तेन्दुआ, सनसनीखेज खबरो के चक्कर मे अखबार और गहराता संकट

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-22
- पंकज अवधिया

तेन्दुआ, सनसनीखेज खबरो के चक्कर मे अखबार और गहराता संकट


श्री विश्वास रात की पाली समाप्त कर वैगन रिपेयर शाप से लौट रहे थे। रेल्वे क्रासिंग के आस उन्हे कोई बडा सा जंगली जानवर उछलकर झाडियो के अन्दर जाते दिखा। उन्हे लगा कि ये तेन्दुआ है। बस यह बात जंगल मे आग की तरह फैल गयी। दूसरे दिन राजधानी के अखबारो मे यह खबर छप गयी। मनुष्यो और जंगली जानवरो की समस्याओ के लिये लम्बी दूरी तक सफर जब-तब मै करता रहता हूँ। इस बार जिस स्थान पर तेन्दुए के दिखने की बात हो रही थी वह घर से महज आठ-दस किलोमीटर की दूरी पर है। फिर मै वहाँ कैसे न जाता? कल सुबह ही मै उस स्थान की ओर रवाना हो गया। उस स्थान पर पहुँचने पर मैने पाया कि वहाँ इस घटना के बारे मे कम लोग जानते है। अखबारो मे कहा गया था कि लोग दहशत मे है। पर वहाँ तो मजे से बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। जिन झाडीनुमा जंगलो मे तेन्दुए को देखने की बात की जा रही थी वहाँ पर भैसे मजे से चर रही थी। मैने रुककर इस बारे मे पूछना चाहा तो चरवाहो ने कहा कि पिछले साल ऐसी घटनाए हुयी थी पर हाल की घटना के बारे मे ऐसी कोई खबर नही है। मुझे बडा ही आश्चर्य हुआ। हम आगे बढते गये।

वैगन रिपेयर वर्कशाप के मुख्य द्वार के सामने गेट पास के लिये हमे रोक दिया गया। झाडीनुमा जंगल तक जाने के लिये यही से अन्दर जाना पडता है। पास मे रेल्वे पुलिस का थाना था। मैने वहाँ जाकर तेन्दुए के हमले की घटना के बारे मे जानना चाहा। साथ ही आस-पास के लोगो से भी बात की। उन्होने चौकाने वाला खुलासा किया कि तेन्दुए के हमले की खबर सही नही है। अखबारो मे खबर को सनसनीखेज बनाने के लिये ऐसा किया होगा। किसी जंगली जीव को श्री विश्वास ने झाडियो मे घुसते देखा। न उसने श्री विश्वास पर आक्रमण किया और न ही उन्होने मदद के लिये कर्मचारियो को बुलाया। अखबारो मे छपी यह बात भी गलत निकली कि यह घटना मार्निग वाक के दौरान हुयी। मुझे बडी ही कोफ्त हुयी कि राजधानी क्षेत्र मे शहर के इतने पास से अखबारो मे गलत रिपोर्टिंग क्यो की जा रही है? साथ ही इस बात का संतोष भी हुआ कि तेन्दुए ने आक्रमण नही किया। मेरा अनुमान सही था। जंगली जीव बिना परेशान किये इस तरह की हरकत आमतौर पर नही करते है।

कुछ महिनो पहले जब एक तेन्दुआ शहर के टिम्बर मार्केट मे घुस आया था तब वह दो दिनो तक इलाके मे रहा। उसने किसी को भी नुकसान नही पहुँचाया। वह बचता रहा। कुछ मकानो की दूसरी मंजिल पर सीढीयो से गया पर कुत्ता समझकर बिना दरवाजा खोले ही अन्दर से लोगो ने उसे झिडक दिया। वह वापस चला गया। पूजा करते वक्त एक व्यवसायी ने उसे देखा तो शोर मचाया गया। उस समय भी उसने आक्रमण नही किया।

वन विभाग की एक थ्योरी के बारे मे मैने पिछले लेख मे आपको बताया था कि जंगल से जंगली जीव मालगाडी की रेक मे सवार होकर आते है। फिर मालगाडी के वैगन रिपेयर वर्कशाप से गुजरने पर वे वही उतर जाते है। प्रभावित क्षेत्र मे आम लोगो से बातचीत करने पर पता लगा कि अन्दर पानी की एक बडी झील है। साथ ही और भी दूसरे जल स्त्रोत है जहाँ इस भीषण गर्मी मे भी पर्याप्त जल है। सालो से इसी कारण यहाँ बहुत से जंगली जीव पनप रहे है। इस वीरान क्षेत्र मे मानव की गतिविधियाँ सीमित है इसलिये वहाँ ये बिना किसी डर के रह रहे है। आस-पास के तेजी से कट रहे जंगलो से दूसरे जीवो के आने का क्रम जारी है। वे रेलगाडी से नही आ रहे है। वे रात को उन रास्तो से आ रहे है जहाँ से आम आदमी गुजरता है और जहाँ भी पानी मिल रहा है, वही डेरा जमा रहे है। रात को आम रास्तो से गुजरने वाले ट्रक वालो के बीच गर्मियो मे बडी संख्या मे जंगली जीवो के दिखने की चर्चा आम है। बहुत से जीव जाने-अनजाने ही तेज रफ्तार गाडियो की चपेट मे भी आ जाते है। वैगन रिपेयर शाप मे स्थानीय लोगो ने कहा कि आने वाले सालो मे यह समस्या बहुत बढेगी और इससे कई जाने जा सकती है।

मुझे बताया गया कि वन विभाग का अमला लगातार तेन्दुए की तलाश मे है। मै उनसे नही मिल पाया। शाम चार बजे एक बार फिर से इस स्थान पर आने का मन बनाकर मै वापस लौटने लगा। तभी प्रदेश के प्रसिद्ध घटारानी क्षेत्र से फोन आ गया कि एक माह पहले किसी लकडबघ्घे के आक्रमण से घायल हुये आठ ग्रामीणो मे से एक की हालत बहुत खराब है। उसके एक हाथ ने काम करना बन्द कर दिया है। मैने बिना विलम्ब उस ओर का रुख किया। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

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