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Showing posts from September, 2008

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -35

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -35 - पंकज अवधिया सत्यानाशी ऐसा नाम है जो सब कुछ कह देता है। अब भला यदि सत्यानाशी किसी पौधे का नाम हो तो कौन इसे अपने घर मे लगायेगा? वैसे यह देखने मे आता है कि वनस्पतियो के मूल नाम विशेषकर अंग्रेजी नाम अच्छे होते है पर स्थानीय नाम उनके असली गुणो (दुर्गुण कहे तो ज्यादा ठीक होगा) के बारे मे बता देते है। सत्यानाशी का ही उदाहरण ले। इसका अंग्रेजी नाम मेक्सिकन पाँपी है। ऐसे ही मार्निंग ग्लोरी के अंग्रेजी नाम से पहचाना जाने वाला पौधा अपने दुर्गुणो के कारण बेशरम या बेहया के स्थानीय नाम से जाना जाता है। सुबबूल की भी यही कहानी है। यह अपने तेजी से फैलने और फिर स्थापित होकर समस्या पैदा करने के अवगुण के कारण कुबबूल के रुप मे जाना जाता था। वैज्ञानिको को पता नही कैसे यह जँच गया। उन्होने इसका नाम बदलकर सुबबूल रख दिया और किसानो के लिये इसे उपयोगी बताते हुये वे इसका प्रचार-प्रसार करने मे जुट गये। कुछ किसान उनके चक्कर मे आ गये। जब उन्होने इसे लगाया तो जल्दी ही वे समझ गये कि इसका नाम कुबबूल क्यो रखा गया था। अब लोग फिर से इसे कुबबूल क

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -34

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -34 - पंकज अवधिया देश के विभिन्न भागो मे भ्रमण के दौरान मैने एक अजीब सी बात महसूस की है कि एक ही वनस्पति जहाँ एक स्थान पर पूजी जाती है वही वनस्पति दूसरे स्थान पर हानिप्रद मानी जाती है। पूजने और तिरस्कार करने, दोनो ही के विशेष कारण है। भटकटैया का ही उदाहरण ले। इसे कंटकारी भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम सोलेनम जैंथोकारपम है। यह कंटीला पौधा बेकार जमीन मे उगता है। मध्यप्रदेश के कुछ भागो मे इसे घर के बागीचे मे देखते ही उसी समय उखाडने की परम्परा है। वैसे बागीचे मे इसकी उपस्थिति खरपतवार की तरह ही होती है। आमतौर पर जिस पौधे को हम बागीचे मे नही लगाते और जो अपने आप उग जाता है उसे खरपतवार मानकर उखाड दिया जाता है। ऐसा पूरे देश मे होता है। इसमे काँटे भी होते है और इस कारण बागीचे मे खरपतवार की तरह इसकी उपस्थिति बच्चो और पालतू जानवरो के लिये मुश्किल पैदा कर सकती है। शायद इसलिये इसे उखाड दिया जाता हो-मैने सोचा। पर विस्तार से जानकारी लेने पर पता चला कि इसे तंत्र-मंत्र से जुडा पौधा माना जाता है। घर मे इसकी उपस्थिति अशांति और क्

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -33

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -33 - पंकज अवधिया बचपन मे जब मै अपने सहपाठियो के साथ गाँव की सैर किया करता था तो रोचक बाते सुनने को मिलती थी। कोई भी नया जीव दिखते ही हम उसके पीछे लग जाते थे। पर उल्लू को देखते ही हम राह बदल लेते थे। हमे चेताया गया था कि यदि शाम को उल्लू को ढेला मारा और ढेला पानी मे गिर गया तो जैसे-जैसे वह घुलता जायेगा वैसे-वैसे मारने वाले की जान निकलती जायेगी। गाँव के बडे आँखे निकाल-निकाल कर यह बात बताते थे। मन ही मन बहुत डर लगता था। हमारी हिम्मत भी नही होती थी कि हम इस प्राणी के दर्शन करे। पिछले हफ्ते एक वन ग्राम मे शाम के समय पेड पर एक उल्लू दिख गया। मैने अपना कैमरा निकाला और जुट गया तस्वीरे लेने मे। यह सब देखकर एक बच्चा तेजी से मेरे पास आया और एक ही साँस मे उसी बात को दोहरा दिया। मेरे सामने बचपन की यादे तैर गयी। इसका मतलब यह बाते दूर-दूर तक प्रचलित है। पढे-लिखे लोग निश्चित ही इसे अन्ध-विश्वास कह सकते है। पर मुझे यह विश्वास उल्लू की प्राण रक्षा मे सहायक लगा। चलिये अन्ध-विश्वास ही सही पर यह एक निरीह प्राणी की जान बचा रहा है, य

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -32

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -32 - पंकज अवधिया अन्ध-विश्वास ने जिन पक्षियो का जीना मुहाल कर दिया है उनमे उल्लू का नाम सबसे ऊपर है। इसे रहस्यमय शक्तियो के स्त्रोत के रुप मे प्रचारित किया गया है। बेचारे के लिये अजीब सी दिखने वाली शक्ल और निशाचर होना अभिशाप बन गया है। पिछले दिनो हमारे एक वैज्ञानिक मित्र का सन्देश आया। वे उल्लूओ की तेजी से घटती संख्या पर शोध कर रहे थे। उन्होने अपने अध्ययन मे पाया है कि देश भर मे पिछले एक दशक मे उल्लूओ की संख्या मे तेजी से कमी आयी है। शहरी इलाको मे तो वैसे ही उल्लू कम दिखते है पर अब गाँवो मे भी ये कम दिखने लगे है। पिछले दिनो देश के मध्य भाग से समाचार आया कि एक विचित्र-सा पक्षी मिला है। लोग उसे गरुड मानकर पूजा कर रहे है। पैसे चढा रहे है। यह खबर सतना से प्रसारित हुयी। उसके बाद छत्तीसगढ के जाँजगीर से भी यह खबर आयी। अखबारो ने प्रथम पृष्ठ पर इसकी तस्वीर छापी। खबर मे बताया गया था कि इस विचित्र पक्षी के पास जाने से फुफकारने की आवाज आ रही है। चित्र देखते ही इसके बार्न आउल होने का अन्दाज विशेषज्ञो को हो गया। फुफकारने के का

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -31

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -31 - पंकज अवधिया एक पहलवान के लिये डाइट चार्ट बनाने से पहले मैने उससे कहा कि आप दिन भर जो खाते हो और जो भी बाहरी चीजो का इस्तमाल करते हो उसके बारे मे विस्तार से लिखकर मुझे दे दो। मै उसी आधार पर एक उपयोगी पर सरल डाइट चार्ट बना दूंगा। वह सहर्ष तैयार हो गया। उसने खूब मेहनत की और कुछ दिनो बाद मेरी मेज पर सारे विस्तार उपलब्ध थे। मैने गौर से सब कुछ पढा पर एक प्रयोग ने बरबस ही मेरा ध्यान खीच लिया और वह था एक विशेष प्रकार के तेल से शरीर की मालिश। रोज व्यायाम से पहले इसकी मालिश की जाती थी और कुश्ती के मुकाबले से पहले तो इसे किसी भी हालत मे लगाना ही होता था। आमतौर पर पहलवान तेलो से मालिश तो करवाते ही है। इसमे कोई नयी बात नही थी। पर विशेष तेल के जिक्र ने मुझे उससे इस बारे मे पूछने के लिये प्रेरित किया। पहलवान ने बिना किसी हिचकिचाहट के बता दिया कि यह जादुई तेल है। इसे लगाने से हारती हुती बाजी भी मै जीत जाता हूँ। किसने दिया यह तेल? मैने पूछा। एक तांत्रिक ने। उसने कहा और कहता ही गया। दरअसल यह काले कौव्वे की चरबी है जो बडी मुश्

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -30

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -30 - पंकज अवधिया आम तौर पर अल सुबह मै घने जंगलो मे जाना पसन्द नही करता। इस समय वन्य जीवो विशेषकर भालुओ के लौटने का समय होता है। ऐसे समय मे नीचे उतरकर वनस्पतियो को देखना और उनकी तस्वीरे उतारना जोखिम भरा होता है। एक बार विशेष कीटो को देखने सुबह-सुबह जंगल जाना ही पडा। मै सामने की सीट पर बैठा था। स्थानीय लोग पीछे बैठे थे। ड्रायवर अपनी मस्ती मे गाडी चला रहा था। अचानक ही घने जंगल मे एक निर्वस्त्र व्यक्ति पर हमारी नजर पडी। पहले हमने सोचा कि शौच आदि के लिये कोई बैठा होगा पर घने जंगल मे भला कौन शौच के लिये आयेगा? हमने गाडी रोक दी। साथ चल रहे लोगो ने न रुकने की सलाह दी। मै जिद करके उस व्यक्ति तक पहुँचा तो वह तेजी से दूर जाने लगा। मैने कुछ पूछना चाहा तो उसने चुप रहने का इशारा किया। वह साधारण व्यक्ति ही था। शरीर निर्वस्त्र था पर कुछ भागो मे उसने लोकटी नामक छोटी मक्खियो से बचने के लिये मिट्टी का लेप लगा रखा था। उसने इशारे से हमे रुकने के लिये कहा और इशारो-इशारो मे ही वापस आने का अश्वासन देकर जंगल मे गुम हो गया। हमने दो घंटो त

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -29

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -29 - पंकज अवधिया किसानो के खेतो मे बन्दरो के बढते उत्पात ने मुझे प्रेरित किया कि मै किसानो के लिये ऐसे सरल उपायो की तलाश करुँ जिससे नुकसान कम हो और बन्दरो को भी किसी तरह की क्षति न पहुँचे। हमारे क्षेत्र मे काले मुँह वाले लंगूरो ने कोहराम मचा रखा है। ये न केवल फसलो को नष्ट कर रहे है बल्कि गाँव के घरो के छप्परो को भी नुकसान पहुँचा रहे है। बन्दर धार्मिक आस्था से जुडे हुये है। वैसे भी आम किसान इस बात को जानते है कि बन्दरो का आवास छिन जाने के कारण ही उन्होने खेतो का रुख किया है। पहले भी बन्दर आते थे पर कुछ समय के लिये। अब तो लगता है कि जैसे बन्दर यही के होकर रह गये है। किसानो ने दसो उपाय अपनाये पर अब थक-हार कर किसी चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहे है। किसानो को बहुत अधिक धन गँवना पड रहा है। देश भर मे भ्रमण के दौरान मै जहाँ भी जाता हूँ बन्दरो से निपटने के स्थानीय तरीको की पूछ-परख करने से नही चूकता हूँ। पर ज्यादातर मामलो मे लोग मुझसे ही नये उपाय जानने की उम्मीद कर बैठते है। छत्तीसगढ के वनीय क्षेत्रो मे भ्रमण के दौरान साथ चल

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -28

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -28 - पंकज अवधिया औषधीय और सगन्ध फसलो की व्यवसायिक खेती के क्षेत्र मे वर्ष विशेष मे अचानक ही किसी फसल की माँग बढती है और किसानो के साथ मिलकर वह फसल लगायी जाती है। उत्पाद बेचकर किसान फिर पारम्परिक खेती मे लग जाते है। वनौषधि विशेषज्ञ होने के कारण अक्सर कम्पनी के लोग सम्पर्क करते रहते है। वे मुझसे फसल उत्पादन की जैविक विधि पूछते है फिर किसानो को मार्गदर्शन का काम सौपते है। अभी तक मैने 100 से अधिक फसलो की खेती मे दुनिया भर के लोगो का मार्गदर्शन किया है। इस दौरान मुझे बडे ही दिलचस्प अनुभव हुये है। यहाँ मै विश्वास और अन्ध-विश्वास से जुडे अनुभवो की बात करुंगा। कुछ वर्षो पहले रायपुर के पास मुझे बच (एकोरस कैलामस) नामक औषधीय फाल की खेती के लिये अनुबन्धित किया गया। मुझे प्रतिदिन किसानो से मिलने जाना होता था। सफेद रंग की एम्बेसडर उपलब्ध करवायी गयी थी। मै सबसे पहले पूरे प्रक्षेत्र का भ्रमण करता और फिर किसानो से चर्चा करता। हर दिन मै भ्रमण के दौरान दूर खडे एक व्यक्ति को देखता था। उसकी नजर मेरी ओर होती थी। नजर मिलने से पहले ही व

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -27

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -27 - पंकज अवधिया अपनी शिक्षा पूरी करते ही मैने अन्ध-विश्वास पर काम कर रही संस्था की सदस्यता ग्रहण कर ली और युवा तुर्क बनकर सभी अभियानो मे बढ-चढ कर हिस्सा लेने लगा। अब मुझे लगता है कि मैने सदस्यता लेने मे जल्दीबाजी कर दी। आमतौर पर जैसा कि ज्यादातर संस्थाओ मे होता है आपस मे सदस्यो के बीच कम संवाद होता है। हमारी संस्था मे भी प्रश्न न पूछने का रिवाज था। किसी अभियान से पहले आपस मे खुलकर चर्चा नही होती थी। अध्यक्ष सबसे अलग बात कर लेते थे फिर जब हम अभियान स्थल पर पहुँचते थे तो सभी अपनी-अपनी भूमिका मे लग जाते थे। हमने बहुत बार लोगो पर चढे भूत को उतारने के लिये उन स्थानो पर छापे मारे जहाँ किसी मूर्ति के अचानक प्रकट होने या किसी को विशेष स्वप्न आने की बात फैलने के बाद लोगो का हुजूम जमा होता था। जैसे ही हम वहाँ पहुँचते और लोगो को पता चलता कि अमुक संस्था से आये है तो उनमे आक्रोश फैल जाता। ऐसे समय मै एक आम लोगो मे घुसकर फसलो की चर्चा करने लग जाता ताकि उनका ध्यान बँटे। दूसरे साथी श्री चन्द्रशेखर व्यास लोगो को सरल और मजेदार भाष

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -26

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -26 - पंकज अवधिया हमारे बागीचे मे जासौन पर इस बार जमकर फूल लगे। सडक से आते-जाते लोगो की नजर इस पर टिक जाती है। यह फूल देवी को चढाया जाता है इसलिये बहुत से लोग सुबह-सुबह फूल माँगने आ जाते है। कुछ बिना पूछे ही तोड लेते है। पिछले कुछ हफ्तो से एक महिला नियमित रुप से फूल लेने आ रही है। वह अनुमति लेकर फूल ले जाती है। कुछ दिनो पूर्व हमारे यहाँ एक मेहमान आये। वे कानूनविद है। अलसुबह वे जब बागीचे मे घूम रहे थे तो उस महिला का आगमन हुआ और रोज की तरह उसने फूल तोडने की अनुमति माँगी। मेहमान ध्यान से उसे देखते रहे और फिर जैसे ही उसने फूल तोडा अचानक ही वे चिल्लाने लगे। बुरा-भला कहने लगे। जब तक हम पहुँचते वह महिला बिना फूल तोडे जा चुकी थी। मेहमान ने चिल्लाकर कहा कि मैने घर को अनिष्ट से बचा लिया। उनका कहना था कि वह महिला केवल एक फूल लेने आयी थी। जबकि बहुत से फूल चढाये जाते है। एक फूल ले जाना मतलब घर के किसी एक सदस्य पर जादू। वे बोलते चले गये। उन्होने पूछा कि कब से यह सब चल रहा है? शुरु मे हमे चिंता हुयी पर कुछ ही देर मे जब दिमाग

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -25

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -25 - पंकज अवधिया इस ब्लाग के माध्यम से यह लेखमाला दुनिया भर मे पढी जा रही है। ढेरो सन्देश आ रहे है। इस लेखमाला को पूरा करने के बाद इन सन्देशो के जवाब देने की मंशा थी मन मे पर मै इस लेख मे एक महत्वपूर्ण पत्र की चर्चा कर रहा हूँ। मैसूर से एक पाठक पीपल के तीन पेडो के विषय मे लिखते है कि ये पेड एक ही स्थान पर पीढीयो से उपस्थित है। इन्हे ब्रम्हा, विष्णु और महेश का नाम मिला है। इनके विषय मे यह मान्यता है कि जो कोई भी इन्हे उखाडने की कोशिश करता है उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है। यही कारण है कि यह बिना किसी नुकसान के इतने वर्षो से बचा हुआ है। हाल ही मे एक व्यक्ति ने एक पेड को काटने का दुस्साहस किया। उसकी भी मौत हो गयी। अब दो पेड और एक आधा कटा पेड है। इस घटना के बाद चन्दागल गाँव मे दहशत है और लगता है कि काफी लम्बे समय तक इन्हे कोई नही छू पायेगा। पाठक आगे लिखते है कि इस खबर के फैलने के बाद शहर की एक संस्था से कुछ लोग आये और इसे अन्ध-विश्वास कहकर अपने हाथो से इसे काटने की जिद करने लगे। मैने उन्हे समझाया कि यदि यह किसी विश्व