अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -20
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -20 - पंकज अवधिया
जंगलो से गुजरते हुये मै साथ बैठे ग्रामीणो से बातचीत कर रहा था। मुझे बताया गया कि इस बार माता का प्रकोप बहुत होगा पूरे क्षेत्र मे। माता मतलब चिकन पाक्स। कैसे पता? मैने पूछा। गाँव के एक बुजुर्ग का कहना है। बिना विलम्ब मैने ड्रायवर से गाडी उस दिशा मे मोडने को कहा जहाँ इस बुजुर्ग का गाँव था। उबड-खाबड सडक पार कर हम गाँव पहुँचे। बुजुर्ग का घर गाँव के आखिर मे था। उन्होने मेरी बात सुनी और कहा कि उन्हे वनस्पतियो के आकार और रंग मे आये परिवर्तन से यह पता चल जाता है कि किस तरह की बीमारी क्षेत्र मे इस बार फैलने वाली है। ऐसी बात सुनकर आप अपने किताबी ज्ञान के आधार पर बिना किसी देरी के हँस पडेंगे और माखौल उडाने लगेंगे। पर लम्बे समय से पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के दस्तावेजीकरण करते हुये मैने अपने अनुभव से यह सीखा है कि इस कार्य के लिये असीम धैर्य की जरुरत है। आपको सभी तरह की बाते सुननी पडती है। चाहे वह विज्ञान सम्मत हो या न हो। विज्ञान मतलब आज का विज्ञान या कहे अभी तक का विज्ञान। विज्ञान मे तो नित नयी बातो का समावेश होता ही रहता है। हो सकता है आज जो बात हमे विज्ञान सम्मत न लगे वह कल विज्ञान सम्मत हो जाये। इसलिये सभी बातो को अपने मूल स्वरुप मे दस्तावेजीकरण करने का प्रयास मै करता हूँ। यदि मै उस बुजुर्ग का माखौल उडाकर लौट आता तो भले ही साथ चल रहे ग्रामीणो पर मेरी धाक जम जाती पर मै कुछ नया नही सीख पाता। मेरी रुचि देखकर उस बुजुर्ग ने रात भर गाँव मे रुकने और फिर अगली सुबह पास की पहाडी पर चलने को कहा। उनकी बात मान ली गयी।
सुबह काफी चढाई के बाद हम शिखर तक पहुँचे। वहाँ उन्होने तेन्दू, जिसकी पत्तियो से बीडी बनायी जाती है, के पौधे दिखाये। पास से उन्हे देखने पर पत्तियो मे फफोले की तरह उभार दिखायी दिये। लगता था कि किसी रोग के कारण ऐसे फफोले पडे है। बुजुर्ग ने कहा कि पत्तियो मे ऐसे फफोले हर बार नही पडते। जिस साल पडते है उस साल माता का प्रकोप होना सुनिश्चित है। तेन्दु के साथ यदि पलाश की पत्तियो मे भी ऐसे निशान दिखे तो फिर तो भगवान ही मालिक है। मैने तस्वीरे उतारी और उनके साथ वापस लौट आया। अब मुझे लगातार उस क्षेत्र मे निगाह रखनी थी कि आम लोगो पर कहर बरपा कि नही। इस बीच मैने इकोपोर्ट मे यह तस्वीर डाली और विशेषज्ञो से सलाह ली।
मुझसे पूछा गया कि फफोले को फोडकर देखने पर क्या दिखा? मैने तो ऐसा किया नही था। इसलिये फिर उस स्थान तक गया और फफोलो को फोडा। उसमे से ढेरो छोटे-छोटे मकोडे निकले। विशेषज्ञो ने पुष्टि की कि यह लीफ गाल माइट का प्रकोप है और मौसम के अनुसार जंगली और शहरी सभी पौधो मे इनका प्रकोप होता है। बडे ही संकोच से मैने इसके महामारी से सम्बन्ध होने की धारणा के विषय मे विशेषज्ञो से पूछा। उन्होने हाथ खडे कर दिये पर बहुतो ने कहा कि यदि यह पारम्परिक ज्ञान है तो इसकी तह तक जाओ।
उस साल माता का प्रकोप हुआ पर यह अन्दाज नही लग पाया कि बहुत ज्यादा हुआ या कम। जितनी मुँह, उतनी बाते। सरकारी आँकडो का सच तो हम सब जानते ही है। उस बुजुर्ग की आँखो मे गहरे छिपे विश्वास के कारण इसे अन्ध-विश्वास करार देने का मेरा मन नही था। इसके बाद मै जहाँ भी गया इसकी तस्वीर आम लोगो को दिखायी और उनके विचार पूछे। लोगो के मिले-जुले विचार सामने आये। तेन्दु और पलाश के अलावा मैने दसो जंगली पौधो पर इसे देखा। इसी बहाने इस पर विस्तार से अध्ययन भी हो गया। लोगो से बात करने पर लगा कि बुजुर्गो को इस पर अधिक विश्वास है।
अपनी नियमगिरि यात्रा के दौरान मैने अलाबेली गाँव के पारम्परिक चिकित्सक से भी यह पूछा। उन्होने भी इस तरह के ज्ञान के होने की बात कही। उन्होने बताया कि वे गन्ध बबूल और पलाश के पेडो की शाखाओ अपने आप बन जाने वाले मिट्टी के गोलो से इस तरह की महामारी के फैलने का अनुमान लगाते है। मेरे लिये ये मिट्टी के गोले नये नही थे। मैने छत्तीसगढ मे बबूल और पलाश दोनो ही मे इन गोलो को देखा था। ग्रामीणो ने कहा कि यह कीडे ने बनाया है और इसके अन्दर आपको वह मिल जायेगा पर गोलो को तोडने पर उनमे से कुछ भी नही निकला। मैने तस्वीर उतारी और वही प्रक्रिया अपनायी। विश्व खाद्य संगठन के विशेषज्ञो ने बताया कि यूरोमाइक्लेडियम नामक कवक के प्रकोप के कारण ऐसे गोले बनते है। ये मिट्टी के गोले नही होते है बल्कि शाखाओ मे अपने आप गाँठ बन जाती है। इस गाँठ मे कभी-कभी दीमक आ जाते है जिससे उसमे मिट्टी के होने का अहसास होता है। इस रोग का आक्रमण और वनस्पतियो का इससे प्रभावित होना आम है और इसमे कोई चमत्कार नही है। संगठन से मुझे उपहार के तौर पर एक रंगीन पुस्तक भी आ गयी जिसमे दुनिया भर मे इसके प्रकोप के चित्र थे।
अलाबेली के पारम्परिक चिकित्सक इससे बरसात के मौसम मे होने वाले रोगो की भविष्य़वाणी करते है। उन्होने कहा कि हर साल प्रकोप का स्तर एक जैसा नही होता। उनका कहना सही है। पर मानव रोगो से इसके सम्बन्धो का पता लगा पाने मे मै असफल रहा। वैज्ञानिक साहित्य इस बात की पुष्टि करते है कि बाँस मे फूल आने से बीजो को खाने के लिये चूहे आते है और तेजी से उनकी संख्या मे बढोतरी होती है। जब बीज समाप्त हो जाते है तो ये चूहे किसानो के अन्न भंडार का रुख करते है और देखते ही देखते अन्न के लाले पड जाते है।पिछले हफ्ते ही मै एक विज्ञान चैनल मे मिजोरम मे बाँसो के फूलने पर बनायी गयी एक फिल्म देख रहा था। उसमे बडे अच्छे से यह दिखाया गया था कि पहले की तरह इस बार चूहो ने उतना नुकसान नही पहुँचाया।
प्रकृति मे लगातार परिवर्तन होते रहते है और उसे वे लोग ज्यादा अच्छे से जानते है जो उसके करीब रहते है। यही बात मुझे इसकी गहन विवेचना के लिये प्रेरित करती है। मै इस लेख के माध्यम से नयी पीढी को इसकी वैज्ञानिक व्याख्या का जिम्मा सौप रहा हूँ।(क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
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जंगलो से गुजरते हुये मै साथ बैठे ग्रामीणो से बातचीत कर रहा था। मुझे बताया गया कि इस बार माता का प्रकोप बहुत होगा पूरे क्षेत्र मे। माता मतलब चिकन पाक्स। कैसे पता? मैने पूछा। गाँव के एक बुजुर्ग का कहना है। बिना विलम्ब मैने ड्रायवर से गाडी उस दिशा मे मोडने को कहा जहाँ इस बुजुर्ग का गाँव था। उबड-खाबड सडक पार कर हम गाँव पहुँचे। बुजुर्ग का घर गाँव के आखिर मे था। उन्होने मेरी बात सुनी और कहा कि उन्हे वनस्पतियो के आकार और रंग मे आये परिवर्तन से यह पता चल जाता है कि किस तरह की बीमारी क्षेत्र मे इस बार फैलने वाली है। ऐसी बात सुनकर आप अपने किताबी ज्ञान के आधार पर बिना किसी देरी के हँस पडेंगे और माखौल उडाने लगेंगे। पर लम्बे समय से पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के दस्तावेजीकरण करते हुये मैने अपने अनुभव से यह सीखा है कि इस कार्य के लिये असीम धैर्य की जरुरत है। आपको सभी तरह की बाते सुननी पडती है। चाहे वह विज्ञान सम्मत हो या न हो। विज्ञान मतलब आज का विज्ञान या कहे अभी तक का विज्ञान। विज्ञान मे तो नित नयी बातो का समावेश होता ही रहता है। हो सकता है आज जो बात हमे विज्ञान सम्मत न लगे वह कल विज्ञान सम्मत हो जाये। इसलिये सभी बातो को अपने मूल स्वरुप मे दस्तावेजीकरण करने का प्रयास मै करता हूँ। यदि मै उस बुजुर्ग का माखौल उडाकर लौट आता तो भले ही साथ चल रहे ग्रामीणो पर मेरी धाक जम जाती पर मै कुछ नया नही सीख पाता। मेरी रुचि देखकर उस बुजुर्ग ने रात भर गाँव मे रुकने और फिर अगली सुबह पास की पहाडी पर चलने को कहा। उनकी बात मान ली गयी।
सुबह काफी चढाई के बाद हम शिखर तक पहुँचे। वहाँ उन्होने तेन्दू, जिसकी पत्तियो से बीडी बनायी जाती है, के पौधे दिखाये। पास से उन्हे देखने पर पत्तियो मे फफोले की तरह उभार दिखायी दिये। लगता था कि किसी रोग के कारण ऐसे फफोले पडे है। बुजुर्ग ने कहा कि पत्तियो मे ऐसे फफोले हर बार नही पडते। जिस साल पडते है उस साल माता का प्रकोप होना सुनिश्चित है। तेन्दु के साथ यदि पलाश की पत्तियो मे भी ऐसे निशान दिखे तो फिर तो भगवान ही मालिक है। मैने तस्वीरे उतारी और उनके साथ वापस लौट आया। अब मुझे लगातार उस क्षेत्र मे निगाह रखनी थी कि आम लोगो पर कहर बरपा कि नही। इस बीच मैने इकोपोर्ट मे यह तस्वीर डाली और विशेषज्ञो से सलाह ली।
मुझसे पूछा गया कि फफोले को फोडकर देखने पर क्या दिखा? मैने तो ऐसा किया नही था। इसलिये फिर उस स्थान तक गया और फफोलो को फोडा। उसमे से ढेरो छोटे-छोटे मकोडे निकले। विशेषज्ञो ने पुष्टि की कि यह लीफ गाल माइट का प्रकोप है और मौसम के अनुसार जंगली और शहरी सभी पौधो मे इनका प्रकोप होता है। बडे ही संकोच से मैने इसके महामारी से सम्बन्ध होने की धारणा के विषय मे विशेषज्ञो से पूछा। उन्होने हाथ खडे कर दिये पर बहुतो ने कहा कि यदि यह पारम्परिक ज्ञान है तो इसकी तह तक जाओ।
उस साल माता का प्रकोप हुआ पर यह अन्दाज नही लग पाया कि बहुत ज्यादा हुआ या कम। जितनी मुँह, उतनी बाते। सरकारी आँकडो का सच तो हम सब जानते ही है। उस बुजुर्ग की आँखो मे गहरे छिपे विश्वास के कारण इसे अन्ध-विश्वास करार देने का मेरा मन नही था। इसके बाद मै जहाँ भी गया इसकी तस्वीर आम लोगो को दिखायी और उनके विचार पूछे। लोगो के मिले-जुले विचार सामने आये। तेन्दु और पलाश के अलावा मैने दसो जंगली पौधो पर इसे देखा। इसी बहाने इस पर विस्तार से अध्ययन भी हो गया। लोगो से बात करने पर लगा कि बुजुर्गो को इस पर अधिक विश्वास है।
अपनी नियमगिरि यात्रा के दौरान मैने अलाबेली गाँव के पारम्परिक चिकित्सक से भी यह पूछा। उन्होने भी इस तरह के ज्ञान के होने की बात कही। उन्होने बताया कि वे गन्ध बबूल और पलाश के पेडो की शाखाओ अपने आप बन जाने वाले मिट्टी के गोलो से इस तरह की महामारी के फैलने का अनुमान लगाते है। मेरे लिये ये मिट्टी के गोले नये नही थे। मैने छत्तीसगढ मे बबूल और पलाश दोनो ही मे इन गोलो को देखा था। ग्रामीणो ने कहा कि यह कीडे ने बनाया है और इसके अन्दर आपको वह मिल जायेगा पर गोलो को तोडने पर उनमे से कुछ भी नही निकला। मैने तस्वीर उतारी और वही प्रक्रिया अपनायी। विश्व खाद्य संगठन के विशेषज्ञो ने बताया कि यूरोमाइक्लेडियम नामक कवक के प्रकोप के कारण ऐसे गोले बनते है। ये मिट्टी के गोले नही होते है बल्कि शाखाओ मे अपने आप गाँठ बन जाती है। इस गाँठ मे कभी-कभी दीमक आ जाते है जिससे उसमे मिट्टी के होने का अहसास होता है। इस रोग का आक्रमण और वनस्पतियो का इससे प्रभावित होना आम है और इसमे कोई चमत्कार नही है। संगठन से मुझे उपहार के तौर पर एक रंगीन पुस्तक भी आ गयी जिसमे दुनिया भर मे इसके प्रकोप के चित्र थे।
अलाबेली के पारम्परिक चिकित्सक इससे बरसात के मौसम मे होने वाले रोगो की भविष्य़वाणी करते है। उन्होने कहा कि हर साल प्रकोप का स्तर एक जैसा नही होता। उनका कहना सही है। पर मानव रोगो से इसके सम्बन्धो का पता लगा पाने मे मै असफल रहा। वैज्ञानिक साहित्य इस बात की पुष्टि करते है कि बाँस मे फूल आने से बीजो को खाने के लिये चूहे आते है और तेजी से उनकी संख्या मे बढोतरी होती है। जब बीज समाप्त हो जाते है तो ये चूहे किसानो के अन्न भंडार का रुख करते है और देखते ही देखते अन्न के लाले पड जाते है।पिछले हफ्ते ही मै एक विज्ञान चैनल मे मिजोरम मे बाँसो के फूलने पर बनायी गयी एक फिल्म देख रहा था। उसमे बडे अच्छे से यह दिखाया गया था कि पहले की तरह इस बार चूहो ने उतना नुकसान नही पहुँचाया।
प्रकृति मे लगातार परिवर्तन होते रहते है और उसे वे लोग ज्यादा अच्छे से जानते है जो उसके करीब रहते है। यही बात मुझे इसकी गहन विवेचना के लिये प्रेरित करती है। मै इस लेख के माध्यम से नयी पीढी को इसकी वैज्ञानिक व्याख्या का जिम्मा सौप रहा हूँ।(क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Updated Information and Links on March 15, 2012
Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com
Anemone rivularis HAM.
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (9 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Maharashtra; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-6; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Aneseia martinicensis (JACQ.) CHOIS. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (15 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Maharashtra; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Angelonia salicariaefolia HUMB. & BONPL. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (25 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Jharkhand; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Angiopteris evecta (FORST.) HOFFM. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (20 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Assam; Not mentioned in ancient literature
related to different systems of medicine in India and other countries; Popularity
of Formulation (1-10) among the Young Healers-7; Farash and Jamun Trees growing under stress
are preferred for collection of leaves; पंकज अवधिया के
शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Aniseia martinicensis (JACQ.) CHOISY in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (16 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Maharashtra; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Aphanamixis polystachya (WALL.) PARKER in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (16 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Jharkhand; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-7; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Aphananthe cuspidata (BL.) PLANCH. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (30 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Jharkhand; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Apluda mutica L. in
Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal
Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (18 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Maharashtra; Not mentioned in ancient literature related to
different systems of medicine in India and other countries; Popularity of
Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Apollonias arnottii NEES
in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines
(Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles (Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye Farash (Erythrina) aur
Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (8 Herbal Ingredients, Tribal
Formulations of Assam; Not mentioned in ancient literature related to different
systems of medicine in India and other countries; Popularity of Formulation
(1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: खूनी
बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों का प्रयोग),
Aponogeton natans (L.) ENGL. & KRAUSE in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Bleeding Piles
(Hemorrhoids): Khooni Bawasir ke liye
Farash (Erythrina) aur Jamun (Syzygium) ki Pattiyon ka Prayog (23 Herbal
Ingredients, Tribal Formulations of Maharashtra; Not mentioned in ancient
literature related to different systems of medicine in India and other
countries; Popularity of Formulation (1-10) among the Young Healers-5; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: खूनी बवासिर के लिए फराश और जामुन की पत्तियों
का प्रयोग),
Comments
-काफी रोचक जानकारी मिल रही है इस श्रृंख्ला में. आभार आपका.