अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -8

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -8
- पंकज अवधिया
बरसात के दिन थे। शाम को बाहर रखे बर्तनो की टोकरी को जैसे ही मेरी माताजी ने उठाया उन्हे लगा कि किसी ने उनके अंगूठे को पकडने की कोशिश की है। किसी ने? पर किसने? वे चीख पडी। आस-पास देखा तो कुछ न दिखा। उनके चेहरे पर डर था। हम लोग पहुँचे। अंगूठे को देखा पर कुछ नजर नही आया। क्या वह कीडा था या चूहा? माताजी कुछ बता नही पा रही थी। पर ऐसा अहसास उन्हे पहले कभी नही हुआ था। उन्हे बिठाकर हम लोगो ने टोकरी उठायी और किचन मे रख दी। जैसे ही टोकरी रखी उसमे से उछलकर एक साँप निकला और सिंक मे जाकर बैठ गया। अफरातफरी मच गयी। याने अंगूठा इसी ने पकडा था। हम सब बुरी तरह से घबरा गये। पहले साँप से निपटना था। वह ऐसी जगह बैठा था जहाँ से बिना मारे उसे निकालना सम्भव नही था। डंडे का प्रायोग इस तंग जगह मे सम्भव नही था। मैने साँप को ध्यान से देखा और किताबी ज्ञान के आधार पर यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि यह जहरीला है या नही पर तय नही कर पाया। बाहर से रिक्शेवाले आ गये। कोई कहता रहा पानी वाला साँप है तो कोई जहरीला बताता रहा। माताजी के लिये गाडी बुलवायी गयी। साँप इधर-उधर घुस न जाये इसलिये सतत निगरानी रखी गयी उस पर। साँप को कैसे मारे यह समझ नही पडता था। किसी ने कीटनाशक डालने की बात कही और देखते ही देखते काकरोच मारने वाले कीटनाशक से साँप को नहला दिया। उस पर तो जैसे कुछ फर्क ही नही पडा। मै साँप से युद्ध छोड माताजी के पास आ गया।
अंगूठे को ध्यान से देखा तो कुछ दिखा नही। यदि यह जहरीला साँप है तो थोडी भी लापरवाही महंगी पड सकती थी। माताजी की हालत ठीक थी भी और नही भी। मैने नीम की कुछ पत्तियाँ दी चबाने को और स्वाद पूछा। कडवा-उनका जवाब आया। मै कुछ निश्चिंत हुआ कि यदि जहर होता तो पत्तियाँ मीठी लगती। पर इस ज्ञान के उपयोग से मै कुछ सशंकित भी था। मैने ऐसी परीक्षा के बारे मे देखा और सुना था पर कभी आजमाया नही था। आधुनिक विज्ञान से सम्बन्धित साहित्य तो इस परीक्षा के बारे मे कुछ नही लिखते। मैने अंगूठे के ऊपर वाले स्थान मे कसकर कपडा बाँध दिया और चिकित्सक के पास जाने की तैयारी करने लगा। इस बीच पता चला कि साँप को बेहरमी से मार डाला गया है। बेहरमी से इसलिये क्योकि उसपर उबलता पानी डाला गया और पलभर मे उसका काम-तमाम हो गया।
चिकित्सक तक पहुँचते-पहुँचते पैरो की हालत खराब होने लगी। चिकित्सक ने सबसे पहले कसा हुआ कपडा हटाया और कहा कि किसने यह पुराना उपाय अपनाया? इससे कुछ फर्क नही पडता। मै अवाक था क्योकि मैने हर जगह यही पढा था। पर कपडा हटाते ही माताजी को अच्छा लगने लगा। इसके मायने कसकर बाँधा गया कपडा बढी हुयी तकलीफ का मुख्य कारण था। चिकित्सक ने अंगूठे को ध्यान से देखा और कहा कि हालत गम्भीर है। अभी से इलाज शुरु करना होगा। हालत गम्भीर है तो क्या एंटी-वेनम लगायेंगे? मैने पूछा। उसने कहा, नही एंटी-वेनम की जरुरत नही है। मतलब साँप जहरीला नही था। वह कुछ नही बोला। फिर उसने सात इंजैक्शन लगाने की बात कही। वह अपनी मेज तक गया और पर्ची पर कुछ लिखने लगा। काफी देर बाद उसने सिर उठाया तो पर्ची पूरी तरह भरी हुयी थी। अपने मेडीकल स्टोर से इन दवाओ को ले आने की बात की। फिर पास के अस्पताल का पता देकर कहा कि यहाँ माताजी को 24 घंटो तक निगरानी मे रखना होगा। हम चकित से खडे थे। भला यह कैसा इलाज है सर्प दंश का। चिकित्सक हडबडी मे था। मुझे कोने मे ले जाकर कहा कि चालीस हजार की व्यवस्था कर लो फिर इलाज शुरु करेंगे। मेरे सब्र का बाँध टूट गया। मैने अपने चिकित्सक मित्र को फोन लगाया। वे आनन-फानन मे आ गये। उनको देखते ही इस चिकित्सक के भाव बदल गये और मुझसे बोले कि मैने आपकी माताजी को चेक कर लिया आप इन्हे अभी घर ले जा सकते है। इन्हे कुछ नही हुआ है। मैने गिरगिट को भी इतनी तेजी से रंग बदलते नही देखा था। खैर, हमारी जान मे जान आयी और हम इस ठगी से बच गये। इस घटना (दुर्घटना कहे तो ज्यादा ठीक होगा) से मुझे यह आभास हो गया कि सर्प दंश से पीडीत लोग दूर-दराज के गाँवो से आते होंगे तो कैसे साँप के जहर से कम और इस लूट से वे मर जाते होंगे। यह सच है कि सभी चिकित्सक ऐसे नही होते पर यह भी सच है कि एक मछली सारे तलाब को गन्दा कर देती है।
कुछ वर्षो पूर्व अहमदाबाद मे सर्प विष चिकित्सा से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान पर मै व्याख्यान दे रहा था। एक सज्जन बीच मे ही बोल पडे कि यह तंत्र-मंत्र से कुछ नही होता। एंटी-वेनम ही अंतिम विकल्प है। मैने उनसे कहा कि आप सही कह रहे है कि एंटी-वेनम उपयोगी है और तंत्र-मत्र से कुछ नही होता पर आज भी देश भर मे जडी-बूटियो से सर्प विष की चिकित्सा हो रही है। लोग सर्प दंश के शिकार हो रहे है। कुछ मर रहे है और बहुत से बच भी रहे है जबकि दूर-दूर तक आधुनिक चिकित्सालय वहाँ नही है। ये कैसे सम्भव है? वे तमतमाकर बोले जितने लोग बच जाते है उन्हे जहरीले साँप ने नही काटा होता है और जो मर जाते है उन्हे वास्तव मे जहरीले साँप ने काटा होता है। और इलाज मे लापरवाही से वे मर जाते है। मुझे उनका तर्क नही जमा। शायद आपके गले भी नही उतरा होगा। यह तो चित भी मेरी और पट भी मेरे वाली बात हुयी। शहर के वातानुकूलित कक्ष मे बैठकर ऐसे बहुत से तर्क किये जा सकते है पर दूरस्थ जंगलो मे जाकर एक बार ही सही अपने साथी भारतीयो के हुनर को समझने का साहस कोई नही करता। गाँव की योजनाए शहरो मे बनती है। यही कारण है कि इन योजनाओ से आज तक देश का भला नही हुआ है। व्याख्यान के बाद वे सज्जन मुझसे मिले और चर्चा जारी रखी। मैने उन्हे आमंत्रित किया कि आप मेरे राज्य मे पधारे और मेरे साथ उन दूरस्थ अंचलो की यात्रा करे। जरा देखे तो कैसे सर्पो के साथ सारा जीवन बिताते है वे लोग। वे तैयार हो गये। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Updated Information and Links on March 15, 2012

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Comments

साँप के काटे जाने पर वहाँ दो दाँतों का निशान हो जाता है, मेरे खयाल से,और वही देख कर हम काटे हुए स्थान से कुछ ऊपर की और टूर्निकेट(कपड़ा भी) का इस्तेमाल करते है जिससे जहर सारे शरीर मे न फ़ैल पाये,
डॉक्टर क्या हर क्षेत्र में ऎसे लोग मिलते है जो मरीज को गुमराह करते है,टोने-टोटके तो दुनियां भर के हैं...अच्छा लगा पढ़ कर...
L.Goswami said…
aise bhi chikitsak hote hain .aashchrya hai
आप ने मेरी पुरानी हाड़ौती की कविता याद दिला दी। हिन्दी अनुवाद पेश है।
क्या जोशी, क्या डाक्टर, क्या वकील
डरे को और डराए,
फिर डर से निकलने की राह बताए
ऐसा न करे तो
घर के तामझाम बिकाए।

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