अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -90
अन्ध-विश्वास के साथ मेरी जंग : कुछ अनुभव -90 - पंकज अवधिया जंगल मे काफी भीतर जाने के बाद हमे आखिर वह दुर्लभ आर्किड दिख ही गया जिसके बारे मे मै पारम्परिक चिकित्सको से अक्सर सुना करता था पर अचानक ही सामने चल रहा स्थानीय मार्गदर्शक रुक गया और आगे जाने से इंकार कर दिया। हो सकता है कोई जंगली जानवर- ये सोचकर मैने आस-पास देखने की कोशिश की पर कुछ दिखायी नही दिया। मार्गदर्शक ने कहा कि जानवरो का यहाँ कोई डर नही है। तो फिर? मैने सोचा हो सकता है कि यह आर्किड को एकत्र करने का उचित समय न हो। आर्किड वैसे ही धार्मिक आस्था से जुडे होते है। पर मार्गदर्शक ने कहा कि इस रास्ते से बुरी आत्माए गयी है। इसलिये हमे रास्ता बदलना होगा। उसके चेहरे पर डर के भाव थे। अब कौन बहस मे पडे? यह सोचकर मैने हामी भर दी। दूसरे रास्ते से आर्किड के पास पहुँचे और उसे विधि-विधान से एकत्र कर लिया। लौटते वक्त मैने पूछा कि तुमने कैसे पता किया कि पहले वाले रास्ते से बुरी आत्माए गुजरी है। उसने बताया कि आत्माओ ने गुजरते वक्त पौधो पर थूका है। यह कहकर उसने एक पौधे की ओर इ