अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -108
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -108 - पंकज अवधिया
क्या पानी भी कभी किसी के लिये अभिशाप बन सकता है? इसका जवाब हाँ मे है। दुनिया मे ऐसे गिने चुने लोग होते है जिन्हे “एक्वाजेनिक अर्टिकेरिया” नामक बीमारी होती है। ये लोग पानी पी सकते है बिना किसी मुश्किल के पर जब पानी से नहाने की कोशिश करते है तो इनके शरीर मे शीत-पित्ती की तरह चकत्ते पड जाते है। 1964 मे सबसे पहली बार इस अजब बीमारी के बारे मे पता चला था। दिसम्बर, 2008 मे न्यू साइंटिस्ट नामक प्रतिष्ठित चिकित्सा पत्रिका ने सात ऐसे रहस्यमय मामलो की पडताल की जिसमे विषय मे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पास कोई ठोस जवाब नही है। “सेवन अनसाल्वड मेडीकल मिस्टरीज” के विषय मे आप इस कडी पर जाकर पढ सकते है। इस कडी मे आपको छत्तीसगढ के सम्बन्ध मे कुछ नही मिलेगा पर इस रहस्यमय मामले का सम्बन्ध छत्तीसगढ मे जुडता है।
जैसा कि आप जानते है कि अपने वानस्पतिक सर्वेक्षणो के दौरान मै पारम्परिक चिकित्सको से मिलता रहता हूँ। उनसे अलग-अलग विषयो पर चर्चा होती रहती है पर बहुत से ऐसे अनसुलझे और जटिल मामलो की चर्चा भी उनसे करता रहता हूँ। आपमे से बहुत से लोगो ने यूनिवर्सिटी आफ पिट्सबर्ग के पैथोलाजी विभाग की यह वेबसाइट देखी होगी। चिकित्सा क्षेत्र मे शोध से जुडे लोग इस साइट मे केस स्टडीज को आपस मे बाँटते है और फिर विशेषज्ञो की राय से नतीजे तक पहुँचने की कोशिश करते है। इंटरनेट पर ऐसी बहुत सी वेबसाइट है। मै इन सभी जटिल मामलो को पारम्परिक चिकित्सको के सामने सरल भाषा मे रखकर उनसे चर्चा करता हूँ तो बहुत से उपयोगी सुझाव सामने आ जाते है। लम्बे समय तक इस क्षेत्र मे काम करने के कारण अक्सर इन मामलो मे मै भी बहुत कुछ सुझा पाता हूँ। पारम्परिक चिकित्सको और अपने सुझावो को मै अपने डेटाबेस मे दर्ज करता जाता हूँ। जब मै पानी से होने वाली एलर्जी का मामला लेकर पारम्परिक चिकित्सको के पास पहुँचा तो उन्होने आशा के विपरीत किसी भी तरह का आश्चर्य नही प्रकट किया। इसका मतलब यह था कि वे इस तरह की एलर्जी से परिचित थे। जब हमने कारणो पर चर्चा की तो वे मुस्कुराते हुये बोले कि रविवार को सुबह खाली पेट आना फिर इस पर चर्चा करेंगे।
अल सुबह मै उनके पास पहुँचा तो उन्होने बहुत सी वनस्पतियाँ अपने पास एकत्र कर रखी थी। सबसे पहले उन्होने कहा कि मै पास के झरने मे स्नान कर लूँ। मै वापस लौटा तो उन्होने कुछ जंगली फल खाने को दिये। फल खाने के कुछ समय बाद उन्होने मेरे हाथ को पानी मे डुबोया और कुछ ही देर मे शीत-पित्ती जैसे लक्षण उभर आये। मै आँखे फाडे देखता रहा। फिर उन्होने जंगली फलो के पेडो से एकत्र की गयी पत्तियो का रस पिलाया। फिर से पानी मे हाथ डुबायो तो चकत्ते नही निकले। कुछ देर की चर्चा के बाद उन्होने विशेष तरह के औषधीय चावल मे कुछ जडी-बूटियाँ मिलाकर मेरे सामने परोसा। एक निवाला ही खाया था कि अजीब स्वाद के कारण मै रुक गया। उन्होने कहा कि यदि नही अच्छा लग रहा हो तो न खाये। कुछ समय बाद फिर से पानी का पात्र लाया गया और उसमे हाथ डुबोया गया। चकत्ते फिर उभर आये। उसके बाद एक पेड की छाल चबाने को दी गयी। पानी मे फिर हाथ डुबोया गया तो चकत्ते नही उभरे। और जो थे वे ठीक हो गये। आपको आश्चर्य होगा कि उस दिन उन्होने बीस से अधिक किस्म की औषधीयाँ खिलायी और चकत्तो के उभरने और गायब होने का दौर चलता रहा। अनगिनत प्रश्न लिये मै उनसे चर्चा की बाट जोहता रहा।
पारम्परिक चिकित्सको से लम्बी चर्चा से यह सार निकला कि इस वाटर एलर्जी से प्रभावित व्यक्ति से विस्तार से चर्चा की जाये विशेषकर खान-पान और उसके आस-पास की वनस्पतियो के विषय मे पूछा जाये। उसकी प्रकृति के आधार पर विभिन्न वनस्पतियो का उस पर वैसा ही परीक्षण किया जाये जैसा मुझ पर हुआ और फिर एक बार मर्ज पकड आने पर उसकी चिकित्सा की जाये। उन्होने विश्वास से कहा कि यह मर्ज ठीक हो सकता है। मै इसे दूसरे नजरिये से भी देखता हूँ। एक बार मरीज पर वनस्पति विशेष के प्रभाव को देखने के बाद होम्योपैथी के सिद्धांत को अपनाकर भी उसे ठीक किया जा सकता है। हमारे पारम्परिक चिकित्सक होम्योपैथी नही जानते। उनका अपना अलग ढंग चिकित्सा का।
क्या कोई विश्वास करेगा कि दुनिया की सात अनसुलझे चिकित्सा मामलो पर इतनी सरल चर्चा हम हिन्दी के एक आलेख मे कर रहे है और आप जैसे पाठक सबसे पहले इसे पढ रहे है। यह सब पढने के बाद आपको क्या यह नही महसूस होता कि किसी भी चिकित्सा समस्या को दुनिया भर के सभी विशेषज्ञो के सामने चर्चा के लिये रखना चाहिये, आधुनिक हो या पारम्परिक? इससे जो सकरात्मक परिणाम आयेंगे उससे अंतोगत्वा लाभ तो मानवता का ही होगा। मुझे मालूम है कि आधुनिक चिकित्सा के ज्यादातर जानकारो तक यह बात नही पहुँचेगी। पर फिर भी प्रयास करने मे क्या परेशानी है? मुझे लगता है कि यदि आधुनिक और पारम्परिक चिकित्सको के बीच सेतु का निर्माण किया जाये तो दुनिया भर मे असंख्य जाने बच सकती है। इंटरनेट पर दर्ज कैसर के बहुत से मामलो पर मैने अपने विचार डेटाबेस मे संजोये और साथ ही पारम्परिक चिकित्सको के सुझाये उपायो को भी अपने डेटाबेस मे रखा। मेरे पास कोई रास्ता नही था कि मै ये उपाय उन आधुनिक चिकित्सा शोधकर्ताओ और विशेषज्ञो के पास पहुँचा पाता जो कि कैसर की अंतिम अवस्था मे पहुँच चुके मरीजो का इलाज कर रहे थे। चिकित्सा सम्बन्धी पारम्परिक ज्ञान के विश्व स्तर पर खुले प्रयोग की इजाजत हमारा कानून नही देता। सबसे बडी बात भारतीय पारम्परिक चिकित्सको को अपने देश मे नीम-हकीम का दर्जा प्राप्त है। फिर मै भी चिकित्सक नही हूँ। ऐसे मे सारा ज्ञान वैसा का वैसा पडा रहा और जीवन के लिये संघर्ष कर रहे मरीजो के यह काम नही आया।
इस लेख के माध्यम से मै आप सभी पाठको से अनुरोध करता हूँ कि इस पर गहनता से विचार करे और मानवता की सेवा हो सके ऐसे पथ पर बढने का सुझाव दे। मै तो इन सब अनुभवो और ज्ञान को दुनिया के लिये दस्तावेज के रुप मे सहेज रहा हूँ पर चाहता हूँ कि मेरे जीवन मे ही वह दिन आये जब सारे बन्धन और अहम को छोडकर सभी क्षेत्र के चिकित्सक एक मंच पर आये और उनका उद्देश्य हो मानव-कल्याण। सभी अपनी चिकित्सा पद्धतियो के अच्छे गुणो से रोगो से लडे और विश्व-कल्याण मे अपना असल योगदान देवे। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
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क्या पानी भी कभी किसी के लिये अभिशाप बन सकता है? इसका जवाब हाँ मे है। दुनिया मे ऐसे गिने चुने लोग होते है जिन्हे “एक्वाजेनिक अर्टिकेरिया” नामक बीमारी होती है। ये लोग पानी पी सकते है बिना किसी मुश्किल के पर जब पानी से नहाने की कोशिश करते है तो इनके शरीर मे शीत-पित्ती की तरह चकत्ते पड जाते है। 1964 मे सबसे पहली बार इस अजब बीमारी के बारे मे पता चला था। दिसम्बर, 2008 मे न्यू साइंटिस्ट नामक प्रतिष्ठित चिकित्सा पत्रिका ने सात ऐसे रहस्यमय मामलो की पडताल की जिसमे विषय मे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पास कोई ठोस जवाब नही है। “सेवन अनसाल्वड मेडीकल मिस्टरीज” के विषय मे आप इस कडी पर जाकर पढ सकते है। इस कडी मे आपको छत्तीसगढ के सम्बन्ध मे कुछ नही मिलेगा पर इस रहस्यमय मामले का सम्बन्ध छत्तीसगढ मे जुडता है।
जैसा कि आप जानते है कि अपने वानस्पतिक सर्वेक्षणो के दौरान मै पारम्परिक चिकित्सको से मिलता रहता हूँ। उनसे अलग-अलग विषयो पर चर्चा होती रहती है पर बहुत से ऐसे अनसुलझे और जटिल मामलो की चर्चा भी उनसे करता रहता हूँ। आपमे से बहुत से लोगो ने यूनिवर्सिटी आफ पिट्सबर्ग के पैथोलाजी विभाग की यह वेबसाइट देखी होगी। चिकित्सा क्षेत्र मे शोध से जुडे लोग इस साइट मे केस स्टडीज को आपस मे बाँटते है और फिर विशेषज्ञो की राय से नतीजे तक पहुँचने की कोशिश करते है। इंटरनेट पर ऐसी बहुत सी वेबसाइट है। मै इन सभी जटिल मामलो को पारम्परिक चिकित्सको के सामने सरल भाषा मे रखकर उनसे चर्चा करता हूँ तो बहुत से उपयोगी सुझाव सामने आ जाते है। लम्बे समय तक इस क्षेत्र मे काम करने के कारण अक्सर इन मामलो मे मै भी बहुत कुछ सुझा पाता हूँ। पारम्परिक चिकित्सको और अपने सुझावो को मै अपने डेटाबेस मे दर्ज करता जाता हूँ। जब मै पानी से होने वाली एलर्जी का मामला लेकर पारम्परिक चिकित्सको के पास पहुँचा तो उन्होने आशा के विपरीत किसी भी तरह का आश्चर्य नही प्रकट किया। इसका मतलब यह था कि वे इस तरह की एलर्जी से परिचित थे। जब हमने कारणो पर चर्चा की तो वे मुस्कुराते हुये बोले कि रविवार को सुबह खाली पेट आना फिर इस पर चर्चा करेंगे।
अल सुबह मै उनके पास पहुँचा तो उन्होने बहुत सी वनस्पतियाँ अपने पास एकत्र कर रखी थी। सबसे पहले उन्होने कहा कि मै पास के झरने मे स्नान कर लूँ। मै वापस लौटा तो उन्होने कुछ जंगली फल खाने को दिये। फल खाने के कुछ समय बाद उन्होने मेरे हाथ को पानी मे डुबोया और कुछ ही देर मे शीत-पित्ती जैसे लक्षण उभर आये। मै आँखे फाडे देखता रहा। फिर उन्होने जंगली फलो के पेडो से एकत्र की गयी पत्तियो का रस पिलाया। फिर से पानी मे हाथ डुबायो तो चकत्ते नही निकले। कुछ देर की चर्चा के बाद उन्होने विशेष तरह के औषधीय चावल मे कुछ जडी-बूटियाँ मिलाकर मेरे सामने परोसा। एक निवाला ही खाया था कि अजीब स्वाद के कारण मै रुक गया। उन्होने कहा कि यदि नही अच्छा लग रहा हो तो न खाये। कुछ समय बाद फिर से पानी का पात्र लाया गया और उसमे हाथ डुबोया गया। चकत्ते फिर उभर आये। उसके बाद एक पेड की छाल चबाने को दी गयी। पानी मे फिर हाथ डुबोया गया तो चकत्ते नही उभरे। और जो थे वे ठीक हो गये। आपको आश्चर्य होगा कि उस दिन उन्होने बीस से अधिक किस्म की औषधीयाँ खिलायी और चकत्तो के उभरने और गायब होने का दौर चलता रहा। अनगिनत प्रश्न लिये मै उनसे चर्चा की बाट जोहता रहा।
पारम्परिक चिकित्सको से लम्बी चर्चा से यह सार निकला कि इस वाटर एलर्जी से प्रभावित व्यक्ति से विस्तार से चर्चा की जाये विशेषकर खान-पान और उसके आस-पास की वनस्पतियो के विषय मे पूछा जाये। उसकी प्रकृति के आधार पर विभिन्न वनस्पतियो का उस पर वैसा ही परीक्षण किया जाये जैसा मुझ पर हुआ और फिर एक बार मर्ज पकड आने पर उसकी चिकित्सा की जाये। उन्होने विश्वास से कहा कि यह मर्ज ठीक हो सकता है। मै इसे दूसरे नजरिये से भी देखता हूँ। एक बार मरीज पर वनस्पति विशेष के प्रभाव को देखने के बाद होम्योपैथी के सिद्धांत को अपनाकर भी उसे ठीक किया जा सकता है। हमारे पारम्परिक चिकित्सक होम्योपैथी नही जानते। उनका अपना अलग ढंग चिकित्सा का।
क्या कोई विश्वास करेगा कि दुनिया की सात अनसुलझे चिकित्सा मामलो पर इतनी सरल चर्चा हम हिन्दी के एक आलेख मे कर रहे है और आप जैसे पाठक सबसे पहले इसे पढ रहे है। यह सब पढने के बाद आपको क्या यह नही महसूस होता कि किसी भी चिकित्सा समस्या को दुनिया भर के सभी विशेषज्ञो के सामने चर्चा के लिये रखना चाहिये, आधुनिक हो या पारम्परिक? इससे जो सकरात्मक परिणाम आयेंगे उससे अंतोगत्वा लाभ तो मानवता का ही होगा। मुझे मालूम है कि आधुनिक चिकित्सा के ज्यादातर जानकारो तक यह बात नही पहुँचेगी। पर फिर भी प्रयास करने मे क्या परेशानी है? मुझे लगता है कि यदि आधुनिक और पारम्परिक चिकित्सको के बीच सेतु का निर्माण किया जाये तो दुनिया भर मे असंख्य जाने बच सकती है। इंटरनेट पर दर्ज कैसर के बहुत से मामलो पर मैने अपने विचार डेटाबेस मे संजोये और साथ ही पारम्परिक चिकित्सको के सुझाये उपायो को भी अपने डेटाबेस मे रखा। मेरे पास कोई रास्ता नही था कि मै ये उपाय उन आधुनिक चिकित्सा शोधकर्ताओ और विशेषज्ञो के पास पहुँचा पाता जो कि कैसर की अंतिम अवस्था मे पहुँच चुके मरीजो का इलाज कर रहे थे। चिकित्सा सम्बन्धी पारम्परिक ज्ञान के विश्व स्तर पर खुले प्रयोग की इजाजत हमारा कानून नही देता। सबसे बडी बात भारतीय पारम्परिक चिकित्सको को अपने देश मे नीम-हकीम का दर्जा प्राप्त है। फिर मै भी चिकित्सक नही हूँ। ऐसे मे सारा ज्ञान वैसा का वैसा पडा रहा और जीवन के लिये संघर्ष कर रहे मरीजो के यह काम नही आया।
इस लेख के माध्यम से मै आप सभी पाठको से अनुरोध करता हूँ कि इस पर गहनता से विचार करे और मानवता की सेवा हो सके ऐसे पथ पर बढने का सुझाव दे। मै तो इन सब अनुभवो और ज्ञान को दुनिया के लिये दस्तावेज के रुप मे सहेज रहा हूँ पर चाहता हूँ कि मेरे जीवन मे ही वह दिन आये जब सारे बन्धन और अहम को छोडकर सभी क्षेत्र के चिकित्सक एक मंच पर आये और उनका उद्देश्य हो मानव-कल्याण। सभी अपनी चिकित्सा पद्धतियो के अच्छे गुणो से रोगो से लडे और विश्व-कल्याण मे अपना असल योगदान देवे। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com
Crotalaria mysorensis as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Rijaco Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal
Drugs),
Crotalaria pallida as
Allelopathic ingredient to enrich herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal
Formulations (Indigenous Traditional Medicines) used for Ringani Toxicity
(Phytotherapy for toxicity of Herbal Drugs),
Crotalaria prostrata as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Rohira Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal
Drugs),
Crotalaria retusa as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Rotabal Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal
Drugs),
Crotalaria spectabilis as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Rota belari Toxicity (Phytotherapy for toxicity of
Herbal Drugs),
Crotalaria trifoliastrum as Allelopathic ingredient to
enrich herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous
Traditional Medicines) used for Rotobel Toxicity (Phytotherapy for toxicity
of Herbal Drugs),
Crotalaria verrucosa as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Rown Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal
Drugs),
Croton bonplandianum as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Rudanti Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal
Drugs),
Croton malabaricus as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Safed Bagro Toxicity (Phytotherapy for toxicity of
Herbal Drugs),
Cryptocoryne spiralis as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Sares Toxicity (Phytotherapy for toxicity of Herbal
Drugs),
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