Consultation in Corona Period-14
Consultation in Corona Period-14
Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"गर्दन से लेकर कमर तक पूरे शरीर में ऐसी जलन होती है जैसे कि मानो किसी ने गरम अंगारे भर दिए हो।" लंदन का मेरा डॉक्टर मित्र अपनी मां का हाल बता रहा था।
उसने बताया कि उसकी मां बड़ी मुश्किल से कोरोनावायरस से बची है और उससे उबरने के बाद उनकी हालत बहुत नाजुक है।
उन्हें कई तरह की बीमारियां हैं जिनके लिए 14 से अधिक दवाएं 1 दिन में उन्हें लेनी पड़ती है पर सबसे बड़ी समस्या जलन की है जो किसी भी दवा से ठीक नहीं हो रही है।
लंदन का यह डॉक्टर मित्र मुझे कुछ वर्षों पहले कोलकाता में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मिला था जहां हम दोनों अतिथि वक्ता के रूप में आमंत्रित थे।
उसे भारतीय पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान में गहरी गहरी रुचि थी।
सम्मेलन के बाद वह 1 हफ्ते तक मेरे साथ रहा और मेरे कार्यों को करीब से देखा।
उसके बाद से हम लोगों के बीच लगातार संपर्क बना हुआ है।
लंदन में उसके पास जब ऐसे केस आते हैं जिनका कोई इलाज नहीं होता है तब उन्हें मेरे पास भेज देता हैं और पूरे समय इन केसों में रुचि भी लेता है।
इस बार उसने अपनी मां की बिगड़ती हालत के लिए मुझसे संपर्क किया।
मैंने उनकी सारी रिपोर्ट मंगाई और यह भी जाना कि वह कौन-कौन सी दवाई ले रही है।
मैंने मित्र को परामर्श दिया कि इनमें से दो दवा अगर बंद कर दी जाए तो मेरे ख्याल से यह समस्या काफी हद तक ठीक हो सकती है।
उसने कहा कि बंद करना संभव नहीं है क्योंकि इससे शायद उनकी जान पर बन आये।
उसने मां का वीडियो भी भेजा जिसे देखकर लगता था कि बेचैनी से उनकी हालत बहुत बिगड़ती जा रही है।
मैंने अपने मित्र को साफ शब्दों में कहा कि इतनी सारी दवाओं के बीच में और अधिक दवा जोड़ना ठीक नहीं होगा विशेषकर मां के कोरोना से उबरने के बाद और अधिक उम्र होने के कारण।
उसने मेरी राय पर सहमति जताई पर अनुरोध किया कि यदि कोई भी संभव उपाय हो तो हमें करना चाहिए।
मैंने उसकी मदद करने का फैसला किया।
मैंने उसे पांच फूलों की सूची भेजी और कहा कि जब ये फूल तुम्हारे पास एकत्र हो जाए तो मुझसे संपर्क करना।
फूल ताजे होने चाहिए, जैविक विधि से उगाये गए होने चाहिए और अधिक मात्रा में होने चाहिए।
इनमें किसी भी प्रकार के केमिकल का प्रयोग नहीं होना चाहिए विशेषकर इन्हें ताजा रखने के लिए।
इनमें से 4 तरह के फूल तो उसे लंदन में ही मिल गए।
एक तरह के फूल के लिए उसने मुझसे फिर से संपर्क किया। मैंने उसे सलाह दी कि वह बॉटनिकल गार्डन से संपर्क करें।
वे लोग बता सकते हैं कि लंदन में या ब्रिटेन में वह कहां मिलेगा?
गार्डन वालों ने उसे लंदन से बाहर कस्बाई इलाके में भेजा और फिर वहां बेकार जमीन में उग रहे इस फूल के पौधे को एकत्र करने को कहा।
वहां से लौटते हुए मित्र ने फोन पर कहा कि जल्दी ही हम विस्तार से बात करेंगे क्योंकि पांचों तरह के फूल अब मेरे पास हैं पर्याप्त मात्रा में।
मुझे याद आता है कि कुछ वर्षों पहले कनाडा के एक उद्योगपति अपनी बीमार पत्नी को लेकर मुंबई आ गए थे। उनकी पत्नी को त्वचा का कैंसर था और वे इस कैंसर की अंतिम अवस्था में थी।
जब भारतीय कैंसर की अंतिम अवस्था में पहुंचते हैं तो विदेश की तरफ रुख करते हैं और जब विदेशी कैंसर की अंतिम अवस्था में पहुंचते हैं तो भारत की ओर रुख करते हैं। पिछले कुछ सालों से यही ट्रेंड चला हुआ है।
उद्योगपति महोदय ने मुझसे सलाह ली तो मैंने उनसे कहा कि वे 8 तरह के जंगली फूलों का प्रबंध कर ले तो मैं उनकी मदद कर सकता हूं।
उन्होंने कहा कि पैसे की चिंता न करें। ये फूल आप एकत्रित करके दें।
मैंने कहा कि यह संभव नहीं है क्योंकि मैं परामर्श से अधिक रिसर्च पर ध्यान देता हूं और इस तरह की गतिविधियों से रिसर्च में बहुत बाधा उत्पन्न होती है।
हां, मैं उन्हें बता सकता हूं कि यह कहां मिलेगा और किस व्यक्ति के पास जाने से उन्हें सहायता मिल सकती है।
मैंने उनसे कहा कि उड़ीसा के गंधमर्दन पर्वत में जाएं और अमुक व्यक्ति से मिलें। वह साथ में जाकर जंगल से फूल एकत्रित कर देगा। जब आपके पास फूल एकत्रित हो जाए तब आप मुझसे संपर्क करिएगा।
ध्यान रखिएगा कि फूल ताजे होने चाहिए। सूखे नहीं होने चाहिए।
इसके बाद बहुत दिनों तक उन्होंने संपर्क नहीं किया। 3 महीनों बाद मुझे उड़ीसा से उनका फोन आया कि वे गंधमर्दन पर्वत पहुंच गए हैं पर वहां वृक्षों से ये फूल खत्म हो चुके हैं।
मैंने उनसे कहा कि उनका मौसम खत्म हो गया है। अब अगले साल ही मिलेंगे। आपने 3 महीने की देरी क्यों की?
उन्होंने कहा कि वे वैकल्पिक चिकित्सा में लगे हुए थे और जब उससे फायदा नहीं हुआ तब फिर से मेरा रुख किया है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी भी हालत में मैं उनके लिए फूल की व्यवस्था करूं।
मैंने बहुत से पारंपरिक चिकित्सकों से बात की पर सबने कहा कि उन्होंने फूल अपने मरीजों के लिए बचा कर रखे हैं। साल भर वे इसका प्रयोग करेंगे। इसलिए वे इसे दूसरों को नहीं दे सकते हैं।
काफी मान मनौव्वल करने के बाद वे आधे सूखे हुए फूल देने को तैयार हुए। इस तरह कनाडा के उद्योगपति महोदय को फूल मिल पाए।
चलिए अब लंदन के डॉक्टर मित्र की बात पर चलते हैं। मैंने उन्हें कहा कि फूलों का रस निकाला जाए। अगर यह संभव नहीं है तो उसका जलीय सत्व निकाला जाए और उसके बाद माताजी के वस्त्रों को उसमें डुबोया जाए।
वस्त्रों को छांव में सुखाया जाए यानी कि अधिक धूप में न सुखाया जाए और जब वस्त्र सूख जाए तो माताजी दिनभर इन्हें पहने।
ऐसा तब तक करना है जब तक की समस्या का समाधान न हो जाए। मेरा अनुमान है कि इसमें 10 से 15 दिन लगेंगे।
मित्र ने पूरी ईमानदारी से यह काम किया और आशा के विपरीत 5 दिनों में ही अंगारों वाली जलन से काफी हद तक राहत मिल गई।
कनाडा के उद्योगपति महोदय की पत्नी के लिए भी इसी तरह वस्त्र तैयार करने की जानकारी उन्हें दी। उन्होंने लंबे समय तक वस्त्र का प्रयोग किया।
उन्हें बहुत सारे लक्षणों और तात्कालिक समस्याओं में फायदा हुआ पर कैंसर इतना अधिक फैल चुका था कि उनकी जान नहीं बच पाई।
कुछ वर्षों पहले दार्जिलिंग के एक व्यक्ति ने मुझसे संपर्क किया कि उनकी मां कोमा में है और क्या आप के सुझाए गए वस्त्र उनकी हालत में सुधार कर सकते हैं?
मैंने हर बार की तरह उन्हें फूलों की सूची भेजी तो उन्होंने बताया कि दार्जिलिंग में ये फूल नहीं मिल रहे हैं।
मैंने उन्हें कहा कि वे छत्तीसगढ़ में आयें और यहां से फूल एकत्रित करें।
उन्होंने ऐसा ही किया।
वे हर हफ्ते आते रहे और बड़े मन से अपनी मां की सेवा करते रहे। धीरे-धीरे उनकी हालत में सुधार होने लगा।
फिर बाद में उन्होंने दार्जिलिंग के पास ही कहीं से फूलों की व्यवस्था कर ली। फिर मुझसे उन्होंने संपर्क साधना बंद कर दिया।
यहां कर्नाटक के एक विद्वान की चर्चा करना जरूरी है क्योंकि वे पिछले कई वर्षों से मेरे इस ज्ञान में विशेष रूचि ले रहे हैं।
जब भी कोई वस्त्र मैं किसी को सुझाता हूं तो उन्हें जरूर बताता हूं। फिर वे अपने पैसों से उस व्यक्ति तक जाकर फीडबैक लेते हैं और उसे डॉक्यूमेंट करते हैं।
ऐसे हजार भर केसो के बारे में उन्होंने विस्तार से लिखा है और अब हम जल्दी ही मिल कर एक ग्रंथ लिखने की योजना बना रहे हैं।
कोरोनावायरस के बाद कोरोना जनित स्वास्थ समस्याओं के निराकरण के लिए ऐसे वस्त्रों से संबंधित हमारा पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान वरदान साबित हो सकता है।
हमारे देश के बहुत से विश्वविद्यालयों ने मेरे माध्यम से इस पर वैज्ञानिक अनुसंधान किये है और बहुत से वैज्ञानिक इस कोरोना काल में इस पर क्लिनिकल ट्रायल्स करने की सोच रहे हैं।
यह एक शुभ लक्षण है।
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