गुप्त उद्देश्य के बारे में कुछ अंश अनिल जी

अनिल जी, आप लेखमाला पूरी नहीं करने देते| ऐसे में सारा सच सामने कैसे आयेगा? लीजिये लेखमाला की १८ वी कड़ी के अंश पढ़िए|

"एक बात और आश्चर्य की लगी कि कार्यक्रम शुरू होते न होते शाम के अखबारों में सब कुछ छप गया| वह सब भी जो कि अभी तक हुआ नहीं था| इससे संशय की स्थिति बनी| कार्यक्रम चार बजे के आस-पास शुरू हुआ और पांच बजे घर में पहुंचे शाम के अखबार में लिखा था कि ब्लागरो ने फलां शपथ ली जबकि उस समय तक चंद ब्लागरो ने ही अपनी बात पूरी कही थी| यानी सब कुछ पहले से तय था| निज स्वार्थो के लिए ब्लागरो का खुला प्रयोग किया गया| यह तो सरासर धोखाहै|

मुझे लगता है कि गुप्त उद्देश्यों को किनारे रखकर बड़े दिल से या कहे खुले दिल से ब्लागरो को बुलाया जाना चाहिए था| यदि बड़ी संख्या में ब्लागरो को आयोजन स्थल से समस्या थी तो कोई दूसरा स्थान तय कर लिया जाना चाहिए था| राज्य में ब्लागिंग अभी शैशवकाल में है| अभी से इसे गुटबाजी के चक्रव्यूह में डालना भला कहां की समझदारी है? "

काश आप पूरा पढ़ने का साहस दिखा पाते|

Comments

भाई साहब,
आप यह भूल रहे हैं कि बैठक प्रेस क्लब में हुई।
और समूचे शहर में हुई घटना/कार्यक्रम की जानकारी तत्काल ही प्रेस क्लब में किसी न किसी माध्यम से पहुंच जाती है। ब्लॉगर बैठक की सूचना सुबह के अखबार में थी ही। प्रेस क्लब में सांध्य दैनिकों के भी रिपोर्टर भी मौजूद थे। कुछ ब्लॉगर तीन बजे से पहले ही प्रेस क्लब पहुंच चु्के थे, ऐसे में यह स्वाभाविक है कि सांध्य दैनिकों के रिपोर्टर ने उनसे बात की हो।
दूसरी बात, तीन बजे ( शायद आपके पहुंचने से पहले) मुझे ही एक प्रतिष्ठित सांध्य दैनिक के रिपोर्टर का फोन आ गया था, तो मैने ही उसे इस उद्देश्य से कि बैठक देर से चालू होगी लेकिन खबर तो आ जाए, जानकारी दी थी।
Pankaj Oudhia said…
बड़ा अचरज हो रहा है!!! ऐसी रिपोर्टिंग भी होती है? क्या इस बात का पूर्वाभास हो गया था कि किसी तरह की शपथ ली जानी है? क्या मीट के ख़त्म होने का इन्तजार नहीं किया जा सकता था? यदि मै गलत नहीं हूँ तो केवल ब्लागरो का परिचय हुआ| उसके बाद आप और हम दोनों चले गए| ज्यादातर ब्लॉगर भी चले गए| ऐसे में शपथ कब ली गयी? और यदि नहीं ली गयी तो ये अखबार की सुर्खियाँ क्यों बनी? क्यों नहीं शपथ की बात मंच से कही गयी? हमें खुशी होती कि इस पर चर्चा होती और फिर हम मिलकर शपथ लेते| क्या हम ब्लागरो पर इतना विशवास भी नहीं था?
Unknown said…
पंकज, उस मीट में मैं भी था। मुझे तो कहीं किसी प्रकार की गुटबाजी या गुप्तउद्देश्य दिखाई नहीं पड़ा। यदि तुम्हें ऐसा लगा हो तो मत शामिल होओ उस गुट में, कोई जबरदस्ती तो नहीं है।

पर इस प्रकार की रिपोर्टिंग करके पूरे छत्तीसगढ़ को क्यों बदनाम कर रहे हो? क्या सन्देश जा रहा है तुम्हारे इस प्रकार के पोस्टों से? यदि किसी प्रकार की शंका ही थी तो पोस्ट प्रकाशित करने से पहले व्यक्तिगत सम्पर्क तो कर ही सकते थे। मैं इस प्रकार की रिपोर्टिंग को, पूरे छत्तीसगढ़ को और वहाँ के ब्लोगर्स को बदनाम करे, सर्वथा अनुचित समझता हूँ।
Pankaj Oudhia said…
मैंने तो रात को ही sab samaapt kar diyaa था पर lagataa है अनिल जी का gussaa abhee भी baakee है| jaraa unase भी kuchh kahen | मै तो saaree posTe haTaane को taiyaar हूँ कि ये vivaad ख़त्म हो| पर क्या aadaraNeey अनिल जी यह बड़प्पन dikhaayenge ??????
पंकज जी आप व्यक्तिगत बातों पर न जायें

यह कोई व्यक्तिगत आयोजन नहीं था
समाचार पत्रों में प्रकाशित कुछ शब्दों को न पकड़ें
आपको लगता है की कोई गड़बड़ है तो आप किसी से भी बात कर सकते थे जिन्हे आप पहले से जानते थे .

पोस्ट प्रकाशित करने के बाद उसे हटा लेने का तो कोई महत्व ही नहीं है .

कमान से निकला हुआ तीर और जबान या की बोर्ड से निकले हुए शब्द वापस नहीं आते .
Pankaj Oudhia said…
"पंकज जी आप व्यक्तिगत बातों पर न जायें"

आशा है यही बात आप अनिल जी से भी कह रहे होंगे| मेरी पोस्टो का निशाना कंही और है और अनिल जी अपने ऊपर ले रहे है| यह गलतफहमी की पराकाष्ठा है|

आज राजिम कुम्भ जाना था पर सुबह से इसी में फंसा हुआ हूँ | चलिए सब चलते है और विवाद को समाप्त करते है|
पंकज जी,
मेरी पोस्टो का निशाना कंही और है और अनिल जी अपने ऊपर ले रहे है| यह गलतफहमी की पराकाष्ठा है|
इसे प्रारंभ मे ही स्पष्ट कर लेना था। जब गलतफ़हमियाँ होती है उनको आपस मे बैठकर, फ़ोनिया कर दुर कर लेना चाहिए और आप दोनो तो शहर मे ही हैं।
राजिम घुम कर आईए और हमारे से भी सम्पर्क करिए। हमे भी अच्छा लगेगा
गलतफहमियां तो होनी ही नहीं चाहिए !
बाकी केवल छत्तीसगढ़ की एकता के नाम पर कुछ अटपटा लग रहा है ....अब यह नहीं कहा जाना चाहिए कि हम फलां हैं ?

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