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Showing posts from February, 2009

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -98

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव - 98 - पंकज अवधिया नमस्कार , आपसे एक सलाह लेनी है। क्या सचमुच जेड गुडी के मामले मे चिकित्सको ने अपने हाथ खडे कर दिये है ? यदि इन परिस्थितियो मे मै अपने वनस्पति से सम्बन्धित ज्ञान से ब्रिटेन के चिकित्सको के साथ मिलकर एक आखिरी कोशिश करना चाहूँ तो कैसे इस दिशा मे बढा जा सकता है ? क्या ब्रिटेन का कानून इस अवस्था मे बाहरी व्यक्ति से चिकित्सा की छूट देता है ? मै बिना कोई शुल्क लिये यह प्रयास करना चाहूंगा यदि अवसर दिया गया तो। कैंसर मे हर पल कीमती है। मैने आपको लिखने का निर्णय करने मे ही एक दिन गँवा दिया। मै इस दिशा मे प्रयास करना चाहता हूँ। मेरे कार्यो के बारे मे तो आपको जानकारी है ही। मै कृषि वैज्ञानिक हूँ , चिकित्सक नही। मै इन दिनो इस रपट पर काम कर रहा हूँ। Oudhia, P. (1994-2012). Let's discuss herb and insect based over 35,000 formulations used in treatment of different types of cancer, one by one with its merits and demerits. CGBD (Offline Database

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -97

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -97 - पंकज अवधिया “आपने जडी-बूटियो पर इतना लिखा है, हम आपको कुछ उपहार देना चाहते है अपनी आस्था के अनुसार ताकि आपका भविष्य़ सुरक्षित रहे।“ अमेरिका से मुझे यह सन्देश मिला उन दिनो जब मैने बाटेनिकल डाट काम पर लिखना शुरु ही किया था। सन्देश भेजने वाली एक महिला थी जो शायद उस वेबसाइट से जुडी हुयी थी। उन्होने उस उपहार की तस्वीर भेजी। वह एक चाँदी का बक्सा था जिसमे लाल रंग के पावडर मे कोई पतली सी चीज पडी हुयी थी। उन्होने लाल रंग को जब सिन्दूर बताया तो मेरा माथा ठनका। मैने कहा कि मेरा एक मित्र पढाई के सिलसिले मे वहाँ है। वो आपके पास आकर उपहार ले लेगा और फिर जब भारत आयेगा तो मुझे दे देगा। बात तय हो गयी। मित्र को उपहार देते वक्त बताया गया कि This is Cat’s Chord (Umbelical cord or placenta) and very lucky. मित्र ने मुझे इस उपहार के बारे मे बताया। नाम से समझ आ गया कि यह तो वही चीज है जिसे भारतीय तांत्रिक दुर्लभ बताते है। इसे भारत मे बिल्ली की जेर या नाल के नाम से बेचा जाता है। मैने उपहार देन

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -96

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -96 - पंकज अवधिया “आजकल शहरो से किस तरह के रोगी ज्यादा आते है?” मैने एक पारम्परिक चिकित्सक से पूछा जिनके पास रोज सैकडो लोग आते है दूर-दूर से। “गैस से होने वाली नाना प्रकार की तकलीफ से प्रभावित रोगी” उन्होने जवाब दिया। “यह सब आधुनिक जीवनशैली के कारण है ना? क्या आपकी औषधियाँ मुक्ति दिलवा देती है इस समस्या से?” उन्होने राज खोला कि हम औषधियाँ देते है पर ज्यादातर मामलो मे खान-पान बदलने से ही सब ठीक हो जाता है। “खान-पान माने तला-भुंजा मसालेदार भोजन मना करते होंगे?” इस पर पारम्परिक चिकित्सक ने जो कहा वो आँखे खोलने वाला था। वे तले-भुंजे से ज्यादा जहरीले रसायनयुक्त भोजन से परहेज की बात कर रहे थे। “ मै अपने खेत मे उगाया हुआ चावल, दाल और सब्जी दे देता हूँ और एक हफ्ते इसी को खाने कहकर उन्हे वापस भेज देता हूँ। साथ मे झूठ-मूठ की पुडियाँ दे देता हूँ। एक हफ्ते बाद वे ठीक होकर आ जाते है। तब मै राज खोलता हूँ कि पुडियाँ मे कुछ नही था। यह तो जैविक विधि अर्थात बिना रासायनिक खाद और दवा से उगायी हुयी

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -95

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -95 - पंकज अवधिया “वर्ष 2004 मे नाइजीरिया मे चुडैलो की तलाश करने वाले ओझाओ ने जहरीला काढा पिलाकर 27 महिलाओ और पुरुषो को मार दिया। कुछ समय पहले एक बूढे व्यक्ति ने अपने बेटे की हत्या कर दी इस शक पर कि उस बेटे ने अपने तीन भाईयो को जादू से मार डाला। किसी बीमारी से उस व्यक्ति के तीन बेटे एक के बाद एक मर गये थे। पंकज जी, जो आप लिख रहे है वह केवल भारत तक ही सीमित नही है अपितु पूरे विश्व मे व्याप्त है। इसलिये अन्ध-विश्वास के साथ इस जंग को विश्वस्तर का बनाइये ताकि विभिन्न देशो के लोग मिलकर आपके स्वर को बुलन्द कर सके।“ इंटरनेट ने सचमुच दुनिया को छोटा बना दिया है। मै हिन्दी मे इस लेखमाला को लिख रहा है पर दुनिया भर से आ रहे ऐसे सन्देश इशारा करते है कि इसकी गूँज बहुत दूर तक जा रही है। यह सन्देश मुझे आफ्रीका के एक पाठक से मिला। शुद्ध हिन्दी मे लिखा यह सन्देश आत्मियता से भरा था। किसी हिन्दी प्रेमी ने अमेरिका मे इस लेखमाला को पढा और अपने विश्वविद्यालय के नोटिस बोर्ड पर इसके बारे मे जानकारी दी

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -94

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -94 - पंकज अवधिया आस्ट्रेलिया मे हाल ही लगी जंगली आग की खबर ने मुझे परेशान कर दिया। मेरे बहुत से वैज्ञानिक मित्र वहाँ पर है। समाचार पत्रो के अनुसार 200 से अधिक लोग इस आग के शिकार हो चुके है। अभी भी कई जगहो पर आग फैली हुयी है। मैने अपने एक मित्र राड को सन्देश भेजा और हाल-चाल जानना चाहा। मैने सन्देश मे लिखा कि मै आस्ट्रेलिया की वनस्पतियो के बारे मे ज्यादा नही जानता पर यदि प्रभावित क्षेत्र मे जाना हो तो गौर से देखना कि माँसल पौधो पर आग का क्या असर हुआ है? मुझे लगता है कि जिन क्षेत्रो मे माँसल (succulent) वनस्पतियाँ रही होगी वहाँ आग से नुकसान अपेक्षाकृत कम हुआ होगा। राड का जवाब आ गया। उन्होने बताया कि वे पश्चिमी आस्ट्रेलिया मे है, आग से 3500 किमी दूर। भले ही आग ने उन्हे प्रभावित नही किया हो पर यह पूरे आस्ट्रेलिया के लिये एक सबक है। माँसल वनस्पतियो और आग की विभीषिका उनके शब्दो मे पढे “As for succulents, Australia has very few native succulents, certainly no native Cactaceae. Most of

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -93

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -93 - पंकज अवधिया हवलदार ने आते ही पूछा कि किससे इलाज करवाया था? रोगी ने कहा कि पहले एक पारम्परिक चिकित्सक के पास गया था और फिर एक एलोपैथ के पास। यह कहकर वह बेहोश हो गया। हवलदार ने पारम्परिक चिकित्सक के घर का रुख किया और रोगियो की भीड की परवाह न करते हुये उसे थाने मे बिठा दिया। वह एलोपैथ के पास भी गया पर डाक्टर ने रोगियो का हवाला देते हुये बाद मे आने को कहा। पारम्परिक चिकित्सक से थाने मे पूछा गया कि क्या जहर दिये हो रोगी को? पारम्परिक चिकित्सक ने कहा कि मैने तो नाडी देखते ही कह दिया था कि यह मेरे बस का नही है। मैने कोई दवा नही दी। पारम्परिक चिकित्सक की बात अनसुनी कर दी गयी। दिन गुजर गया। रोगी को फिर होश आया तो उससे पूछा गया। उसने कहा कि पारम्परिक चिकित्सक का कोई कुसूर नही है। उन्होने तो केवल नब्ज देखी थी। दवा तो मैने डाक्टर से ली थी। उसे खाते ही मेरी हालत खराब हो गयी। डाक्टर को लाया गया। उसे भी अचरज हो रहा था। काफी देर बाद पता चला कि रोगी ने जल्द आराम की आशा मे दोहरी खुराक ले ली

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -92

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -92 - पंकज अवधिया छत्तीसगढ अपने तालाबो के लिये पूरी दुनिया मे जाना जाता है। मुझे याद आता है कि जब मैने वनस्पतियो से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय़ ज्ञान का दस्तावेजीकरण आरम्भ किया था तब से ही मै प्रदेश के अलग-अलग तालाबो के जल और उनके औषधीय गुणो के बारे मे जानकारी एकत्र करता रहा। मैने प्रदेश के जल स्त्रोतो से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय़ ज्ञान पर काफी कुछ लिखा है। मुझे याद आता है कि कुछ वर्ष पहले राजधानी रायपुर के समीप स्थित आरंग नगर के पास रसनी के दो तालाबो से मैने बडी मात्रा मे जल एकत्र किया था और वहाँ से सैकडो किलोमीटर दूर पारम्परिक चिकित्सको के पास बतौर उपहार पहुँचाया था। रसनी के तालाब सडक के बायी और दायी ओर है। इन तालाबो के विषय मे बताया जाता है कि ये कभी नही सूखते। मैने हमेशा इनमे पानी देखा है। यहाँ के लोग भले ही इसे साधारण तालाब माने पर दूर-दूर के पारम्परिक चिकित्सक इसके जल को रोग विशेष मे उपयोगी मानते रहे है। वे रोगियो को न केवल इसमे स्नान करने को कहते है बल्कि जल के प्

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -91

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -91 - पंकज अवधिया “जरा मुँह खोलना। थोडा और। बस। अब कीडा लगा दाँत दिख रहा है। यही वाला है ना? ये निकला। अबे निकल कहाँ घुस रहा है? – ये निकल गया। एक नही दो-दो है। बाप रे बाप, तू तो बच गया नही तो ये बाकी दाँतो को भी खा जाते।“ सडक किनारे बैठे एक तथाकथित दंतविशेषज्ञ के ये बोल थे। उसका दावा था कि उसने औजार और दवा डालकर अभी-अभी दाँतो से दो जिन्दा कीडे निकाले है जो दाँतो को सडा रहे थे। मरीज था गाँव से शहर आया एक ग्रामीण जो महंगी डाक्टरी फीस से बचने के लिये नीम-हकीम के पास आ पहुँचा था। मै अपना कैमरा लिये इस पूरी प्रक्रिया की तस्वीरे ले रहा था। जब मैने नीम-हकीम के हाथ मे कीडा देखा तो हँसी छूट पडी। मैने उससे कहा कि इन्हे मेरे हाथ मे देना तो। उसने कहा कि ये खतरनाक है आपको काट खायेंगे। मै अभी इन्हे मार देता हूँ। यह कहकर उसने कीडो को एक डब्बे मे डाला और अगले मरीज से बात करने लगा। उसके दाँत मे भी कुछ शिकायत थी। नीम-हकीम कीडो को ही सारे मर्ज का कारण मानता था। मुझे नजर अन्दाज करते हुये उसने फिर