अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -78

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -78 - पंकज अवधिया

“जिन लोगो की अनामिका, कनिष्ठा से बडी होती है वे लोग उनकी तुलना मे अधिक आक्रामक होते है और अधिक धनार्जन करते है जिनकी कनिष्ठा, अनामिका से बडी होती है।“ आप सोच रहे होंगे कि मै किसी देशी हस्त-रेखा विशेषज्ञ से सुनकर यह बता रहा हूँ। पर इस शोध निष्कर्ष तक पहुँचे है कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक। दुनिया भर मे इस शोध के विषय मे विस्तार से लिखा गया है। मुझे यह खबर मेरे हस्त-रेखा विशेषज्ञ मित्र से मिली जो गुस्से से भरकर कल मिलने आये। वे “अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग” की यह लेखमाला बडे ध्यान से लगातार पढ रहे है। उनके मन मे ढेरो प्रश्न है पर मै उन्हे समय नही दे पा रहा हूँ। जब उन्होने बीबीसी की वेबसाइट पर यह समाचार पढा तो उनसे रहा नही गया और ढेरो अखबारी कतरनो के साथ आ धमके। उनका कहना था कि भारतीय ज्योतिष के आधार पर उन्होने कई बार अपने लेखो मे इस तथ्य को लिखा पर हर बार इसे अन्ध-विश्वास बताकर इसका माखौल उडाया गया। अब जब यही बात विदेशी वैज्ञानिक कह रहे है तो कोई विरोध नही कर रहा है। वैज्ञानिक इसकी व्याख्या कर रहे है। इस शोध की शुरुआत से पहले उन्होने निश्चित ही भारतीय ज्योतिष का सहारा लिया होगा। मित्र का कहना था कि मै इस लेखमाला मे इस तरह से प्राचीन भारतीय ज्ञान की भारतीयो द्वारा की जा रही उपेक्षा और विदेशियो द्वारा किये जा रहे उपयोग पर भी लिखूँ। मेरे पास मित्र के सवालो का कोई ठोस जवाब नही है। ‘घर का जोगी जोगडा और आन गाँव का सिद्ध” वाली कहावत एक बार फिर चरितार्थ हो रही है-ऐसा प्रतीत होता है।

कुछ वर्षो पहले प्रो.अनिल गुप्ता के आमंत्रण पर मै अहमदाबाद स्थित नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन गया। उन्होने मुझे रिसर्च एडवायसरी कमेटी का सदस्य बनाया। वहाँ पारम्परिक ज्ञान पर काम कर रहे बहुत से महानुभावो से चर्चा हुयी। वे भारतीय पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के दस्तावेजीकरण के पक्ष मे तो थे पर इसके सीधे उपयोग के पक्ष मे नही थे। वे कहते थे कि इस ज्ञान को ‘वेलिडेट’ करने की आवश्यकता है। अर्थात इसे सीधे उपयोग से पहले आधुनिक चिकित्सा पद्धतियो की कसौटी पर परखना जरुरी है। पीढीयो से मनुष्यो पर सफलतापूर्वक उपयोग हो रहे पारम्परिक ज्ञान को फिर से प्रयोगशाला जीवो पर परखा जायेगा और फिर काफी समय बाद मनुष्यो पर परीक्षण होगा। मैने प्रश्न रखा कि यह “वेलिडेशन” की प्रक्रिया किसके दिमाग की उपज है? कुछ ने कहा कि यह देश के विशेषज्ञो ने विचार करके सुझाया है। क्या उन विशेषज्ञो मे पारम्परिक चिकित्सको को भी शामिल किया गया था जो इस ज्ञान को उपयोग कर रहे है? मैने पूछा। उनके पास कोई जवाब नही था। जो तथाकथित विशेषज्ञो ने तय कर दिया सो तय कर दिया। लकीर के फकीर की तरह सभी को उस पर चलना होगा। हमारे देश की यही रीत है। पर जिसने भी इस “वेलिडेशन” का रोडा खडा किया है उसने दूर की गोटी खेली है। यह कही से भी भारतीयो के हक मे नही है।

धवई का ही उदाहरण ले। वुडफोर्डिया फ्रुटीकोसा वैज्ञानिक नाम वाली इस वनस्पति के फूलो का औषधीय उपयोग सदियो से भारत मे हो रहा है। प्राचीन ग्रंथो मे इसके बारे मे विस्तार से लिखा है। वर्तमान पीढी के पारम्परिक चिकित्सक इस ज्ञान का उपयोग कर रहे है। मैने इस ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया है। जहाँ एक ओर पारम्परिक चिकित्सको को इस ज्ञान से रोगियो की चिकित्सा करने की छूट नही है, उन्हे नीम-हकीम का दर्जा देकर उनके विरुद्ध कानून बना दिया गया है और उनके ज्ञान को बेकार कह दिया गया है वही दूसरी ओर जादवपुर के वैज्ञानिको ने धवई के फूलो पर पारम्परिक ज्ञान के आधार पर शोध किया और घोषित कर दिया कि यह पेप्टिक अल्सर मे उपयोगी है। इसके बाद उन्होने अमेरीकी पेटेंट आफिस मे अर्जी दी और आवेदन दाखिल कर दिया। आवेदनकर्ताओ मे गिने-चुने चार-पाँच नाम है। इस आवेदन पत्र मे साफ लिखा है कि धवई का प्रयोग पीढीयो से भारत मे हो रहा है। पारम्परिक चिकित्सको की बात भी लिखी है। मेरे शोध लेख का भी उल्लेख है पर पेटेंट मिलेगा सिर्फ उन वैज्ञानिको को जिन्होने इसे अपने रंग मे रंगा। पारम्परिक चिकित्सको को कुछ नही मिलेगा। यह तो एक छोटा सा उदाहरण है। पारम्परिक चिकित्सको के ज्ञान से लाभ उठाने के सैकडो उदाहरण हमारे सामने है। भारतीय शोध संस्थानो से सेवानिवृत्त होकर वैज्ञानिक निजी कम्पनियो मे जा रहे है और जिन्दगी भर वैज्ञानिक के रुप मे एकत्र की गयी जानकारियो को अपने नाम से पेटेंट करवा रहे है। तकनीकी मामला होने के कारण आम जनता इस गोरखधन्धे को समझ नही पा रही है।

नीम, हल्दी और बासमती के पेटेंट पर बवाल मचाने वाले खुलेआम हो रहे इन पेटेंटो पर एकदम खामोश है। कोई तो उनसे पूछे इस चुप्पी का राज? कहाँ है पारम्परिक चिकित्सको के हित की बात करने वाले? कहाँ है वे लोग और संस्थान जिन्हे देश से अरबो रुपये पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के संरक्षण के नाम पर मिल रहे है? कूट भाषा मे लिखी जा रही लाखो पन्नो की मधुमेह की रपट को सार्वजनिक करने के लिये क्यो मुझ जैसे स्वतंत्र शोधकर्ता पर दबाव बनाया जा रहा है? एक बार इस रपट के सार्वजनिक होने से स्वार्थी वैज्ञानिक अपने नाम से इस ज्ञान को पेटेंट कराने के लिये टूट पडेगे और हर बार की तरह पारम्परिक चिकित्सको के साथ छलावा को जायेगा। क्यो नही पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान को भारत मे वैध करार देते हुये पारम्परिक चिकित्सको को चिकित्सा की छूट दे दी जाती? क्यो नही पारम्परिक चिकित्सको को देश की स्वास्थ्य योजनाए बनाने की जिम्मेदारी दी जाती? क्यो नही जमीनी हकीकत से अंजान आज के योजनाकारो को दस-बीस साल तक जंगलो मे रहने को कहा जाता? जिनसे भारत की आन, बान और शान है, जिनके ज्ञान के आधार पर दुनिया भर मे सैकडो पेटेंट हुये है और हो रहे है, क्यो नही उन्हे अब मुख्य धारा मे ले आया जाये? जरा देखे, जरा सोचे, कौन है जो पारम्परिक चिकित्सको और पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के विकास के मार्ग मे रोडे अटका रहा है।

प्रस्तुत है कुछ पेटेंटो की जानकारी जो भारतीय पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के आधार पर किये गये शोध कार्यो पर आधारित है और जिन पर चन्द वैज्ञानिको ने पेटेंट ले लिया है या इस प्रक्रिया मे है।

नीम

http://www.google.com/patents?q=neem+india&btnG=Search+Patents

तुलसी
http://www.google.com/patents?q=tulsi&btnG=Search+Patents

जामुन
http://www.google.com/patents?q=Jamun&btnG=Search+Patents

सफेद मूसली
http://www.google.com/patents?q=Safed+Musli&btnG=Search+Patents

असगन्ध
http://www.google.com/patents?q=ashwagandha&btnG=Search+Patents

धवई

http://www.google.com/patents?spell=1&q=Woodfordia+fruticosa&btnG=Search+Patents

हल्दी
http://www.google.com/patents?spell=1&q=curcuma+longa&btnG=Search+Patents

सर्पगन्धा
http://www.google.com/patents?spell=1&q=rauvolfia+serpentina&btnG=Search+Patents

करेला
http://www.google.com/patents?spell=1&q=Momordica+charantia&btnG=Search+Patents

बेल
http://www.google.com/patents?spell=1&q=Aegle+marmelos&btnG=Search+Patents

हडजोड

http://www.google.com/patents?spell=1&q=Cissus+quadrangularis&btnG=Search+Patents

मेथी
http://www.google.com/patents?spell=1&q=trigonella&btnG=Search+Patents

कुछ और कडियाँ
http://www.google.com/patents?id=Q8GcAAAAEBAJ&dq=pushpangadan

http://www.google.com/patents?id=Bot3AAAAEBAJ&dq=pushpangadan

http://www.google.com/patents?id=2A2jAAAAEBAJ&dq=pushpangadan


हस्त-रेखा विशेषज्ञ मित्र से मैने कहा कि आपका विरोध सही जान पडता है। यदि एक ही बात कहने पर एक को अन्ध-विश्वासी और दूसरे को सम्मानो से नवाजा जाये तो यह विरोधाभास है। ऐसी मानसिकता कि भारतीय ज्योतिष तभी वैध माना जायेगा जब कोई विदेशी वैज्ञानिक इस पर शोध करेगा और इसे अपने नाम से प्रकाशित करेगा, सरासर गलत है। समर्पित भारतीय वैज्ञानिको को सामने आकर यह बीडा उठाना चाहिये और ज्योतिष के जानकारो के साथ मिलकर इसे मानव-कल्याण के लिये उपयोग करना चाहिये। यहाँ यह भी जोडना चाहूंगा कि ज्योतिष के सतही ज्ञान से जो भयादोहन कर आम लोगो का छलने का रिवाज चल पडा है उस पर अन्कुश लगना चाहिये।

मित्र आज जब यह लेख पढेंगे तो उन्हे कुछ राहत मिलेगी। आप भी इस लेख को पढकर मनन करे, चिंतन करे और फिर अपने विचारो से मुझे परिचित कराये। (क्रमश:)


(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

ghughutibasuti said…
पारम्परिक चिकित्सकों से इलाज करवाने में एक ही भय होता है कि हमें उनकी योग्यता का पता नहीं होता। चाहे प्रमाण पत्र, प्रशस्ति पत्र वाले डॉक्टर भी सदा सफल नहीं हो पाते परन्तु फिर भी हमें कुछ सांत्वना तो रहती ही है। यही कारण है कि जब कोई रोग लाइलाज कह दिया जाता है तभी हम पारम्परिक चिकित्सकों के पास जाते हैं, क्योंकि तब खोने को कुछ नहीं बचा होता।
घुघूती बासूती

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