Posts

Showing posts from January, 2009

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -90

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -90 - पंकज अवधिया जंगल मे काफी भीतर जाने के बाद हमे आखिर वह दुर्लभ आर्किड दिख ही गया जिसके बारे मे मै पारम्परिक चिकित्सको से अक्सर सुना करता था पर अचानक ही सामने चल रहा स्थानीय मार्गदर्शक रुक गया और आगे जाने से इंकार कर दिया। हो सकता है कोई जंगली जानवर- ये सोचकर मैने आस-पास देखने की कोशिश की पर कुछ दिखायी नही दिया। मार्गदर्शक ने कहा कि जानवरो का यहाँ कोई डर नही है। तो फिर? मैने सोचा हो सकता है कि यह आर्किड को एकत्र करने का उचित समय न हो। आर्किड वैसे ही धार्मिक आस्था से जुडे होते है। पर मार्गदर्शक ने कहा कि इस रास्ते से बुरी आत्माए गयी है। इसलिये हमे रास्ता बदलना होगा। उसके चेहरे पर डर के भाव थे। अब कौन बहस मे पडे? यह सोचकर मैने हामी भर दी। दूसरे रास्ते से आर्किड के पास पहुँचे और उसे विधि-विधान से एकत्र कर लिया। लौटते वक्त मैने पूछा कि तुमने कैसे पता किया कि पहले वाले रास्ते से बुरी आत्माए गुजरी है। उसने बताया कि आत्माओ ने गुजरते वक्त पौधो पर थूका है। यह कहकर उसने एक पौधे की ओर इ

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -89

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -89 - पंकज अवधिया “हमारा सोना हमे वापस कर दो। कहाँ गया हमारा सोना?” कुछ लोग तांत्रिक के आगे गिडगिडा रहे थे। तांत्रिक उनकी बातो पर जरा भी ध्यान नही दे रहा था।वे लोग वापस गये और कुछ और लोगो को लेकर आ गये। अब तांत्रिक को जवाब देना ही पडा। उसने कहा कि तुमने ही गाँव का बिगाड किया है। तुम्हारे कारण ही गाँव मे अजीबोगरीब घटनाए हो रही है। कही अपने आप आग लग रही है तो कही आसमान से पत्थर बरस रहे है। मैने तुम्हारा सोना कीडो मे बदल दिया है। यकीन न हो तो श्मशान चले जाओ और वहाँ उग रहे बेशरम के पौधो को ध्यान से देखो। वहाँ तुम्हे सोने के कीडे दिख जायेंगे। तांत्रिक की बात सुनकर लोग श्मशान की ओर भागे। बेशरम के पौधो को ध्यान से देखा तो सचमुच सुनहरे कीडे नजर आये। कीडे सुनहरे थे पर उनसे सोना वापस नही मिल सकता था। वे बडे निराश हुये। तांत्रिक की जादुई शक्ति का डर ऐसा था कि वे कुछ बोल भी नही पाये। कही उन्हे भी कीडा न बना दिया जाये। तांत्रिक ने तो पूजा के लिये सोना मँगाया था। उन्हे कीडो मे बदल देगा, ये तो

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -88

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -88 - पंकज अवधिया “इसका फूल जानवर यदि खा ले तो वे मर जाते है।“ बेशरम के पौधो के बारे मे ऐसी बाते मै अक्सर सुना करता था। कृषि की शिक्षा के दौरान मुझे लगा कि अपने ज्ञान से सबसे पहले अपने गाँव का ही भला किया जाये। इसलिये पिताजी की अनुमति मिलते ही घर की बैठक मे नि:शुल्क कृषि परामर्श केन्द्र खोल लिया। रोज तो यहाँ बैठा नही जा सकता था। कालेज जो जाना होता था। इसलिये रविवार का दिन चुन लिया था। अपने विश्वविद्यालय से मिले जानकारी पत्रको को केन्द्र मे सजा दिया था ताकि किसान वहाँ आकर आराम से पढ सके। कालेज मे इस केन्द्र के बारे मे जानकारी मिलने पर गुरुजन बहुत प्रसन्न हुये। हर बार एक विशेषज्ञ इस केन्द्र मे अपनी सेवाए देने आने लगे। वे जानते थे कि सब कुछ निज व्यय से चल रहा है इसलिये वे अपने खर्च पर आ जाते थे और शाम तक रुकते थे। उस समय मेरी रुचि खरपतवारो मे थी। मै सभी खरप्तवारो के उपयोग खोजा करता था। बेशरम पर मेरी विशेष नजर थी क्योकि पूरी पढाई के दौरान इसके विरुद्ध हमारे कान भरे गये थे। अब जब किस

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -87

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -87 - पंकज अवधिया जंगल से दूर एक सितारा होटल मे वातानूकुलित सभागार मे जंगल की बाते हो रही थी। देश के बडे-बडे वन विशेषज्ञ मिनरल वाटर पीते हुये गम्भीर विषयो पर चर्चा कर रहे थे। राष्ट्रीय अभ्यारण्यो की तारीफो के पुल बाँधे जा रहे थे। कान्हा के बारे मे एक विशेषज्ञ ने कहा कि वहाँ सब कुछ बढिया है। सैकडो पर्यटक आ रहे है। अच्छी आमदनी हो रही है फिर भी वन्य प्राणियो पर इसका कोई असर नही हो रहा है। कोई हमसे पूछे कैसे मनुष्य़ और जानवर एक साथ मजे से रह सकते है? देश के सारे जंगलो को अभ्यारण्य बना देना चाहिये। और भी बडी-बडी बाते। उस दिन की सभा समाप्त हुयी। दो दिनो तक अभी और जंगलो पर चर्चा होनी थी। चर्चा मे बहुत से ऐसे लोग थे जो उन महाश्य से सहमत नही थे। अब सीधे बोलने पर तो वे सुनने से रहे इसलिये सबने कुछ और उपाय खोजना ठीक समझा। वे वन्य विशेषज्ञ मेरे ही कमरे मे ठहरे थे। मैने हवा के लिये खिडकी खोल दी। यह खिडकी गलियारे की ओर थी। विशेषज्ञ महाश्य कुछ किताबे लेकर बैठ गये। अचानक कुछ लोग आये और खिडकी से

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -86

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -86 - पंकज अवधिया बस्तर के ग्राम मधोता के नन्हे चरवाहे ने जब एक जंगली जानवर को अपने पशुओ के आस-पास घूमते देखा तो उसने उसे जंगली कुत्ता समझ पत्थर मारकर भगाने की कोशिश की। इससे जंगली जानवर क्रोधित हो गया और उसने बिना देर उस पर आक्रमण कर घायल कर दिया। यह जंगली कुत्ता नही बल्कि तेन्दुआ था। इसके बाद जो भी दिखा उस पर इसने आक्रमण किया और चार ग्रामीण घायल हो गये। यह खबर आग की तरह फैली और कुछ ही देर लाठियो से लैस ग्रामीणो ने तेन्दुए को घेर लिया और उसे पीट-पीट कर मारा डाला। खून का बदला खून। इतना ही नही तेन्दुए के मरने के बाद इसके अंगो को लूटने की होड मँच गयी। किसी ने बीर नख की तलाश मे इसका पेट चीर डाला तो किसी ने दांत और नाखून निकाल लिये। जब तक वन-अधिकारी पहुँचे तब तक इसका एक-एक रोम ग्रामीणो ने निकालकर अपने पास सुरक्षित रख लिया था- यह दिल दहला देने वाला समाचार आज ही मै दैनिक नवभारत मे पड रहा था। ऐसी खबरे छत्तीसगढ मे नयी नही है। हम लगातार तेन्दुओ के मारे जाने की खबरे पढते रहते है। कभी कोई

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -85

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -85 - पंकज अवधिया मुझे याद आता है, बचपन मे जब भी हमारी रेलगाडी किसी नदी के ऊपर से गुजरती थी तो कोई नदी को नमन कर मंत्रोप्चार शुरु कर देता था तो कोई नीचे सिक्के फेक देता था। बडी नदी नही बल्कि छोटी नदियो के प्रति भी लोगो का झुकाव देखा जा सकता था। बहुत बार नदी मे नहाते समय रेल्वे ब्रिज से रेलगाडी गुजरने पर हम लोग सिक्के या फूल माला फेके जाने की प्रतीक्षा करते थे। सभी दर्जे मे सफर करने वालो के मन मे नदियो के प्रति आस्था होती थी। एसी मे सफर करने वाले नदी के पास आते ही लपककर दरवाजे पर पहुँच जाते थे। कालेज टूर के दौरान दक्षिण मे भी मैने यह सब देखा। पर पता नही पिछले दस सालो मे ऐसा क्या हो गया कि लोगो की आस्था घट गयी। ऐसा नही है कि इन सालो मे नदी का महत्व कुछ घट गया है बल्कि जनसंख्या मे बढोतरी होने के कारण नदियो का महत्व और उनकी आवश्यकत्ता और बढ गयी है। कुछ महिनो पहले एक रेलयात्रा के दौरान मैने एसी के डिब्बे मे इस तरह की प्रतिक्रिया नही देखी तो पीछे के डिब्बो मे जाने का मन बनाया। वहाँ भी

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -84

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -84 - पंकज अवधिया “अरे, यह तो भ्रमरमार है। एक नही दो-दो है।“ मै लगभग चीख पडा। मेरी खुशी का ठिकाना नही रहा। ऐसा लगा जैसे मुझे अनमोल रत्न मिल गये हो। बुधराम और उसके साथियो के साथ मै जब जंगल के देवता के घर पहुँचा (सन्दर्भ के लिये पिछले लेख पढे) तो एक से बढकर एक दुर्लभ वनस्पतियो को देखकर मै आश्चर्यचकित रह गया। भ्रमरमार का पौधा ब्लड कैसर मे दशको से सफलतापूर्वक प्रयोग हो रहा है। सबसे पहले मैने इसे पढाई के दौरान देखा था। मुझे इसके दिव्य औषधीय गुणो के विषय मे बताया गया था। मैने सन्दर्भ ग्रंथो को पढा तो मुझे इसके विषय मे कोई जानकारी नही मिली। हमारे प्राचीन ग्रंथ भी इसके विषय मे कुछ नही बताते है। जब मैने कैंसर की पारम्परिक चिकित्सा से समबन्धित ज्ञान का दस्तावेजीकरण आरम्भ किया तो इस वनस्पति का नाम मैने बहुत बार सुना। पर हर बार पारम्परिक चिकित्सको की टिप्पणी मिलती थी कि अब यह नही मिलता है इसलिये हम इसके स्थान पर दूसरी वनस्पतियो का प्रयोग करते है। दूसरी वनस्पतियाँ उतनी कारगर नही होती है। आप

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -83

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -83 - पंकज अवधिया इस लेखमाला की 81 वी कडी मे मै बुधराम की झोपडी मे गुजारी एक रात के विषय मे आपको बता रहा था। रात के सन्नाटे मे जिस आवाज से मेरी नीन्द खुल गयी थी वह छत से आ रही थी। छत जामुन और पलाश की सूखी शाखाओ से बनी थी जिसमे छोटे-छोटे निशाचर कीटो का बसेरा था। रात मे वे शोर कर रहे थे और मुझे नीन्द नही आ रही थी। मेरी हलचल से बुधराम की नीन्द भी खुल गयी। उसने बाहर बुझ चुकी आग को फिर से जलाया और मुझसे बाते करने लगा। पिछले लेख मे मैने आम लोगो के मन मे बसे जंगल के देवता की चर्चा की थी। बुधराम ने बताया कि पास की पहाडी मे जंगल के देवता मूर्त रुप मे भी विद्यमान है। यदि इच्छा हो तो कल सुबह चल सकते है। लम्बा चलना होगा इसलिये अच्छी नीन्द जरुरी है। मैने बुधराम की बात मानकर सोने का मन बनाया। उसने बाहर जल रही लकडियो की राख मे महुये की शराब मिलायी और फिर उस लेप को मेरे तलवो पर लगा दिया। कुछ ही पलो मे मुझे नीन्द आ गयी। सुबह कुछ देर से उठा। नीन्द नशीली थी। शायद यह महुये का असर था। ड्रायवर को गाड

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -82

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -82 - पंकज अवधिया “चावल खा सकते है पर एक हजार दस से परहेज करे। इससे समस्या बढ सकती है। नही खाये तो अच्छा है।“ पारम्परिक चिकित्सक खूनी बवासिर (अर्श या पाइल्स) से परेशान एक रोगी को दवा के साथ परहेज के विषय मे बता रहे थे। “एक हजार दस” का नाम सुनते ही मै चौक पडा। शायद मैने गलत सुना हो इसलिये मैने रोगी के जाने के बाद फिर से पूछा। “हाँ, खूनी बवासिर के रोगी को हम यह चावल नही खाने की सलाह देते है।“ इसका मतलब मैने सही सुना था। एक हजार दस धान की नयी किस्म है जो छत्तीसगढ मे किसानो के बीच बहुत लोकप्रिय है। बडे क्षेत्र मे इसकी खेती होती है। इसे किसान बेचते भी है और अपने खाने के काम मे भी लाते है। मैने पहले लिखा है कि राज्य मे पारम्परिक धान विशेषकर औषधीय धान के विषय मे समृद्ध पारम्परिक ज्ञान है। पारम्परिक चिकित्सक एक-एक किस्मो की औषधीय विशेषताओ को जानते है। पर एक हजार दस तो नयी किस्म है। इससे होने वाले नुकसान की जानकारी उनका पारम्परिक ज्ञान नही हो सकता है। यह तो उन्होने अपने अनुभव से जाना होग

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -81

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -81 - पंकज अवधिया मध्य रात्रि अचानक अजीब सी आवाज से मेरी नीन्द खुल गयी। चारो ओर घुप्प अन्धेरा था। मै उठ बैठा। आवाज ऊपर से आ रही थी। सिर उठाया तो कुछ दिखा नही। कुछ देर बैठने के बाद मुझे याद आया कि यह मेरा घर नही था। मै तो घास-फूस से बनी एक झोपडी मे सो रहा था। यह बुधराम की झोपडी थी। कुछ दूरी पर वह सोया हुआ था। रात का सन्नाटा था। जंगली जानवरो को दूर रखने के लिये जलायी गयी आग ठंडी हो चुकी थी। झोपडी के बाहर गाडी थी जिसमे ड्रायवर सो रहा था। यह मेरी ही जिद थी झोपडी के अन्दर सोने की। नही तो ड्रायवर तो पास के शहर के किसी लाज मे ठहरने की जिद करके थक चुका था। बुधराम के लिये ऐसी जगह पर सोना रोज की बात थी। पर मेरे लिये यह अजीब अनुभव था। झोपडी गाँव के बाहर थी और आस-पास खेत थे। कुछ दूर पर जंगल था। जंगली जानवर अक्सर गाँव मे आ जाया करते थे पर डरने की कोई बात नही है, ऐसा कहकर बुधराम ने मुझे आश्वस्त करने की कोशिश की थी। जंगल के देवता पर उसे बहुत विश्वास था। वे अकारण की किसी को सजा नही देते, उसने य

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -80

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -80 - पंकज अवधिया कुछ दिनो पहले मेरे एक परिचित बडी ही विचित्र समस्या लेकर आये। उन्होने अपना मकान किसी को किराये पर दे रखा था। वे खुद बाहर रहते थे इसलिये तीन-चार सालो के अंतराल मे उनका आना होता था। इस बार वे किरायेदार से मिलने गये तो उन्हे मकान की बाहरी दीवार पर बरगद का एक छोटा सा पेड नजर आया। जैसा कि अक्सर होता है पक्षी बरगद के फल खाते है और बीज बिना पचे शरीर से बाहर बीट के साथ निकल जाते है। जहाँ भी बीट गिरती है अनुकूल वातावरण मिलते ही बीज का अंकुरण हो जाता है। और देखते ही देखते नया पौधा तैयार हो जाता है। आमतौर पर लोग ऐसे पौधो से घर को होने वाले नुकसान को देखते हुये उखाड देते है। कई बार जब ऐसे पौधे बडे हो जाते है तो यूरिया या नमक की अधिक मात्रा जडो मे डालकर पौधो को जला दिया जाता है। यहाँ रिश्तेदार ने जैसे ही बरगद को उखाडना चाहा किरायेदार ने कह दिया कि बरगद को उखाडना माने परिवार का समूल नाश। वह न तो खुद इसे उखाडेगा और न ही इसे उखाडने देगा। किरायेदार की इस निज आस्था से बवाल खडा हो

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -79

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -79 - पंकज अवधिया पिछले दिनो दूर कस्बे से कुछ रिश्तेदारो का आना हुआ। उनकी गाडी सुबह-सुबह आयी। यह मेरे सोने जाने का समय था। उनसे मुलाकात नही हो पायी। उन दिनो मधुमेह की वैज्ञानिक रपट पर जोर-शोर से काम चल रहा था। कुछ घंटो की नीन्द के बाद मै फिर से कम्प्यूटर पर पिल पडा। वही ब्रश किया, फिर नाश्ता और भोजन भी वही आ गया। रिश्तेदार एक सप्ताह तक रुकने वाले थे। इसलिये सोचा कि उनसे कल मिल लूंगा। घर के बाकी सदस्य आवभगत मे लगे रहे। रपट का फेर ऐसा रहा कि मै 22 घंटे से अधिक इसी मे फँसा रह गया। अब रिश्तेदारो से रहा नही गया। मेरी मामी ने कमरे मे प्रवेश किया। उनके हाथ मे एक कपडा था। मैने उठकर अभिवादन किया तो उन्होने चुप रहने का इशारा किया। उन्होने कपडे को सात बार सिर पर घुमाया और फिर जैसे आयी थी वैसे ही चली गयी। मुझे यह सब अटपटा लगा। मैने काम समेटना ही उचित समझा। तभी बाहर किसी चीज के जलने की बास आयी। मै बाहर भागा तो देखा कि मामी उसी कपडे को जला रही थी। घर वालो की तरफ देखा तो उन्होने शांत रहने क

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -78

अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -78 - पंकज अवधिया “जिन लोगो की अनामिका, कनिष्ठा से बडी होती है वे लोग उनकी तुलना मे अधिक आक्रामक होते है और अधिक धनार्जन करते है जिनकी कनिष्ठा, अनामिका से बडी होती है।“ आप सोच रहे होंगे कि मै किसी देशी हस्त-रेखा विशेषज्ञ से सुनकर यह बता रहा हूँ। पर इस शोध निष्कर्ष तक पहुँचे है कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक। दुनिया भर मे इस शोध के विषय मे विस्तार से लिखा गया है। मुझे यह खबर मेरे हस्त-रेखा विशेषज्ञ मित्र से मिली जो गुस्से से भरकर कल मिलने आये। वे “अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग” की यह लेखमाला बडे ध्यान से लगातार पढ रहे है। उनके मन मे ढेरो प्रश्न है पर मै उन्हे समय नही दे पा रहा हूँ। जब उन्होने बीबीसी की वेबसाइट पर यह समाचार पढा तो उनसे रहा नही गया और ढेरो अखबारी कतरनो के साथ आ धमके। उनका कहना था कि भारतीय ज्योतिष के आधार पर उन्होने कई बार अपने लेखो मे इस तथ्य को लिखा पर हर बार इसे अन्ध-विश्वास बताकर इसका माखौल उडाया गया। अब जब यही बात विदेशी वैज्ञानिक कह रहे है तो कोई विरोध न