अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -4

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -4
- पंकज अवधिया
आमतौर पर गाँव मे कोई भी समस्या आने पर ग्रामीण बैगा की शरण लेते है। चाहे वह किसी तरह की अनहोनी हो या फिर फसलो मे कीटो और रोगो का प्रकोप। बैग़ा उन्हे उपाय सुझाते है। धान की फसल मे जब कीडो का प्रकोप बढ जाता है और ऐसा लगने लगता है कि अब स्थायी नुकसान को टाला नही जा सकता तो आज भी बैगा की मदद ली जाती है। यह सच है कि आजकल किसान रासायनिक आदानो के प्रति जगरुक हो गये है और कीटनाशको के प्रयोग के विषय मे वैज्ञानिको से अधिक जानकारी रखने लगे पर बहुत बार इन रसायनो से भी कीट नियंत्रित नही होते है। बैग़ा पवित्र जल लेकर झाडू से फसल पर छिडकते है और मंत्रो का उच्चारण करते है। वे खेतो को बाँध भी देते है ताकि कीडे अन्दर प्रवेश न कर सके। इसके बाद अक्सर यह सुनने मे आता है कि कीटो पर नियंत्रण हो गया है। ऐसे ढेरो किस्से ग्रामीण अंचलो मे सुनने को मिल जाते है। इसपर एकाएक विश्वास नही होता। विशेषकर जब आपने कृषि विज्ञान की शिक्षा ली हो और जानते हो कि कीडो को नियंत्रित करना कितना मुश्किल काम है। मै दसो बार ऐसे मौके पर पहुँचा हूँ ताकि यह जान सकूँ कि कैसे मंत्र और पवित्र जल से कीडे नियंत्रित हो जाते है? ज्यादातर मामलो मे मुझे तो यह एक साधारण प्रक्रिया लगी। मै इसे लोगो का विश्वास ही कहूंगा जो बैगा द्वारा किये जा रहे उपायो पर भरोसा कर लेते है और आने वाले सालो मे उनकी सेवाए लेते रहते है। इन उपायो के बाद भी मैने ज्यादातर मामलो मे कीटो के प्रकोप को बढते और फसलो को बर्बाद होते देखा है।
मै यहाँ बार-बार ज्यादातर मामलो मे का प्रयोग इसलिये कर रहा हूँ क्योकि बहुत से ऐसे भी मामले मैने देखे है जिसमे बैगा विशेष प्रकार की वनस्पतियो के प्रयोग से कीडो पर नियंत्रण करते है। दक्षिण छत्तीसगढ मे एक बार मुझे बैगा द्वारा अपनायी जा रहे प्रक्रिया को देखने आमंत्रित किया गया। मैने देखा कि मंत्रो का उच्चारण जारी था पर पवित्र जल साफ न होकर गन्दला था। उसे ध्यान से देखा तो पता चला कि उसमे वनस्पतियो को सडाया गया था। खेतो को बाँधने के बाद बैगा ने एक विशेष वनस्पति की डालियो को खेत मे अलग-अलग स्थानो पर गाडा और फिर बची हुयी टहनियो को पानी की उस नाली मे डाल दिया जिससे खेत मे पानी आता था। मैने वनस्पति को देखा और कर्रा के रुप मे उसकी पहचान की। मै चौका नही क्योकि औषधीय और सगन्ध फसलो की जैविक खेती मे हमने कई बार इसका प्रयोग सफलतापूर्वक किया था। इसमे प्राकृतिक कीटनाशक के गुण होते है। देश के बहुत से भागो मे पारम्परिक जैविक खेती मे इसका प्रयोग अलग-अलग ढंग़ से होता है। इस पर आधुनिक अनुसन्धान भी हुये है। बैगा ने कर्रा का प्रयोग किया था। यह उसका पारम्परिक ज्ञान था। अब ऐसे मे कीडो का नियंत्रित होना किसी तरह का चमत्कार नही था। हम इसे अन्ध-विश्वास की श्रेणी मे भी नही रख सकते। ऐसी दसो वनस्पतियो का प्रयोग मैने बैगाओ के माध्यम से देखा है। ग्रामीणो को यह कहते भी सुना है कि हम जब इस वनस्पति का प्रयोग करते है तो हमे ऐसे परिणाम नही मिलते जैसे बैगा को मिलते है। यह उनका अपना विश्वास हो सकता है। पर यदि यह प्रभाव वनस्पति का है तो सभी मामलो मे एक जैसा असर होगा। हाँ, यह हो सकता है कि बैगा इसे प्रयोग करते समय कुछ विशेष विधि अपनाता हो और इसके बारे मे जानकारी गोपनीय रखता हो। उदाहरण के लिये बच नामक वनस्पति का प्रयोग देखे। इसे खेतो के चारो ओर लगाने के बाद बैगा इनकी पत्तियो के ऊपरी सिरे को काट देते है। इससे पत्तियो के अन्दर उपस्थित आवश्यक वाष्पशील तेल हवा मे बिखरने लगते है और कीडो के बीच के रासायनिक संवाद मे दिक्कत आने लगती है। आम लोग जब बच को बिना पत्तियो को काटे लगा देते है तो उनको उतना अधिक प्रभावी नियंत्रण नही मिलता।
आधुनिक समाज गाँवो मे बैगा की उपस्थिति को कई समस्याओ की जड मानता है और सोचता है कि इन्हे गाँव से समाप्त कर गाँव को भयमुक्त किया जा सकता है। बहुत से लोग ऐसे भी है जो बैगा के बिना गाँवो को अधूरा मानते है। आज बहुत से गाँवो मे बैगा के पास मोबाइल है और वह आधुनिक सुविधाओ से लैस है फिर भी ग्रामीण समाज मे उसे वही सम्मान प्राप्त है। आज भी साल के हर दिन गाँव को उसकी जरुरत पडती है। बैगा का रहना गाँव के लिये सही है या नही-इस बहस मे मै नही पडना चाहता पर मैने अपने अनुभव से जाना है कि इनके पास वनस्पतियो के सम्बन्ध मे गहरा ज्ञान है। इस नजरिये से उनका हमारे बीच रहना जरुरी लगता है। मैने पारम्परिक चिकित्सको के साथ अधिक समय बिताया है और उनके ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया। बैगाओ से ये पारम्परिक चिकित्सक अलग है क्योकि वे झाड-फूँक की जगह वनस्पतियो को अधिक महत्व देते है।
वनस्पतियो की सहायता से कीट नियंत्रण की बात चल निकली है तो मुझे एक और रोचक बात याद आ रही है। आमतौर पर गृहवाटिका मे अच्छे फूलो की प्राप्ति के लिये लोग कीटनाशको का प्रयोग करते है। इन कीटनाशको से घर के सदस्यो के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पडता है- यह हम सभी जानते है। फिर भी इसे अनदेखा करते रहते है। मै बहुत सी देशी वनस्पतियो को गृहवाटिका मे स्थान देने की सलाह देता हूँ। सीताफल इनमे से एक है। सीताफल के फल हम बडे चाव से खाते है। बहुत से लोगो के मन मे इसके प्रति गलत धारणा है। वे फल तो खाते है मजे से पर इसे घर मे नही लगाना चाहते। उनका तर्क होता है कि यह उजाड जमीन विशेषकर श्मशान भूमि मे उगता है। वास्तु की कुछ पुस्तको मे भी इस तरह की बात मिल जाती है। मै ऐसे लोगो से जब गृहवाटिका मे उग रहे पौधो की सूची माँगता हूँ और उसका अध्ययन करता हूँ तो ज्यादातर पौधे विदेशी मिलते है। इसमे बहुत से ऐसे पौधे होते है जो विदेशो मे श्मशान मे लगाये जाते है। प्लूमेरिया का ही उदाहरण ले। उसे तो ग्रेवयार्ड ट्री भी कहा जाता है। पर इनसे परहेज नही किया जाता है और शान से गृहवाटिका मे लगाया जाता है। इस बारे मे जानकारी न रखने वाले वास्तुविद भी इन विदेशी पौधो को लगाने की पैरवी करते है।
सीताफल को बहुतो ने अपने घर मे लगाया है और अभी तक उन्हे बुरे अनुभव नही हुये है जैसा कि इसके बारे मे प्रचार किया जाता है। मेरे अपने घर मे यह लगा हुआ है। किसान बडे पैमाने पर इसकी खेती कर रहे है। वैज्ञानिक चौबीसो घंटे इस पर अनुसन्धान कर रहे है। उन्हे तो किसी प्रकार का नुकसान नही हो रहा है। फिर सीताफल को गृहवाटिका मे लगाकर आप कीटनाशको के प्रयोग से बच सकते है। पत्तियो के रस का छिडकाव करे और गृहवाटिका को न केवल कीडो बल्कि रोगो से मुक्त रखिये। इस रस से अपना सिर भी धोए और बालो की सेहत सुधारे। डेंड्रफ से मुक्ति पाये। पत्तियो को नीम जैसी दूसरी पत्तियो के साथ जलाये और मच्छरो व मख्खियो से मुक्ति पाये। फिर स्वादिष्ट फल भी तो मिलेंगे। इन बातो को सुनकर बहुत से लोग गृहवाटिका मे सीताफल लगाने तैयार हो जाते है। पर देशी वनस्पतियो के विषय मे फैले भ्रम को आम लोगो से निकालना इतना आसान भी नही प्रतीत होता है। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Updated Information and Links on March 15, 2012

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अवधिया जी नमस्कार, बहुत दिनों बाद आप को पढ़ा है। आप बहुत सार्थक काम कर रहे हैं। अंधविश्वास के पीछे के वैज्ञानिक ज्ञान को जानकर ही उन से समाज को मुक्त किया जा सकता है।

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