अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -51
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -51 - पंकज अवधिया
यूँ तो लगातार ऐसे दावे सामने आते रहते है कि संजीवनी बूटी खोज ली गयी है पर वास्तव मे क्या रामायण काल मे प्रयोग की गयी संजीवनी बूटी अब भी धरती पर है? क्या यह एक वनस्पति है या वनस्पतियो का मिश्रण? आम लोगो मे इस विषय पर चर्चा होती रहती है। विद्वान भी इसमे सिर खपाते रहते है। हरेक दावे को परखे बिना ही विद्वान उसका विरोध शुरु कर देते है। यदि वे विरोध न करे तो किस काम के विद्वान। वनस्पतियो मे रुचि होने के कारण मै भी इस वनस्पति को तलाशता रहा। विद्वानो ने कह दिया कि आप छत्तीसगढ मे इसे न खोजे क्योकि रामायण काल मे दूसरी जगह से इसे लाने की बात लिखी है। आपको यह मध्य भारत मे नही मिलेगी। और यदि गल्ती से मिल भी गयी तो विद्वान इसे मान्यता नही देंगे। इन सब बातो की परवाह किये बगैर मैने खोज जारी रखी। विद्वान की मान्यता की चिंता नही थी। बस यही तमन्ना थी कि ऐसी वनस्पति को प्राप्त कर मै इससे लोगो का जीवन बचा सकूँ।
कुछ वर्षो पहले एक पारम्परिक चिकित्सक के सामने एक बेबस खडे विदेशी पुरुष को देखा। उसे कैसर था और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने हाथ खडे कर दिये थे। पारम्परिक चिकित्सक ने चिकित्सा आरम्भ की। ढेरो वनस्पतियो की आजमाइश की लेकिन आशानुकूल परिणाम नही मिले। उन दिनो मै पारम्परिक चिकित्सक के घर मे ही रहकर उनकी सहायता कर रहा था। आपस मे चर्चा के दौरान उन्होने मुझे दूर जंगल से एक विशेष वनस्पति लाने की बात कही। दस-बारह लोगो का दल बनाया गया और हम सुबह से निकल पडे। दिन भर मे बहुत सी डोंगरियो को पारकर हम एक दलदली स्थान मे पहुँचे। घना जंगल था। आगे के लिये जिन तीन लोगो को चुना गया उनमे मै भी एक था। फिर कुछ दूरी पर हमे रोककर वे अकेले ही चल पडे। कुछ देर बाद एक वनस्पति ले कर लौटे। मैने वह वनस्पति अपने जीवन मे कभी नही देखी थी। हम वापस आये। उन्होने उस वनस्पति से लेप तैयार किया और आँतरिक प्रयोग के लिये मिश्रण भी। फिर शुरु हुआ इन्हे रोगी को हर पाँच मिनट मे देने का दौर। बहुत जल्दी ही वनस्पति ने अपना असर दिखाया और रोगी की हालत सुधरने लगी। जल्दी ही वह अपने देश वापस चला गया। पारम्परिक चिकित्सक से गूढ ज्ञान प्राप्त हुआ वनस्पति के विषय मे। क्या यह संजीवनी बूटी थी? हाँ, जो किसी को मौत के मुँह से खीच लाये वह संजीवनी बूटी ही तो होगी-पारम्परिक चिकित्सक ने जवाब दिया।
चालीस वर्ष का एक युवा फिल्मकार रेल मे सफर कर रहा था। किसी ने उसे लूटने के इरादे से जहर खिला दिया। सप्ताह भर बाद जब उसे होश आया तो पता चला कि उसकी दोनो आँखो से कम दिखायी पड रहा है। उसके घर वालो ने जमीन-आसमान एक कर दिया। एक्यूप्रेशर से लेकर झाड-फूँक सभी करवाया। आधुनिक चिकित्सको ने आप्टिकल नर्व की समस्या बतायी और कहा कि वापस रोशनी आने की सम्भावना क्षीण है। किसी मित्र के कहने पर इस युवक को एक पारम्परिक चिकित्सक के पास लाया गया। उन्होने कहा कि फलाँ वनस्पति से बात बन सकती है पर उसके पास यह नही है। यदि आप इस वनस्पति का प्रबन्ध कर दे तो मै चिकित्सा कर दूंगा। वनस्पति के विषय मे विस्तार लेकर युवक के परिजन भटकते रहे। किसी ने मेरा पता दिया। वनस्पति के विषय मे सुनकर मैने अपना डेटाबेस देखा और दस तरह की वनस्पतियाँ चुनी। इनकी तस्वीर जब पारम्परिक चिकित्सक को दिखायी गयी तो वे एक पर हाथ रखकर बोले कि बस यही चाहिये। उन्हे वनस्पति उपलब्ध करा दी गयी और बात बन गयी। मैने उनसे पूछा कि इसे आप किस नाम से जानते है? संजीवनी बूटी-उन्होने बिना देरी के कहा। और साथ ही इसके ढेरो उपयोग बताये। क्या सचमुच यह संजीवनी बूटी थी?
घने जंगल मे एक बार पारम्परिक चिकित्सको के साथ भ्रमण करते हुये हमने एक औधे पडे हिरण को देखा। ताली बजाकर और आवाज लगाकर यह सुनिश्चित किया कि आस-पास कोई शिकारी जानवर तो नही है। फिर हिरण के पास पहुँचे। वह अन्तिम साँसे गिन रहा था। पारम्परिक चिकित्सक बोले, चलो इस पर अपना ज्ञान आजमाते है। उन्होने चार प्रकार की वनस्पतियाँ आस-पास से एकत्र की और मिट्टी मे इन्हे मिलाकर लेप तैयार किया। इस लेप को हिरण के शरीर पर लगाया गया। लेप लगाते समय मन उदास था क्योकि शरीर छूने से यह प्रतीत हो रहा था कि यह जिन्दा नही है और सारी मेहनत बेकार जाने वाली है। लेप सूखने के बाद फिर नया लेप लगाया गया। पाँच घंटे तक यह क्रम चलता रहा। आस-पास बडी संख्या मे मुर्दाखोर जानवर इस प्रतीक्षा मे बेसब्र हो रहे थे कि कब हम हटे और वे हिरन को खाना शुरु करे। शाम होने पर भी पारम्परिक चिकित्सक ने हौसला नही छोडा। उन्होने दो और वनस्पतियाँ लेप मे मिलायी और हमसे हिरण के चारो ओर लकडियाँ जलाने को कहा। दो वनस्पतियो को मिलाने का उद्देश्य ऐसी दुर्गन्ध पैदा करना था जिससे मुर्दाखोर हिरण से दूर रहे। हम रात भर उस हिरण को उसके हाल पर छोडकर गाँव लौटना चाहते थे। इसलिये चारो ओर आग लगा दी थी। हम बेमन वापस आ गये पर रात भर सोये नही। अलसुबह अनर्थ की आशंका के साथ वापस पहुँचे तो हिरन वैसे ही पडा हुआ था। हम उसके पास पहुँचे तो अनजानो को देखकर उसने उठने की कोशिश की पर उठ नही पाया। सुबह से लेकर शाम तक हम भिडे रहे और अंतत: उसे सामान्य करने मे सफल हुये। पारम्परिक चिकित्सक ने कहा कि ठीक इसी तरह मनुष्य को भी मौत के मुँह से वापस लाया जा सकता है। उन्होने चारो वनस्प्तियो के मिश्रण को संजीवनी कहा। तो क्या यही संजीवनी थी?
पिछले एक दशक से भी अधिक समय मे मैने सैकडो ऐसी वनस्पतियो के विषय मे महत्वपूर्ण जानकारियाँ एकत्र की है। जब मै रामायण काल की संजीवनी या मृत संजीवनी के बारे मे सुनता और पढता हूँ तो मुझे ये वनस्प्तियाँ वही लगती है। पर मै इन्हे संजीवनी कहकर प्रचारित करने की भूल नही करना चाहता हूँ। यदि ऐसा करुँ तो हमारे विद्वान लकीर के फकीर की तरह हाथ-धोकर (या कहे नहा-धोकर) पीछे पड जायेंगे। वे यह नही सोचेंगे कि सुषेन वैद्य भी शायद सैकडो संजीवनी के विषय मे जानते थे पर लक्षमण की अवस्था देखकर उन्होने उनमे से एक उपयोगी संजीवनी को चुना हो उस समय के लिये। हो सकता है कि शेष संजीवनी के विषय मे उनका ज्ञान उनके साथ ही समाप्त हो गया हो। अब उस समय तो पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया शुरु नही हुयी थी। पर चलिये इसे छोडे, विद्वानो को बहस करने दे। संजीवनी की तरह गुण रखने वाली ये वनस्प्तियाँ मानव-कल्याण की बाट जोह रही है। पर आधुनिक मानव को उसकी परवाह ही नही है। इन वनस्प्तियो के विषय मे अब तक एकत्र की गयी जानकारियो को एक स्थान पर संजोने के उद्देश्य से मैने इस पर एक ग्रंथ लिखना शुरु किया था। आज भी इसमे नयी जानकारियाँ जुड रही है। इसका शीर्षक है Divine medicinal herbs of Indian state Chhattisgarh having Mrita Sanjivani (Sanjeewani) like unique healing properties. अभी इसका आकार 10 जीबी हो चुका है। यह इंटरनेट पर नही है। ना ही इसे आन-लाइन करने का इरादा है। उम्मीद करता हूँ कि देश के उत्साही युवा शोधकर्ताओ की नजर इस पर पडेगी और वे इस दुर्लभ ज्ञान को समझने मे रुचि दिखायेंगे। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
इस लेखमाला को चित्रो से सुसज्जित करके और नयी जानकारियो के साथ इकोपोर्ट मे प्रकाशित करने की योजना है। इस विषय मे जानकारी जल्दी ही उपलब्ध होगी इसी ब्लाग पर।
यूँ तो लगातार ऐसे दावे सामने आते रहते है कि संजीवनी बूटी खोज ली गयी है पर वास्तव मे क्या रामायण काल मे प्रयोग की गयी संजीवनी बूटी अब भी धरती पर है? क्या यह एक वनस्पति है या वनस्पतियो का मिश्रण? आम लोगो मे इस विषय पर चर्चा होती रहती है। विद्वान भी इसमे सिर खपाते रहते है। हरेक दावे को परखे बिना ही विद्वान उसका विरोध शुरु कर देते है। यदि वे विरोध न करे तो किस काम के विद्वान। वनस्पतियो मे रुचि होने के कारण मै भी इस वनस्पति को तलाशता रहा। विद्वानो ने कह दिया कि आप छत्तीसगढ मे इसे न खोजे क्योकि रामायण काल मे दूसरी जगह से इसे लाने की बात लिखी है। आपको यह मध्य भारत मे नही मिलेगी। और यदि गल्ती से मिल भी गयी तो विद्वान इसे मान्यता नही देंगे। इन सब बातो की परवाह किये बगैर मैने खोज जारी रखी। विद्वान की मान्यता की चिंता नही थी। बस यही तमन्ना थी कि ऐसी वनस्पति को प्राप्त कर मै इससे लोगो का जीवन बचा सकूँ।
कुछ वर्षो पहले एक पारम्परिक चिकित्सक के सामने एक बेबस खडे विदेशी पुरुष को देखा। उसे कैसर था और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने हाथ खडे कर दिये थे। पारम्परिक चिकित्सक ने चिकित्सा आरम्भ की। ढेरो वनस्पतियो की आजमाइश की लेकिन आशानुकूल परिणाम नही मिले। उन दिनो मै पारम्परिक चिकित्सक के घर मे ही रहकर उनकी सहायता कर रहा था। आपस मे चर्चा के दौरान उन्होने मुझे दूर जंगल से एक विशेष वनस्पति लाने की बात कही। दस-बारह लोगो का दल बनाया गया और हम सुबह से निकल पडे। दिन भर मे बहुत सी डोंगरियो को पारकर हम एक दलदली स्थान मे पहुँचे। घना जंगल था। आगे के लिये जिन तीन लोगो को चुना गया उनमे मै भी एक था। फिर कुछ दूरी पर हमे रोककर वे अकेले ही चल पडे। कुछ देर बाद एक वनस्पति ले कर लौटे। मैने वह वनस्पति अपने जीवन मे कभी नही देखी थी। हम वापस आये। उन्होने उस वनस्पति से लेप तैयार किया और आँतरिक प्रयोग के लिये मिश्रण भी। फिर शुरु हुआ इन्हे रोगी को हर पाँच मिनट मे देने का दौर। बहुत जल्दी ही वनस्पति ने अपना असर दिखाया और रोगी की हालत सुधरने लगी। जल्दी ही वह अपने देश वापस चला गया। पारम्परिक चिकित्सक से गूढ ज्ञान प्राप्त हुआ वनस्पति के विषय मे। क्या यह संजीवनी बूटी थी? हाँ, जो किसी को मौत के मुँह से खीच लाये वह संजीवनी बूटी ही तो होगी-पारम्परिक चिकित्सक ने जवाब दिया।
चालीस वर्ष का एक युवा फिल्मकार रेल मे सफर कर रहा था। किसी ने उसे लूटने के इरादे से जहर खिला दिया। सप्ताह भर बाद जब उसे होश आया तो पता चला कि उसकी दोनो आँखो से कम दिखायी पड रहा है। उसके घर वालो ने जमीन-आसमान एक कर दिया। एक्यूप्रेशर से लेकर झाड-फूँक सभी करवाया। आधुनिक चिकित्सको ने आप्टिकल नर्व की समस्या बतायी और कहा कि वापस रोशनी आने की सम्भावना क्षीण है। किसी मित्र के कहने पर इस युवक को एक पारम्परिक चिकित्सक के पास लाया गया। उन्होने कहा कि फलाँ वनस्पति से बात बन सकती है पर उसके पास यह नही है। यदि आप इस वनस्पति का प्रबन्ध कर दे तो मै चिकित्सा कर दूंगा। वनस्पति के विषय मे विस्तार लेकर युवक के परिजन भटकते रहे। किसी ने मेरा पता दिया। वनस्पति के विषय मे सुनकर मैने अपना डेटाबेस देखा और दस तरह की वनस्पतियाँ चुनी। इनकी तस्वीर जब पारम्परिक चिकित्सक को दिखायी गयी तो वे एक पर हाथ रखकर बोले कि बस यही चाहिये। उन्हे वनस्पति उपलब्ध करा दी गयी और बात बन गयी। मैने उनसे पूछा कि इसे आप किस नाम से जानते है? संजीवनी बूटी-उन्होने बिना देरी के कहा। और साथ ही इसके ढेरो उपयोग बताये। क्या सचमुच यह संजीवनी बूटी थी?
घने जंगल मे एक बार पारम्परिक चिकित्सको के साथ भ्रमण करते हुये हमने एक औधे पडे हिरण को देखा। ताली बजाकर और आवाज लगाकर यह सुनिश्चित किया कि आस-पास कोई शिकारी जानवर तो नही है। फिर हिरण के पास पहुँचे। वह अन्तिम साँसे गिन रहा था। पारम्परिक चिकित्सक बोले, चलो इस पर अपना ज्ञान आजमाते है। उन्होने चार प्रकार की वनस्पतियाँ आस-पास से एकत्र की और मिट्टी मे इन्हे मिलाकर लेप तैयार किया। इस लेप को हिरण के शरीर पर लगाया गया। लेप लगाते समय मन उदास था क्योकि शरीर छूने से यह प्रतीत हो रहा था कि यह जिन्दा नही है और सारी मेहनत बेकार जाने वाली है। लेप सूखने के बाद फिर नया लेप लगाया गया। पाँच घंटे तक यह क्रम चलता रहा। आस-पास बडी संख्या मे मुर्दाखोर जानवर इस प्रतीक्षा मे बेसब्र हो रहे थे कि कब हम हटे और वे हिरन को खाना शुरु करे। शाम होने पर भी पारम्परिक चिकित्सक ने हौसला नही छोडा। उन्होने दो और वनस्पतियाँ लेप मे मिलायी और हमसे हिरण के चारो ओर लकडियाँ जलाने को कहा। दो वनस्पतियो को मिलाने का उद्देश्य ऐसी दुर्गन्ध पैदा करना था जिससे मुर्दाखोर हिरण से दूर रहे। हम रात भर उस हिरण को उसके हाल पर छोडकर गाँव लौटना चाहते थे। इसलिये चारो ओर आग लगा दी थी। हम बेमन वापस आ गये पर रात भर सोये नही। अलसुबह अनर्थ की आशंका के साथ वापस पहुँचे तो हिरन वैसे ही पडा हुआ था। हम उसके पास पहुँचे तो अनजानो को देखकर उसने उठने की कोशिश की पर उठ नही पाया। सुबह से लेकर शाम तक हम भिडे रहे और अंतत: उसे सामान्य करने मे सफल हुये। पारम्परिक चिकित्सक ने कहा कि ठीक इसी तरह मनुष्य को भी मौत के मुँह से वापस लाया जा सकता है। उन्होने चारो वनस्प्तियो के मिश्रण को संजीवनी कहा। तो क्या यही संजीवनी थी?
पिछले एक दशक से भी अधिक समय मे मैने सैकडो ऐसी वनस्पतियो के विषय मे महत्वपूर्ण जानकारियाँ एकत्र की है। जब मै रामायण काल की संजीवनी या मृत संजीवनी के बारे मे सुनता और पढता हूँ तो मुझे ये वनस्प्तियाँ वही लगती है। पर मै इन्हे संजीवनी कहकर प्रचारित करने की भूल नही करना चाहता हूँ। यदि ऐसा करुँ तो हमारे विद्वान लकीर के फकीर की तरह हाथ-धोकर (या कहे नहा-धोकर) पीछे पड जायेंगे। वे यह नही सोचेंगे कि सुषेन वैद्य भी शायद सैकडो संजीवनी के विषय मे जानते थे पर लक्षमण की अवस्था देखकर उन्होने उनमे से एक उपयोगी संजीवनी को चुना हो उस समय के लिये। हो सकता है कि शेष संजीवनी के विषय मे उनका ज्ञान उनके साथ ही समाप्त हो गया हो। अब उस समय तो पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया शुरु नही हुयी थी। पर चलिये इसे छोडे, विद्वानो को बहस करने दे। संजीवनी की तरह गुण रखने वाली ये वनस्प्तियाँ मानव-कल्याण की बाट जोह रही है। पर आधुनिक मानव को उसकी परवाह ही नही है। इन वनस्प्तियो के विषय मे अब तक एकत्र की गयी जानकारियो को एक स्थान पर संजोने के उद्देश्य से मैने इस पर एक ग्रंथ लिखना शुरु किया था। आज भी इसमे नयी जानकारियाँ जुड रही है। इसका शीर्षक है Divine medicinal herbs of Indian state Chhattisgarh having Mrita Sanjivani (Sanjeewani) like unique healing properties. अभी इसका आकार 10 जीबी हो चुका है। यह इंटरनेट पर नही है। ना ही इसे आन-लाइन करने का इरादा है। उम्मीद करता हूँ कि देश के उत्साही युवा शोधकर्ताओ की नजर इस पर पडेगी और वे इस दुर्लभ ज्ञान को समझने मे रुचि दिखायेंगे। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
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