भारतीय रोगों की न करते इतनी फिकर, जो चरक जी के पास भी होता कम्प्यूटर
मधुमेह की रपट के बहाने कुछ बातें-१
भारतीय रोगों की न करते इतनी फिकर, जो चरक जी के पास भी होता कम्प्यूटर
- पंकज अवधिया
"हम कैंसर के रोगियों की सेवा करते हैं| जडी-बूटियों से दवा बनाते हैं और फिर रोगियों को उचित कीमत पर देते हैं| हमें एक विशेष वनस्पति की तलाश है और हमें लगता है कि आप उसे दिलाने में हमारी मदद कर सकते हैं| क्या आप हमारे साथ जंगल चलने को तैयार हैं?" पहले फोन पर फिर ई-मेल से यह संदेश मिला| मैंने हामी भर दी और फिर उनसे उनकी संस्था के बारे में जानकारी माँगी| साथ ही अपना परामर्श शुल्क भी बता दिया| उनका जवाब आया|
संस्था का नाम बताने को वे तैयार नहीं दिखे| मैंने भी जोर नहीं दिया क्योंकि लोग अक्सर समाज सेवी संस्था के सदस्य या शोधार्थी बनकर मुझसे संपर्क करते हैं ताकि मै उनकी मदद में आनाकानी नही करूँ| परामर्श शुल्क पर उनकी सुई अटक गयी और बोले कि आप हमारे साथ चलेंगे तो जो खायेंगे हम खिलाएंगे, जो पीयेंगे पिलायेंगे पर शुल्क नहीं दे पायेंगे| मैंने उनसे कहा कि मैं खाने-पीने का शौक़ीन नहीं| परामर्श शुल्क मेरी आजीविका का एकमात्र साधन है और वो तो मै लूंगा ही| वे काफी जोर देते रहे| फिर बोले कि आप पैसे नहीं उसके अलावा कुछ और माँग लीजिये हम दे देंगे|
मैंने उनके काफी जोर देने पर कहा कि आप मेरी वेबसाईट पर चले जाइए और फिर न्यू आर्टिकल्स वाले लिंक में जाकर मेरे शोध दस्तावेजों की सूची देखें | इन शोध दस्तावेजों का एक प्रिंट मुझे दिलवा दीजिये| काफी है फिर मुझे परामर्श शुल्क की कोई आवश्यकता नहीं| मेरी बात खत्म होते न होते वे तैयार हो गए और बोले कि इसमे कौन सी बड़ी बात है मैं अपने लिए भी एक प्रति निकलवा लूंगा|
फिर कुछ दिनों तक उनका फोन नहीं आया| मुझे समझ आ गया कि वे प्रिंट लेने की जुगत में होंगे| सस्ते से सस्ता तरीका खोज रहे होंगे| फिर उनका फोन आ ही गया| " मैं आपकी फीस देने को तैयार हूँ| आप इसके हकदार हैं| मैंने आपका काम देख लिया है| आपको इनकार करके मै शर्मिन्दा नहीं होना चाहता हूँ|" उनके हाव-भाव बदले हुए थे| बात पक्की हो गयी और उनके साथ चलने की तैयारी होने लगी|
"मधुमेह पर आपने जो भी लिखा है उसकी एक प्रति आप मुझे दे दीजिये| अगली बार मैं जब राज्य के मुखिया से मिलूंगा तो आपके बारे में चर्चा करूंगा और उन्हें सूचित करूंगा कि ऐसे लोग भी राज्य में हैं|" नगर के एक प्रतिष्टित पत्रकार महोदय ने मुझे अनुरोध किया| मैंने कहा कि यह संभव नहीं है| डीवीडी में ले जा सकते हैं पर प्रिंट निकालना संभव नहीं है|
"अरे, डीवीडी कौन देखेगा| प्रिंट ही रख लो|" उनके बार-बार कहने पर मैंने अपने वेबमास्टर संदीप से उनकी बात करा दी| बात खत्म होने पर बोले कि अब तो मुझे मुखिया से मिलवाने में ज़रा भी देर नहीं करनी चाहिए| यह सचमुच कल्पना से परे है|
पिछले सप्ताह ही मैंने १० जीबी से अधिक आकार की रपट का हिस्सा अपलोड कर दिया था| संदीप ने बताया कि ये ५० लाख से ज्यादा पन्ने है| जबकि अभी रपट का एक बड़ा हिस्सा अपलोड होने की राह देख रहा है| इतने अधिक पन्ने संतोष तो देते है पर दूसरे ही पल यह बात मन में आती है कि जब तक इस ज्ञान का सही उपयोग न होने लगे तब तक इसका महत्त्व न के बराबर है| सही उपयोग के लिए जरुरी है कि इस ज्ञान को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर परखा जाए और फिर इसे आम जनता के लिए उपलब्ध किया जाए| कसौटी पर परखे बिना भी यह किया जा सकता है क्योकि पीढीयों के अनुभव से इस ज्ञान को वैसे ही परखा जा चुका है| इसने असंख्य जाने बचाई है|
कुछ वर्षों पहले तक जब मै अपने लेखों में यह लिखता था कि मधुमेह की रपट अब १००० जीबी की हो गयी है तो लोगों की भौहें तन जाती थी| "अरे, भाई फेकने की भी हद होती है, यह तो पगला गया है--- कुछ इस तरह की बाते सुनायी देती थी| लोगों की यह प्रतिक्रिया अस्वाव्भाविक नहीं थी| ये तो भगवान की कृपा और माँ -पिताजी का आर्शीवाद है जो अपने दम पर यह रपट तैयार करने के बाद अब मै इसे अपलोड कर पा रहा हूँ|
"मुझे रीठा के बारे में जानकारी चाहिए|" इस्टोनिया की अंगरेजी की एक प्रोफ़ेसर ने मुझे सन्देश भेजा| फिर जब उनसे विचारों का आदान-प्रदान हुआ तो उन्होंने कह ही दिया कि हमने आपकी मधुमेह की रपट देखी है| पूरी डाउनलोड कर रहे हैं| लाखों पन्ने भी प्रिंट कर लिए है पर यह हमारी समझ में नहीं आती है| क्या इसमे लिखे कोड का कोई तोड़ है? हमने छात्रों की एक बड़ी फ़ौज लगा रखी है पर कोड का कोई ओर-छोर नहीं मिलता|
मिलेगा भी कैसे? यह हमारा पारंपरिक ज्ञान है| क्या इसे ऐसे ही किसी भी ऐरे-गैरे को सौंप देने के लिए घर फूंक कर तैयार किया गया है? मैंने उन्हें जवाब नहीं दिया| पर मुझे आश्चर्य होता है कि अंगरेजी की प्रोफ़ेसर इस काम में क्यूं लगी है और भी इस पैमाने पर| खैर, कितना भी सर पटका जाए कोड समझ में आने से रहे| रपट का एक-एक कोड अपने आप में अनगिनत तथ्य छुपाये हुए है|
रपट को तैयार करते समय मुझे इस बात का ध्यान था| मित्रों ने सलाह दी कि कभी कोड का राज कम्प्यूटर पर नहीं लिखो चाहे वह आफलाइन ही क्यों न हो| कागज़ पर सब कुछ लिखना आज के युग में कष्टप्रद लगाता है पर फिर भी मैंने इस प्रक्रिया को अपनाया| सोचा कि किसी को इस बारे में कुछ बता दूं ताकि यदि मुझे कुछ हो जाए तो सारी मेहनत व्यर्थ न चली जाए| अपने इंजीनियर भाई को मैंने तालिकाए दिखाई| उस समय ७५,००० तालिकाए थी| उन्होंने हाथ खड़े कर दिए| आज साढ़े पांच लाख से अधिक तालिकाए हैं|
"कमर तोड़ मेहनत करना" इसका शाब्दिक अर्थ स्कूल के जमाने से लिखता रहा हूँ पर अब जब कम्प्यूटर पर लगातार काम करने के कारण कमर में असहनीय दर्द उठता है तो इसका सही अर्थ समझ में आता है| जडी--बूटियाँ और मकरासन मदद करते है पर फिर भी कमर को आराम चाहिए|
अभी जब मै यह सब लिख रहा हूँ तब भी कम्प्यूटर पीडीएफ़ फाइलों को अपलोड कर रहा है| गाना भी बज रहा है| और फाइलों की एक प्रति सेव भी हो रही है| पास में काफी का एक कप रखा है और चारो ओर दस्तावेजों का अम्बार है| मै तो उन प्राचीन ग्रंथकारों की तुलना में स्वयम को किस्मत वाला मानता हूँ जिन्होंने कम रोशनी में बिना किसी सुविधा के बड़े ग्रंथो की रचना कर डाली| यदि आज जैसी सुविधाए उनके पास भी होती तो वे अधिक आसानी से यह कार्य कर पाते|
यह विचार आते ही मेरा कार्य करने का उत्साह बढ़ जाता है|
निंदक विचलित करते हैं पर अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित भी करते हैं| जब मैं कहता था कि मेरे पास मधुमेह से सम्बंधित ज्ञान का भण्डार है तो निंदक कहते थे कि होने से क्या होता है लिखो तो जाने| जब लिख लिया तो कहने लगे कि हमें दिखाओ तो माने| लीजिये अब दिखा भी दिया तो कह रहे हैं कि अब इसका असर भी दिखाओ तब माने| उनका संतुष्ट न होना मेरे उज्जवल भविष्य के लिए निहायत जरुरी है| (क्रमश:)
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"हम कैंसर के रोगियों की सेवा करते हैं| जडी-बूटियों से दवा बनाते हैं और फिर रोगियों को उचित कीमत पर देते हैं| हमें एक विशेष वनस्पति की तलाश है और हमें लगता है कि आप उसे दिलाने में हमारी मदद कर सकते हैं| क्या आप हमारे साथ जंगल चलने को तैयार हैं?" पहले फोन पर फिर ई-मेल से यह संदेश मिला| मैंने हामी भर दी और फिर उनसे उनकी संस्था के बारे में जानकारी माँगी| साथ ही अपना परामर्श शुल्क भी बता दिया| उनका जवाब आया|
संस्था का नाम बताने को वे तैयार नहीं दिखे| मैंने भी जोर नहीं दिया क्योंकि लोग अक्सर समाज सेवी संस्था के सदस्य या शोधार्थी बनकर मुझसे संपर्क करते हैं ताकि मै उनकी मदद में आनाकानी नही करूँ| परामर्श शुल्क पर उनकी सुई अटक गयी और बोले कि आप हमारे साथ चलेंगे तो जो खायेंगे हम खिलाएंगे, जो पीयेंगे पिलायेंगे पर शुल्क नहीं दे पायेंगे| मैंने उनसे कहा कि मैं खाने-पीने का शौक़ीन नहीं| परामर्श शुल्क मेरी आजीविका का एकमात्र साधन है और वो तो मै लूंगा ही| वे काफी जोर देते रहे| फिर बोले कि आप पैसे नहीं उसके अलावा कुछ और माँग लीजिये हम दे देंगे|
मैंने उनके काफी जोर देने पर कहा कि आप मेरी वेबसाईट पर चले जाइए और फिर न्यू आर्टिकल्स वाले लिंक में जाकर मेरे शोध दस्तावेजों की सूची देखें | इन शोध दस्तावेजों का एक प्रिंट मुझे दिलवा दीजिये| काफी है फिर मुझे परामर्श शुल्क की कोई आवश्यकता नहीं| मेरी बात खत्म होते न होते वे तैयार हो गए और बोले कि इसमे कौन सी बड़ी बात है मैं अपने लिए भी एक प्रति निकलवा लूंगा|
फिर कुछ दिनों तक उनका फोन नहीं आया| मुझे समझ आ गया कि वे प्रिंट लेने की जुगत में होंगे| सस्ते से सस्ता तरीका खोज रहे होंगे| फिर उनका फोन आ ही गया| " मैं आपकी फीस देने को तैयार हूँ| आप इसके हकदार हैं| मैंने आपका काम देख लिया है| आपको इनकार करके मै शर्मिन्दा नहीं होना चाहता हूँ|" उनके हाव-भाव बदले हुए थे| बात पक्की हो गयी और उनके साथ चलने की तैयारी होने लगी|
"मधुमेह पर आपने जो भी लिखा है उसकी एक प्रति आप मुझे दे दीजिये| अगली बार मैं जब राज्य के मुखिया से मिलूंगा तो आपके बारे में चर्चा करूंगा और उन्हें सूचित करूंगा कि ऐसे लोग भी राज्य में हैं|" नगर के एक प्रतिष्टित पत्रकार महोदय ने मुझे अनुरोध किया| मैंने कहा कि यह संभव नहीं है| डीवीडी में ले जा सकते हैं पर प्रिंट निकालना संभव नहीं है|
"अरे, डीवीडी कौन देखेगा| प्रिंट ही रख लो|" उनके बार-बार कहने पर मैंने अपने वेबमास्टर संदीप से उनकी बात करा दी| बात खत्म होने पर बोले कि अब तो मुझे मुखिया से मिलवाने में ज़रा भी देर नहीं करनी चाहिए| यह सचमुच कल्पना से परे है|
पिछले सप्ताह ही मैंने १० जीबी से अधिक आकार की रपट का हिस्सा अपलोड कर दिया था| संदीप ने बताया कि ये ५० लाख से ज्यादा पन्ने है| जबकि अभी रपट का एक बड़ा हिस्सा अपलोड होने की राह देख रहा है| इतने अधिक पन्ने संतोष तो देते है पर दूसरे ही पल यह बात मन में आती है कि जब तक इस ज्ञान का सही उपयोग न होने लगे तब तक इसका महत्त्व न के बराबर है| सही उपयोग के लिए जरुरी है कि इस ज्ञान को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर परखा जाए और फिर इसे आम जनता के लिए उपलब्ध किया जाए| कसौटी पर परखे बिना भी यह किया जा सकता है क्योकि पीढीयों के अनुभव से इस ज्ञान को वैसे ही परखा जा चुका है| इसने असंख्य जाने बचाई है|
कुछ वर्षों पहले तक जब मै अपने लेखों में यह लिखता था कि मधुमेह की रपट अब १००० जीबी की हो गयी है तो लोगों की भौहें तन जाती थी| "अरे, भाई फेकने की भी हद होती है, यह तो पगला गया है--- कुछ इस तरह की बाते सुनायी देती थी| लोगों की यह प्रतिक्रिया अस्वाव्भाविक नहीं थी| ये तो भगवान की कृपा और माँ -पिताजी का आर्शीवाद है जो अपने दम पर यह रपट तैयार करने के बाद अब मै इसे अपलोड कर पा रहा हूँ|
"मुझे रीठा के बारे में जानकारी चाहिए|" इस्टोनिया की अंगरेजी की एक प्रोफ़ेसर ने मुझे सन्देश भेजा| फिर जब उनसे विचारों का आदान-प्रदान हुआ तो उन्होंने कह ही दिया कि हमने आपकी मधुमेह की रपट देखी है| पूरी डाउनलोड कर रहे हैं| लाखों पन्ने भी प्रिंट कर लिए है पर यह हमारी समझ में नहीं आती है| क्या इसमे लिखे कोड का कोई तोड़ है? हमने छात्रों की एक बड़ी फ़ौज लगा रखी है पर कोड का कोई ओर-छोर नहीं मिलता|
मिलेगा भी कैसे? यह हमारा पारंपरिक ज्ञान है| क्या इसे ऐसे ही किसी भी ऐरे-गैरे को सौंप देने के लिए घर फूंक कर तैयार किया गया है? मैंने उन्हें जवाब नहीं दिया| पर मुझे आश्चर्य होता है कि अंगरेजी की प्रोफ़ेसर इस काम में क्यूं लगी है और भी इस पैमाने पर| खैर, कितना भी सर पटका जाए कोड समझ में आने से रहे| रपट का एक-एक कोड अपने आप में अनगिनत तथ्य छुपाये हुए है|
रपट को तैयार करते समय मुझे इस बात का ध्यान था| मित्रों ने सलाह दी कि कभी कोड का राज कम्प्यूटर पर नहीं लिखो चाहे वह आफलाइन ही क्यों न हो| कागज़ पर सब कुछ लिखना आज के युग में कष्टप्रद लगाता है पर फिर भी मैंने इस प्रक्रिया को अपनाया| सोचा कि किसी को इस बारे में कुछ बता दूं ताकि यदि मुझे कुछ हो जाए तो सारी मेहनत व्यर्थ न चली जाए| अपने इंजीनियर भाई को मैंने तालिकाए दिखाई| उस समय ७५,००० तालिकाए थी| उन्होंने हाथ खड़े कर दिए| आज साढ़े पांच लाख से अधिक तालिकाए हैं|
"कमर तोड़ मेहनत करना" इसका शाब्दिक अर्थ स्कूल के जमाने से लिखता रहा हूँ पर अब जब कम्प्यूटर पर लगातार काम करने के कारण कमर में असहनीय दर्द उठता है तो इसका सही अर्थ समझ में आता है| जडी--बूटियाँ और मकरासन मदद करते है पर फिर भी कमर को आराम चाहिए|
अभी जब मै यह सब लिख रहा हूँ तब भी कम्प्यूटर पीडीएफ़ फाइलों को अपलोड कर रहा है| गाना भी बज रहा है| और फाइलों की एक प्रति सेव भी हो रही है| पास में काफी का एक कप रखा है और चारो ओर दस्तावेजों का अम्बार है| मै तो उन प्राचीन ग्रंथकारों की तुलना में स्वयम को किस्मत वाला मानता हूँ जिन्होंने कम रोशनी में बिना किसी सुविधा के बड़े ग्रंथो की रचना कर डाली| यदि आज जैसी सुविधाए उनके पास भी होती तो वे अधिक आसानी से यह कार्य कर पाते|
यह विचार आते ही मेरा कार्य करने का उत्साह बढ़ जाता है|
निंदक विचलित करते हैं पर अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित भी करते हैं| जब मैं कहता था कि मेरे पास मधुमेह से सम्बंधित ज्ञान का भण्डार है तो निंदक कहते थे कि होने से क्या होता है लिखो तो जाने| जब लिख लिया तो कहने लगे कि हमें दिखाओ तो माने| लीजिये अब दिखा भी दिया तो कह रहे हैं कि अब इसका असर भी दिखाओ तब माने| उनका संतुष्ट न होना मेरे उज्जवल भविष्य के लिए निहायत जरुरी है| (क्रमश:)
Updated Information and Links on March 20, 2012
http://www.discoverlife.org/ mp/20p?see=I_PAO
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आपके इस विचार से सहमत हूँ ...अवधिया जी