व्हाट ए फूलिश आइडिया अभिषेक और किरण जी : कुछ तो शर्म करें

व्हाट ए फूलिश आइडिया अभिषेक और किरण जी : कुछ तो शर्म करें
- पंकज अवधिया
मोबाइल के बढ़ते प्रयोग से चिड़ियों का बसेरा उजड़ रहा है| वे कैसे भी इन मोबाइल टावरो से दूर रहना चाहती हैं| सलीम अली इंस्टिट्यूट आफ ओर्निथोलोजी एंड नेचुरल हिस्ट्री के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि मोबाइल टावरो से निकलने वाले चुम्बकीय विकीरण से न केवल चिड़ियों पर असर पड़ता है बल्कि उनके अंडे भी नष्ट हो जाते है| मोबाइल का प्रचार-प्रसार प्रकृति के लिए अभिशाप बनता जा रहा है| जब चिड़िया नहीं रहेंगी तो वे बीजों को नहीं फैलाएंगी और जब बीज नहीं फैलेंगे तो जंगल कैसे बचेंगे? यह सीधी सी बात है जो अब वैज्ञानिक अध्ययनों से प्रमाणित भी हो चुकी है| ऐसे में टीवी में दिखाए जा रहे एक विज्ञापन में चिडियों के समूह का कहना कि व्हाट एन आइडिया सर जी, आम लोगो को तमाचे की तरह लगता है| कैसे एक सफ़ेद झूठ खुलेआम दिखाया जा रहा है अपने उत्पाद को बेचने के लिए| इस झूठ को प्रचारित कर रहा है एक अभिनेता जिसे शायद ही प्रकृति के बारे में कुछ समझ हो|

आप किसी डाक्टर में पास जाएँ और उससे पूछें कि जमीन हड़पने के केस में कौन सी धाराए लगेंगी तो वह शायद ही बता पायेगा| इसी तरह किसी वकील से आप ओपन हार्ट सर्जरी की विधि पूछेंगे तो वह बगलें झांकने लगेगा| सही मायने में कहें तो कोई सिरफिरा ही डाक्टर की बाते वकील से पूछेगा और वकील की बातें डाक्टर से पर विज्ञापन की दुनिया में ऐसा नहीं होता है| क्रिकेट का एक सफल खिलाड़ी चड्डी बनियान से लेकर मोटरसाइकिल तक की बात करता है और पैसे के नाम पर कुछ भी बेचने चला आता है| जनता नासमझों की तरह इन विज्ञापनों से प्रभावित होती रहती है| वह एक बार भी नहीं सोचती कि क्रिकेट खेलने वाला या अभिनय करने वाला कैसे दूसरी चीजों के बारे में बताएगा? एक बार तो कोशिश करिए उन उत्पादों के बहिष्कार की जिनमे ऐसे सतही लोग पैसे के नाम पर मुंह उठाये चले आते है, देखिये कैसे विज्ञापन बनाने वाली कम्पनियां रास्ते में आती हैं|

बड़ी कोफ़्त होती है जब एक समाज सेविका जिन्होंने पुलिस में अपनी सेवाए दी है, विज्ञापन के पैसे लेकर कहती है कि अब १४११ बाघ बचे हैं इन्हें बचाने की जरूरत है| पता नहीं यह अपील किसके लिए है? क्या वे आम भारतीयों से यह अपील करती हैं? उन्हें शायद नहीं मालूम कि आम भारतीय वर्षों पहले से बाघ के खत्म होने को लेकर चिंतित है| देश के अभ्यारण्यों से सैकड़ों बाघ गायब हो गए, यह बात आम जनता को अखबारों ने बतायी और फिर वे ही अचानक से चुप्पी साध कर बैठ गए| आज भी बाघों के वध के लिए जिम्मेदार लोग खुलेआम घूम रहे हैं| कोई उन्हें सींखचो के पीछे भेजने की बात नहीं करता|

चलिए, हम समाज सेविका की अपील की ओर लौटते हैं| आम जनता तो बाघ को मौत के घाट नहीं उतारती| फिर महोदया क्या इस उम्मीद में अपील करती है कि उनके "तेज" के आगे शिकारी झुक जायेंगे, उनका हृदय परिवर्तन हो जाएगा और वे शिकार छोड़ देंगे| जब यह अपील सुनायी देती है तब भी शिकारी बाघों के शिकार में लगे रहते हैं|

बहुत बातें हो गयी और व्याख्यान भी, अब भी नहीं सुधरे तो कभी नहीं सुधरेंगे|

आज बाघ १४११ है, वह दिन दूर नहीं कि जब उन्हें अँगुलियों में गिना जा सकेगा| मोटी रकम लेकर ये तथाकथित बिके हुए समाज सेवक उस समय भी ऐसी अपील करके अपनी जेबें भरते रहेंगे| बाघों को बचाना है तो जमीन पर उतारो और देखो कि कैसे बढ़ती मानव आबादी जंगलों पर जबरदस्त प्रभाव डाल रही है, जंगल सिकुड़ते जा रहे हैं, शाकाहारी जानवर जैसे हिरन कम होते जा रहे हैं, उन पर आश्रित रहने वाले बाघ जैसे मांसाहारी जीव भी अपने आप कम होते जा रहे हैं| बाघ, गौरैया या कौव्वो के लिए अलग-अलग आवाजें उठाने की बजाय प्रकृति के लिए एकजुट होने की जरुरत है| प्रकृति का संरक्षण होगा तो सभी जीव सुरक्षित रहेंगे|

प्रकृति की रक्षा में जुटे असंख्य वनवासी बिना किसी हथियार और आधुनिक सुविधाओं के अपनी जान पर खेलकर दिन रात लगे हुयें है| मोबाइल कम्पनियां जितना पैसा नमूनों पर खर्च कर रही है यदि उतना पैसा वह इन वन सेवकों पर खर्च करे तो सही मायनों में बाघों की रक्षा हो सकती है| ऐसे असंख्य लोग हैं जो जंगलों को बचाने के लिए बिना शोर-शराबे के लगे हुए है| ऐसे असली नायको को सामने लाने का दम यदि मोबाइल कम्पनियां दिखाए तो समझ आये कि उन्हें सही में बाघों की चिंता है?

पर्यावरण के नाम पर अपना उल्लू सीधा कर रही कंपनियों की करतूतों से आम लोग आहत है| व्हाट एन -- सुनते ही लोग चैनल बदल लेते हैं| कुछ तो कहते है कि हम ऐसे उत्पादों को नहीं खरीदेंगे| यदि आम आदमी इन धूर्तों के विरुद्ध खडा हो जाए तो एक ही दिन में ये बाजार से गायब हो जायेंगे|

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित


Updated Information and Links on March 20, 2012

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Aristida adscenscionis L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- cruelty .
Aristida depressa RETZ. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- indifference, apathy, etc..
Aristida setacea RETZ. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- idiocy.
Aristolochia indica L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- hysteria.
Artabotrys hexapetalus (L.F.) BHANDARI and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- foolish behavior.
Artemisia japonica THUNB. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- fEar- murdered, of being.
Artemisia nilagirica (CLARKE) PAMP. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- death, desires, convalescence, during.
Artocarpus heterophyllus LAM. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- delirium.
Artocarpus lakoocha ROXB. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- fear- killing, of.
Arundo donax L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- fear .
Asparagus racemosus WILLD. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- fancies, exaltation of.
Asplenium falcatum LAM. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- dream, as if in a.
Asplenium laciniatum D.DON and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- delirium, convulsions, after.
Asplenium trichomanes L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- delusions, imaginations, hallucinations, illusions.
Aster amellus L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- delusions, visions, horrible.
Atalantia monophylla CORR. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- delusions, visions.
Athyrium filix-femina (L.) ROTH. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind- delusions, rats, of all colors. 

Comments

पंकज जी, आप की बात सही है लेकिन आम आदमी कहाँ तक इनका मुकाबला कर सकता है??....सरकारी तंत्र मे पल रहे भ्रष्टाचार के कारण....व अनदेखी के कारण इस के जिम्मेवार लोग तो खुले मे घूम रहे हैं...रही बात विज्ञापन वालो की तो उन्हें बस पैसा कमाना है....और अभिनेता और समाज सेविका..भी उसी पैसे की दोड़ मे शामिल हैं...मीडिया अगर चाहे तो इस ओर लोगो का और सरकार का ध्यान खींच कर कुछ कर सकती है.....लेकिन उस से उम्मीद अब कम ही है.....
बहुत तथ्य परक और भावपूर्ण लेख,अफ़सोस है कि देश के लोंगो को यह मुद्दे पता नहीं क्यूँ आंदोलित नहीं करते.
आपसे पूर्ण रूप से सहमत!
लेकिन जब तक आम जनता इन सब की करतूतों को समझेगी बहुत देर हो चुकी होगी। पहले सोचते थे कि हमारी तीसरी पीढ़ी बाघों, हिरणों और अन्य जानवरों को सिर्फ तस्वीरों में ही देख पायेगी लेकिन आज लगता है कि तीसरी नहीं हमारे जीते जी ही वह काला दिन आने में देरी नहीं जब हम भी बाघों को सिर्फ फोटो में देखेंगे। एक बात और आम जनता को भी मांसाहार को कमकर (संभव हो तो त्यागकर) शाकाहार को अपनाना होगा।
Alok Nandan said…
What an idea वाला एड जब मैंने पहली बार देखा तो अपना सिर धुन लिया था...फिर सोंचा जाने दो इन गधों को समझाने का कोई मतलब नहीं है...अपने धांसू आइडिया के साथ ये खुश रहे, इनकी कलई खुद ही खुल जाएगी...लोग समझदार हो गये हैं ...इनकी भद्द पीट देंगे..आज आपने इस धांसू आइडिया की बखिया उघाड़ ही दी...बाघ बचाओ वाला एड के उद्देश्य का भी आपने पोल खोल दिया....लेकिन यकीन मानिये इन एड वालों के समझ में अभी बात नहीं आएगी...वे लोग अंग्रेजी में एड बनाते हैं, और कंटेंट से ज्यादा इसके प्रेजेंटेशन पर एड़ी चोटी का जोड़ लगाते हैं...प्रजेंटेशन के लिहाज से दोनों एड वाकई में आकर्षित करने वाला है,....इसी को लेकर कंपनी के सीओ और अन्य आलतु फालतु अधिकारियों की वाह वाही ये लोग जरूर बटोर रहे होंगे...फिल्मी कलाकारों का इसमें कोई कसूर नहीं होता है...भाई उन्हें तो सामने आने के लिए बस पैसों की दरकार होती है...अब चाहे उनसे जो बुलवा लिजिये, जैसे दिखा दिजीये...वे तो बस खांटी कमाई देखते हैं, जो ठीक भी है।

ऎसे विज्ञापन कमज़ोर एवँ तर्कहीन मानस को प्रभावित करते हैं, और इससे यह भ्रम पुख़्ता होता है कि बाज़ारवाद का सीधा सम्बन्ध जनमत से है । यह कौन नहीं जानता कि अमिताभ बच्चन ने नवरतन तेल कभी लगाना तो दूर, कभी ( ऍलर्जिक अस्थॅमा की वज़ह से ही सही ) सूँघा भी न होगा पर यह मान लिया जाता है ।
prabhat gopal said…
देखिये, दिक्कत ये है कि ये जो बाजार है, इसने हमारे विचारों को खरीद लिया है। आज बाघ सबको आकर्षित करते हैं, क्योंकि उनमें एक ग्लैमर है। यहां गोरैया अपनी ओर ध्यान नहीं खींचती। उजड़ते जंगल ध्यान नहीं खींचते। जरूरत तो ये होनी चाहिए कि पेड़ लगाने के लिए जोरदार अभियान चलाया जाए। पर्यावरण सुरक्षा को निजी जिंदगी में शामिल किया जाए। काफी बड़ी पहल और त्याग की जरूरत है। नहीं तो बस- ह्वाट एन आइडिया सर जी..
इस देश का आम आदमी केवल अपनी रोटी और मनोरंजन तक सीमित है। वह अपने सुख-सुविधाओं में या उन्‍हें प्राप्‍त करने के लिए इतना डूबा हुआ है कि उसे किसी दूसरे आम आदमी की चिन्‍ता नहीं है। उसके पास जुबान ही नहीं है। वह तो घोर स्‍वार्थी है। परिवर्तन सदा नेता करते हैं लेकिन देश का दुर्भाग्‍य है कि इस देश को ऐसे नेता मिले हैं। आज परिवर्तन मीडिया कर सकता है, फिल्‍म उद्योग कर सकता है लेकिन ये सभी नाकारा सिद्ध हुए है आम आदमी से भी अधिक। आपकी चिन्‍ता जायज है लेकिन रास्‍ता कहीं दिखायी नहीं देता। मुझे भी बहुत हँसी आयी थी तब बाघ को बचाने का विज्ञापन देखा था। बेचारा आम आदमी खुद को बचाए या बाघ को? वनवासियों के लिए ईमानदारी से काम हो तो इस देश को बचाया जा सकता है।
यह संसार ही माया का खेल है बाबू जी, आप जो हैं वो भ्रम है,,,,संसार भ्रम है, तप सत्य है, यह जानते हुए दुनिया के कितने लोग आत्म साधना करते है,,नगण्य न, इसी लिए...cricketer motorcycle बेचते दिखता है, और चिड़िया का प्रयोग मोबाइल के प्रचार मे होता है.... माया है दुनिया..बाबू जी... सब भ्रमित है,,,सब जानकर भी/...
Dr.Rakesh said…
ओ गौरेया......

ओ गौरेया
नहीं सुनी चिर्र मिर्र तुम्हारी
इक अरसे से
ताक रहे ये नैन झरोखे
कुछ सूने और कुछ तरसे से

फुदक फुदक के तुम्हारा
होले से खिड़की पर आना
जीवन का स्वर हर क्षण में
घोल निड़र नभ में उड़ जाना’

धागे तिनके और फुनगियां
सपनों सी चुन चुन कर लाती
उछलकुद कर इस धरती पर
अपना भी थी हक जतलाती

सिमट गई चिर्र-मिर्र तुम्हारी
मोबाइल के रिंग-टोन पर
हंसता है अस्तित्व तुम्हारा
सभ्यता के निर्जीव मौन पर

मोर-गिलहरी जो आंगन को
हरषाते थे सांझ-सकारे
कंक्रीट के जंगल में हो गए
विलिन सभी अवषेश तुम्हांरे

तुलसी के चौरे से आंगन
हरा-भरा जो रहता था
कुदरत के आंचल में मानव
हंसता भी था और रोता था ।

rakeshindi.blogspot.com
Dr.Rakesh said…
ओ गौरेया.....

ओ गौरेया
नहीं सुनी चिर्र मिर्र तुम्हारी
इक अरसे से
ताक रहे ये नैन झरोखे
कुछ सूने और कुछ तरसे से

फुदक फुदक के तुम्हारा
होले से खिड़की पर आना
जीवन का स्वर हर क्षण में
घोल निड़र नभ में उड़ जाना’

धागे तिनके और फुनगियां
सपनों सी चुन चुन कर लाती
उछलकुद कर इस धरती पर
अपना भी थी हक जतलाती

सिमट गई चिर्र-मिर्र तुम्हारी
मोबाइल के रिंग-टोन पर
हंसता है अस्तित्व तुम्हारा
सभ्यता के निर्जीव मौन पर

मोर-गिलहरी जो आंगन को
हरषाते थे सांझ-सकारे
कंक्रीट के जंगल में हो गए
विलिन सभी अवषेश तुम्हांरे

तुलसी के चौरे से आंगन
हरा-भरा जो रहता था
कुदरत के आंचल में मानव
हंसता भी था और रोता था ।
PRATUL said…
Gauraiyaa ke prati prem pratiik hai shaharii jeevan me jeete huye prakriti premi hone kaa.
Dr. Rakesh ji ki kavitaa me nihit samvednaayen lekhak ke manobhaavon ko sametati lagati hai.
Pankaj ji kaa vrahat chintan, pratham drishti me nazarandaaz karne waale vigyaapanon kii pol kholtaa hai.

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