बंदरों के अधखाये फल की तलाश में खतरों भरी जंगल यात्रा
वर्ष २०११ की मेरी रोमांचक जंगल यात्राएं-१
- पंकज अवधिया
बंदरों के अधखाये फल की तलाश में खतरों भरी जंगल यात्रा
"आप यदि बंदरों द्वारा आधे खाए गए ये विशेष फल कहीं से ले आयें तो रोगी की मदद हो सकती है|" कई तरह के पुराने रोगों के कारण मृतप्राय रोगी की चिकित्सा कर रहे पारम्परिक चिकित्सक ने उसके परिजनों से यह बात कही| यह एक कठिन कार्य था| इसीलिये पारम्परिक चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर दिए और परिजनों से ही फल की व्यवस्था करने को कहा|
पिछले दिनों मैंने मैदानी भाग के जंगल में घूमने का मन बनाया और रास्ते में मिलने वाले पारम्परिक चिकित्सकों से मिलने की भी योजना बनाई| सबसे पहले जिन पारम्परिक चिकित्सक से मुलाक़ात हुयी वहीं इस रोगी और उसके परिजनों से मुलाक़ात हो गयी| बिना विलम्ब मैंने कहा कि मैं जंगल जा रहा हूँ| आप शाम तक प्रतीक्षा करें| यदि मुझे ऐसे फल मिले तो मैं अवश्य एकत्र कर लूंगा| उस दिन की जंगल यात्रा का मुख्य उद्देश्य तेजी से खत्म हो रहे गिन्धोल वृक्षों की जंगल में उपस्थिति का पता लगाना था| पर अब उद्देश्य बदल गया था| हम आगे बढे| साथ में कुछ पारम्परिक चिकित्सक थे|
अपनी गाडी ड्राइवर के सुपुर्द करके हम पैदल ही जंगल में घुस गए| दिन होने के बावजूद मैंने अपनी जंगल टार्च रख ली ताकि यदि किसी जंगली जानवर से मुठभेड हो जाए तो इससे कुछ हद तक आत्मरक्षा की जा सके| इसे कभी आजमाया नहीं गया पर फिर भी मुझे विश्वास है कि संकट में इससे मदद ली जा सकती है| जनवरी के महीने के अंत में जंगल उजाड़ सा था| पत्तियां गिरने को बेताब थी| केवल उन्ही भागों में छोटी हरी वनस्पतियाँ थी जहां नमी थी| जिस अधखाये फलों को लाने की बात कही गयी थी वे मैनफल थे| एक समय में ये बड़ी संख्या में जंगल में मिल जाते थे पर अब लकड़ी माफिया के चलते बाहरी जंगलों में इन्हें खोज पाना टेढ़ी खीर है| घने जंगल में जाना यानि ज्यादा खतरा उठाना|
चूंकि हमें बंदरों द्वारा खाए गए फलों की जरूरत थी इसलिए साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सकों ने सुझाया कि बंदरचुहा नामक स्थान चला जाय जहां कि पीढीयों से यह मान्यता रही है कि दिन भर जंगल के अलग-अलग समूहों के बंदर वहां पानी पीने आते हैं| भरी गर्मी में भी उस स्थान से पानी निकलता रहता है| बंदरचुहा जैसे स्थान भारतीय जंगलों में अक्सर मिल जाते हैं| साल भर नमी रहे के कारण इन स्थानों में बेशकीमती जड़ी-बूटियाँ मिल जाती है| यदि सर्प प्रेमी हैं तो नाना प्रकार के सर्प मिल जाते हैं| बंदरों पर शोध करने वालों को काफी सामग्री मिल जाती है| पर ऐसे स्थानों के अपने खतरे भी रहते हैं| बंदरों का सतत आगमन होते रहने से शिकारी जीव भी यहाँ घात लगाये बैठे रहते हैं| उन्हें पानी के साथ भोजन भी मिल जाता है| छोटी वनस्पतियाँ यहां बहुतायत में होती है इसलिए मेरा मन होता है कि मैं उखडू बैठ जाऊं और पास से विस्तार से तस्वीरे लूं| पर ऐसे स्थानों में खड़े रहना जरुरी है| थोड़ा भी झुकने से शिकारी जीवों को हम बंदर की तरह लगने लगते हैं और वे आक्रमण करने में देर नहीं लगाते हैं| कैमरे को वनस्पतियों के ज्यादा पास ले जाने पर एक खतरा साँपों के आक्रमण का है| उत्तरी छत्तीसगढ़ में एक सर्वेक्षण के दौरान मैं छोटी वनस्पतियों के बीच तस्वीरे ले रहा था कि अचानक ही एक बड़े से सांप ने कैमरे पर आक्रमण कर दिया| मैं बाल-बाल बचा| तभी पारम्परिक चिकित्सकों ने मुझे धक्का देकर हटाया| सांप मी पूँछ मेरे जूते से दब रही थी| वनस्पतियों के कारण सांप दिखाई नहीं दे रहा था|
काफी देर तक चलने के बाद हम बंदरचुहा तक पहुंच गए| इस भाग में जंगल घना था| चार लोगों का समूह होने के बाद भी डर सा लगता था| थोड़ी सी भी आवाज से बरबस ही उधर ही ध्यान खिच जाता था| हमने तेज गंध वाले डियो नहीं लगाए थे इसलिए जंगली कीटों को हममे कम दिलचस्पी थी| फिर भी लम्बी दूरी तय करने के कारण हमारे पसीने की दुर्गन्ध लोकटी कीटों को हमारे आस-पास मंडराने के लिए प्रेरित कर रही थी| कुछ आगे बढे तो जंगली मधुमक्खियों के कुछ सदस्य अनावश्यक ही मुझमें दिलचस्पी लेने लगे| हमने शायद उनके इलाके में घुसने का साहस किया| आने वाले बड़े खतरे को भांपते हुए पारम्परिक चिकित्सकों ने एक बूटी उठायी और मेरे चहरे व हाथ पर मल दिया| ऐसी गंध आयी मानो उल्टी हो जायेगी| इसने सभी कीटों की दिलचस्पी खत्म कर दी|
मैं तस्वीरे लेता रहा और फिर एक बड़ी सी चट्टान की ओट में छुपकर हम बंदरों के आने की प्रतीक्षा करते करते रहे| इस बीच हमारी नजरें मैनफल के वृक्षों को भी तलाशती रही| एक वृक्ष देख लिया गया पर अफ़सोस काफी इन्तजार के बाद भी बंदरों ने उस ओर का रुख नहीं किया| अचानक बंदरों ने अजीब आवाजें निकालनी शुरू कर दी| शिकारी जीवों को उन्होंने देख लिया था और अपने साथियों को आगाह कर रहे थे| शायद हमे भी| हम वापस लौटने का मन बनाने लगे पर हमें डर था कि कहीं शिकारी जानवर उसी दिशा में न हों| पारम्परिक चिकित्सक बंदरों के इशारों को समझने का प्रयास करते रहे और फिर बताया कि ऊपर डोंगर से कोई शिकारी जीव नीचे आ रहा है| हम विपरीत दिशा से आये थे इसलिए उसी दिशा में लौट गए| कुछ दूर जाने पर हमें डोंगर से नीचे उतरता तेंदुआ दिखाई दिया| बंदरों की चेतावनी अब फुल वाल्यूम पर थी| तेंदुए अक्सर इंसानों से दूर रहना पसंद करते हैं पर ऐसा लगता है कि उन्हें अब इंसानों से नफरत हो गयी है| शायद उनकी हरकतों से| इसलिए उनके हमले की घटनाएँ तेजी से बढ़ रही हैं| खैर, उस वक्त हमारी नजरें नही मिली और हम समय रहते निकल आये|
पारम्परिक चिकित्सकों ने एक नाले का जिक्र किया जहां बंदर और मैनफल दोनों मिल सकते हैं| हम पहले गाडी तक पहुंचे और फिर कुछ दूरी उससे ही तय की| एक स्थान पर गाडी रुकी और फिर पैदल ही जंगल में घुस गए| बहुत सारे चिरईजाम यानि जामुन के वृक्ष दिखे| इसका मतलब आस-पास कहीं जल-स्त्रोत था} फिर अर्जुन के वृक्षों ने इस बात की पुष्टि कर दी कि हम नाले के पास हैं| हमें भालुओं द्वारा खोदे गए कंदों और दीमक की बाम्बियों के निशान दिखने लगे| नम स्थानों में उगने वाली जड़ी-बूटियाँ दिखने लगी| फिर जंगली सूअर का मल दिखा और आगे चलने पर बड़े जीवों के होने के निशान| इस बार हमने हिम्मत दिखाई और चलते रहने का मन बनाया| अचानक ही सामने चल रहे व्यक्ति के पैर ठिठक गए| सामने कुत्ते नुमा कोई प्राणी था| बुरे फंसे!!!
कहीं ये सोनकुत्ता तो नहीं था| सोनकुत्ता जिससे बाघ भी घबराता है, फिर हमारी क्या बिसात| ध्यान से देखा गया तो वह देशी कुत्ता था| संभवत: गाँव से कभी जंगल पहुंचे कुत्तों की संतान| जरा भी संस्कार नहीं थे| वह पूर्वजों की तरह जंगली हो गया था| हम पत्थर फेकते रहे और वह हमारी ओर बढ़ता गया| जंगली टार्च पर पकड मजबूत की और दिमाग दौड़ने लगा कि घायल होने पर कैसे शहर तक पहुंचेंगे| पारम्परिक चिकित्सकों के चेहरे पर भी भय दिखने लगा था| वे स्थानीय भाषा में गालियाँ दे रहे थे पर शायद इस श्वान पुत्र को भाषा की समझ नही थी| मौत को सामने खड़ा देखकर हम प्रार्थना कर ही रहे थे कि अचानक ही वह हमसे दूर होने लगा| यह क्षणिक खुशी थी क्योंकि अब हमारे सामने तेंदुआ खड़ा था| हमे काटों तो खून नहीं|
हम बस खड़े रह गए| वृक्षों पर बैठे बंदरों की तेज आवाज से कुछ होश आया| तेंदुआ अब भी खड़ा था पर लगता था कि उसे हममे रूचि नहीं थी| यह खुशफहमी भी हो सकती थी| पर ऐसा नही हुआ| उसने पास की झाड़ियों में घुसना ही ठीक समझा| शायद सही तरीके से हम पर हमला करने के लिए| हम खड़े रहे| फिर नकारात्मक सोच को किनारे किया| तब लगा कि हमे बिना बताये ही शरीर संकट से निपटने के लिए तैयार था| दिमाग कई तरह की योजनायें बना रहा था| ये नकारात्मक सोच थी जिसने इन तैयारियों पर पर्दा डाल दिया था|
बहुत देर तक झाड़ियों में हलचल नहीं हुयी| फिर कुछ दूर पर एक तेज आवाज आयी| हम खड़े रहे| पारम्परिक चिकित्सकों ने एक वृक्ष पर चढ़कर स्थिति का जायजा लिया तो वे खुशी से भर गए| श्वान पुत्र अब दुनिया में नहीं था और तेंदुआ उसे अपने जबड़े में फंसाए दूर जा रहा था| मेरा मन अभिभूत हो गया| लगा कि तेंदुए को निज अतिथि बनाकर रायपुर ले जाऊँ और फिर शहर भर के मॉल दिखा दूं| इसके अलावा तो शहरों में हमारे पास कुछ नहीं है| जंगलों को उजाड़कर यही उपलब्धी तो हमने पायी है| पर सच मानिए वह तेंदुआ हमारे लिए भगवान से कम नहीं था उस समय|
हम उलटे पैर लौट आये| जंगल का वह भाग जड़ी-बूटियों से भरा था| शायद ही कोई जाता हो इसके अंदर| गाडी के पास पहुंचते ही भयग्रस्त ड्रायवर दिखा| कांच चढाकर लाइटें जलाकर बैठा था| उसने बताया कि हमारे जंगल में जाने के कुछ देर बाद तेंदुए महात्मा उसी रास्ते से गए थे यानि हमारे ठीक पीछे| फिर कब हमारे सामने से प्रकट हो गए हमें हवा की नहीं लगी| दिन में तेंदुए की इतनी सक्रियता आश्चर्य का विषय थी|
तभी एक और तेज आवाज ने हमारी चर्चा को विराम दिया| यह आवाज सुखद लगी जब हमने अपनी गाडी की छत को देखा| उस पर एक फल आकर गिरा था| हमने ध्यान ही नहीं दिया हम मैनफल के वृक्ष के ठीक नीचे खड़े थे और पके-अधपके फल साफ़ दिखाई दे रहे थे| आनन-फानन में ढेर सारे फल मिल गए| बंदरों के अलावा पक्षियों ने भी इस पर हाथ आजमाया था| हम सोच रहे थे कि पहले क्यों नहीं दिखा यह| शायद भगवान दर्शन देना चाहते हों या यह भी हो सकता ही कि मेरा ब्लॉग पढ़ रहा तेंदुआ वन्य जीवों पर सतत लेखन के लिए आभार व्यक्त करना चाहता हो कुछ इस तरह से ------ (क्रमश:)
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बंदरों के अधखाये फल की तलाश में खतरों भरी जंगल यात्रा
"आप यदि बंदरों द्वारा आधे खाए गए ये विशेष फल कहीं से ले आयें तो रोगी की मदद हो सकती है|" कई तरह के पुराने रोगों के कारण मृतप्राय रोगी की चिकित्सा कर रहे पारम्परिक चिकित्सक ने उसके परिजनों से यह बात कही| यह एक कठिन कार्य था| इसीलिये पारम्परिक चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर दिए और परिजनों से ही फल की व्यवस्था करने को कहा|
पिछले दिनों मैंने मैदानी भाग के जंगल में घूमने का मन बनाया और रास्ते में मिलने वाले पारम्परिक चिकित्सकों से मिलने की भी योजना बनाई| सबसे पहले जिन पारम्परिक चिकित्सक से मुलाक़ात हुयी वहीं इस रोगी और उसके परिजनों से मुलाक़ात हो गयी| बिना विलम्ब मैंने कहा कि मैं जंगल जा रहा हूँ| आप शाम तक प्रतीक्षा करें| यदि मुझे ऐसे फल मिले तो मैं अवश्य एकत्र कर लूंगा| उस दिन की जंगल यात्रा का मुख्य उद्देश्य तेजी से खत्म हो रहे गिन्धोल वृक्षों की जंगल में उपस्थिति का पता लगाना था| पर अब उद्देश्य बदल गया था| हम आगे बढे| साथ में कुछ पारम्परिक चिकित्सक थे|
अपनी गाडी ड्राइवर के सुपुर्द करके हम पैदल ही जंगल में घुस गए| दिन होने के बावजूद मैंने अपनी जंगल टार्च रख ली ताकि यदि किसी जंगली जानवर से मुठभेड हो जाए तो इससे कुछ हद तक आत्मरक्षा की जा सके| इसे कभी आजमाया नहीं गया पर फिर भी मुझे विश्वास है कि संकट में इससे मदद ली जा सकती है| जनवरी के महीने के अंत में जंगल उजाड़ सा था| पत्तियां गिरने को बेताब थी| केवल उन्ही भागों में छोटी हरी वनस्पतियाँ थी जहां नमी थी| जिस अधखाये फलों को लाने की बात कही गयी थी वे मैनफल थे| एक समय में ये बड़ी संख्या में जंगल में मिल जाते थे पर अब लकड़ी माफिया के चलते बाहरी जंगलों में इन्हें खोज पाना टेढ़ी खीर है| घने जंगल में जाना यानि ज्यादा खतरा उठाना|
चूंकि हमें बंदरों द्वारा खाए गए फलों की जरूरत थी इसलिए साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सकों ने सुझाया कि बंदरचुहा नामक स्थान चला जाय जहां कि पीढीयों से यह मान्यता रही है कि दिन भर जंगल के अलग-अलग समूहों के बंदर वहां पानी पीने आते हैं| भरी गर्मी में भी उस स्थान से पानी निकलता रहता है| बंदरचुहा जैसे स्थान भारतीय जंगलों में अक्सर मिल जाते हैं| साल भर नमी रहे के कारण इन स्थानों में बेशकीमती जड़ी-बूटियाँ मिल जाती है| यदि सर्प प्रेमी हैं तो नाना प्रकार के सर्प मिल जाते हैं| बंदरों पर शोध करने वालों को काफी सामग्री मिल जाती है| पर ऐसे स्थानों के अपने खतरे भी रहते हैं| बंदरों का सतत आगमन होते रहने से शिकारी जीव भी यहाँ घात लगाये बैठे रहते हैं| उन्हें पानी के साथ भोजन भी मिल जाता है| छोटी वनस्पतियाँ यहां बहुतायत में होती है इसलिए मेरा मन होता है कि मैं उखडू बैठ जाऊं और पास से विस्तार से तस्वीरे लूं| पर ऐसे स्थानों में खड़े रहना जरुरी है| थोड़ा भी झुकने से शिकारी जीवों को हम बंदर की तरह लगने लगते हैं और वे आक्रमण करने में देर नहीं लगाते हैं| कैमरे को वनस्पतियों के ज्यादा पास ले जाने पर एक खतरा साँपों के आक्रमण का है| उत्तरी छत्तीसगढ़ में एक सर्वेक्षण के दौरान मैं छोटी वनस्पतियों के बीच तस्वीरे ले रहा था कि अचानक ही एक बड़े से सांप ने कैमरे पर आक्रमण कर दिया| मैं बाल-बाल बचा| तभी पारम्परिक चिकित्सकों ने मुझे धक्का देकर हटाया| सांप मी पूँछ मेरे जूते से दब रही थी| वनस्पतियों के कारण सांप दिखाई नहीं दे रहा था|
काफी देर तक चलने के बाद हम बंदरचुहा तक पहुंच गए| इस भाग में जंगल घना था| चार लोगों का समूह होने के बाद भी डर सा लगता था| थोड़ी सी भी आवाज से बरबस ही उधर ही ध्यान खिच जाता था| हमने तेज गंध वाले डियो नहीं लगाए थे इसलिए जंगली कीटों को हममे कम दिलचस्पी थी| फिर भी लम्बी दूरी तय करने के कारण हमारे पसीने की दुर्गन्ध लोकटी कीटों को हमारे आस-पास मंडराने के लिए प्रेरित कर रही थी| कुछ आगे बढे तो जंगली मधुमक्खियों के कुछ सदस्य अनावश्यक ही मुझमें दिलचस्पी लेने लगे| हमने शायद उनके इलाके में घुसने का साहस किया| आने वाले बड़े खतरे को भांपते हुए पारम्परिक चिकित्सकों ने एक बूटी उठायी और मेरे चहरे व हाथ पर मल दिया| ऐसी गंध आयी मानो उल्टी हो जायेगी| इसने सभी कीटों की दिलचस्पी खत्म कर दी|
मैं तस्वीरे लेता रहा और फिर एक बड़ी सी चट्टान की ओट में छुपकर हम बंदरों के आने की प्रतीक्षा करते करते रहे| इस बीच हमारी नजरें मैनफल के वृक्षों को भी तलाशती रही| एक वृक्ष देख लिया गया पर अफ़सोस काफी इन्तजार के बाद भी बंदरों ने उस ओर का रुख नहीं किया| अचानक बंदरों ने अजीब आवाजें निकालनी शुरू कर दी| शिकारी जीवों को उन्होंने देख लिया था और अपने साथियों को आगाह कर रहे थे| शायद हमे भी| हम वापस लौटने का मन बनाने लगे पर हमें डर था कि कहीं शिकारी जानवर उसी दिशा में न हों| पारम्परिक चिकित्सक बंदरों के इशारों को समझने का प्रयास करते रहे और फिर बताया कि ऊपर डोंगर से कोई शिकारी जीव नीचे आ रहा है| हम विपरीत दिशा से आये थे इसलिए उसी दिशा में लौट गए| कुछ दूर जाने पर हमें डोंगर से नीचे उतरता तेंदुआ दिखाई दिया| बंदरों की चेतावनी अब फुल वाल्यूम पर थी| तेंदुए अक्सर इंसानों से दूर रहना पसंद करते हैं पर ऐसा लगता है कि उन्हें अब इंसानों से नफरत हो गयी है| शायद उनकी हरकतों से| इसलिए उनके हमले की घटनाएँ तेजी से बढ़ रही हैं| खैर, उस वक्त हमारी नजरें नही मिली और हम समय रहते निकल आये|
पारम्परिक चिकित्सकों ने एक नाले का जिक्र किया जहां बंदर और मैनफल दोनों मिल सकते हैं| हम पहले गाडी तक पहुंचे और फिर कुछ दूरी उससे ही तय की| एक स्थान पर गाडी रुकी और फिर पैदल ही जंगल में घुस गए| बहुत सारे चिरईजाम यानि जामुन के वृक्ष दिखे| इसका मतलब आस-पास कहीं जल-स्त्रोत था} फिर अर्जुन के वृक्षों ने इस बात की पुष्टि कर दी कि हम नाले के पास हैं| हमें भालुओं द्वारा खोदे गए कंदों और दीमक की बाम्बियों के निशान दिखने लगे| नम स्थानों में उगने वाली जड़ी-बूटियाँ दिखने लगी| फिर जंगली सूअर का मल दिखा और आगे चलने पर बड़े जीवों के होने के निशान| इस बार हमने हिम्मत दिखाई और चलते रहने का मन बनाया| अचानक ही सामने चल रहे व्यक्ति के पैर ठिठक गए| सामने कुत्ते नुमा कोई प्राणी था| बुरे फंसे!!!
कहीं ये सोनकुत्ता तो नहीं था| सोनकुत्ता जिससे बाघ भी घबराता है, फिर हमारी क्या बिसात| ध्यान से देखा गया तो वह देशी कुत्ता था| संभवत: गाँव से कभी जंगल पहुंचे कुत्तों की संतान| जरा भी संस्कार नहीं थे| वह पूर्वजों की तरह जंगली हो गया था| हम पत्थर फेकते रहे और वह हमारी ओर बढ़ता गया| जंगली टार्च पर पकड मजबूत की और दिमाग दौड़ने लगा कि घायल होने पर कैसे शहर तक पहुंचेंगे| पारम्परिक चिकित्सकों के चेहरे पर भी भय दिखने लगा था| वे स्थानीय भाषा में गालियाँ दे रहे थे पर शायद इस श्वान पुत्र को भाषा की समझ नही थी| मौत को सामने खड़ा देखकर हम प्रार्थना कर ही रहे थे कि अचानक ही वह हमसे दूर होने लगा| यह क्षणिक खुशी थी क्योंकि अब हमारे सामने तेंदुआ खड़ा था| हमे काटों तो खून नहीं|
हम बस खड़े रह गए| वृक्षों पर बैठे बंदरों की तेज आवाज से कुछ होश आया| तेंदुआ अब भी खड़ा था पर लगता था कि उसे हममे रूचि नहीं थी| यह खुशफहमी भी हो सकती थी| पर ऐसा नही हुआ| उसने पास की झाड़ियों में घुसना ही ठीक समझा| शायद सही तरीके से हम पर हमला करने के लिए| हम खड़े रहे| फिर नकारात्मक सोच को किनारे किया| तब लगा कि हमे बिना बताये ही शरीर संकट से निपटने के लिए तैयार था| दिमाग कई तरह की योजनायें बना रहा था| ये नकारात्मक सोच थी जिसने इन तैयारियों पर पर्दा डाल दिया था|
बहुत देर तक झाड़ियों में हलचल नहीं हुयी| फिर कुछ दूर पर एक तेज आवाज आयी| हम खड़े रहे| पारम्परिक चिकित्सकों ने एक वृक्ष पर चढ़कर स्थिति का जायजा लिया तो वे खुशी से भर गए| श्वान पुत्र अब दुनिया में नहीं था और तेंदुआ उसे अपने जबड़े में फंसाए दूर जा रहा था| मेरा मन अभिभूत हो गया| लगा कि तेंदुए को निज अतिथि बनाकर रायपुर ले जाऊँ और फिर शहर भर के मॉल दिखा दूं| इसके अलावा तो शहरों में हमारे पास कुछ नहीं है| जंगलों को उजाड़कर यही उपलब्धी तो हमने पायी है| पर सच मानिए वह तेंदुआ हमारे लिए भगवान से कम नहीं था उस समय|
हम उलटे पैर लौट आये| जंगल का वह भाग जड़ी-बूटियों से भरा था| शायद ही कोई जाता हो इसके अंदर| गाडी के पास पहुंचते ही भयग्रस्त ड्रायवर दिखा| कांच चढाकर लाइटें जलाकर बैठा था| उसने बताया कि हमारे जंगल में जाने के कुछ देर बाद तेंदुए महात्मा उसी रास्ते से गए थे यानि हमारे ठीक पीछे| फिर कब हमारे सामने से प्रकट हो गए हमें हवा की नहीं लगी| दिन में तेंदुए की इतनी सक्रियता आश्चर्य का विषय थी|
तभी एक और तेज आवाज ने हमारी चर्चा को विराम दिया| यह आवाज सुखद लगी जब हमने अपनी गाडी की छत को देखा| उस पर एक फल आकर गिरा था| हमने ध्यान ही नहीं दिया हम मैनफल के वृक्ष के ठीक नीचे खड़े थे और पके-अधपके फल साफ़ दिखाई दे रहे थे| आनन-फानन में ढेर सारे फल मिल गए| बंदरों के अलावा पक्षियों ने भी इस पर हाथ आजमाया था| हम सोच रहे थे कि पहले क्यों नहीं दिखा यह| शायद भगवान दर्शन देना चाहते हों या यह भी हो सकता ही कि मेरा ब्लॉग पढ़ रहा तेंदुआ वन्य जीवों पर सतत लेखन के लिए आभार व्यक्त करना चाहता हो कुछ इस तरह से ------ (क्रमश:)
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Nymphoides
hydrophylla (LOUR.) KUNTZE and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or
Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal
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Nymphoides
indica (L.) KUNTZE and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad)
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obtusata DC. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with
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tenuiflorum L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with
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