अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -19

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -19 - पंकज अवधिया


कुछ वर्षो पहले हमारे घर पर झाडू-पोछा का काम करने वाली महिला ने बताया कि उसके पास एक चमत्कारिक रोटी आयी है। ऐसी रोटी जिसे रखने से मनचाही मुराद पूरी हो सकती है। रोटी को सहेज कर रखना है और कुछ नियमो का पालन करना है। यदि सच्चे मन से सेवा की गयी तो रोटी डबल हो जायेगी। उसे यह भी कहा गया कि दूसरी रोटी को किसी और श्रद्धालु को दे देना जिससे तुम्हे लगाव हो। परिवार के सदस्यो से होते हुये यह बात मुझ तक पहुँची। मैने विस्तार से जानकारी माँगी। मुझे बताया गया कि रोटी रखने वाले को सात दिन तक उपवास करना होगा। सन्यम बरतना होगा। रोटी के ऊपर चाय पत्ती और शक्कर चढानी होगी नियमित तौर से। मैने अन्ध-विश्वास दूर करने वाली संस्था से सम्पर्क किया और उनके साथ ऐसी रोटी देखने चल पडा।

रास्ते मे इसके विषय मे और भी बहुत सी चमत्कारिक बाते सुनने को मिली। जब हमने रोटी को देखा तो उसमे रोटी जैसे कोई गुण नही दिखे, आकार को छोड कर। यह तो चिपचिपी द्रव मे डूबी रोटी जैसी कोई चीज थी जिससे खट्टी गन्ध आ रही थी। हम तो सिकी हुयी रोटी की कल्पना कर रहे थे। हम लोगो को बात समझ मे नही आयी। प्रसिद्ध वैज्ञानिक डाँ. एम.पी. ठाकुर से सलाह ली गयी। उन्होने बताया कि यह एक विशेष प्रकार का कवक है जो गोलाकार आकार मे बढता है। यदि इसे पोषण के लिये उचित सामग्री मिले तो यह बहुत तेजी से गुणन कर डबल हो जाता है। जब हमने उन्हे चाय पत्ती और शक्कर वाली बात बतायी तो उन्होने कहा कि बस यही दो चीजे सप्ताह भर मे इसे डबल कर देती है। और सन्यम? क्या सन्यम की इसमे कोई भूमिका नही है? वे हँस पडे।

बाद मे इस पर विस्तृत जानकरियाँ एकत्र की गयी तो सारे राज खुल गये। इस बारे मे अखबारो मे छपवाया गया ताकि रोटी के डबल होने का वैज्ञानिक कारण आम लोग समझ सके। अखबारो को पढकर कुछ लोगो ने बताया कि सत्तर के दशक मे धर्मयुग ने इस रोटी के विषय मे विस्तार से छापा था और उस समय भी यही वैज्ञानिक कारण बताया गया था। इस घटना के बारे मे अपने अलग-अलग लेखो के माध्यम से हम सब आम जनता को लगातार सचेत करते रहे।

कल ही भिलाई से फोन आया कि एक चमत्कारिक रोटी आयी है जो मनचाही मुराद पूरी कर सकती है। इस बार रोटी एक पढे-लिखे सम्भ्रांत परिवार के ड्राइंग रुम मे सजी दिखी। सन्यम और बाकी औपचारिकताए वैसी ही थी। मैने उन्हे समझाने की कोशिश की पर जल्दी ही यह अहसास हो गया कि कम पढे-लिखो को समझाना ज्यादा आसान है, पढे-लिखो को समझाने से।

इस घटना से मुझे यह समझ मे आया कि अन्ध-विश्वास का समूल नाश बहुत मुश्किल है। एक ही अन्ध-विश्वास अलग-अलग रुपो मे हमारे सामने समय-समय पर आता रहता है। हर बार यह नयी मजबूती से आता है। इसके साथ तर्क जुड जाते है। हर बार यह उम्मीदे लेकर आता है। झूठी ही सही पर नयी आशाए जगाता है। हर युग मे मनचाही मुराद पूरी करने की इच्छा मनुष्य़ मे रही है। आगे भी ऐसी चमत्कारिक घटनाए सामने आती रहेंगी। हो सकता है मंगल मे बसे अपने आप को सभ्य कहने वाले धरतीवासी भी आने वाले दशको मे इस रोटी से मनचाही मुराद पूरी करने का मोह न छोड पाये।

इस रोटी वाली घटना पर कुछ लोगो ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि भले ही यह अन्धविश्वास है पर इससे किसी का बुरा नही हो रहा है और न ही किसी प्रकार की लूट हो रही है फिर इसका विरोध क्यो? लोग यदि आस्था से इसे अपने पास रखते है। इसकी पूजा करते है और कुछ सन्यम रखते है तो इसमे क्या बुराई है? मुझे उनका तर्क सही जान पडा। मैने जब यह जानने की कोशिश की कि रोटी क्या मुफ्त मे मिलती है तो पता चला कि रोटी प्राप्त करना इतना आसान नही है। चूँकि इससे सारी मुरादे पूरी होने वाली है इसलिये इसके ऊँचे दाम लिये जाते है। जब मुरादे पूरी नही होती है तो रोटी देने वाले यह कहकर आश्वासन दे देते है कि अब जीवन मे सुधार होगा और आने वाले दिन अच्छे होंगे। बहुत से मामलो मे रोटी देने वाला दोनो रोटी वापस ले लेता है। ताकि आगे इससे पैसे कमाये जा सके। बहुत से ठग इस तरह के चमत्कार दिखा कर अपना प्रभाव जमा लेते है और फिर दूसरे तरीके से लूटते है। इसलिये यह जरुरी हो जाता है कि जानकार लोग इस बारे मे आम लोगो को बताये और वह भी वैज्ञानिक तर्को के साथ। मनचाही मुराद वाली बातो का भी खुलासा करे। जो लोग ठगी के शिकार हुये है उनसे भी यह उम्मीद की जाती है है कि यथार्थ के धरातल मे आकर वे नये लोगो को जगरुक करे। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित




Updated Information and Links on March 15, 2012

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Comments

Udan Tashtari said…
सही कह रहे हैं आप!! अच्छा लगा आपका अनुभव पढ़ना.
जहां तक मुझे याद पड़ता है, इस तरह की बात, मेरे कसबे में १९६० दशक के अन्त या फिर १९७० दशक के शरू में हुई थी।

यह कहा जाता था कि इसे खाने से कैंसर ठीक हो जाता है। यह सारे दावे झूटे थे।

यह भूरे रंग की थी और वास्तव में बैक्टीरियल ग्रोथ के कारण होती थी।

यह वही आकार लेती थी जिस तरह के बर्तन में रखी जाय। ज्यादातर बर्तन गोल होते हैं इसलिये यह गोल हो जाती थी और रोटी कहा जाता था। हमने इसे चौकोर बर्तन में रख, उस तरह की भी बनते देखा।

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