अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -54

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -54 - पंकज अवधिया

हथियारो से लैस डकैतो ने पास के एक शहर मे किसी बडे आदमी के घर के सभी सदस्यो को बन्धक बना लिया था। आस-पास राजा की फौज मौजूद थी पर वह थोडा भी आगे बढती तो डकैत आक्रामक हो जाते। हमारे दादाजी को बुलाया गया। वे राजवैद्य थे। अब ऐसी विकट स्थिति मे राजवैद्य की भला क्या जरुरत। सैन्य अधिकारियो ने विचार-विमर्श किया। उन्हे रात होने का इंतजार करने के लिये कहा गया। ठंड के दिन थे। आम लोग लकडी जलाकर ठंड से बचने की कोशिश करते थे। शाम को माहौल मे धुए की गन्ध बिखरी रहती थी। इसी समय राजवैद्य ने हवा की दिशा जाँची और फिर कंडे मे कुछ जडी-बूटियाँ डाली। जडी-बूटियाँ जलने लगी और धुआँ उस घर के अन्दर जाने लगा जहाँ डकैत और बन्धक थे। थोडी ही देर मे राजवैद्य ने सैनिको को घोडो को चाबुक मारने को कहा। घोडे हिनहिनाये। बाहर थोडी सी अफरातफरी मची पर अन्दर से कोई प्रतिक्रिया नही आयी। सैनिक राजवैद्य का इशारा पाते ही घर के अन्दर घुस पडे। अन्दर देखा तो सभी बेहोशी जैसी स्थिति मे थे। घुँए ने कमाल दिखाया था। बन्धको को पानी के छीटो से होश मे लाया गया और फिर ताजा घी पिलाया गया। धुँए का बुरा प्रभाव पल भर मे खत्म हो गया। डकैतो को बिना खून-खराबे के पकड लिया गया। ऐसे सैकडो किस्से मुझे गाँव के बुजुर्गो से सुनने को मिलते थे जब मै प्राचीन युद्ध कला मे वनस्पतियो की भूमिका पर एक रपट तैयार कर रहा था। पिछले दो दिनो से होटल ताज मे हो रही सैन्य कार्यवाही से अचानक ही प्राचीन युद्ध कला वाली रपट का ध्यान आ गया।

पूरी घटना मै टीवी चैनलो के माध्यम से देखता रहा है और बहादुर जवानो के साहस को सलाम करता रहा। ताबडतोड गोलियो ने ही फैसला किया। हमारे बहुत से जवान मारे गये। ताज मे कार्यवाही सचमुच मुश्किल थी। जिसने भी ताज को अन्दर से देखा होगा वह इस बात को समझ सकता है। नरीमन हाउस मे कमांडो कार्यवाही देखते समय मुझे बार-बार बुजुर्गो द्वारा बतायी गयी उपरोक्त घटना याद आ रही थी। टीवी चैनलो ने तो नही बताया पर मुझे लगता है कि जवानो के सामने अन्दर रसायन के माध्यम से लोगो को बेहोश करने का विकल्प रहा होगा पर जरुर कुछ पेच के कारण उन्होने सीधी लडाई का विकल्प चुना होगा। हमारे देश मे बहुत से शोध संस्थान है जो सेना के लिये शोध करते है। निश्चित ही उनके पास प्राचीन युद्ध कला मे उपयोग की जाने वाली वनस्प्तियो की जानकारी होगी। अपने अध्ययन के दौरान मै हजारो लोगो से मिला। पर सभी ने यही कहा कि उनसे पहले किसी ने इस बारे मे नही जानना चाहा। मैने रपट मे सारे विस्तार को लिखने की कोशिश की पर इसे सही हाथो तक पहुँचाने की कोशिश अभी भी जारी है। कुछ वर्षो पहले मुझसे एक रक्षा शोधकर्ता मिलने आये थे। उन्हे एलो वेरा की खेती देखनी थी। हम लोग पास के फार्म मे गये। उन्होने ये तो नही बताया कि एलो का वे क्या करेंगे पर उन्होने बहुत से पौधे एकत्र किये। उन्होने बातो-बातो मे बताया कि वनस्पतियो के सेना मे उपयोग की दिशा मे गहन शोध हो रहे है। मैने अपने कार्य के बारे मे उन्हे बताया तो उन्होने अनिभिज्ञता जतायी। उन्होने कहा कि मै विज्ञान पत्रिकाओ मे इसे शोध-पत्र के रुप मे प्रकाशित करवाऊँ तब दुनिया मानेगी। मुझे दुनिया को नही मनवाना था इसलिये मैने इसे अपने पास ही रखना ज्यादा उचित समझा। देश के विभिन्न भागो मे सफर के दौरान मै बहुत से ऐसे विशेषज्ञो से मिला पर उनकी बातो से लगा कि इस रपट की उन्हे आवश्यकत्ता है।

मैने नेशनल ज्योग्राफी पर रुस मे हुयी एक आतंकवादी घटना पर केन्द्रित फिल्म देखी थी। उसमे बेहोश करने वाली गैस का प्रयोग किया गया था उस हाल मे जहाँ आतंकवादियो ने बन्धको को रखा था। पर गन्ध के कारण आतंकवादियो को इसका पता लग गया था और सब गुड-गोबर हो गया था। इसके उलट वनस्पतियो को बडे ही सरल ढंग से आस-पास की गन्ध मिला-जुला कर ग्रेनेड के माध्यम या दूसरे विकल्पो के माध्यम से उन भागो मे प्रवेश कर आतंकियो को शक्तिहीन किया जा सकता है। सैकडो वनस्पतियो मे दिमाग को कुन्द करने से लेकर अस्थायी पक्षाघात पैदा करने वाली वनस्पतियाँ है। इसकी काट भी है जिससे बन्धको को बिना किसी देरी के होश मे लाया जा सकता है। मै इस संवेदनशील मुद्दे पर ज्यादा खुलासा नही करना चाहूंगा।

एक चैनल मे बताया गया कि नरीमन हाउस के घटनाक्रम के दौरान जब जवान खाना खाने मे जुटे तो आतंकवादियो ने इसका लाभ उठाया। मोर्चे पर खाना? फिर मुझे पारम्परिक युद्ध कला का ध्यान आ गया जहाँ सैनिक एक बार भोजन करते थे और जरुरत पडने पर हफ्तो तक बिना भोजन के लडते रहते थे उसी ताकत के साथ। भूख कम करने वाली और ताकत बनाये रखने वाली औषधीयो को आधुनिक विज्ञान ASH (Appetite Suppressant Herbs) के रुप मे जानता है। मोटापा कम करने के लिये इसका प्रयोग होता है। इस पर ढेरो पेटेंट लिये गये है पर अभी तक विदेशियो को इस बात की भनक भी नही पडी है कि भारत मे कैसे वनस्पतियाँ और उनसे तैयार मिश्रण उपयोग किये जाते थे। सस्ते मे प्रभावी ढंग से तैयार हो जाने वाले इन पारम्परिक मिश्रणो का प्रयोग भारतीय सेना मे होने लगे तो निश्चित ही उन्हे ऐसे अभियानो मे सफलता मिलेगी। मै एक बार फिर कहना चाहूंगा कि मै केवल चैनलो मे दिखायी गयी कार्यवाही के आधार यह कह रहा हूँ। मुझे पूरी उम्मीद है कि हमारे सैन्य शोध संस्थान पहले से इस विषय मे जानते होंगे।

हाल मे विदेशो मे किये गये एक शोध से पता चला है कि उन स्थानो मे जहाँ बारुदी सुरंग बिछी है वहाँ विशेष प्रकार की वनस्पति लगाकर इनका पता कुछ ही समय मे लगाया जा सकता है। हमारे देश मे आतंकवादी बारुदी सुरंगो का प्रयोग अक्सर करते है। मुझे लगता है कि इसी तर्ज पर भारत मे भी शोध होने चाहिये। हमारे जंगलो मे बहुत सी ऐसी वनस्पतियाँ है जिनमे उस वनस्प्ति से अधिक गुण है जिसके बारे मे विदेशियो ने शोध किया है।

यह कडी शहीदो और उनके योगदान को समर्पित है। मेरा ज्ञान किसी भी तरह से भारतीय सेना के उपयोग मे आ सके तो मै अपने को धन्य समझूंगा। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Popular posts from this blog

अच्छे-बुरे भालू, लिंग से बना कामोत्तेजक तेल और निराधार दावे

World Literature on Medicinal Plants from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plant Database -719

स्त्री रोग, रोहिना और “ट्री शेड थेरेपी”