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Showing posts from 2008

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -71

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -71 - पंकज अवधिया ‘अंकल मेरा हाथ देखिये, पहले मेरा हाथ।‘ यह चिल्लपौ मची थी एक बर्थ डे पार्टी मे जहाँ मै अपने एक मित्र के साथ गया हुआ था। किसी ने पार्टी मे लोगो को बता दिया था कि मित्र हस्त-रेखा विशेषज्ञ है। फिर क्या था सभी उस पर झपट पडे। बच्चो को आगे देखकर बडा विस्मय हुआ। मित्र को एक स्थान पर बिठा दिया गया और लोगो ने अपने हाथ फैला दिये। मित्र ज्यादा कुछ जानता नही था। दो-तीन लोग होते तो रटेरटाये कुछ वाक्यो से बात बन जाती पर यहाँ तो दसो लोग थे और भविष्य़वाणियाँ सार्वजनिक को जाने वाली थी। बच्चो के हाथ देखने से शुरुआत हुयी। सभी अपने कैरियर के बारे मे जानना चाहते थे। धन कितना रहेगा, इसकी जिज्ञासा भी कुछ के मन मे थी। बहुत से बच्चे अपने कार-प्रेम से प्रभावित होकर पूछ रहे थे कि क्या वे कार डिजाइनर बन पायेंगे? मित्र उनसे निपटता रहा। मै भी सामने फैले हाथो की ओर नजर घुमा लिया करता था। मुझे भी उनके हाथो मे बहुत कुछ दिख रहा था। ज्यादातर हाथो से गुलाबीपन गायब था। हथेली सूखी-सूखी थी। उनके नाखून

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -70

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -70 - पंकज अवधिया ‘इसने मीठा खा लिया। देखियेगा साहब, अब ये कौवा संतो की तरह बोलेगा।“ तांत्रिक ने जैसे ही ऐसा कहा हमारे दल ने कैमरा तान लिया। दो वीडियो कैमरे थे दल के सदस्यो के पास। एक कैमरा मै रखे हुये था। पर कौवा कुछ बोले ही न। हमने आधे घंटे तक इंतजार किया फिर एक घंटे भी हुये। तांत्रिक ने फिर से उसे मीठा खिलाया पर नतीजा सिफर रहा। मीठा माने शक्कर और बबूल की गोन्द का मिश्रण। इसे मिलाने के बाद डबलरोटी के टुकडो मे इसे भिगोकर कौवे को खिलाया गया। तांत्रिक यह दावा कर रहा था कि इसे खाने के बाद कौवा प्रसन्न होकर कुछ आवाजे निकालेगा। यदि इस आवाज को ध्यान से सुना और समझा जाये तो इसमे जीवन का फलसफा मिलेगा। कौवा खाता रहा पर उसने आवाज नही निकाली। हमने पूरे नाटक का फिल्माँकन किया और अब जब भी व्याख्यान देने जाते है, सबसे पहले यही दिखाते है। न केवल बच्चो बल्कि बुजुर्गो की हँसी भी नही रुकती है। दल के सदस्यो ने इस एक लघु फिल्म का स्वरुप दे दिया है। इसमे तांत्रिक द्वारा किये गये दावे को पहले दिखाया

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -69

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -69 - पंकज अवधिया ऊँ नम: सुरभ्य: बलज: उपरि परिमिलि स्वाहा। इस मंत्र का दस सहस्त्र बार विधिपूर्ण जप करने के बार तांत्रिक ने मुझे फोन किया कि साहब आ जाइये, तैयारी पूरी हो गयी है। उसकी ओर से तो तैयारी पूरी थी पर मुझे एक वनस्पति खोजनी थी। मै निकल पडा जंगल की ओर। साथ मे पारम्परिक चिकित्सक भी हो लिये। हमे ऐसी वनस्पति की तलाश थी जो बहेडे के पेड के ऊपर आंशिक परजीवी की तरह उग रही हो। इसे बहेडे का बान्दा कहा जाता है। आपने महुये के बान्दा के विषय मे पिछले लेख मे पढा है। मुझे इस बान्दे की पहचान थी। मैने झट से गाडी एक पहाडी की तलहटी मे रुकवा दी और साथ चल रहे पारम्परिक चिकित्सको को बान्दा दिखा दिया। अब बहुत सारे विशेषज्ञ होंगे तो कुछ समस्या तो होगी ही। पारम्परिक चिकित्सको ने कहा कि यह बहेडे का असली बान्दा नही है। मैने कहा इसे एकत्र कर लिया जाये विधि-विधान से और फिर पारम्परिक चिकित्सको के बान्दे की तलाश मे निकला जाये। शाम तक हम इधर-उधर भटकते रहे। हमे तीन तरह के बान्दे मिले। दूसरी सुबह हमने तां

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -68

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -68 - पंकज अवधिया मित्र के दादाजी नब्बे साल के हो गये। उनके जन्मदिन के अवसर पर पूजा-पाठ रखा गया। उनके पारिवारिक गुरु आये। मुझे भी इस कार्यक्रम मे आमंत्रित किया गया। मुझे बताया गया था कि पूजा-पाठ के बाद भी उसी स्थान मे बैठे रहना है। लोग उठ कर जाये तो उन्हे जाने दिया जाये। अंत मे जो “अपने” लोग बचेंगे उनके सामने गुरु जी एक तोहफा देंगे। वे हिमालय से लम्बी साधना के बाद इस तोहफे को लाये है। मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि मै भी मित्र के “अपनो” मे शामिल था। कार्यक्रम वाले दिन मै जानबूझकर कुछ देर से पहुँचा ताकि ज्यादा देर न बैठना पडे। मित्र मेरे पास आ गया। गुरु जी पर मेरी नजर पडी तो चेहरा जाना-पहचाना लगा। मै किसी निष्कर्ष तक पहुँचता उससे पहले मित्र बोल पडा कि अरे, ये फलाँ बाबा है जो रोज टीवी पर आते है। ओह, तभी यह चेहरा जाना-पहचाना लगा-मै बुदबुदाया। पर टीवी मे तो वे चमत्कारिक पुरुष लगते है। यहाँ सामने ऐसा लग रहा था जैसे किसी साधारण पुरुष को देख रहा हूँ। जो चीज उन्हे असाधारण बना रही थी वह थ

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -67

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -67 - पंकज अवधिया “अरे! ये रेखा कब बनी? यह तो आपके अन्दर की ऊर्जा की प्रतीक है। जल्दी ही आपको बहुत अर्थ लाभ होने वाला है। कोई बडा पुरुस्कार भी मिल सकता है।“ हस्तरेखा विज्ञान मे रुचि रखने वाले मेरे मित्र दायी हथेली को देख कर जाने क्या बडबडा रहे थे। मुझे इस विज्ञान मे कम ही विश्वास है। पर मीठी-मीठी बाते सुनना किसे पसन्द नही है। इसलिये मै उनकी बाते सुन रहा था। जब उनकी बाते पूरी हुयी तो मैने कहा कि पहले मै कलम से शोध आलेखो को लिखा करता था फिर बाहर से इन्हे टाइप करवाता था। अब तो कम्प्यूटर पर ही सारा काम खुद करता हूँ। अभी मधुमेह की रपट चल रही है। दिन मे बीस घंटो तक माउस पकडने से हथेली मे फोल्डस बनना तो स्वावभाविक है। आप हथेली के जिस भाग को बुध पर्वत कह रहे है और जिस पर बनी तीन गहरी रेखाओ की बात कर रहे है मै उन्हे “माउस रेखा” कहना अधिक पसन्द करुंगा। मेरी उलाहना भरी बातो को सुनकर वे बिफर पडे और बोले कि तुम कहते हो कि दो साल मे मधुमेह की रपट पूरी करोगे और फिर अगले बीस सालो मे ह्र्दय और क

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -66

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -66 - पंकज अवधिया मेरा ड्रायवर जैसे ही एक तालाब मे नहाने के लिये बढा स्थानीय लोगो ने उसे रोक दिया और कहा कि इस तालाब मे मत नहाओ, नही तो पागल हो जाओगे। यह बात मुझे खटकी। मैने इस बारे मे विस्तार से जानना चाहा तो लोगो ने जानकारी होने से मना कर दिया। बस इतना ही कहा कि बुजुर्गो ने हमे चेताया है इसलिये हम इसका पालन करते है और निस्तारी के लिये इसका प्रयोग करते है। हम अपने जानवरो को भी इसमे नही जाने देते है। क्या कभी कोई सचमुच पागल हुआ है? इंसान न सही कोई जानवर ही? मैने पूछा पर लोगो के चेहरे मे आ रहे भावो से समझ गया कि पुरानी मान्यताओ के आधार पर ऐसा माना जा रहा है। एक बार तो मन हुआ कि पानी मे कूद पडूँ और इस मान्यता को झुठला दूँ पर दूसरे ही पल सोचा कि लोगो की भावनाओ को आहत करना ठीक नही है। ड्रायवर भी कुछ सहमा-सा दिखा। हम फिर से आने की बात कहकर आगे बढ गये। मैने अपने डेटाबेस मे एक और तालाब का नाम जोड लिया। पिछले एक दशक से भी अधिक समय से मै छत्तीसगढ के ऐसे तालाबो और पोखरो की सूची तैयार कर र

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -65

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -65 - पंकज अवधिया “ अरे रुकिये, रुक जाइये, ये पानी नही जहर है। अब रुक भी जाइये।“ रायगढ के मुडागाँव के आस-पास एक बोरवेल मे हाथ धोने के लिये जैसे ही मै बढा साथ चल रहे स्थानीय व्यक्ति ने चेतावनी दी। जब हम मुडागाँव पहुँचे तो भयावह वास्तविकता का आभास हुआ। यहाँ बडी संख्या मे लोग पानी के शिकार मिले। किसी की पीठ अकड गयी थी तो किसी ने खाना-पीना छोड दिया था। उन्नीस-बीस साल के युवक बच्चे की तरह दिखते थे। पानी ने उनका शारीरिक विकास रोक दिया था। उनके पैर मुड गये थे। वे लकडी के सहारे के बिना एक कदम भी नही चल सकते थे। पूरे समय शरीर मे असहनीय दर्द होता रहता था। सारा कसूर पानी का था। इसमे फ्लोराइड की अधिक मात्रा थी। लम्बे समय से लोग प्रभावित थे। प्रशासन ने शुद्ध पानी के टैकर खडे करवा दिये थे पर जब हम पहुँचे तो वे सम्पन्न लोगो के इलाके मे थे। गाँव से कुछ दूर दूसरे टोले मे लोग बीमार होने के बावजूद जहरीला पानी पी रहे थे। वे दूर से टैकर का पानी नही ला सकते थे। जहरीले पानी वाले बोरवेलो पर लाल रंग के

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -64

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -64 - पंकज अवधिया ‘किसान जब खेत मे प्रवेश करे तो उत्तर दिशा से प्रवेश करे। प्रवेश करते ही जोर से हाथो मे पकडी घंटी बजाये। फिर यूकिलिप्टस के पौधे पर वृद्धि हारमोन डाले। उसके बाद एक विशेष टोपी पहनकर खेती का कार्य शुरु करे। यदि किसान हमारे द्वारा बताये उपायो को अपनाता है तो फसल दोगुनी होगी और जो उसने जिन्दगी भर मे नही कमाया होगा वह एक साल मे कमा लेगा।‘ ऐसा दावा करता एक पत्र मुझे एक किसान ने दिखाया। पत्र के नीचे जिन महानुभाव का नाम लिखा था वे मेरे सहपाठी निकले कृषि महाविद्यालय के। मैने झट से उसे फोन लगाया। उसके फोन उठाते ही प्रश्नो की झडी लगा दी। वह बोला कि यह विज्ञान मेरे द्वारा विकसित किया गया है और यदि इसे समझाना है तो मेरी दुकान आना होगा। दुकान? कौन-सी दुकान? उसने कहा, कृषि सेवा केन्द्र खोला है। वही आ जाना। मै दूसरे दिन पहुँच गया। नौकर दुकान मे था। महाश्य नदारद थे। मुझे बताया गया कि बस आते ही है, आप बैठिये। मैने दुकान का मुआयना करना शुरु किया। कृषि केन्द्र मे तो सबसे पहले एक पुस

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -63

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -63 - पंकज अवधिया ‘अरे वाह, मुझे मिल गया महुआ का बान्दा। मै अभी उसे तोडता हूँ। उसको छूते ही मुझे दिन मे तारे दिखने लगेंगे।‘ यह कहकर तांत्रिक चिल्लाया और जब तक हम उसे रोकते वह महुए के पुराने और ऊँचे पेड मे चढने लगा। पहले उसकी गति तेज रही फिर ऊपर पहुँचते तक वह थक गया। पर आखिर वह उस डाल पर पहुँच ही गया जहाँ यह बान्दा था। उसने उसे छुआ और आसमान की ओर देखा। उसे सूरज ही नजर आया। वहाँ से चिल्लाकर हमसे बोला कि तारे नही दिख रहे है। अचानक ही उसका पैर थोडा सा फिसला और वह कुछ नीचे आकर सम्भल गया। उसे सिर मे हल्की सी चोट लगी। सम्भलने के बाद वह बान्दा तोडकर नीचे आ गया। हमने मुस्कुराते हुये पूछा कि जब सिर मे चोट लगी तो कुछ दिखा क्या? तारा-वारा? वह हमारे इशारे को समझ गया और हँस पडा। उत्तर भारत से आया यह तांत्रिक दावा कर रहा था कि उसने जीवन बिता दिया पर महुए का बान्दा नही देखा। उसका यह भी दावा था कि दिन मे उसे छू लेने पर तारे दिखने लगते है। उसे समझाने की बजाय हमने उसे स्वयम यह करके देखने को कहा। य

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -62

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -62 - पंकज अवधिया ‘लाख कोशिशे करके मै थक गया पर गाँव वालो को कण्डोम के इस्तमाल के लिये प्रेरित नही कर पाया। ये तो इनकी ‘किस्मत’ है जो अब तक ‘एडस’ से बचे हुये है।‘ गाडी की पिछली सीट पर बैठे एक युवक ने यह कहा। कुछ देर पहले ही उसने अपनी बिगडी बस से उतरकर हमारी गाडी मे लिफ्ट ली थी। वह किसी सरकारी संगठन मे स्वास्थ्य सलाहकार था। वह स्वयम ही गाँव का था पर पढाई के बाद उसे गाँव वाले गँवार और जाहिल लगते थे। इसीलिये तो लाख कोशिशो के बावजूद वे उसकी बात मानने को तैयार नही थे। मैने उससे कहा कि धीरज से अपनी बात कहो और गाँव वालो के तर्को का जवाब दो। हो सकता है ऐसे मे गाँववाले मान जाये। इस पर युवक कुछ उत्तेजित हो गया और बोला कि मैने सोशल सर्विस की डिग्री ली है। सोशल सर्विस माने समाज सेवा। समाज सेवा की डिग्री!!! मतलब बाजार ने यह भी शुरु कर दिया। पहले धन्ना सेठो के विजीटिंग कार्ड मे समाज सेवक का जिक्र दिखता था अब समाज सेवक का नया रुप मुझे दिखा। समाज सेवा की डिग्री वाला समाज सेवक। उस दिन सुबह म

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -61

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -61 - पंकज अवधिया पिछले दिनो एक बडा ही विचित्र ईमेल सन्देश आया। यह सन्देश एक फिल्म निर्माता का था जो डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाते है। उन्होने गूगल सर्च मे स्नेक और छत्तीसगढ शब्द खोजे तो मेरे बहुत से लेख उन्हे दिख गये। मुझे सर्प विशेषज्ञ मानकर उन्होने मुझसे अपनी फिल्म मे सहायता की मदद की। मुझे बताया गया कि बस आपको पारम्परिक सर्प विशेषज्ञ से मिलवाना है जिनके पास जहरीले साँप हो। साँपो की तस्वीरे उतारने के बाद फिर उन्हे लेकर जंगल मे भ्रमण करना है। मैने हामी भर दी। ऐसे बहुत से फिल्मकार पहले भी आते रहे है। मै सर्प विशेषज्ञ तो हूँ नही इसलिये कुछ नया सीखने की लालसा मे ऐसे फिल्मकारो के साथ चला जाता हूँ। जब नियत तिथि पर वे आये और हम एक पारम्परिक सर्प विशेषज्ञ के पास पहुँचे तो वहाँ फिल्मकार के असली रंग दिखने लगे। पारम्परिक सर्प विशेषज्ञ के पास तीन कोबरा थे। उनकी तस्वीरे लेने के बाद हमसे पास के जंगल मे चलने को कहा गया। जैसे ही जंगल शुरु हुआ गाडी रुकवा दी गयी। अब सर्प विशेषज्ञ से कहा गया कि हर