भुईनीम की कडवाहट, बारूदी सुरंग से घायल भालू और गंदे होते झरने

सोमवार की जंगल यात्रा-२

भुईनीम की कडवाहट, बारूदी सुरंग से घायल भालू और गंदे होते झरने
- पंकज अवधिया
इस सोमवार को यदि कड़वा सोमवार कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योकि सारा दिन कडवो के राजा अर्थात भुईंनीम से मुलाक़ात होती रही| पहले जंगल से पैदल गुजरते वक्त कुछ छोटे पौधे दिख गए| साथ चल रहे पारंपरिक चिकित्सकों से झट से कुछ पत्तियां तोडी और चबाने लगे | उनकी देखा देखी मैंने भी यही किया| कड़वाहट से मुंह भर आया| ऐसी कड़वाहट कि मन परेशान हो उठा| पर यह कडुवाहट हमारा भला ही करने वाली थी| भुईनीम का वर्षा ऋतु में सेवन साल भर रोगों विशेषकर यकृत संबंधी रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है| मलेरिया से बचाव और इसकी चिकित्सा दोनों में ही इसका प्रयोग पीढीयों से हो रहा है| हमारे क्षेत्र में यदि आप बरसात में पारंपरिक चिकित्सकों से मिलने चले जाएँ तो वे आपका स्वागत इसकी दो-तीन पत्तियों से करेंगे ही| सोमवार को भी यही हुआ|

मैं दसों पारंपरिक चिकित्सकों से मिला और हर बार मेरा स्वागत भुईनीम से हुआ| इन पत्तियों को लेने से इनकार करना पारंपरिक चिकित्सकों के अपमान के समान है| पहले-पहल तो मैंने पत्तियां लेकर चुपचाप पीछे खड़े ड्रायवर को थमा देनी चाहिए और सामने से उन्हें चबाने का नाटक किया पर पारंपरिक चिकित्सक जान गए और उन्होंने झट से कुछ और पत्तियां थमा दी| मुंह फिर कड़वाहट से भर गया| क्या एक दिन में इतनी पत्तियां खाना ठीक है? पारंपरिक चिकित्सक इसे गलत नहीं मानते हैं| उनके अनुसार कैसे भी पर्याप्त मात्रा में यह वनस्पति शरीर के अन्दर जानी चाहिए| उस समय यह ज्यादा जरुरी है जबकि आप जंगल में हों मच्छरों के बीच|

गनीमत यह रही कि आखिर में जिन पारंपरिक चिकित्सकों से हम मिले उन्होंने पातालकुम्हडा के कन्द खाने को दिए| मुंह का स्वाद बदल गया और साथ ही जान में जान आ गयी|

जंगल में जब हम एक झरने के पास पहुंचे तो कुर्रु के झुरमुट के पास कुछ हलचल हुयी| पारंपरिक चिकित्सक सतर्क हो गए| उनका सतर्क होना बेकार नहीं गया| झुरमुट में भालू था| जंगल में भालू का मिलना मायने आफत| हम बड़े वृक्ष तलाशने लगे पर यह क्या भालू तो बेहद डरा हुआ था| हमसे दूर सरक रहा था| जब उसने भागने की कोशिश की तो हमने उसे पूरी नजर से देखा| आंखों में आंसू आ गए| उसका अगला पैर जख्मी था| हमें कारण मालूम था | यह काम किसी दूसरे हिंसक जानवर का नहीं था बल्कि उन लोगों का था जिहोने पूरे जंगल में यहां-वहां बारूदी सुरंगे बिछा रखी हैं| टिफिन बम से लेकर न जाने क्या-क्या, ऐसे घातक विस्फोटक जो इंसानों और जानवरों में फर्क करने की क्षमता नहीं रखते हैं| पक्ष-विपक्ष की खूब बातें हो रही हैं पर इन बेजुबानो की कोई नहीं सुन रहा है|

मेरे मन में अचानक ही मेडीसीन किट में पडी आर्निका का नाम घूम गया| इसकी एक-दो खुराक से जख्मी भालू को कुछ राहत तो मिल सकती थी पर उस तक इसे पहुंचा पाना मुश्किल था| पारंपरिक चिकित्सकों से खूब दिमाग लड़ाया और फिर आखिर में यह फैसला हुआ कि भालू को पसंद आने वाले कन्द भालू से कुछ दूरी पर रखे जाए और उसमे आर्निका नामक होम्योपैथिक दवा मिलाई जाए| आनन-फानन के यह सब हो भी गया पर भालू मियाँ दूर से ही हमें अविश्वास भरी नज़रों से देखते रहे|

इस बीच जाने कहाँ से बंदरों की टोली आ गयी और कन्द-मूलों पर टूट पडी| जितना खाया नहीं उतना बिखेरा| दवा गलत मरीज तक पहुंच गयी| अब वे दोगुनी शक्ति से उत्पात मचाने वाले थे| आर्निका का असर ही ऐसा होता है| इससे पहले कि वे हमें घेरकर अपनी बढी हुयी शक्ति का राज पूछते हमने उन्हें औरभालू को उनके हाल में छोड़कर आगे बढ़ना ही उचित समझा|

बरसाती झरनों के आस-पास कुकुरमुत्तों की तरह उग आये पर्यटन स्थलों के साथ पहले एक बात अच्छी थी कि रात को वे पूरी तरह खाली हो जाते थे| वास्तव में ये झरने माँ प्रकृति ने वन्य जीवों के लिए बनवाये हैं पर दिन भर पर्यटक वाहनों की आवा-जाही से वन्य जीव चाहकर भी यहाँ पानी पीने नहीं आ पाते| ऐसे में रात का ही समय उनके पास बचता था| अब इन पर्यटन स्थलों पर दुकानदार और मंदिर समिति के लोग रात को रुकने लगे हैं| उन्होंने रोशनी की व्यवस्था की है और साथ ही देर रात फ़िल्मी गाने बजते रहते हैं| झरनों का पानी भी गंदा होता जा रहा है| लोगों ने न केवल साबुन और शैम्पू का प्रयोग शुरू कर दिया है बल्कि अब तेज डिटर्जेंट से कपडे भी धोने लगे हैं|

ऐसे ही एक झरने में ऊपर की ओर गिन्धोल के असंख्य वृक्ष हुआ करते थे| जब उनसे होकर झरने का पानी नीचे आता था तो दिव्य औषधीय गुणों से परिपूर्ण हो जाता था| झरने के नीचे वे रोगी इंतज़ार में बैठे होते जिनकी जीवनी शक्ति कम होती थी| औषधी देने के पहले उन्हें झरने में नहाने की सलाह दी जाती थी| अब यह बीते दिनों की बात हो रही है| अब पारंपरिक चिकित्सक अपने रोगियों को यहां नहीं भेजते हैं| क्योंकि अब जब रोगी डुबकी मारकर निकलते हैं तो उनके शरीर में गुटखों के खाली पाउच चिपके मिलते हैं जो ऊपर से बहकर आते हैं| (क्रमश :)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)



Updated Information and Links on March 20, 2012

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Abutilon graveolens (ROXB. EX HORNEM.) WIGHT & ARN. EX WIGHT  and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Cough-, dry
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Abutilon persicum (BURM.F.) MERR. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Sleep-dreams, frightful.
Acacia catechu (L.F.) WILLD. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- sadness, mental depression
Acacia farnesiana (L.) WILLD. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Chill- chilliness.
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आपके लेखों के माध्‍यम से बहुत सारी जानकारियां मिल जाती हैं !!
रोचक अंदाज़ में जंगल और पारंपरिक चिकित्सा की जानकारी ...
आभार ...!
रोचक
हम खुद ही प्रकृति को नुक्सान पहुंचा रहे हैं

प्रणाम

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