मानसून की पहली वर्षा यानि अमृत वर्षा

मानसून की पहली वर्षा यानि अमृत वर्षा 
        - पंकज अवधिया

मानसून की पहली वर्षा पूरे जंगल में हलचल पैदा कर देती है| छत्तीसगढ़ की पारम्परिक चिकित्सा में मानसून की पहली वर्षा का बहुत अधिक महत्व है| वन्य प्राणी से लेकर छोटे कीट तक सभी प्रकार के जीव बड़ी बेसब्री से इसकी प्रतीक्षा करते हैं|

काले मुंह के बन्दर जिन्हें हनुमान लंगूर भी कहा जाता है पूरी गर्मी विशेष प्रकार की मिट्टी का सेवन करते हैं| इसे वैज्ञानिक भाषा में जियोफैगी कहा जाता है| मिट्टी के आंतरिक प्रयोग से उनकी पाचन क्रिया ठीक रहती है| पक्षी भी इन्ही स्थानों पर आकर मिट्टी खाते हैं| अम्लीय फलों के सेवन के बाद पाचन व्यवस्था के लिए पक्षी मिट्टी का सेवन करते हैं| अधिक गर्मी के कारण विशेष मिट्टी पूरी तरह सूख जाती है और उसमे नमी का अभाव हो जाता है| मानसून की पहली वर्षा इस विशेष मिट्टी को एक बार फिर से समृद्ध कर देती है| पर अधिक वर्षा के कारण ऐसे स्थान पानी में डूब सकते हैं इसलिए पहली वर्षा के तुरंत बाद बंदरों और पक्षियों में मिट्टी खाने की होड़ लगी रहती है| इस होड़ में राज्य के पारम्परिक चिकित्सक भी शामिल हो जाते हैं| ऐसे स्थानों की मिट्टी को त्वचा रोगियों के लिए वरदान माना जाता है| मानसून की पहली वर्षा के दौरान इन स्थानों से एकत्र की गयी मिट्टी के साथ जड़ी-बूटियों को मिलाकर लेप के रूप में बाहरी तौर पर भैंसा दाद से प्रभावित रोगियों पर लगाया जाता है| पारम्परिक चिकित्सक यह दावा करते हैं कि इसका मौसमी प्रयोग इस जटिल रोग को पूरी तरह से ठीक कर देता है| विशेष मिट्टी वाले स्थान बहुत कम ही हैं और इस तरह की मिट्टी की प्राप्ति का अन्य कोई स्त्रोत नहीं है इसलिए बंदरों, पक्षियों और पारम्परिक चिकित्सकों की प्रतीक्षा महत्वपूर्ण हो जाती है|

नर तितलियाँ गर्मियों में बड़ी संख्या में ऐसे स्थानों की तलाश में होती हैं जहां विशेष प्रकार के लवण और नमी की मात्रा अधिक हो| तेज गर्मी में ऐसे स्थान बहुत कम होते हैं इसलिए नर तितिलियाँ हजारों की संख्या में ऐसे स्थानों में एकत्र हो जाती है| इन स्थानों से एकत्र की गयी नमी और लवण को प्रणय उपहार के रूप में मादा तितिलियों को दिया जाता है तभी वे संगम के लिए तैयार होती है| यह नमी और लवण अण्डों के काम आता है और आने वाली  पीढी को स्वस्थ्य बनाता है| इसे वैज्ञानिक बाशा में मड-पडलिंग कहा जाता है| भले ही आधुनिक विज्ञान जगत के लिए यह एक सामान्य सी प्रक्रिया है पर राज्य की पारम्परिक चिकित्सा में इसका बहुत अधिक महत्त्व हैं विशेषकर पहली मानसूनी वर्षा के बाद| पारम्परिक चिकित्सक मीलों तक नर तितलियों का पीछा करते हैं और फिर स्थान विशेष पर बैठकर पहली वर्षा की प्रतीक्षा करते हैं| वर्षा के आरम्भ होते ही जब तितलियाँ वहां से हट जाती है तो उस स्थान की लवण युक्त मिट्टी को एकत्र कर लिया जाता है| इस मिट्टी का प्रयोग साल भर विभिन्न औषधीय मिश्रणों में किया जाता है| इसका आंतरिक प्रयोग पेट के रोगों के लिए वरदान माना जाता है| स्त्री रोगों की चिकित्सा में भी पारम्परिक चिकित्सक इसका प्रयोग करते हैं| वे सहज रूप से यह स्वीकार करते हैं कि उन्होंने तितिलियों से ही इन औषधीय गुणों के बारे में जाना और सीखा| 

लीवर के रोगों से प्रभावित रोगियों के लिए पारम्परिक चिकित्सक मानसून की पहली वर्षा को बहुत अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं| बोदल नामक वनस्पति की पत्तियों के दोने बना लिए जाते हैं और फिर मानसूनी वर्षा का जल उसमे एकत्र कर लिया जाता है| इस जल के सेवन को लीवर रोगों से प्रभावित रोगियों के लिए वरदान माना जाता है विशेषकर उन रोगियों के लिए जिनके लीवर अधिक शराब के सेवन से खराब होने की कगार पर हैं| यह सरल पर प्रभावी प्रयोग प्राचीन ग्रंथो में उल्लेखित नही है पर राज्य की पारम्परिक चिकित्सामे इसका प्रयोग पीढीयों से हो रहा है और पारम्परिक चिकित्सकों के बीच इसकी लोकप्रियता यह बताती है कि यह आज भी प्रभावी है| इस सरल चिकित्सा को अधिक प्रभावी बनाने के लिए बोदल के दोने के अलावा साठ से अधिक प्रकार की वनस्पतियों से तैयार दोनों में रखे मानसूनी जल को आपस में विभिन्न अनुपातों में मिलाकर प्रयोग किया जाता है| मानसून की पहली वर्षा का जल ही इसमें प्रयोग किया जाता है इसलिए साल में विशेष समय पर ही इसका प्रयोग होता है| 

मानसून की पहली वर्षा भालू मूसली के लिए वरदान होती है| यह वनस्पति अपनी सुषुप्तावस्था तोड़कर उगने को बेसब्र हो जाती है| जहां एक ओर वैज्ञानिक साहित्य इस मूसली के पकने पर ही इसके कन्दो के प्रयोग के पक्षधर हैं वही पारम्परिक चिकित्सक जानते हैं कि वृद्धि की अलग-अलग अवस्थाओं में इसमें अलग-अलग प्रकार के औषधीय गुण होते हैं| यह बात वन्य प्राणी भी जानते हैं विशेषकर भालू| पारम्परिक चिकित्सकों की तरह वे भी पहली मानसूनी वर्षा के बाद इस वनस्पति की नई पत्तियों की प्रतीक्षा करते हैं| नई पत्तियों के आते ही सबसे पहले भालू को इजाजत दी जाती है क्योंकि पारम्परिक चिकित्सक अपने अनुभव से जानते हैं, भालू ही भली-भांति जानते हैं कि कौन से स्थान की भालू मूसली औषधीय गुणों से परिपूर्ण हैं| जब भालू भरपेट सेवन कर लेते हैं तब पारम्परिक चिकित्सक बची हुयी वनस्पतियों को एकत्र कर लेते हैं| भालू के लिए इस अवस्था की यह वनस्पति सेक्स पावर हाउस की तरह होती है| पारम्परिक चिकित्सक इस बात को जानते हैं और मनुष्यों में भी इसका प्रयोग इसी उद्देश्य से किया जाता है| पहली मानसूनी वर्षा के बाद होने वाले पारिवारिक समारोहों में पारम्परिक चिकित्सक नव-विवाहितों को बतौर विशेष उपहार इस वनस्पति को देते हैं ताकि वे भी इस पावर हाउस के पावर को महसूस कर सके| यूं तो पूरे वर्षा काल में भालू मूसली जंगल में उगती रहती है पर पहली मानसूनी वर्षा के बाद एकत्र की गयी मूसली का महत्व सबसे अधिक है| इस पर विस्तार से शोध करके इसके वैज्ञानिक कारणों की विवेचना की जा स्काती है|         

तेज दौड़ने में माहिर हिरन भी बड़ी बेसब्री से मानसून की प्रतीक्षा करते हैं| मानसून की पहली वर्षा का जल उन्हें जोड़ों के दर्द से मुक्त करता है और फिर उनके तेज दौड़ने की क्षमता को बरकरार रखता है| पहली मानसूनी वर्षा के बाद उन्हें बड़ी संख्या में अमरफल नामक वृक्ष की कोटरों के आस-पास देखा जा सकता है| वे इसमें एकत्रित वर्षा के जल का सेवन करते हैं| यह जल बहुत अधिक मात्रा में नही होता है इसलिए सभी बड़ी समझदारी से अपना हिस्सा निर्धारित करते हैं| इसे पीने के बाद वे काफी धमा-चौकड़ी मचाते हैं| पारम्परिक चिकित्सक बड़े विस्मय से इस घटना को देखते हैं| शायद इसका सेवन शक्ति को भी बढाता है -ऐसा वे अनुमान लगाते हैं पर पूरे विश्वास से नही कह पातें हैं क्योकि कोटर में भरा जल मनुष्यों के लिए उपयुक्त नही होता है| अमरफल का फल भी उपयोगी नही माना जाता है मनुष्यों के लिए लेकिन पक्षी इसे चाव से खाते हैं|

मानसून की पहली वर्षा घमौरियों के लिए वरदान मानी जाती है पर शहरों में पहली मानसूनी वर्षा के औषधीय गुणों का लाभ उठाना सम्भव नही दिखता है क्योंकि पर्यावरण में फैले प्रदूष्ण से होकर जब जल जमीन पर आता है तो वह विषाक्त हो चुका होता है और वनस्पतियों तक पहुंचकर उन्हें ही दोषयुक्त बना देता है| 





All Rights Reserved
---


पंकज अवधिया ने अपनी रपट "इम्पार्टेंस आफ फर्स्ट मानसून रेन्स आन बायोडायवर्सिटी आफ इंडिया विद स्पेशल रिफरेन्स टू छत्तीसगढ़, झारखंड एंड उड़ीसा" में पहली मानसूनी वर्षा के महत्त्व के बारे में विस्तार से लिखा है| अंग्रेज़ी में लिखी गयी यह रपट इंटरनेट पर उपलब्ध है|  



Updated Information and Links on March 07, 2012

New Links



Related Topics in Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database at http://www.pankajoudhia.com

Ipomoea alba in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Mahua ki Chhal ka Prayog (10 Herbal Ingredients, Gujarat),
Ipomoea aquatica in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Mahua ki Chhal ka Prayog (30 Herbal Ingredients, Madhya Pradesh),
Ipomoea batatas in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Mahua ki Chhal ka Prayog (55 Herbal Ingredients, Uttarakhand),
Ipomoea cairica in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Babool ki Chhal ka Prayog (18 Herbal Ingredients, Madhya Pradesh),
Ipomoea carnea in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Mahua ki Chhal ka Prayog (80 Herbal Ingredients, Jharkhand),
Ipomoea eriocarpa in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Babool ki Chhal ka Prayog (9 Herbal Ingredients, Orissa),
Ipomoea hederifolia in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Babool ki Chhal ka Prayog (43 Herbal Ingredients, Andhra Pradesh),
Ipomoea marginata in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Babool ki Chhal ka Prayog (30 Herbal Ingredients, Gujarat),
Ipomoea mauritiana in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Babool ki Chhal ka Prayog (25 Herbal Ingredients, Gujarat),
Ipomoea nil in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Babool ki Chhal ka Prayog (30 Herbal Ingredients, Gujarat),
Ipomoea obscura in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Mahua ki Chhal ka Prayog (18 Herbal Ingredients, Jharkhand),
Ipomoea pes-tigridis in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Mahua ki Chhal ka Prayog (10 Herbal Ingredients, Chhattisgarh),
Ipomoea quamoclit in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Babool ki Chhal ka Prayog (9 Herbal Ingredients, Orissa),
Ipomoea sepiaria in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Babool ki Chhal ka Prayog (26 Herbal Ingredients, Orissa),
Ipomoea turbinata in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Babool ki Chhal ka Prayog (26 Herbal Ingredients, Orissa),
Isachne globosa in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Chandan ka Prayog (9 Herbal Ingredients, Madhya Pradesh),
Ischaemum muticum in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Babool ki Chhal ka Prayog (9 Herbal Ingredients, Orissa),
Ischaemum rugosum in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Babool ki Chhal ka Prayog (10 Herbal Ingredients, Andhra Pradesh),
Ixora parviflora in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Babool ki Chhal ka Prayog (10 Herbal Ingredients, Andhra Pradesh),
Ixora pavetta in Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines for Prameha and Madhumeha:  Prameh ke liye Peepal ki Chhal ka Prayog (90 Herbal Ingredients, Madhya Pradesh),


Sida rhombifolia L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- paralysis, sensation of.
Sida rhomboidea ROXB. EX FLEM. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- pain, leg.
Phragmites karka TRIN. EX STEUD. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- pain, stitching, ankle.
Phyla nodiflora (L.) GREENE and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- pain, leg, waking .
Phyllanthus acidus (L.) SKEELS and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- paralysis.
Phyllanthus airy-shawii BRUNEL & ROUX and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- pain, stitching, fingers, tips of.
Phyllanthus amarus SCHUM. & THENN. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- pain, ankle.
Phyllanthus maderaspatensis L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- paralysis, ankles.
Phyllanthus missionis HOOK.F. FL. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- restlessness, upper limbs, night, Sleep-during.
Phyllanthus reticulatus POIR. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- pain, stitching, upper arm.
Phyllanthus rheedii WT. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- pain, ankle, outer side .
Phyllanthus urinaria L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- pain, stitching.
Phyllanthus virgatus G.FORSTER and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- stiffness.
Physalis minima L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- pain, foot .
Nigella sativa L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- pain, sore, bruised, hip.
Nyctanthes arbor-tristis L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- pain, sore, bruised, knee, evening.
Nymphaea nouchali BURM. F. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- pain, sore, bruised, hip, extending, knees.
Nymphaea stellata WILLD. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- stiffness, joints. 

Comments

Popular posts from this blog

अच्छे-बुरे भालू, लिंग से बना कामोत्तेजक तेल और निराधार दावे

स्त्री रोग, रोहिना और “ट्री शेड थेरेपी”

अहिराज, चिंगराज व भृंगराज से परिचय और साँपो से जुडी कुछ अनोखी बाते