बाघ है तो जहान है, नही तो सब वीरान है

बाघ है तो जहान है, नही तो सब वीरान है
(मेरी कान्हा यात्रा-2)
- पंकज अवधिया



बाघ है तो नेशनल पार्क है। यह बात गलत नही है। कान्हा मे नब्बे से अधिक बाघ है। यहाँ पर्यटक सबसे अधिक संख्या मे आते है। देश भर मे बाघो का अवैध शिकार चरम पर है। अभ्यारण्यो मे भी वे सुरक्षित नही है। पन्ना का ही उदाहरण ले। देखते-देखते दसो बाघ जंगल से गायब हो गये और सरकारी दस्तावेजो मे बने रहे। बाघ नही तो भला पर्यटक क्यो आयेंगे? पर्यटक नही आयेंगे तो महंगे होटलो का क्या होगा? पन्ना मे हाहाकार मच गया। एक नर बाघ बचा तो वंश वृद्धि के लिये एक मादा की जरुरत महसूस हुयी। यह फैसला हुआ कि कान्हा से एक बाघिन को पन्ना ले जाया जाये। सारी तैयारियाँ पूरी हो गयी। पर स्थानीय होटल वालो और पर्यटन से जुडे निज संस्थानो को यह बात हजम नही हुयी। उन्होने हडताल कर दी कि बाघिन को नही ले जाया जाना चाहिये। लम्बी चली हडताल का नतीजा सिफर रहा और हेलीकाप्टर से बाघिन को पन्ना ले जाया गया। कान्हा की इस यात्रा के दौरान रात मे चर्चा मे स्थानीय लोगो ने अपना पक्ष बताया। उनका कहना था कि पन्ना वाले इतने सारे बाघ नही बचा पाये तो इस बात की क्या गारंटी कि यह बाघिन भी बची रहेगी। फिर वे उस नर बाघ के जीवित होने का प्रमाण माँग रहे थे जिसके लिये मादा को ले जाया जाना था। उनका दावा था कि वह नर भी सरकारी दस्तावेजो तक सीमित था। लोगो ने बताया कि हमारी हडताल जायज थी पर वन्य जीवो पर काम कर रही सस्थाओ ने समर्थन नही दिया। सजा के तौर पर डीजल से चलने वाली गाडियो को अन्दर जाने की छूट दे दी गयी जिससे जिप्सी वालो को बडा घाटा उठाना पड रहा है। बतौर पर्यटक मै उनकी बाते सुनता रहा।

“अरे, वहाँ मत जाइये। वहाँ टाइगर है ही नही।“ रायपुर के एक आधुनिक काफी शाप मे बैठे कुछ लोग आपस मे चर्चा कर रहे थे। उनकी चर्चा रायपुर के पास स्थित बारनवापारा अभ्यारण्य पर केन्द्रित थी। बारनवापारा एक टाइगर के न होने के कारण वह लाभ नही दे पा रहा है जितना कान्हा जैसे पार्को से मिल रहा है। पर बारनवापारा मे टाइगर नही है, यह बात मुझे नही पच रही है। तीन साल पहले मैने कोर जोन मे शाम को एक टाइगर देखा था। हमारे साथ गाइड भी था। आज तीन साल के बाद अचानक ही यह कहा जा रहा है कि यहाँ टाइगर है ही नही। न तो किसी टाइगर के मरने की खबर मैने पढी और न ही गायब होने की। आखिर तीन साल पहले बेखौफ घूमने वाला यह टाइगर गया कहाँ?

कान्हा मे शाम की सफारी के लिये निकलते समय मैने गाइड को दो टूक कह दिया कि मुझे टाइगर नही देखना है। उसे विश्वास नही हुआ। उसने कई बार पूछकर इस बात की पुष्टि करनी चाही। हर बार उसे वही जवाब मिला। मैने कहा कि ऐसी जगह चलो जहाँ पर्यटक कम जाते हो। उसने ऐसा ही किया। डेढ घंटे तक हम ऐसे स्थानो मे घूमते रहे जहाँ दूसरी गाडियाँ दिखायी तक नही दी। ऐसा बिल्कुल नही था कि जिन स्थानो मे हम घूम रहे थे वहाँ कुछ भी नही था। हमने बारहसिंघा, हिरण, मोर, जंगली सुअर, साम्भर, भेडिये, सोन कुत्ते सभी देखे पर किसी को देखने के लिये हमने गाडी नही रोकी। वनस्पतियो के दर्शन करते हुये हम आगे बढते रहे। गाइड से रहा न गया और उसने पूछा कि यदि टाइगर गाडी के सामने आ गया तो भी क्या आप नही देखेंगे? मैने मुस्कुरा दिया।

अचानक ही कुछ दूरी पर पर्यटक गाडियो का काफीला दिखायी दिया। सभी गाडियाँ लहर की तरह आगे-पीछे हो रही थी। इसका मतलब था कि वे सभी टाइगर के लिये रुकी हुयी थी। हमारी गाडी भी उस ओर मुडी। दूर जंगली बेर के पेड के नीचे टाइगर शिकार किये हुये बाइसन को खा रहा था। सारे के सारे पर्यटक नजर गडाये बैठे थे। उनके पास कैमरे थे। सभी चेतावनियो के बावजूद वे शोर मचा रहे थे। जिस तरह बाघ के आने पर बन्दर डालियो मे उछलकूद मचाने लगते है उसी तरह पर्यटको मे भी खलबली मची थी। बाघ को प्रायवेसी चाहकर भी नही मिल रही थी। जैसे ही वह झाडियो मे घुसता गाडियाँ नयी जगह पहुँच जाती। बाघ को चैन नही था। गाडियो की संख्या बढती जा रही थी। कोई वहाँ से जाने को तैयार नही था।

रात को हमे पता चला कि सुबह बाघ का दिखना तय है क्योकि माननीय मुख्य न्यायाधीश आये हुये है। उनके लिये बाघ को हाथियो से घेरा जायेगा और फिर हाथियो की पीठ पर सवार होकर पर्यटको को बाघ तक ले जाया जायेगा। अगले दिन सुबह की सफारी के दौरान एक जगह हाथी और पास खडी गाडियाँ दिख गयी। पास ही एक बाघिन को घेरा गया था। हमसे कहा गया कि खटिया गेट के पास जाकर पर्ची कटवा आये और बाघ दर्शन के लिये नम्बर लगवा ले। सौ रुपये प्रति व्यक्ति की पर्ची कटवाकर हम लौटे तो न हाथी दिखे और न ही पर्यटक। हमे बताया गया कि बाघिन का मूव्हमेंट हो गया है। हमे तेजी से आगे बढे तो हमे फिर हाथी और पर्यटक दिखायी दे गये। तीन हाथी पर्यटको को अपनी पीठ पर लादकर पास ही बैठी बाघिन के पास ले जाते और कुछ देर मे वापस आ जाते। महावतो के हाथ गरम करने पर वे अधिक देरी तक बाघिन के पास हाथी को रोके रखते। मेरा नम्बर आया तो सीढी लगाकर पन्द्रह साल के हाथी पर मै चढा। यह कद मे छोटा था। महावत ने हाथी को चलने का इशारा किया और पेडो से रगडते हुये हम आगे बढे। तीखी ढलान के बाद बाँस के झुरमुट के पास जाकर हाथी रुक गया। झुरमुट मे गर्मी से बचने छाँव मे आराम कर रही बाघिन को साफ-साफ देखा जा सकता था। मेरे तो होश फाख्ता थे। बाघिन को तो शायद आदत हो गयी थी। उसने हमारी तरफ देखा तक नही। मैने तस्वीरे ली। महावत खडा रहा और कहा कि आराम से देखिये। मेरे मन मे सुरक्षा को लेकर अनगिनत प्रश्न घूम रहे थे। इस तरह से बाघिन को देखना कितना सुरक्षित है? यदि हाथी बैठ गया तो? या बाघिन ने हमला कर दिया तो? कही हम ही फिसल पडे तो? ऐसा नही है कि हाथी से बाघ दर्शन मे कान्हा मे कभी कोई हादसा नही हुआ है। हादसे हुये है पर पर्यटको से यह बात छुपा कर रखी जाती है। मुझे दो दिल दहलाने वाली घटनाओ के बारे मे बताया गया।

एक बार बाघ दर्शन के दौरान एक बच्चा हाथी के सामने गिर पडा। बच्चे के अचानक गिरने से बाघ हडबडा गया और दूर भाग गया। तुरंत ही हाथी ने अपनी सूंड से बच्चे को ऊपर खीच लिया। दूसरी घटना महावत के बच्चे के साथ हुयी। जब महावत का बच्चा गिरा तो बाघिन ने बिना देरी उसे गर्दन से पकड लिया। उस छुडाने के लिये महावतो ने हाथियो को उसके पीछे दौडाया। दो किमी के बाद बाघिन ने उसे छोडा। तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। एक और घटना मुझे अपने मोहल्ले के एक व्यक्ति से मिली। जिस हाथी पर वह सवार था वह बाघ के पास पहुँचते ही बिदक गया। महावत ने उसे नीचे बाघ की तरफ पीठ करके खडे रहने को कहा। उस व्यक्ति की हालत पतली हो गयी। और कोई रास्ता नही था। महावत कुछ दूरी पर गया और फिर हाथी को सम्भाल कर वापस आया। व्यक्ति को फिर से हाथी पर चढा लिया गया। ये कुछ मिनट उसके लिये मौत से साक्षात्कार की तरह थे। उसने कसम खायी कि अब दोबारा कान्हा नही जाऊँगा। कान्हा के उजले पक्ष के बारे मे तो सब लिखते है पर इसके कृष्ण पक्ष विशेषकर पर्यटको के जीवन से जुडे प्रश्नो को सामने नही आने दिया जाता है। पार्क प्रबन्धन पहले ही आपसे फार्म भरवाकर अपनी जिम्मेदारी से बच जाता है। यह अलग बात है कि छोटे अक्षरो मे लिखी शर्तो को पर्यटक पूरा नही पढ पाते है और पार्क जाने की हडबडी मे हस्ताक्षर कर देते है।

एक तरफ कान्हा मे वन्य प्राणियो को पूरी स्वतंत्रता दिये जाने का दावा किया जाता है दूसरी तरफ जिस तरह से बाघ पर दबाव बनाया जाता है विशेषकर हाथियो के माध्यम से, वह ठीक नही जान पडता है। मुझे बाघिन से डर कम लग रहा था उस पर दया ज्यादा आ रही थी। मुझसे पहले बीसो पर्यटको ने उसे हाथियो पर आकर देखा था। दिन की तेज गर्मी मे उसे आराम के कुछ पल भी मिल नही पा रहे थे। वायरलेस पर सूचना आयी कि अभी पन्द्रह और गाडियाँ आने वाली है। हमने महावत के हाथ गरम किये थे इसलिये बाघिन के पास खडे रहने पर जब उसने देर तक कोई प्रतिक्रिया नही दी तो महावत ने हाथी को कुछ इशारा किया। उसने तेज साँसे ली। इस आवाज से बाघिन ने सिर उठाकर देखा। साथ चल रहे लोगो के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव उमड पडे। कुछ और तस्वीरे ली गयी। पता नही ऐसे दिन मे कितनी बार बाघ की दिनचर्या मे खलल डाला जाता होगा।

इस तरह का बाघ दर्शन मन को विचलित कर देता है। क्या हमारे विशेषज्ञ दूसरे विकल्पो पर विचार नही कर सकते जिससे पर्यटक भी सुरक्षित रहे और बाघ को भी व्यवधान न आये। गर्मी मे वन्य प्राणियो की प्यास बुझाने के लिये पार्क मे जगह-जगह पर तश्तरियाँ बनायी गयी है। लोगो ने बताया कि इन पानी से भरी तश्तरियो मे दूसरे वन्य प्राणी तो आ जाते है पर बाघ ज्यादा नही रुकते है। उन्हे मालूम है कि सडक से आसानी से दिख जाने वाली इन तश्तरियो मे आना मतलब पर्यटको की नजर मे आना। पर्य़टक की एक गाडी रुकी माने पलक झपकते ही दसो गाडियाँ रुकने लगेंगी। और फिर देखादेखी का अनचाहा खेल शुरु हो जायेगा।

यदि पार्क प्रबन्धन के पास दूसरे विकल्प नही है तो एक बाघ के दिखने पर निश्चित गाडियो के पास तक जाने और कुछ निश्चित समय तक देखने की व्यवस्था होनी चाहिये। ऐसा नही कि घंटो तक गाडियाँ बाघ को घेरे रहे। इसी तरह हाथी से लाटरी द्वारा चुने हुये पर्यटको को ही जाने दिया जाना चाहिये वह भी बहुत कम संख्या मे। जहाँ पर हम हाथी पर सवार होने वाले थे वहाँ पर एक रेंजर प्रबन्धन मे लगे हुये थे। मैने उनसे पूछा कि यदि बाघिन यहाँ आ जाये तो क्या होगा? उन्होने कहा कि ऐसा हो सकता है और हम कुछ नही कर सकते। पर्यटको को वे गाडियो मे रहने की सलाह दे रहे थे। पर उनकी बातो को अनदेखा करके पर्यटक जमीन पर खडे थे। रेंजर साहब की गाडी मे प्राथमिक चिकित्सा की कोई सुविधा नही थी। आपातकालीन परिस्थितियो के लिये कुछ भी नही था। इस तरह की लापरवाही पर्यटको के लिये अभिशाप बन सकती है। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)


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