अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -114


अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -114
- पंकज अवधिया
(हनुमान लंगूर और नि:संतान दम्पत्ति)
एक छोटी सी झोपडी के सामने महिलाओ की लम्बी कतार लगी देख मैने गाडी रुकवाई और लोगो ने इस बारे मे पूछा। लोगो ने बताया कि नि:संतान महिलाए यहाँ बाबा के दर्शन करने के लिये कतार मे खडी है। मैने गाडी किनारे करवायी और वही खडा हो गया। इतने मे बाबा का एक एजेंट आया और गाडी के अन्दर झाँकते हुये बोला कि अकेले आये हो? आपका इलाज नही होगा। अपनी घरवाली को लेकर आओ। ड्रायवर ने इस धृष्टता पर कुछ कहना चाहा तो मैने उसे चुप करा दिया। मैने एजेंट को जवाब दिया कि मुझे सारी प्रक्रिया देख लेने दो फिर मै अपनी पत्नी को लेकर आ जाऊँगा। इस पर वह बोला कि पैसा जमा करा दो ताकि अगली बार कतार मे न लगना पडे। कतार मे न लगने के लिये 1000 रुपये और वैसे 100 रुपये। मैने कहा कि मै पैसे बाबा ही को दूंगा। पहले मुझे इलाज देखने तो दो।

कुछ देर बाद हलचल बढी। बताया गया कि बाबा आ गये है। पास ही तुलसी चौरा था। वहाँ बैठकर एक अधेस मंत्र पढ रहा था। मंत्र स्पष्ट नही थे पर जै काली कलकत्ते वाली बार-बार सुनायी देता था। महिलाओ को एक पौधे पर नारियल चढाना होता था और फिर बाबा के पैर पडकर वापस लौट जाना पडता था। कोई जाँच नही होती थी और न ही किसी किस्म की जडी-बूटी दी जाती थी। थोडी देर तक बाबा को ध्यान से देखने पर याद आया कि इनसे कही मुलाकात हुयी है।अरे, ये तो दुकालू है। वही दुकालू जो मुझे राजिम के मेले मे साँप भगाने की जडी-बूटी बेचते अक्सर मिलता था। मैने उसपर एक फिल्म भी बनायी थी जिसमे उसने कहा था कि आजकल धन्धा नही चल रहा है। हो सकता है कि उसने इसी के चलते यह शार्टकट चुना हो। मै उधेडबुन मे लगा ही था कि उसने मुझे पहचान लिया। कुछ सकपकाते हुये पास आ गया। उसके सामने नोटो का ढेर लगा था। चारो ओर भक्तो की भीड थी। मैने कोने मे ले जाकर उससे उस नये रुप के बारे मे पूछा तो उसने कहा कि उसके पास एक विशेष वनस्पति है जिसे नारियल अर्पित करने से बच्चे हो जाते है। वह इसे हिमालय से लाया है। लो जी कर लो बात। अब दुकालू भला कब हिमालय चला गया? फिर नारियल चढाने से तो बच्चे नही हो जाते। मैने वनस्पति पास से देखनी चाही। वनस्पति के पास जाते ही मेरे मुँह से बरबस निकल पडा हनुमान लंगूर

मै अकसर देहाती बाजारो और ग्रामीण मेलो की खाक छानते रहता हूँ। मुझे सिरपुर मे लगने वाला मेला याद आ गया। वहाँ मैने हनुमान लंगूर को देखा था। देखा क्या था इसे खरीदने के लिये मुँहमाँगे दाम दिये थे। हनुमान लंगूर नाम सुनकर मै उस समय भी चौका था। आमतौर पर हनुमान लंगूर काले मुँह वाले बन्दर को कहा जाता है। किसी को वनस्पति विशेष को हनुमान लंगूर कहते मैने पहली बार सुना था। यह स्थानीय बोली का नाम भी नही था। छत्तीसगढ मे बन्दर के लिये बेन्दरा शब्द है। लंगूर तो स्थानीय भाषा का शब्द नही है।
सिरपुर के मेले मे जडी-बूटी बेचने वाला दावे कर रहा था कि पशु-चिकित्सा के लिये उसके पास एक दिव्य वनसप्ति है। दावे जोरदार थे पर वनस्पति कही नही दिखायी दे रही थी। उसका कहना था कि एडवांस देने पर ही वनस्पति दिखायी जायेगी। उसकी माँग पूरी की गयी तो मुझे हनुमान लंगूर दिखायी गयी। बताया गया कि इसकी आकृति बन्दर की पूँछ की तरह है इसलिये इसे यह नाम मिला। इसके गुणो का बखान करते-करते जडी-बूटी वाला इतना ऊपर चढ गया कि उसने इसे संजीवनी बूटी भी कह डाला। मुझे यह वनस्पति स्थानीय नही लगी। यह कैक्टस का एक प्रकार है। सिरपुर के मेले के बाद मैने यह वनस्पति बहुत से तांत्रिको के पास देखी। दवा के रुप मे इसके प्रयोग के दावे सुने पर कोई इसके तथाकथित प्रभावो को प्रमाणित नही कर सका। मैने भूत-प्रेत उतारने के नाम पर इसी काँटेदार कैक्टस से बेकसूर महिलाओ को पिटते भी देखा।
मैने दुकालू से ही इस गोरखधन्धे के स्त्रोत के बारे मे जानना चाहा। उसने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। भीड उसके साथ थी। जब पुलिस मे शिकायत की धमकी दी गयी तो उसने अलग से बात करने की इच्छा जतायी। आखिर उसने राज खोला। देखिये साहब, आस-पास की वनस्पति को उठाकर उससे झाड-फूँक करो तो लोगो मे प्रभाव नही पड्ता। इसलिये राजधानी के नर्सरी वालो से सम्पर्क किया है। ये नर्सरी वाले कलकत्ता से जुडे है। ये अजीबोगरीब पौधे लाकर देते है, जिन्हे हिमालय से साधना के बाद प्राप्त की गयी जडी-बूटी कहकर हम इलाज का ढोंग करते है। हमे इन नर्सरी वालो को लगातार हिस्सा देना होता है। छत्तीसगढ और उडीसा मे ऐसे सैकडो तांत्रिक है जो इस तरह के गोरखधन्धे मे लगे है।
नर्सरी वालो का नाम सुनते ही मुझे दिल्ली के एक नर्सरी वाले की याद आ गयी। आफ्रीका से लाये एक पौधे को दिल्ली का यह नर्सरी वाला एक एनजीओ की मदद से कल्पवृक्ष बताकर बेचने की तैयारी मे है। एक निजी टीवी चैनल ने तो बकायदा इसे देश भर को दिखाना शुरु कर दिया है। उसका दावा है कि इसके नीचे बैठने से समस्त मनोकामनाए पूर्ण हो जाती है। जल्दी ही इसे बाजार मे लाने की तैयारी है। इस गोरख धन्धे से असंख्य भारतीयो को उनकी धार्मिक आस्था का लाभ उठाकर ठगा जायेगा। नर्सरी वालो की इन करतूतो को सामने लाने मैने यह लेख लिखा है। आम लोगो के जागने की देर है। एक बार वे जाग गये तो पाखंडियो के पैर उखडते समय नही लगेगा। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Comments

अरे आप भी कल्पवृक्ष की इतनी तौहीनी कर रहे हैं ??
वैसे अंदाजा लगा सकते हैं कि न्यूज़ चैनेल किस लिए कल्पवृक्ष का इतनी जोर शोर से प्रचार कर रहा है !!

हिन्दी चिट्ठाकारों का आर्थिक सर्वेक्षण : परिणामो पर एक नजर
ghughutibasuti said…
मूर्ख बनने और बनाने वालों की कोई कमी नहीं है। जबतक लोग मूर्ख बनने को तैयार हैं बनाने वाले भी मिल जाएंगे।
घुघूती बासूती
admin said…
इस दुनिया में बेवकूफों की कमी नहीं, एक खोजो हजार मिलते हैं।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Unknown said…
बेहद जरूरी कार्य संपन्न कर रहे हैं आप.
Anil Pusadkar said…
पंकज बहुत बड़ा काम कर रहे हो!आपको याद होगा कुछ समय पहले रायपुर मे भगवान दिखाने के नाम पर ठगी होती थी।उस मामले मे सभी अख़बारो ने भरपुर लिखा था मगर फ़िर भी वारदात हो जाती थी।हम लोगों को तब निराशा होती थी मगर समय गुजरने के साथ ये कम हुई और अब नही होती। आप भी अपनी जंग ज़ारी रखिये एक न एक दिन आप जीतेंगे ही,ये मेरा अंध नही विश्वास है।
Ganesh Prasad said…
मुझे नहीं लगता यह कम होगा, आज देल्ही जैसे महानगर के लोग भी जडेजा जैसे पाखंडी को पूजते है.

आशा है आपकी मेहनत रंग लाएगी.

कृपया कोशिश जरी रखे ...

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