अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -50

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -50 - पंकज अवधिया


यदि मै आपसे सवाल करुँ कि आप कौन-सा चावल खाते है तो आपमे से ज्यादातर लोग कहेंगे बासमती, यदि आप शहरी इलाको से होंगे तो। यदि आप ग्रामीण इलाको से होंगे तो आप अधिक उपज देने वाली नयी किस्मो के नाम गिनाने शुरु कर देंगे। आपमे से बहुत कम पारम्परिक किस्मो की बात कहेंगे। धान की पारम्परिक किस्मे तेजी से खत्म होती जा रही है। हमारी नयी पीढी इनके नाम पुस्तको मे ही पढ पायेगी- ऐसा प्रतीत होता है। मै अपने सर्वेक्षणो के दौरान युवाओ से जब इनके विषय मे पूछता हूँ तो वे बगले झाँकने लगते है। ज्यादातर बुजुर्ग भी बहुत कम जानकारी दे पाते है औषधीय धान के विषय मे। बीज मिल पाना तो दूर की बात है। यह मेरा सौभाग्य है कि मै पिछले डेढ दशक से इसमे अपनी रुचि बनाये हुये हूँ। इसका परिणाम यह हुआ कि मुझे दसो किस्म के औषधीय धान के विषय मे न केवल जानने को मिला बल्कि उनके औषधीय उपयोगो को परखने का भी अवसर मिला। औषधीय धान से सम्बन्धित जानकारियो को मैने अपने तक सीमित नही रखा। सैकडो लेखो के माध्यम से मैने इसके विषय मे दुनिया को बताया, इस उम्मीद मे कि एक बार फिर छत्तीसगढ मे इसके महत्व को समझकर इसकी खेती आरम्भ हो सके और किसानो को पीढीयो तक लाभ मिल सके। औषधीय धान अगली पीढीयो के लिये बच सके क्योकि जिस गति से हम पर्यावरण का नाश कर रहे है उसे देखकर लगता है कि ऐसी ही दिव्य गुणो वाली भेंट उन्हे नये रोगो से मुक्ति दिलवा पायेंगी। सैकडो लेख लिखने के बाद भी जब औषधीय धान से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के विषय मे पूरा नही लिख पाया तो मैने एक वैज्ञानिक रपट बनानी आरम्भ की है। इसका शीर्षक है ‘Medicinal Rice in Traditional Healing in Indian state Chhattisgarh’ । अभी इसका आकार 50 जीबी का हो चुका है। इसमे कितनी जानकारियाँ होंगी, आप सहज अनुमान लगा सकते है। इस रपट मे बहुत कुछ लिखना बाकी है। मधुमेह की वैज्ञानिक रपट अब आकार मे 200 जीबी पार कर चुकी है। इस रपट मे भी औषधीय धान के विषय मे मैने बहुत कुछ लिखा है

छत्तीसगढ को धान का कटोरा कहा जाता है। चावल मुख्य आहार है। साधारण सर्दी-खाँसी से जटिल मधुमेह तक की चिकित्सा मे सक्षम औषधीय धान है छत्तीसगढ मे तो फिर यहाँ रोग क्यो है? आम लोगो के आहार मे इनका प्रवेश कर केवल भोजन से जन- स्वास्थ्य का स्तर सुधारा जा सकता है। फिर धान की खेती से कम लाभ पा रहे किसान इसकी खेती करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकते है।

पिछले सप्ताह मै औषधीय धान के विषय मे जानकारी रखने वाले पारम्परिक चिकित्सको से चर्चा कर रहा था। उन्होने बताया कि यदि अलग-अलग आयु वर्ग के लोगो को तीन साल तक विशेष आहार मे रखा जाये तो उनके शेष जीवन मे उन्हे जटिल रोगो से बचाया जा सकता है। केवल आहार, दवा की आवश्यकता नही। उदाहरण के लिये उन्होने बताया कि 15 से 18 वर्ष मे यदि कोई तीन वर्षो तक उनके अनुसार आहार ले तो ताउम्र वह मधुमेह के दूसरे प्रकार (Type II Diabetes) से बच सकता है। मधुमेह से बचाव?? जी, बिल्कुल सही पढा आपने। जहाँ अमेरिका जैसे विकसित देश मे इस पर अनुसन्धान के लिये अरबो बहाये जा रहे है वही हमारे देश मे पीढीयो से उपयोग किया जा रहा पारम्परिक ज्ञान जनसेवा की बाट जोह रहा है। पारम्परिक चिकित्सक जिस विशेष आहार की सलाह देते है उसमे औषधीय धान मुख्य रुप से शामिल होते है। मधुमेह मे चावल? आपका यह प्रश्न भी सही है। आमतौर पर मधुमेह मे चावल के प्रयोग की मनाही आधुनिक चिकित्सक कर देते है। पर यहाँ औषधीय धान की बात हो रही है। चर्चा मे उन्होने औषधीय धान के विभिन्न प्रकारो को औषधीय गुणो से परिपूर्ण करने के लिये खेती की विशेष विधियाँ भी बतायी। मैने तो ऐसी विधियाँ पहली बार उनसे ही सुनी।

अन्ध-विश्वास से जंग पर लिखी जा रही इस लेखमाला को लगातार पढ रहे पाठक सोच रहे होंगे कि यह औषधीय धान की बात कहाँ से बीच मे आ गयी। दरअसल औषधीय धान के विषय मे शोध करते वक्त मुझे पता चला कि दशको पहले बहुत से किसानो को इसकी खेती से रोकने के लिये डराया गया। उन्हे बताया गया कि इन किस्मो को लगाने से घर का बिगाड हो जायेगा या अनर्थ हो जायेगा। यह सब उन लोगो ने किया जिन पर दबाव था कि वे आधुनिक किस्मो की खेती को बढावा दे। उन्होने अच्छे-बुरे दोनो तरीके अपनाये। उनका काम तो बन गया पर बहुत से किसानो के मन मे ये झूठी बाते अन्ध-विश्वास के रुप मे अभी भी बैठी है। औषधीय धान तेन्दुफूल की खेती के लिये जब मैने एक बुजुर्ग किसान को प्रेरित किया तो उन्होने बडे ही अटपटे अन्दाज मे मुझे देखा। कारण पूछने पर उन्होने अनर्थ वाली बात कह दी। मैने उन्हे लाख समझाने की कोशिश की और यह बताया कि इस धान के उपयोग से घर के सभी सदस्य लाभांवित हो सकते है। डाक्टर का खर्च बच सकता है पर वे तैयार नही हुए। मैने भी हार नही मानी है।

यह लेख इस लेखमाला का पचासवाँ लेख है। आप जैसे पाठको के सन्देश निरंतर आ रहे है कि आप “कुछ अनुभव” मे ही इतना सब कुछ लिख गये, असली जंग की जानकारी कितने विस्तार मे होगी, इसकी कल्पना हम नही कर पा रहे है। पाठको का यह प्रश्न जायज है। आप के ऊर्जावान सन्देशो के कारण ही मै मन की बात विस्तार से इस लेखमाला के माध्यम से लिख पा रहा हूँ। “कुछ अनुभव “ के तहत अभी बहुत कुछ लिखा जाना बाकी है। उसके बाद निश्चित ही जंग के विषय मे भी लिखने का प्रयास मै करुंगा। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

इस लेखमाला को चित्रो से सुसज्जित करके और नयी जानकारियो के साथ इकोपोर्ट मे प्रकाशित करने की योजना है। इस विषय मे जानकारी जल्दी ही उपलब्ध होगी इसी ब्लाग पर।

Comments

ghughutibasuti said…
यह सच है कि संसार से वनस्पतियों की बहुत सी किस्में गायब होती जा रही हैं । जब तक हम यह बात समझ पाएँगें बहुत देर हो चुकी होगी । आज फलों के नाम पर केवल कुछ फल ही बाज़ार में मिलते हैं जबकि जंगलों में भाँति भाँति के बेहद स्वाद फल मिलते थे । हर पीढ़ी के साथ इनका ज्ञान व उपलब्धता कम होती जा रही है । इनमें से कुछ फलों के स्वाद अब केवल यादों में ही रह गए हैं । आप जो कर रहे हैं वह बेहद आवश्यक व उपयोगी है । सफलता के लिए शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती
Udan Tashtari said…
सही है, जारी रहिये.

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