अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -6

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -6
- पंकज अवधिया
छत्तीसगढ के राजिम क्षेत्र के वनीय भागो से गुजरते हुये मैने एक व्यक्ति को रोहिना नामक पेड के नीचे सोते पाया। घने जंगल मे इतनी बेफिक्री से किसी को सोया देखकर आश्चर्य हुआ। ध्यान से उसे देखा तो मुँह से निकल पडा अरे, ये तो चतुर है। गाडी रोको, रोको गाडी। ड्रायवर ने गाडी रोक दी। चतुर जाग गया। उसकी आँखे लाल थी और चेहरे के हाव-भाव गडबड थे। मैने गाडी मे रखे पेडे उसे दिये और फिर उससे उसका हाल पूछा। वह बोला कि मैने अभी-अभी सपना देखा है। सपने से मुझे पता चला कि इस बार पानी क्यो कम गिर रहा है? बाहरी लोग जंगल के देवी-देवताओ के साथ ठीक बरताव नही कर रहे है। वे उनसे ऊपर के स्थानो मे होटल और दुकाने बना रहे है। इसलिये देवी-देवता नाराज हो गये है। यही कारण है कि ऊँचे स्थानो मे बने झोपडो मे कुछ समय पहले अपने आप आग लग गयी। ऐसा तीसरी बार हुआ है। चतुर कहता गया और हम सुनते रहे।
वह घटारानी जंगल की बात कर रहा था। यहाँ देवी का मन्दिर है और एक मौसमी झरना है। यह घने जंगल मे है। इतना घना जंगल कि रात को मन्दिर के पुजारी भी मन्दिर से वापस जंगल के बाहर स्थित गाँव मे आ जाते है। वहाँ रेस्ट हाउस है पर कोई रात गुजारने को तैयार नही होता है। मैने कई बार देर रात तक रुकने की कोशिश की पर कोई भी स्थानीय व्यक्ति साथ देने को राजी नही हुआ। मेरी रुचि वनस्पतियो को खाने वाले जंगली जनवरो को रात मे देखने की थी। पहले इस जंगल मे कम लोग जाते थे। अब तो छुट्टियो के दिन 500 से अधिक गाडियाँ आ जाती है। सरकार ने अच्छी सडक भी बनवा दी है। पार्किंग स्थल को सीमेंटेड कर दिया है। नये होटल खुल रहे है जल-पान के लिये। पूजन सामग्री की दुकाने भी लग रही है। धीरे-धीरे जंगल विरला होता जा रहा है। गाडियो से प्रदूषण बढ रहा है और पर्यटको को तो आप जानते ही है। चिप्स से लेकर गुटखा पाउच तक सभी वही फेक कर चले जाते है। सफाई होती नही। पर्यटक जूते पहन कर कही भी चढ जाते है। स्थानीय निवासी जिनके मन मे इस स्थान के लिये गहरी श्रद्धा है, चाहकर भी कुछ नही बोल पाते। पर उनसे बात करने पर आक्रोश झलकता है।
मेरा ड्रायवर जो चतुर की बात ध्यान से सुन रहा था, बोल पडा कि यह तो अन्ध-विश्वास है। कोई सपने मे थोडे ही ऐसी बात बताता है। है न सर? चतुर नाराज हो गया। उसकी आँखे पहले से अधिक लाल दिखायी पड रही थी। मैने चुप रहना इसलिये उचित समझा क्योकि मै स्थानीय लोगो की भावनाओ से परिचित हूँ। जो दिन-रात अपने पूजा स्थलो की दुर्दशा देखेगा उसे ऐसे स्वपन दिखना तो स्वावभाविक है। ऐसे मे उसकी बात को सुनने की बजाय उसे अन्ध-विश्वासी कहना मुझे उचित नही लगा। यदि कह भी देता तो उसे तो कुछ फर्क पडना नही था।
हमने उसे गाडी मे बिठाया और फिर जंगल की ओर चल पडे। उसने थोडी दूर चलने पर एक पहाडी दिखायी। इस पहाडी पर एक गुफा है और उस गुफा तक बहुत कम लोग ही पहुँच पाये है। मै चलने को तैयार हो गया। ग़ाडी पार्क की और चढने लगे पहाडी पर। गुफा तक पहुँचे तो चतुर ने अपनी थैली से नारियल निकाला और द्वार की पूजा की। गुफा का द्वार बहुत नीचा था। लेटकर घिसटते हुये अन्दर तक जाना था। चतुर ने शर्त बतायी। द्वार पर नारियल रखकर जाने से ही गुफा मे गया व्यक्ति वापस आ सकता है। अन्यथा वह अन्दर ही रह जायेगा। फिर मुस्कुराकर ड्रायवर की ओर देखा और बोला, यह भी अन्ध-विश्वास है। इसलिये तुम बिना नारियल अर्पित किये गुफा मे जाना। ड्रायवर को काटो तो खून नही। वह बोला मै तो नारियल अर्पित करके ही अन्दर जाऊँगा। अन्ध-विश्वास का व्याख्यान तो ये साहब देते है। इन्हे नारियल मत चढाने देना। अब मेरे सामने मुश्किल खडी हो गयी। मोटापे के कारण मै गुफा के अन्दर जाने से पहले ही बच रहा था। अब तो चुनौती आ गयी थी। पर मैनै इस चुनौती को न स्वीकारने का मन बनाया। मेरे चेहरे के भाव से चतुर समझ गया। फिर नारियल अर्पित कर वे दोनो गुफा के अन्दर गये और कुछ समय बाद बाहर निकल आये। चतुर ने कहा भले ही यह अन्ध-विश्वास हो पर खतरे वाली स्थितियो मे अनावश्यक जोखिम से लोगो को बचना चाहिये। नारियल रखना हमारा अन्ध-विश्वास नही, विश्वास है जिसके बल पर हम गुफा के संकरे रास्ते मे न केवल घुस जाते है बल्कि फिर उससे निकल भी आते है। ऐसी कोई चीज न हो तो शायद यह कठिन कार्य हम कभी न कर पाये। उस पहाडी के शिखर पर ज्ञान बाँटता हुआ चतुर किसी गुरु से कम नही लग रहा था। हमे उसे गुरु स्वीकारने मे जरा भी संकोच नही था अब।
आम लोग बहुत सपने देखते है। विचित्र से विचित्र सपने देखते है। गाँव के बैगा को भी ज्यादातर बाते सपने से ही पता चलती है-ऐसा वे दावा करते है। उनके सपने को मान्यता मिली हुयी है। वह अगर कह दे कि उसे सपना आया है कि फलाँ व्यक्ति गाँव का बिगाड कर रहा है तो सारा गाँव मान लेता है और फिर उस व्यक्ति की शामत आ जाती है। क्या बैगा को ऐसे सपने सचमुच आते है या फिर अपनी दुश्मनी निभाने निज स्वार्थ से प्रेरित होकर वह सपने का सहारा लेता है। यह शोध का विषय हो सकता है। अब तक तो ऐसा यंत्र निकला नही है जो इस बात की तसदीक कर सके कि अमुक सपना अमुक व्यक्ति विशेष का ही है और इतने बजकर इतने समय पर दिखा है। कल यदि ऐसा यंत्र निकल जाये तो मुझे लगता है कि बैगाओ को सपने दिखने बन्द हो जायेंगे और बेकसूर लोगो की जान बच पायेगी। सपने राजनेताओ को भी आते है। विशेषकर चुनाव के दिनो मे। वे बताते है कि कैसे फलाँ देवी-देवताओ ने उनसे फलाँ काम करने को कहा है?
पिछले कुछ सालो से मै बैगाओ और झाड-फूँक करने वालो को अब तक आये भाँति-भाँति के सपने की सूची बना रहा हूँ। क्यो? बस शौकिया तौर पर। इसमे अब चतुर को आया सपना भी दर्ज हो गया है। इन सपनो की सूची देखकर मेरे एक मित्र जो कि होम्योपैथिक चिकित्सक है, ने कहा कि इन सब को बिना विलम्ब इलाज की जरुरत है। आप तो जानते ही है कि होम्योपैथी मे सपनो पर जितनी दवाए है उतनी शायद ही दुनिया की किसी और चिकित्सा पद्धति मे हो। आप कैसा भी सपना बताये चिकित्सक झट से आपको दवा का नाम बता देंगे। मेरे मित्र का कहना है कि सपने का अपना महत्व है। ऐसे उदाहरण मिलते है जब सपने के माध्यम से वैज्ञानिको ने कई ऐसे रहस्य सुलझाये है जो जागृत अवस्था मे नही सुलझा पाये पर सपने की आड मे किसी की मौत का फरमान जारी करना या किसी महिला को टोनही घोषित कर देना, शैतानी से कम कुछ नही है। मै इससे शत-प्रतिशत सहमत हूँ। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Updated Information and Links on March 03, 2012

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Comments

Anil Pusadkar said…
achha likha pankaj jee pehli baar blog padh raha hun aapka,badhiya hai

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