मोंगरी मछली, टाइफा, जलकुम्भी और डूमर
मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-20
- पंकज अवधिया
दस जून, 2009
मोंगरी मछली, टाइफा, जलकुम्भी और डूमर
इन दिनो राजधानी मे जलीय खरप्तवारो से अटे तालाबो की सफाई की मुहिम चल रही है। मेरे एक मित्र को ऐसे ही एक तालाब की सफाई का ठेका मिला है। उस तालाब मे केवल जलकुम्भी की ही समस्या नही है। नाना प्रकार के जलीय खरप्तवारो ने ऐसा तांडव मचाया है कि पूरा तालाब एक समतल हरे-भरे मैदान की तरह दिखता है। तालाब के एक हिस्से मे ही पानी दिखता है। इसी स्थान पर आस-पास के लोग नहाते है। यहाँ बडी मात्रा मे कपडे भी धोये जाते है धोबियो के द्वारा। शहर के योजनाकारो ने ढाई लाख रुपये दिये है इस तालाब को बीस दिनो के अन्दर साफ करने के लिये। इस तालाब के किनारे पीपल के कुछ पुराने पेड है। मैने मित्र को सलाह दी है कि यहाँ ऐसे वृक्ष लगाये जो कि जल को शुद्ध रख सके। शहरी योजनाकारो का दबाव है कि गुलमोहर लगाया जाये। निश्चित ही गुलमोहर गर्मियो मे फूलो से लदकर बढिया दिखायी देता है पर यह उथली जडो वाला होता है। जरा-सा भी तूफान सहन नही कर पाता है। आजकल बरसात मे जो अन्धड चलती है उससे हर बार गुलमोहर के वृक्ष गिर जाते है और विद्युत व्यवस्था ठप्प हो जाती है। मैने तालाब के लिये डूमर के वृक्ष लगाने की सलाह दी है।
डूमर सबके लिये जाना पहचाना नाम है पर उसके पौधो का जुगाड करना आसान नही है। वन विभाग से तो उम्मीद नही है। इसलिये अपनी इस जंगल यात्रा के दौरान मै डूमर के पौधे एकत्र करने की सोच रहा था। जब मैने साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको को यह बताया तो उन्होने पहली बारिश के बाद आने को कहा। उस समय बहुत से पौधे मिल सकते है। डूमर की चर्चा छिडी तो बात बहुत दूर तक गयी। बात करते –करते हम डूमर के एक पुराने वृक्ष तक जा पहुँचे।
डूमर यानि देशी अंजीर। इसके फल बडे ही स्वादिष्ट होते है। बच्चे इसे बडे चाव से खाते है। तांत्रिक डूमर को तंत्र साधना के लिये उपयोग करते है। डूमर को विनाशक शक्तियो का प्रतीक भी माना जाता है। कई बार जब मै इसकी तस्वीर लेने काफी पास चला जाता हूँ तो बहुत से बुजुर्ग इस वृक्ष से दूर रहने की चेतावनी देते है। अन्ध-विश्वास के पाश मे जकडा समाज अपने स्वार्थ के लिये अशक्त महिलाओ को टोनही कहकर प्रताडित करता है। इस टोनही नामक पात्र को विशेष वनस्पतियो से जोडकर देखा जाता है। डूमर भी इन वनस्पतियो मे से एक है। टोनही से सम्बन्धित अन्ध-विश्वास की जडे बहुत गहरी है। पारम्परिक चिकित्सक भी इससे अछूते नही है। डूमर की वानस्पतिक संरचना ऐसी होती है कि इसके स्पष्ट फूल नही होते है। आम लोगो को इसके फल लगे ही दिखते है। इसके फूल किसी ने नही देखे है। मैने लोगो को अक्सर यह कहते सुना है कि टोनही ही उस फूल को देख पाती है। उनकी बाते सुनकर मै मजाकिये लहजे मे यह कहने से नही चूकता हूँ कि मुझे टोनही से मिलवा दे ताकि मै फूल की दुर्लभ तस्वीर दुनिया को दिखा सकूँ।
इस जंगल यात्रा के दौरान डूमर के तथाकथित फूल के बारे एक नयी कहानी सुनने को मिली। पारम्परिक चिकित्सको ने मुझे पास के तालाब से पकडी गयी मोंगरी मछली दिखायी और उसे काटा। मछली के अन्दर से गोल लाल संरचना निकली। पारम्परिक चिकित्सक बोले, “यही डूमर का फूल है। यह मछली इस फूल को निगल लेती है।“ उस लाल संरचना को देखने से वह साफ माँसल संरचना दिख रही थी। उसमे कोई वानस्पतिक भाग नही था। फिर भला ये कैसे डूमर का फूल हुआ? जंगल मे जब आप पारम्परिक चिकित्सको या स्थानीय लोगो के साथ चलते है तो चाहकर भी तर्को को मुँह के अन्दर रखना पडता है। भूत-प्रेत और तंत्रो की ढेरो ऐसी बाते होती है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नही होता है पर फिर भी इन्हे उनका विश्वास मानकर अनदेखा करना होता है। मैने इस बार भी ऐसा ही किया।
मित्र को जिस तालाब की सफाई का काम मिला है वहाँ टाइफा नामक जलीय खरप्तवार आधे से अधिक तालाब मे अपना कब्जा जमाये हुये है। इसे उखाडना टेढी खीर है। इसे मैने रावण की संज्ञा दी है। इसे जितना काटो उतना ही यह बढता जाता है। हाल के कुछ वर्षो मे इसका फैलाव प्रदेश भर के जल स्त्रोतो मे बढा है। बरसाती नालो और नहरो से यह किसानो के खेत तक पहुँच रहा है। धान के खेतो मे पानी होने के कारण यह मजे से उगता है। एक बार जमने के बाद सालो-साल तक यह फैलता ही जाता है। इसे स्थानीय भाषा मे चितावर कहा जाता है।
इस जंगल यात्रा के दौरान मैने जंगल के अन्दर के तालाबो मे इसका प्रकोप देखा। लम्बी घास की तरह दिखने वाले इस खरप्तवार मे बहुत सी चिडियो का बसेरा होता है। इनमे से ब्लैकबर्ड भी होती है। प्रकृतिप्रेमी इस विशेष चिडिया को बहुत पसन्द करते है। पर किसानो विशेषकर धान के किसानो के लिये यह अभिशाप है। टाइफा मे घर बनाने के बाद यह आस-पास के बडे क्षेत्र मे उग रही धान की फसल को बाली की अवस्था मे बहुत नुकसान पहुँचाती है। किसान जानते है कि यह कहाँ रहती है? इसलिये भी वे टाइफा को जड से उखाडने की कोशिश करते है पर कम ही सफल हो पाते है।
मित्र वाले तालाब मे जब टाइफा को नष्ट किया गया तो ब्लैक बर्डस का आशियाना उजड गया। जब ये बडी संख्या मे शहर मे उडने लगी तो बहुत से पक्षी प्रेमी चिंतित हो उठे। उन्हे लगा कि चिडियो का आशियाना उजाडना ठीक नही है। कुछ ने मुझसे समर्थन माँगा। मैने उन्हे इस चिडिया से होने वाले नुकसान के विषय मे बताया। यह भी बताया कि टाइफा के रहते तालाब आम लोगो के उपयोग के लिये नही खुल पायेगा। अब आपको फैसला करना है कि चिडिया जरुरी है या मनुष्यो का यह तालाब? फिर टाइफा के नष्ट होने से ये चिडिया मरेंगी नही। हजारो एकड मे टाइफा का राज है। ये वहाँ जाकर बस जायेंगी। ब्लैक बर्डस दूसरी वनस्पतियो मे भी घोसला बनाती है। टाइफा विदेशी खरप्तवार है और इन चिडियो ने इसे हाल ही मे घोसला बनाने के लिये चुना है। काफी देर के बाद वे माने। ऐसी समस्या होती ही रहती है। बडी संख्या मे तोते फसल को नुकसान पहुँचाते है। किसान इन्हे मारना चाहते है पर पक्षी प्रेमी विरोध का स्वर बुलन्द कर देते है। ऐसे मे किसी एक के पक्ष मे निर्णय देना कठिन हो जाता है।
आम लोगो विशेषकर किसानो के लिये टाइफा और जलकुम्भी जैसी विदेशी वनस्पतियाँ अभिशाप बनी हुयी है। इन विदेशी वनस्पतियो के प्रबन्धन मे पारम्परिक चिकित्सक कई बार अहम भूमिका निभाते है। वे इन विदेशी वनस्पतियो के साथ प्रयोग करते है और इनके औषधीय उपयोग विकसित करने की कोशिश करते है। देश के बहुत से हिस्सो मे जलकुम्भी के साथ सालो से रहते हुये पारम्परिक चिकित्सको इसके उपयोग ढूँढ निकाले है। वे इसके पौध भागो का प्रयोग बहुत से औषधीय मिश्रणो मे कर रहे है। इस तरह नये उपयोगो के सामने आने से आम लोग इनका प्रयोग करने लगते है और इस तरह इनकी बढती आबादी मे अंकुश लग जाता है। मैने इस जंगल यात्रा के दौरान पारम्परिक चिकित्सको से टाइफा के नये उपयोग विकसित करने का अनुरोध किया है। यह प्रसन्नता की बात है कि उन्होने इसे चुनौती के रुप मे स्वीकार कर लिया है। (क्रमश:)
टाइफा
तालाब मे टाइफा का प्रकोप
डूमर के फल
जलकुम्भी का प्रकोप
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
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- पंकज अवधिया
दस जून, 2009
मोंगरी मछली, टाइफा, जलकुम्भी और डूमर
इन दिनो राजधानी मे जलीय खरप्तवारो से अटे तालाबो की सफाई की मुहिम चल रही है। मेरे एक मित्र को ऐसे ही एक तालाब की सफाई का ठेका मिला है। उस तालाब मे केवल जलकुम्भी की ही समस्या नही है। नाना प्रकार के जलीय खरप्तवारो ने ऐसा तांडव मचाया है कि पूरा तालाब एक समतल हरे-भरे मैदान की तरह दिखता है। तालाब के एक हिस्से मे ही पानी दिखता है। इसी स्थान पर आस-पास के लोग नहाते है। यहाँ बडी मात्रा मे कपडे भी धोये जाते है धोबियो के द्वारा। शहर के योजनाकारो ने ढाई लाख रुपये दिये है इस तालाब को बीस दिनो के अन्दर साफ करने के लिये। इस तालाब के किनारे पीपल के कुछ पुराने पेड है। मैने मित्र को सलाह दी है कि यहाँ ऐसे वृक्ष लगाये जो कि जल को शुद्ध रख सके। शहरी योजनाकारो का दबाव है कि गुलमोहर लगाया जाये। निश्चित ही गुलमोहर गर्मियो मे फूलो से लदकर बढिया दिखायी देता है पर यह उथली जडो वाला होता है। जरा-सा भी तूफान सहन नही कर पाता है। आजकल बरसात मे जो अन्धड चलती है उससे हर बार गुलमोहर के वृक्ष गिर जाते है और विद्युत व्यवस्था ठप्प हो जाती है। मैने तालाब के लिये डूमर के वृक्ष लगाने की सलाह दी है।
डूमर सबके लिये जाना पहचाना नाम है पर उसके पौधो का जुगाड करना आसान नही है। वन विभाग से तो उम्मीद नही है। इसलिये अपनी इस जंगल यात्रा के दौरान मै डूमर के पौधे एकत्र करने की सोच रहा था। जब मैने साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको को यह बताया तो उन्होने पहली बारिश के बाद आने को कहा। उस समय बहुत से पौधे मिल सकते है। डूमर की चर्चा छिडी तो बात बहुत दूर तक गयी। बात करते –करते हम डूमर के एक पुराने वृक्ष तक जा पहुँचे।
डूमर यानि देशी अंजीर। इसके फल बडे ही स्वादिष्ट होते है। बच्चे इसे बडे चाव से खाते है। तांत्रिक डूमर को तंत्र साधना के लिये उपयोग करते है। डूमर को विनाशक शक्तियो का प्रतीक भी माना जाता है। कई बार जब मै इसकी तस्वीर लेने काफी पास चला जाता हूँ तो बहुत से बुजुर्ग इस वृक्ष से दूर रहने की चेतावनी देते है। अन्ध-विश्वास के पाश मे जकडा समाज अपने स्वार्थ के लिये अशक्त महिलाओ को टोनही कहकर प्रताडित करता है। इस टोनही नामक पात्र को विशेष वनस्पतियो से जोडकर देखा जाता है। डूमर भी इन वनस्पतियो मे से एक है। टोनही से सम्बन्धित अन्ध-विश्वास की जडे बहुत गहरी है। पारम्परिक चिकित्सक भी इससे अछूते नही है। डूमर की वानस्पतिक संरचना ऐसी होती है कि इसके स्पष्ट फूल नही होते है। आम लोगो को इसके फल लगे ही दिखते है। इसके फूल किसी ने नही देखे है। मैने लोगो को अक्सर यह कहते सुना है कि टोनही ही उस फूल को देख पाती है। उनकी बाते सुनकर मै मजाकिये लहजे मे यह कहने से नही चूकता हूँ कि मुझे टोनही से मिलवा दे ताकि मै फूल की दुर्लभ तस्वीर दुनिया को दिखा सकूँ।
इस जंगल यात्रा के दौरान डूमर के तथाकथित फूल के बारे एक नयी कहानी सुनने को मिली। पारम्परिक चिकित्सको ने मुझे पास के तालाब से पकडी गयी मोंगरी मछली दिखायी और उसे काटा। मछली के अन्दर से गोल लाल संरचना निकली। पारम्परिक चिकित्सक बोले, “यही डूमर का फूल है। यह मछली इस फूल को निगल लेती है।“ उस लाल संरचना को देखने से वह साफ माँसल संरचना दिख रही थी। उसमे कोई वानस्पतिक भाग नही था। फिर भला ये कैसे डूमर का फूल हुआ? जंगल मे जब आप पारम्परिक चिकित्सको या स्थानीय लोगो के साथ चलते है तो चाहकर भी तर्को को मुँह के अन्दर रखना पडता है। भूत-प्रेत और तंत्रो की ढेरो ऐसी बाते होती है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नही होता है पर फिर भी इन्हे उनका विश्वास मानकर अनदेखा करना होता है। मैने इस बार भी ऐसा ही किया।
मित्र को जिस तालाब की सफाई का काम मिला है वहाँ टाइफा नामक जलीय खरप्तवार आधे से अधिक तालाब मे अपना कब्जा जमाये हुये है। इसे उखाडना टेढी खीर है। इसे मैने रावण की संज्ञा दी है। इसे जितना काटो उतना ही यह बढता जाता है। हाल के कुछ वर्षो मे इसका फैलाव प्रदेश भर के जल स्त्रोतो मे बढा है। बरसाती नालो और नहरो से यह किसानो के खेत तक पहुँच रहा है। धान के खेतो मे पानी होने के कारण यह मजे से उगता है। एक बार जमने के बाद सालो-साल तक यह फैलता ही जाता है। इसे स्थानीय भाषा मे चितावर कहा जाता है।
इस जंगल यात्रा के दौरान मैने जंगल के अन्दर के तालाबो मे इसका प्रकोप देखा। लम्बी घास की तरह दिखने वाले इस खरप्तवार मे बहुत सी चिडियो का बसेरा होता है। इनमे से ब्लैकबर्ड भी होती है। प्रकृतिप्रेमी इस विशेष चिडिया को बहुत पसन्द करते है। पर किसानो विशेषकर धान के किसानो के लिये यह अभिशाप है। टाइफा मे घर बनाने के बाद यह आस-पास के बडे क्षेत्र मे उग रही धान की फसल को बाली की अवस्था मे बहुत नुकसान पहुँचाती है। किसान जानते है कि यह कहाँ रहती है? इसलिये भी वे टाइफा को जड से उखाडने की कोशिश करते है पर कम ही सफल हो पाते है।
मित्र वाले तालाब मे जब टाइफा को नष्ट किया गया तो ब्लैक बर्डस का आशियाना उजड गया। जब ये बडी संख्या मे शहर मे उडने लगी तो बहुत से पक्षी प्रेमी चिंतित हो उठे। उन्हे लगा कि चिडियो का आशियाना उजाडना ठीक नही है। कुछ ने मुझसे समर्थन माँगा। मैने उन्हे इस चिडिया से होने वाले नुकसान के विषय मे बताया। यह भी बताया कि टाइफा के रहते तालाब आम लोगो के उपयोग के लिये नही खुल पायेगा। अब आपको फैसला करना है कि चिडिया जरुरी है या मनुष्यो का यह तालाब? फिर टाइफा के नष्ट होने से ये चिडिया मरेंगी नही। हजारो एकड मे टाइफा का राज है। ये वहाँ जाकर बस जायेंगी। ब्लैक बर्डस दूसरी वनस्पतियो मे भी घोसला बनाती है। टाइफा विदेशी खरप्तवार है और इन चिडियो ने इसे हाल ही मे घोसला बनाने के लिये चुना है। काफी देर के बाद वे माने। ऐसी समस्या होती ही रहती है। बडी संख्या मे तोते फसल को नुकसान पहुँचाते है। किसान इन्हे मारना चाहते है पर पक्षी प्रेमी विरोध का स्वर बुलन्द कर देते है। ऐसे मे किसी एक के पक्ष मे निर्णय देना कठिन हो जाता है।
आम लोगो विशेषकर किसानो के लिये टाइफा और जलकुम्भी जैसी विदेशी वनस्पतियाँ अभिशाप बनी हुयी है। इन विदेशी वनस्पतियो के प्रबन्धन मे पारम्परिक चिकित्सक कई बार अहम भूमिका निभाते है। वे इन विदेशी वनस्पतियो के साथ प्रयोग करते है और इनके औषधीय उपयोग विकसित करने की कोशिश करते है। देश के बहुत से हिस्सो मे जलकुम्भी के साथ सालो से रहते हुये पारम्परिक चिकित्सको इसके उपयोग ढूँढ निकाले है। वे इसके पौध भागो का प्रयोग बहुत से औषधीय मिश्रणो मे कर रहे है। इस तरह नये उपयोगो के सामने आने से आम लोग इनका प्रयोग करने लगते है और इस तरह इनकी बढती आबादी मे अंकुश लग जाता है। मैने इस जंगल यात्रा के दौरान पारम्परिक चिकित्सको से टाइफा के नये उपयोग विकसित करने का अनुरोध किया है। यह प्रसन्नता की बात है कि उन्होने इसे चुनौती के रुप मे स्वीकार कर लिया है। (क्रमश:)
टाइफा
तालाब मे टाइफा का प्रकोप
डूमर के फल
जलकुम्भी का प्रकोप
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Updated Information and Links on March 03, 2012
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