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Showing posts from March, 2009

सवारी एक लखटकिया ताबूत की (व्यंग्य)

सवारी एक लखटकिया ताबूत की (व्यंग्य) - पंकज अवधिया भगवान का लाख-लाख शुक्र जो हमारा नम्बर लग गया और हमारी साझा कार का सपना पूरा हो गया। साझा कार माने चार मित्रो की लखटकिया। सबने पच्चीस-पच्चीस हजार लगाये तब जाकर यह साझा कार मिली। मुख्य मित्र को गाडी लेने भेज दिया और फिर हम तीनो गाडी का इंतजार करने लगे। आखिर हार्न सुनायी दिया। बाहर भागे तो लखटकिया दिख गयी। अभी देखना शुरु ही किया था कि खत्म हो गयी। ठीक वैसे ही जैसे इसकी खरीद मे एक लाख पलक झपकते ही खर्च हो गये। पीछे से नजर फिर आगे की ओर आयी। गाडी की नाक खोजने की कोशिश की तो नाक ही नही मिली। ऐसा लगता था कि माइक टायसन का घूँसा खाकर आ रही है अभी-अभी। मैने शिकायत भरे लहजे मे मित्र से कहा कि इसकी तो नाक ही नही है। नाक नही तो शान नही। यह तो हमारी नाक कटवायेगी। मित्र बोला. अब एक लाख मे क्या-क्या मिलेगा? जितना मिल गया उसी मे संतोष करो। लखटकिया मे घूमने का मन बनाया। मै जैसे ही आगे बढा तो मित्र चिल्लाया, रुको, रुको, पहले तैयारी तो कर लो। उसने दो बडे-बडे हेलमेट निकाले और कहा कि सामने बैठने वाले इसे पहने। दरअसल हेलमेट की सही ज

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -100

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -100 - पंकज अवधिया “व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य करने मे बार-बार असफलता मिल रही हो यह टोटका करे- सरसो के तेल मे सिके गेहूँ के आटे और पुराने गुड से तैयार सात पूवे, सात मदार (आक) के पुष्प, सिन्दूर, आटे से तैयार सरसो के तेल का रुई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरंडी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि मे किसी चौराहे मे रखे और कहे-हे मेरे दुर्भाग्य, तुझे यही छोडे जा रहा हूँ। कृपा करके मेरे पीछे न आना। सामान रखकर पीछे मुडकर न देखे।“ जीवन आसान करने का दावा करने वाले ऐसे बहुत से टोटको के बारे मे बताता एक लेख छत्तीसगढ की राजधानी मे छपा। और शाम होते-होते चौराहो पर ये सामग्रियाँ दिखायी देने लगी। दो काले घोडे तेजी से दौडते जा रहे थे। कुछ दूर जाने पर वे रुक जाते और फिर दौडने लगते। उनपर सवार युवक झुककर कुछ उठाते और फिर घोडो पर सवार होकर आगे बढ जाते। इन दो घोडो के पीछे भागती महंगी कारे और उसमे सवार लोग, सबका ध्यान खीच रहे थे। पहले तो लगा कि ये शादी वाले घोडे है फिर उनकी हालत देखकर लग

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -99

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -99 - पंकज अवधिया दलदली क्षेत्रो मे जब भी जडी-बूटियो के एकत्रण के लिये जाने की योजना बनती है तो हम एक दल के रुप मे जाना पसन्द करते है। ऐसा दल जिसमे कम से कम तीन मजबूत कद-काठी के लोग हो, कम से कम दो स्थानीय जानकार, और साथ मे एक सर्प विशेषज्ञ हो। “दलदल” शब्द सुनते ही सनसनी फैल जाती है पर जब सघन वनो मे दलदली इलाको मे घूमना होता है तो एक-एक कदम सम्भल कर उठाना होता है। यह डरावना अनुभव होता है पर हर बार यह जोखिम कुछ न कुछ उपहार दे जाता है दुर्लभ जडी-बूटियो के रुप मे। देश के अलग-अलग भागो के लिये अलग-अलग दल मैने तैयार किये है। दलदली इलाको के आस-पास के गाँवो को ही चुना जाता है और फिर वहाँ रात रुककर साथ चलने वालो को तैयार किया जाता है। मै छत्तीसगढ के दलदली क्षेत्रो मे अक्सर जाते रहता हूँ। यूँ तो पारम्परिक चिकित्सक ही दल के गठन मे मुख्य भूमिका निभाते है पर मुझे याद आता है कि एक गाँव मे एक बुजुर्ग व्यक्ति हर बार हमारे साथ चलने को आतुर दिखता। मुझसे वह बार-बार साथ ले चलने की बात करता। पर