अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -40

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -40 - पंकज अवधिया


पर मै पहचानूंगा कैसे कि शहद असली है या नकली? जंगली इलाके से आये एक शहद बेचने वाले से मैने पूछा। वैसे तो शहद की शुद्धता की पहचान के बहुत से तरीके है पर मुझे इस वनवासी से नये तरीके की जानकारी मिली। उसने जेब से पाँच सौ रुपये का नोट निकाला और उसे शहद मे डुबोया फिर उसमे आग लगानी चाही। यह नोट नही जला। उसका दावा था कि यदि शहद नकली होगी तो नोट पलक झपकते ही जल जायेगा। उसने यह भी कहा कि नोट शहद बेचने वाले से लिया जाये। इससे यदि शहद बेचने वाले ने मिलावट की होगी तो वह बहानेबाजी शुरु कर देगा और इस तरह आप सब कुछ बिन जाँचे ही जान जायेंगे। पाँच सौ का नोट इसलिये क्योकि यह बडी रकम है। चाहे तो सौ के नोट पर भी यह प्रयोग किया जा सकता है। वनवासियो के पास पाँच सौ के नोट भला कैसे मिलेंगे? आपकी बात सही है पर जंगली क्षेत्रो से आये बहुत से शहद बेचने वाले आपको रायपुर शहर मे दिख जायेंगे। वे घर-घर जाकर शहद बेचते है और लोग बडी मात्रा मे इसे खरीदते भी है। बहुत से आयुर्वेदिक डाक्टरो ने भी इन वनवासियो से कमीशन के आधार पर सम्बन्ध बना लिये है। चलिये अब मुद्दे पर आ जाये। जिस तरह असली शहद की पहचान के बहुत से उपयोगी तरीके है उसी प्रकार जडी-बूटियो की शुद्धता पहचानने के लिये भी सरल पर प्रभावी तरीके है। पारम्परिक चिकित्सक इन तरीको को रोजमर्रा के जीवन मे उपयोग करते रहते है। जडी-बूटियो मे मिलावट करने वाले नये-नये तरीके इजाद करते है और पारम्परिक चिकित्सको को लगातार नयी काट खोजनी पडती है। यह अच्छी बात है कि अपने इस ज्ञान को पारम्परिक चिकित्सक बिना संकोच रोगियो और आम जनो को बता देते है ताकि वे और लोगो को जागरुक कर सके। बहुत सी जडी-बूटियाँ है जिनकी शुद्धता की पहचान करना मुश्किल होता है। तंत्र से जुडी वनस्पतियो की सही पहचान के लिये बहुत सी ऐसी विधियाँ सुझायी जाती है जिससे किसी की जान मुश्किल मे आ सकती है। अर्थात रंग, रुप या रसायनो के प्रयोग से इन्हे नही जाँचा जा सकता। तांत्रिक दावा करते है कि इसका प्रयोग दुश्मन पर करो यदि उसका नुकसान हो या उसकी जान के लाले पड जाये तो समझो वनस्पति असली है। अब भला यह कौन सी बात हुयी? पर ऐसी मान्यताए समाज मे प्रचलित है।

इंटरनेट से मेरे होमपेज पर जिन वनस्पतियो का नाम खोजते-खोजते दुनिया भर के लोग पहुँचते है उनमे काली हल्दी का नाम भी है। काली हल्दी का नाम आपमे से बहुत से पाठको के लिये भी नया होगा। साधारण हल्दी, जंगली हल्दी और आम्बा हल्दी को हम सब जानते है। पर इसके अलावा काली हल्दी भी होती है। यह जंगलो मे होती है। बहुत से लोग इसकी खेती करने के प्रयास भी कर रहे है। यह दुर्लभ मानी जाती है। पारम्परिक चिकित्सा मे जटिल रोगो की चिकित्सा मे इसका प्रयोग होता है। कैसर मे इसकी उपयोगिता ने इसके महत्व को बहुत अधिक बढा दिया है। आधुनिक विज्ञान भी इसके महत्व को समझ चुका है। तंत्र क्रिया से जुडे लोगो से आप इस पर बात करेंगे तो वे आपको नाना प्रकार की रोचक बाते बतायेंगे इसके विषय मे। कहेंगे कि असली काली हल्दी मिलना टेढी-खीर है। यह तो हिमालय मे होती है। यदि कोई कामी इसे देख ले तो उसके आँखे चली जाती है। जितने मुँह उतनी बाते। आप जडी-बूटी विक्रेता के पास जायेंगे तो वह बिना विलम्ब आपको चन्द रुपयो मे इसे दे देगा। पर इसके असली होने की गारंटी नही देगा। मैने देश भर की ऐसी सैकडो दुकानो से काली हल्दी के नाम से बेची जा रही वनस्पतियो के भाग एकत्र किये और फिर जब उनकी जाँच की तो पता चला कि एक भी नमूना काली हल्दी का नही था। पता नही ऐसी गलत हरकतो से कितने लोगो की जान खतरे मे पड रही होगी।

कुछ साल पहले मुझे एक फोन आया कलकत्ता से काली हल्दी के दाम के बारे मे। तथाकथित असली काली हल्दी के दाम के बारे मे। फोन पर कहा गया कि मेरे पास असली वाली है जिसकी एक गठान की कीमत लाखो मे है। मै चौका नही क्योकि ऐसी बाते मै पहले भी सुन चुका था। उस व्यक्ति ने बाद मे रायपुर मे मुझे लाखो की कीमत वाली काली हल्दी दिखायी। मैने नमूने का परीक्षण किया। उस व्यक्ति ने कहा कि यह गठान उसने जंगली इलाके से अच्छी कीमत देकर खरीदी है। मैने नमूने को जाँचने की प्रक्रिया मे देश भर से एकत्र किये गये नमूनो से उसे मिलाया। मध्य भारत से खरीदी गयी गठान से कलकत्ता वाली गठान मिल गयी। इसका मतलब यह नकली थी। उस व्यक्ति को किसी ने जोर से चूना लगाया था। मैने उसे कुछ चित्र दिखाये जिसमे देश भर से एकत्र किये गये कन्दो को खेतो मे उगाकर देखा गया था कि आखिर वे वास्तव मे किसी वनस्पति के थे। उसे बेची गयी काली हल्दी दरअसल जंगली हल्दी थी। मेरी बात से वह सहमत नही हुआ और बोला कि इसकी गठान के माध्यम से उसने बहुत से शत्रुओ को निपटाया है। यही असली काली हल्दी है। मैने उससे और बहस न करने की ठान ली। वह मुझसे मनचाही रकम के ऐवज मे इस गाँठ को असली काली हल्दी की गाँठ बताने वाला प्रमाणपत्र चाहता था ताकि उसे ऊँची कीमत पर वह महानगरो मे बेच सके। मेरे इंकार करने पर आग-बबूला होकर उसने उस गाँठ को हाथ मे लिया और कहा कि अगले चौबीस घंटो मे मै भस्म हो जाऊँगा। वह चला गया। चौबीस घंटे बीते फिर चौबीस महिने भी पर कुछ न हुआ। मै आपके सामने हूँ। यदि जंगली हल्दी यह सब कर पाने मे सक्षम होती तो भारतीय सेना को इसकी खेती की सलाह दे देता। बिना जंग लडे की सारे शत्रु भस्म हो जाते।

बहुत से तांत्रिक प्रेत बाधा से बचने के लिये प्रभावित व्यक्ति को काली हल्दी का टीका लगाने की सलाह देते है। पहले चन्दन का टीका लगाया जाता है फिर उसके ऊपर काली हल्दी का और सबसे अंत मे मानव रक्त का। यह कितना प्रभावी है यह तो नही पता पर जब मैने पारम्परिक चिकित्सको को इस विषय मे बताया तो वे बोले कि चन्दन का तिलक तो स्वास्थ्य के लिये अच्छा माना ही जाता है। काली हल्दी और चन्दन का मेल भी उपयोगी माना गया है। वे दसो प्रकार के ऐसे मिश्रण बनाते है जिनमे ये दोनो मुख्य घटक के रुप मे उपस्थित रहते है। इन मिश्रणो से सिर सम्बन्धी रोगो की चिकित्सा की जाती है। पारम्परिक चिकित्सक मानव रक्त के तिलक को औचित्यहीन मानते है विशेषकर काली हल्दी और चन्दन के साथ। तांत्रिक इन तीनो तिलक के हजारो वसूलते है।

तंत्र से जुडे होने के कारण काली हल्दी को घर मे लगाने से मना किया जाता है। इसकी खेती से तो तौबा ही की जाती है। पर देश मे औषधीय और सगन्ध फसलो की खेती मे जुटे किसान जल्दी ही बडे पैमाने पर इसकी व्यवसायिक खेती आरम्भ करेंगे क्योकि जिस तरह से इसके लाभकारी गुण नये शोधो के माध्यम से सामने आ रहे है उससे तो लगता है कि इसका भविष्य उज्जवल है। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

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अंधविश्वासों के बूते बहुत लोग बेवकूफ बनाते हैं और लोग बनते रहते हैं। पता नहीं कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा।

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