयों की उपेक्षा

सोमवार की जंगल यात्रा-१ डोंगर माफिया, मिट्टी खाते बन्दर और दिव्य औषधीयों की उपेक्षा -पंकज अवधिया हमारा इन्तजार बेकार नहीं गया| कुछ ही देर में बंदरो की एक बड़ी सी टोली उसी स्थान पर दिखाई पडी| सारे बन्दर आस-पास के खेतों में बैठ गए जबकि उनका मुखिया उसी स्थान की ओर बढ़ा जहां नाना प्रकार के पंछी मिट्टी खाने आते हैं| इंसानों की तरह ही मिट्टी खाने का शौक दूसरे जीवो में भी होता है| अंगरेजी में इसे जिओफैगी कहा जाता है| इस पर बहुत विस्तार से शोध नहीं हुए हैं| कहा जाता है कि बहुत अधिक अम्लीय फल खाने के बाद पंछी मिट्टी खाते हैं| बंदरों का मुखिया आराम से कभी हाथो से उठाकार तो कभी नीचे जमीन से मुंह लगाकर मिट्टी खाता रहा| यह एक अनोखा दृश्य था| बंदर उसी स्थान की मिट्टी क्यों खा रहा था, यह प्रश्न हमारे सामने था| हम तीन लोग यानि मैं, मेरा ड्रायवर और एक पारंपरिक चिकित्सक बड़ी निकटता से यह सब देखते रहे पर बन्दर बिनाडर मजे से मिट्टी खाता रहा| मैंने तस्वीरें ली और विडीयो भी बनाया| उस दिन पहली बार लगा कि जंगल जाने का फैसला सही था| महंगे पेट्रोल से लेकर ड्रायवर के मेहनताने और फिर जंगल में पारं...

उन बाघों के बहाने जंगल की बातें जो १४११ की सूची में नहीं हैं, एक नयी लेखमाला

उन बाघों के बहाने जंगल की बातें जो १४११ की सूची में नहीं हैं| भाग-१ -पंकज अवधिया मातारानी के जंगल में बसने वाला बाघ "क्या वाकई यहाँ बाघ हैं?" मैंने अपने साथ चल रहे वन सुरक्षा समिति के सदस्य श्री शंकर से पूछा| "हां, बिल्कुल है| आप रात तक रुके आपको उसकी दहाड़ दूर से सुनायी देगी| हो सकता है कि आपको वह दिखाई भी दे दे|" शंकर की बात में आत्म-विश्वास साफ़ झलकता था| मुझे याद आता है कि इसी जंगल में भटकते हुए कुछ महीने पहले जब साथ चल रहे पारंपरिक चिकित्सक एक स्थान पर ठिठक गए तो मैंने कारण पूछा| उन्होंने कहा कि आगे वह गुफा है जिसका प्रयोग बाघ अक्सर करता है| गुफा से सड़े-गले मांस की बदबू आ रही थी| पारंपरिक चिकित्सको ने जोखिम उठाना सही नहीं समझा| हम उलटे पैर वापस आ गये| वैसे भी हम तो जडी-बूटियों के लिए वहां गए थे| जंगली जानवरों से दूरी रखना ही ठीक है| वापस लौटने के बाद मैंने जब अपने वन विभाग में काम कर रहे मित्रों से इस बारे में पूछा तो वे जोर से हंस पड़े और कहा कि यहाँ कहाँ बाघ है? ग्रामीणों ने आपको "बना...

रोज अस्पताल पहुंच रहे हजारों बच्चों को बचाने का कोई उपाय है आपके पास मनमोहन और रमन जी?

रोज अस्पताल पहुंच रहे हजारों बच्चों को बचाने का कोई उपाय है आपके पास मनमोहन और रमन जी? - पंकज अवधिया कुछ दिनों पहले ही छत्तीसगढ़ के रायगढ़ और राजस्थान के अलवर जिले में दस से ज्यादा बच्चो ने फिर रतनजोत (जैट्रोफा) के बीज खा लिए| उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया| जब से रतनजोत का व्यापक रोपण आरम्भ हुआ है तब से हजारों बच्चो के अस्पताल पहुंचने का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है | अब तक पांच बच्चे रतनजोत खाकर मारे जा चुके हैं| हाल ही में विनराक इंटरनेशनल द्वारा जैव-ईधन पर एक बड़ा आयोजन पन्च सितारा होटल में किया गया जिसमे रतनजोत के गुणों का बखान किया गया| मजबूरीवश इस आयोजन में जा रहे प्रतिभागियों ने मुझसे पूछा कि आपकी ओर से आयोजकों को क्या कहना है? मैंने कहा कि ऐसे आयोजन के उदघाटन सत्र में कुछ पलों का मौन रखकर उन हजारो प्रभावित बच्चो को याद कर लिया जाये तो रतनजोत का अभिशाप झेल रहे हैं| पर आयोजकों ने इस राय को अनसुना कर दिया| वर्ष २००४ में ही मैंने रायपुर से छपने वाले दैनिक नवभारत के ...