अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -21
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -21
- पंकज अवधिया
अपना बागीचा दिखाते हुये मेरी एक परीचित महिला शान से विदेशो से ऊँचे दामो पर मंगाये पौधो को दिखा रही थी। तभी मेरी नजर एक ऐसे पौधे पर पडी जिसे उस घर मे बिल्कुल नही होना चाहिये जहाँ बच्चे और पालतू जानवर हो। महिला ने उस पौधे की ओर इशारा करते हुये बताया कि यह जैट्रोफा पाडएग्रिका है। यह बायोडीजल के लिये लगाये जा रहे जैट्रोफा का सुन्दर रिश्तेदार है। मैने उनसे कहा कि इसे आपके घर मे नही होना चाहिये विशेषकर लान के पास जहाँ सभी बैठते है। मेरी बात सुनकर वे बोली कि क्या आप वास्तु वाले है? वास्तु वालो ने भी हमे कई बार कहा कि इसे यहाँ से हटा दे। मैने खुलासा किया कि बहुत से विदेशी पौधे बच्चो और पालतू जानवरो के लिये नुकसानदायक होते है। इस पौधे से जो लेटेक्स निकलता है किसी भाग को तोडने से, वह यदि त्वचा मे लग जाये या आँख मे चला जाये तो समस्या हो सकती है। बडे बच्चो को तो समझाया जा सकता है पर छोटे बच्चो मे उत्सुकता कुछ ज्यादा ही होती है। वे पत्तियो को खा भी सकते है। उन्होने याद कर कहा कि एक बार मेरे छोटे बच्चे की आँख मे यह लेटेक्स चला गया था। आप सही कह रहे है। पर अब तो वह जान गया है इसलिये हमने इसे नही हटाया। बात आयी-गयी हो गयी।
कुछ दिनो बाद फिर मेरा जाना हुआ। मैने देखा वह पौधा मजे से उग रहा है। तीसरी बार जाने पर मुझे वह पौधा नही मिला। पता चला कि उन्होने वास्तु वाले महाराज की बात आखिर मान ली और पौधे को हटा लिया। मै सोचता रहा कि मुफ्त मे दी गयी सलाह की कोई कीमत नही होती। वास्तु वाले महाराज ने जरुर विशेष रुप से डराया होगा और मोटी फीस भी ली होगी। महिला ने बताया कि इसके रहने से हमे व्यापार मे घाटा हो रहा था। अब सुधार हो रहा है। अगले सोमवार महाराज एक विशेष पौधा लायेंगे जो व्यापार को बढायेगा। मुझे उत्सुकता हुयी। मंगलवार को अल-सुबह उनके घर जा धमका। देखा तो डाइफन बेकिया नामक एक दूसरा विदेशी पौधा लगा था। मुझे यकीन हो गया कि महाराज पहुँचे हुये है और जरुर किसी नर्सरी वाले से उनकी पहचान है। इस नये पौधे को भी जहरीला माना जाता है। इसे अंग्रेजी नाम डम्बकेन मिला हुआ है। इसकी शाखा तोडकर आपने कान मे घुसायी तो बहरे होने का खतरा है। यह पौधा अपने आप मे जहरयुक्त है। विदेशो मे इसे घरो मे सावधानी से लगाने की सलाह दी जाती है। मैने सब कुछ जानकर भी चुप रहना उचित समझा। यदि मै बहरे हो जाने की बात करता तो वे कह सकती थी कि हाँ-हाँ, आप सही कह रहे है हमारे फलाने रिश्तेदार बहरे हो गये है पर अब तो वे जान गये है तो फिर इसे क्या हटाना। फिर यह पौधा व्यापार बढा रहा था (?) इसलिये वो इसे किसी कीमत पर नही हटाती। मै मौन ही रहा।
यह कितनी बार अलग-अलग माध्यमो से बताया जा चुका है कि आस-पास उगने वाली वनस्पतियो का परिवारजनो के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पडता है फिर भी विदेशी और जहरीले पौधो का मोह नही छूटता है। ये पौधे बहुत देखभाल माँगते है। देखभाल के नाम पर इन पर रसायनो का प्रयोग करना पडता है। इससे पौधे तो अच्छे हो जाते है पर परिवार इन रसायनो के दुष्प्रभावो को जाने-अनजाने तरीके से झेलता रहता है। देश भर मे हजारो हार्टीकल्चर सोसायटियाँ है। पर मुझे नही लगता कि वे अपने सदस्यो को इस बारे मे सचेत करती है। आकर्षक पौधे बाजार से जुडे है। इनके साथ वास्तु का बाजार भी जुड गया। बाजार अपनी फिक्र करता है। उसे आम लोगो के हित-अहित की चिंता नही होती है।
क्या आप के घर मे तुलसी है? मै अपने व्याख्यान के दौरान जब यह प्रश्न करता हूँ तो बहुत से हाथ उठ जाते है। पर अधिक्तर घरो मे जब मै तुलसी को देखता हूँ तो उसकी दशा देखकर दुखी हो जाता हूँ। ज्यादातर पौधे बीमार होते है। सुबह-शाम उन्हे पानी से इतना ज्यादा सींचा जाता है कि वे बेहाल हो जाते है। तुलसी की मिट्टी नही बदली जाती है और न ही जैविक पोषक तत्व उसे दिये जाते है। यही कारण है कि तुलसी की घर के आँगन मे रहकर जो भूमिका होनी चाहिये वह सही तरीके से नही हो पाती है। हमारे बुजुर्ग कह गये है कि आँगन मे तुलसी का स्वस्थ्य पौधा माने एक निरोग घर। मैने स्वस्थ्य पौधा लिखा है। बीमार पौधा नही। आज का हमारा विज्ञान भी इस बात की पुष्टि समय-समय पर करता रहता है। आज विकास के नाम पर जिस तरह से अन्धाधुन्ध तरीके से पेडो की कटाई हो रही है और प्रदूषण फैल रहा है उससे तो लगता है कि पूरे देश मे तुलसी के व्यापक रोपण की एक मुहिम चलनी चाहिये। शहर मे जहाँ जगह मिले इसे लगाना चाहिये। कम से कम घर मे तो तुलसी के बहुत से पौधे होने ही चाहिये। मेरे एक मित्र ने अपने घर के बागीचे मे केवल तुलसी लगायी है। वो कहता है कि जब भी तनाव मे होता हूँ बागीचे मे बैठ जाता हूँ, कुछ समय बाद अपने-आप तरोताजा हो जाता हूँ।
पिछले दिनो एक घर मे बीमार तुलसी को देखने जाना पडा। घर के आँगन मे एक ही बडा सा पौधा था। ऐसा लग रहा था कि किसी ने उसे बहुत नोचा है लगातार। जल्दी ही राज खुल गया। घर मे सत्रह सदस्य थे और ज्यादातर तुलसी के दिव्य गुणो को जानते थे। वे रोज तुलसी की पत्तियो को खाते थे। इस लगातार तुडाई ने तुलसी की यह हालत कर दी थी। मैने उनसे तुलसी को माँ समझकर बख्शने का अनुरोध किया तो वे बिफर पडे और बोले हम रोज इसकी पूजा करते है और रविवार को कोई पत्तियाँ नही तोडता। चलिये धार्मिक आस्था के कारण ही सही पर तुलसी को एक दिन तो राहत मिलती है-मैने सोचा। मैने उन्हे बताया कि पत्तियो का काम भोजन बनाना है। पौधा यदि भोजन ही नही बना पायेगा तो कैसे बढेगा? मैने उन्हे दस और पौधे लगाने की सलाह दी और स्वस्थ्य पौधे की पहचान करायी। सभी सदस्यो से कहा कि यदि बडी मात्रा मे पत्तियो का उपयोग करना है तो खुद इसका रोपण करो और सेवा करो। रविवार के लिये मैने उन्हे गौमूत्र और ताजे गोबर का घोल बनाना सीखा दिया। अब वे इसका छिडकाव करते है और पौधे को बढने मे मदद करते है।
चलते-चलते मैने यह भी बता दिया कि इसे लगाने से घर मे समृद्धि आती है। फिर वही प्रश्न सुनने को मिला-क्या आप वास्तु वाले है? मैने ‘ना’ मे सिर हिलाया और समझाया कि तुलसी रोगो से बचाती है और अच्छे स्वास्थ्य से बढकर कोई धन नही है। वे समझ गये पर एक सदस्य ने मुझे कोने मे ले जाकर पूछ ही लिया, सही बताइये ना, इससे कैसे धन मिलता है? हम आपको दक्षिणा देंगे। मैने वहाँ से चलने मे ही भलाई समझी। जब अन्ध-विश्वास का ऐसा बोलबाला हो और वह भी पेशगी के साथ तो भला कौन रोक पायेगा इसके फैलते साम्राज्य को? (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Updated Information and Links on March 15, 2012
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Comments
बड़ी अलग सी सोच है, आपकी .
सारे लेख संग्रहणीय हैं..
मेरा नमन स्वीकारें