बिना फटी बारूदी सुरंगों का पता लगा सकती है छग की वनस्पतियाँ

बिना फटी बारूदी सुरंगों का पता लगा सकती है छग की वनस्पतियाँ

* सामरिक महत्त्व की वनस्पतियों पर वैज्ञानिक रपट
*भारतीय सेना के लिए मददगार सिद्ध हो सकती है

दुनिया भर में प्रतिवर्ष हजारों जानें बारूदी सुरंगों के कारण जाती है| एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में एक अरब से अधिक बिना फटी बारूदी सुरंगे मौजूद हैं| इन बिना फटी बारूदी सुरंगों का पता लगाने में छत्तीसगढ़ की औषधीय वनस्पतियाँ अहम भूमिका निभा सकती है|

राज्य में औषधीय वनस्पतियों से सम्बंधित पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहे वनौषधी विशेषज्ञ पंकज अवधिया ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए नवभारत के माध्यम से बताया कि डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने थेल क्रेस नामक वनस्पति की एक ऐसी किस्म विकसित की है जिसे प्रभावित स्थान पर उगाने से बारूदी सुरंग वाले स्थान की वनस्पति की पत्तियों का रंग हरे के स्थान पर लाल हो जाता है| ये वनस्पति मिट्टी में होने वाले परिवर्तन के लिए अति संवेदी होती हैं| छत्तीसगढ़ में अब तक पन्द्रह से अधिक ऐसी वनस्पतियों की पहचान की जा चुकी है जो थेल क्रेस की तरह ही अतिसंवेदी है| वन सिलयारी, गुडरिया, गुड्रू आदि स्थानीय नामों से पहचानी जाने वाली वनस्पतियाँ "इंडीकेटर प्लांट" के रूप में आधुनिक सन्दर्भ ग्रंथों में वर्णित हैं| पंकज अवधिया का मानना है कि बिना फटी बारूदी सुरंगों की पहचान में थेल क्रेस की तरह स्थानीय वनस्पतियाँ भी अहम स्थान निभा सकती हैं| इस पर राज्य में शोध किये जाने चाहिए| उन्होंने अपनी वैज्ञानिक रपट "फील्ड गाइड टू वेनेमस क्रीचर्स इन इंडियन फारेस्ट अफेक्टिंग मिलिट्री आपरेशंस विद स्पेशल एम्फेसिस आन छत्तीसगढ़" में सामरिक महत्व की वनस्पतियों के विषय में विस्तार से चर्चा की है| यदि भविष्य में कभी सेना छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में अपनी कार्यवाही आरम्भ करे तो यह रपट उसके लिए सहायक सिद्ध हो सकती हैं|

छत्तीसगढ़ के जंगलों में पाए जाने वाले जहरीली पिचकारी छोड़ने वाले ब्लिस्टर बीटल्स से लेकर पनबिच्छू और अंधियारी माछी तक के विषय में इस रपट में जानकारी है| अंधियारी माछी उन लोगों पर अधिक आक्रमण करती है जिनके रक्त में शर्करा की अधिक मात्रा होती है| बाघ और तेंदुए जैसे बड़े जानवर भी इससे बचने के लिए दिन में अंधेरे स्थानों में रहना पसंद करते हैं| तेंदू जैसी सर्वसुलभ वनस्पतियों की सहायता से अंधियारी माछी के विष को समाप्त किया जा सकता है|

इस रपट में उन्होंने मलेरिया से निपटने के लिए उपयोगी वनस्पतियों के विषय में भी विस्तार से लिखा है| आधुनिक विज्ञान भूईंनीम को मलेरिया से बचाव और उपचार के लिए अनुमोदित करता है पर राज्य के पारंपरिक चिकित्सक ऐसी वनस्पतियों की जानकारी रखते हैं जो कई गुना अधिक प्रभावी होती हैं| वे मजाकिया लहेजे में इन वनस्पतियों को "भूईंनीम के ददा" कहते हैं| भिरहा जैसी बहुत से औषधीय वृक्ष हैं जिनका प्रयोग पीढीयों से मच्छरों से निपटने के लिए ग्रामीण और वनीय छत्तीसगढ़ में हो रहा है| इन पारंपरिक नुस्खों में सुधार करके उपयोगी उत्पाद तैयार किये जा सकते हैं जिन्हें सेना घने जंगलो में कैम्पिंग के दौरान इस्तमाल कर सकती है|

यह रपट गोपनीय रखी गयी है और इसे अभी तक प्रकाशित नहीं किया गया है| पंकज अवधिया का मानना है कि लम्बे समय से युद्ध जैसी परिस्थितियाँ झेल रहे छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के लिए सामरिक महत्त्व की वनस्पतियाँ और उनसे जुडा पारंपरिक ज्ञान उपयोगी साबित हो सकता है|

Comments

बहुत उपयोगी , नयी जानकारिया ...
Gyan Darpan said…
आधुनिकता की चमक दमक में हम प्रकृति प्रदत ज्ञान भूलते जा रहे है |

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